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Updated: 18 अक्टूबर, 2016 10:03 PM
कुमार अभिषेक
कुमार अभिषेक
  @kumarabhishek01
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पार्लियामेंट चुनाव में अमित शाह उत्तर प्रदेश के चुनावी चाणक्य बनकर उभरे, तो इसके पीछे मोदी लहर के साथ-साथ, जातियों को जोड़ने और तोड़ने की उनकी काबिलियत के साथ-साथ टिकटों के बंटवारे में जातियों का संतुलन भी खासा हाथ रहा लेकिन बिहार चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस का मजा चख चुके अमित शाह उत्तर प्रदेश चुनाव में हर कदम फूंक-फूककर रख रहे हैं. ऑपरेशन “ओबीसी” के बाद अमित शाह की नजरें उस दलित वोट बैंक पर टिकी है, जिसकी बेताज बादशाहत अबतक मायावती के पास थी, ऐसे में जब अमित शाह यूपी की सियासत पर अपने दलित ऐजेंड़े को लेकर सामने आ रहे हैं तो मायावती खेमें में इसकी खलबली भी दिखाई देने लगी है.

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 दलित वोटों पर टिकी निगाहें

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जिस रोहित वेमुला के मामले की वजह से बीजेपी दलितों के मुद्दे पर बैकफुट पर रही थी, अब मामले के शांत होते ही फ्रंटफुट पर आने लगी है, शुक्रवार को धम्म चेतना यात्रा के समापन पर अमित शाह का आत्मविश्वास इस ओर इशारा कर रहा था. धम्म यात्रा या बौध भिक्षुओं का सम्मेलन अबतक या तो बीएसपी की पहचान रहे हैं या फिर इसे अंबेडकरवादी संगठनों के प्रतीक के तौर पर माने जाते रहे है लेकिन पहली बार बीजेपी ने धम्म चेतना यात्रा को अपने बैनर तले चलाया और अंबेडकरवादियों को दलितों के मुद्दों पर भी चुनौदी दे डाली. यूपी में 174 दिनों की यात्रा के बाद जब ये यात्रा कानपुर पहुंची तो पूर्व सांसद और घोर अंबेडकरवादी धम्म वीरों और सैकड़ों बौध भिक्षुओं के सामने बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता खड़े थे, जिस मंच से जमकर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ हुई.

धम्म चेतना यात्रा के कोर्ड़िनेटर और युवा रक्षित भिक्षु कहते हैं पीएम मोदी में उन्हे सम्राट अशोक का अक्स दिखाई देता है क्योंकि मोदी की हर बात में भगवान बुद्ध आते है वो चाहे प्रधानमंत्री बनने के बाद बौद्ध देशों की यात्रा हो या फिर रामलीला से युद्ध से बुद्द की ओर जाने का संदेश, कुछ ऐसा ही मोदी अंबेडकर को लेकर भी है. जिस अंबेडकर को लोग अपने राजनीति के लिए इस्तेमाल करते रहे उस अंबेडकर को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए अगर किसी ने कुछ किया तो वो सिर्फ मोदी है. 

ऐसा नहीं है कि इस यात्रा की चर्चा नहीं हुई कई जगहों पर इसे बीजेपी की यात्रा कहते हुए इसे रोका गया, कई जगह काले झंड़े दिखाए गए और कई जगहों पर दलित संगठनों ने इसका विरोध किया, विरोध की वजह से आगरा में इसके समापन तक को कैंसिल करना पड़ा लेकिन एक बात साफ हो गई कि बीजेपी दलितों में दलित और अंबेडकरवादियों अंबेडकर को ढूंढने में सफल हुई है.   

