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Updated: 17 फरवरी, 2020 06:16 PM
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अमित शाह (Amit Shah) ने भी मान लिया है कि दिल्ली चुनाव 2020 में हार की वजह बीजेपी नेताओं की भड़काऊ बयानबाजी हो सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अक्सर ही बीजेपी नेताओं को कुछ भी नहीं बोल देने की सलाह देते रहे हैं - लेकिन चुनाव आते ही सभी ये बातें भूल जाते हैं.

दिल्ली चुनाव के दौरान प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर भड़काऊ बयानबाजी (BJP leaders controversial remarks) के मामले में खासे एक्टिव रहे और अब ये बीड़ा लगता है केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने उठा लिया है - और यही वजह है कि गिरिराज सिंह को बीजेपी अध्यक्ष जेडी नड्डा की चेतावनी भी मिल चुकी है. दिल्ली के बाद बिहार चुनाव की बारी है. 2015 के बिहार चुनाव में राजनीतिक बयानबाजी का स्तर काफी नीचे गिरा हुआ देखा गया था, लेकिन जिस तरह बीजेपी नेतृत्व ने हकीकत को समझने और ऐसे नेताओं पर लगाम कसने की कोशिश की है.

बात बस बिहार चुनाव की नहीं है, सवाल है कि बीजेपी नेतृत्व ये सख्ती अगले चुनाव तक बरकरार रह पाएगी?

गिरिराज को नड्डा की नसीहत

बीजेपी नेता गिरिराज सिंह अपने संसदीय क्षेत्र बेगूसराय में खुली जीप में घूम रहे थे और नारे लग रहे थे - 'भारतवंशी तेरा मेरा रिश्ता क्या, जय श्री राम जय श्री राम!' ये तब का वाकया है जब जीप मुस्लिम बहुल एक इलाके से गुजर रही थी. बेगूसराय में ही गिरिराज सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान का अवतार बताया और भारत माता पर उंगली उठाने वालों की आंखें निकाल लेने की भी बात कही.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गिरिराज सिंह को ऐसे बयानों से बचने की सलाह दी है. वैसे नड्डा की नाराजगी गिरिराज सिंह के देवबंद को लेकर दिये गये बयान पर थी. गिरिराज सिंह ने वो बयान यूपी के सहारनपुर में एक कार्यक्रम में कही थी.

गिरिराज सिंह का कहना रहा, 'देवबंद आतंकवाद की गंगोत्री है, हाफिज सईद समेत बड़े-बड़े आतंकवादी यहीं से निकलते हैं.'

giriraj singh, jp naddaअमित शाह के बाद जेपी नड्डा ने भी गिरिराज सिंह को चेता दिया है

सोनिया गांधी से लेकर नीतीश कुमार तक गिरिराज सिंह के निशाने पर रहे हैं. पिछले साल आम चुनाव में भारी जीत के बाद केंद्र में सरकार गठन और फिर कैबिनेट में हिस्सेदारी को लेकर जोड़ तोड़ चल रही थी. बाद में नीतीश कुमार ने एक ही मंत्री पद मिलने के कारण हाथ वापस खींच लिये थे. तभी गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार को टारगेट करने का बहाना खोज लिया.

सूत्रों के हवाले से तब खबर आयी कि अमित शाह ने इस बयान से नाराज होकर गिरिराज को फोन किया और जम कर क्लास लगायी. नड्डा की ही तरह सख्त लहजे में शाह ने भी गिरिराज सिंह को ऐसी बयानबाजी से बचने की सलाह दी थी - लेकिन असर ज्यादा दिन रहता कहां है?

आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीजेपी नेताओं को छपास के मोह में न पड़ने की सलाह दी थी. बगैर किसी नेता का नाम लेते हुए मोदी ने ये भी कहा था कि ऐसे नेता सुबह सुबह कैमरा देखते ही राष्ट्र के नाम संदेश देने लगते हैं - लेकिन ऐसी चीजों से बचने की जरूरत है.

अमित शाह मान लिया, नेताओं को मना भी लेंगे क्या?

दिल्ली चुनाव में प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर की बयानबाजी खूब चर्चा में रही और उसकी वजह से चुनाव आयोग ने दोनों नेताओं को स्टार प्रचारकों की लिस्ट से तो बाहर किया ही, कई दिनों तक प्रचार पर पाबंदी भी लगाये रखी.

एक टीवी प्रोग्राम में जब अमित शाह का ध्यान इस तरफ दिलाया गया तो उनका कहना था, 'वो बयान नहीं देने चाहिए थे, पार्टी ने तुरंत ही अपने आप को उनसे अलग किया.'