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ओबीसी को लगभग साध चुके अमित शाह की नजरें अब दलित वोटों पर टिकी हैं, अमित शाह की कोशिश पहले बीएसपी से पिछ्ड़ी और अति पिछड़ी जातियों को तोडने की थी जो परंपरागत तौर पर दलितों के साथ वोट करते रहे हैं, अपने पहले ऐजेंड़े में सफल होने के बाद अमित शाह दलितों में भी सेंध लगाने मे जुटे हैं. यही वजह है कि शाह की नजरें अब दलितों के उस जमात पर टिकी हैं जो दलित में होने के बावजूद मायावती के कट्टर समर्थकों में नहीं है और कोशिश करने पर उनकी बड़ी तादात बीजेपी के साथ जुड़ सकती है. 

दलितों में जाटव मायावती और बीएसपी के कट्टर वोटर है जिनकी तादात पूरे दलित संख्या का करीब 60 फीसदी है, ये वोटबैंक मायावती के साथ चट्टान की तरह खड़ा है लेकिन बीजेपी को लगता है कि पासी और कोरी सरीखी दलित जातियों पर उनका ऑपरेशन चल सकता है और अमित शाह की कोशिश भी यही है कि बीएसपी से जाटव के अलावा दूसरी दलित जातियों को तोड़ लिया जाए. बीजेपी इसी ऐजेंड़ पर चल भी रही है जाटव के अलावा दूसरी दलित जातियों के नेता लगातार बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में है, सुरक्षित सीटों पर उन्हें ज्यादा से ज्यादा टिकट देने की तैयारी भी है और अब तो दलितों के नाम पर पासी-कोरी और राजभर जातियों के सम्मलेन भी कराने की तैयारी हो रही है. 

उत्तर प्रदेश में दलितो की तादात 21 से 23 फीसदी के बीच है, बुंदेलखंड़ में इनकी तादात सबसे ज्यादा लगभग 27-28 प्रतिशत है, अब बीजेपी की नजरें भी इसी वोटबैंक पर गड गई हैं, जिस तरह से मायावती अपनी हर रैली में प्रधानंमत्री मोदी को निशाना बना रही है और जिस तरह से अमित शाह दलितों पर अपने ऑपरेशन में लगे हुए है दोनो पार्टियों के बीच घमासान लगभग तय है. बीजेपी की पूरी कोशिश इस 22 फीसदी वोट के उस 30 फीसदी वोटों पर है जो बीएसपी को तो परंपरागत तौर पर तो वोट करते आए हैं लेकिन वो दलितों में चमारों या जाटवों के प्रभुत्व से भी नाराज है और बीजेपी के प्रति भी सॉफ्ट नजरिया रखते हैं. 

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ओबीसी वोटों को साधने के लिए अमित शाह पिछले 6-8 महीनों में कई जातियों और पार्टियों पर कई बड़े सर्जिकल ऑपरेशन कर चुके हैं, इस ऑपरेशन का ही असर है कि स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर सरीखे कई पिछड़ी जातियों के नेता या तो बीजेपी का दामन थाम चुके हैं या बीजेपी से गठबंधन पक्का कर चुके हैं. जातियों के लिहाज से कुर्मी, राजभर, शाक्य सैनी निषाद सरीखी पिछड़ी जातियों का झुकाव बीजेपी की ओर दिखता है क्योंकि बीजेपी ने उतर प्रदेश के कई पिछड़े चेहरों को मोदी कैबिनेट में जगह भी दी है और इनके छोटे दलों से गठबंधन भी कर रखा है. 

मंदिर लहर की बात छोड़ दें तो बीजेपी उत्तर प्रदेश में कभी नंबर तीन तो कभी नंबर चार की पार्टी रही है लेकिन आने वाले यूपी के चुनाव में पोल सर्वे सीधे तौर पर बीजेपी की दस्तक दिखा रहे हैं. इसकी वजह सिर्फ केन्द्र मे मोदी सरकार का होना नहीं है बल्कि यूपी में ओबीसी जातियों का बीजेपी का बढता झुकाव है और अगर बीजेपी दलित वोट के अपने ऑपरेशन में सफल रही यूपी की सत्ता का बीजेपी के हाथ लग सकती है लेकिन फिलहाल ये आसान होता नहीं दिखता.

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कुमार अभिषेक कुमार अभिषेक @kumarabhishek01

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