अमित शाह ने इस बारे में दलील भी पेश की, 'कार्यकर्ता कई स्तरों से उभरकर आते हैं. हर स्तर के कार्यकर्ता चुनाव के मैदान में होते हैं. ऐसे में कोई कुछ बोल जाता है. मगर जनता को मालूम है कि पार्टी कौन है. पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता होते हैं. घोषित बोर्ड होता है. स्थापित नेता होते हैं - और उनके बयानों को नजरअंदाज कर कोई बोलता है तो वो पार्टी का नजरिया नहीं हो सकता.'

पक्की बात है, लेकिन सवाल भी बनता है कि प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर किस कैटेगरी के कार्यकर्ताओं में आते हैं?

ये ठीक है कि वे बीजेपी के आधिकारिक प्रवक्ता नहीं हैं, लेकिन ऐसे भी गये गुजरे तो नहीं हैं. अगर मामूली कार्यकर्ता होते तो बीजेपी उनको स्टार प्रचारक तो नहीं ही बनायी होती और चुनाव आयोग को लिस्ट से हटाने की हिदायत नहीं देनी पड़ती.

वैसे भी अनुराग ठाकुर मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं और प्रवेश वर्मा वही हैं जिन्हें मनोज तिवारी के दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष रहते अमित शाह ने अरविंद केजरीवाल को बहस के लिए चैलेंज किया था. क्या अब भी प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर के मामूली कार्यकर्ता होने का शक बचा हुआ है?

उसी टीवी कार्यक्रम में जब 'देश के गद्दारों को...' जैसे नारों की तरफ ध्यान दिलाते हुए पूछा गया कि क्या बीजेपी को दिल्ली चुनाव में ऐसी ही बातों का खामियाजा भुगतना पड़ा?

अमित शाह ने कहा, 'हो सकता है कि भुगतना भी पड़ा हो. वोट देने वाले ने क्यों वैसा वोट दिया ये तो मालूम नहीं किया जा सकता, मगर हो सकता है कि भुगतना पड़ा हो.'

दिल्ली चुनाव के नतीजे आये तो बीजेपी नेता गिरिराज सिंह की प्रतिक्रिया रही, पाकिस्तान की भाषा बोलने वालों की वजह से बीजेपी की हार हुई है. दिल्ली में वोटिंग से ठीक दो दिन पहले 6 फरवरी, 2020 को गिरिराज सिंह ने कहा था कि शाहीन बाग अब सिर्फ आंदोलन नहीं रह गया है, यहां आत्मघाती हमलावरों का जत्था बनाया जा रहा है. देश की राजधानी में देश के खिलाफ साजिश हो रही है.

देखा जाये तो गिरिराज सिंह अपने नेता की बातों को ही आगे बढ़ा रहे थे. दरअसल, ये अमित शाह का ही बयान था कि लोग EVM का बटन ऐसे दबायें कि करंट शाहीन बाग तक लगे. अमित शाह भी मानते हैं कि उनका बयान मुद्दा बन गया था.

अमित शाह का कहना रहा, 'मैं मानता हूं कि विपक्ष ने मेरे उस बयान को मुद्दा बना लिया. मगर चुनाव कभी भी एक मुद्दे पर नहीं लड़ा जाता.' बोले, 'प्रदर्शन कैसे होने चाहिये, इसे हमने मुद्दा बनाया था - और ये आज भी चर्चा का मुद्दा है. जिस तरह से शाहीन बाग वालों को अपना मत व्यक्त करने का अधिकार है, वैसे ही हमें भी अधिकार है कि हम अपना मत व्यक्त करें.'

अब गिरिराज सिंह की नजर बिहार चुनाव पर है. राजनीति में चुनाव ही सबसे बड़ा तीर्थ होता है. हर चुनाव चार धाम के बराबर होता है और लोक सभा-विधानसभा चुनाव तो कुम्भ की तरह लंबे अंतराल पर आते हैं. गिरिराज सिंह को भी मालूम है कि अपने लोगों को टिकट मिले उसकी पैरवी करनी है और फिर वो जीत भी जायें ये सुनिश्चित करना है - यही वजह है कि वो अभी से एक्टिव हो गये हैं. बीजेपी अध्यक्ष नड्डा की बातों का असर तो होना ही चाहिये, लेकिन चुनाव की तारीख नजदीक आते ही मन भी तो बेकाबू हो जाता है.

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