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Updated: 13 सितम्बर, 2016 04:42 PM
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20 अगस्त को अमित शाह गोवा गये थे - और अभी महीना भर भी नहीं बीता है कि उन्हें तीसरा विरोध फेस करना पड़ा है. दिलचस्प बात ये है कि शाह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जहां भी हुए उन तीनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है. तीन में से दो में चुनाव होने वाले हैं और बीजेपी उसी के हिसाब से तैयारी कर रही है.

गोवा के खतरे

अमित शाह के खिलाफ जिन तीन जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए उन सभी के कारण बिलकुल अलग थे. गोवा में स्कूलों और स्थानीय भाषा की मांग के सिलिसिले में अमित शाह को काले झंडे दिखाए गये तो हरियाणा में करीब चार महीने से आंदोलन कर रहे शिक्षकों ने अपनी आवाज न सुनी जाने पर विरोध का तरीका अपनाया. गुजरात में विरोध की वजह भी अलग थी - और तरीका भी.

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गोवा में विरोध प्रदर्शन के बाद वहां के संघ प्रमुख को हटा दिया गया - और सुभाष वेलिंगकर ने अलग फोरम खड़ा कर लिया. अब नव नियुक्त गोवा संघ प्रमुख लक्ष्मण बेहरे कह रहे हैं कि शाह को प्रदर्शन कर रहे लोगों की बात सुननी चाहिये थी. बेहरे ने वेलिंगकर का भी सपोर्ट किया है. गोवा मामले में शाह के साथ साथ रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का नाम भी इस विवाद में शुमार हो रहा है. वेलिंगकर ने भी हटाए जाने के बाद पर्रिकर को निशाना बनाया था.

गोवा में बीजेपी की सरकार है - और अगले साल वहां भी चुनाव होने वाले हैं. खास बात ये है कि आप नेता अरविंद केजरीवाल भी वहां चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में जुटे हैं जो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं.

गुजरात की मुश्किल

गुजरात में अमित शाह का विरोध बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा फिक्र बढ़ाने वाला है. हाल ही में आनंदी बेन के कुर्सी छोड़ने के बाद अमित शाह ने अपने पसंदीदा विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनवाया तो पाटीदारों को शांत रखने के लिए नितिन पटेल को भी डिप्टी सीएम बनाया गया.

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ये हो क्या रहा है...

लेकिन आरक्षण की मांग पर आंदोलन कर रहे पाटीदार इससे शांत नहीं दिखते. पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को सीधे सीधे आनंदी बेन पटेल से कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन उनके समर्थकों को नितिन पटेल को सीएम न बनाया जाना भी शायद ठीक नहीं लगा है. वैसे तो वो बीजेपी के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं लेकिन कुर्सी बदले जाने के बाद उनका तेवर और तीखा हो गया है.

सूरत में जिस तरह अमित शाह की सभा में घुस कर उत्पात मचाया वो जताता है कि मामला काफी गंभीर है. शायद बीजेपी को भी इस बात का अंदाजा था इसलिए एहतियाती उपाय भी किये गये थे - लेकिन कोई काम न आया.

मंच पर बीजेपी की तमाम हस्तियां मौजूद थीं, लेकिन अमित शाह को भी बगैर अपनी बात पूरी किये कार्यक्रम खत्म करना पड़ा.

हरियाणा की बात दीगर है, लेकिन गोवा और गुजरात का मामला काफी गंभीर है. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राज्य में संघ में टूट पड़ी हो - और संघ ने जिस शख्स को जिम्मेदारी सौंपी हो वो भी अपने पूर्ववर्ती की बात का समर्थन करे. ये संघ के लिए जहां चिंता की बात है वहीं बीजेपी की राह में आने वाली मुसीबतों की आशंका जता रहा है.

दिल्ली और बिहार में संघ के कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत के बावजूद बीजेपी को मुहंकी खानी पड़ी थी. यूपी, पंजाब और उत्तराखंड चुनाव सिर पर हैं, जिनके नतीजों को लेकर भी बीजेपी नेता शायद ही बहुत आश्वस्त हों.

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जिस तरह की घटना गुजरात और गोवा में देखने को मिली है, वैसी घटनाएं कभी इंदिरा गांधी के जमाने में कांग्रेस में हुआ करती थीं - आज कांग्रेस का हाल सबके सामने हैं. बीजेपी भी कहीं उसी राह पर तो नहीं बढ़ रही.

चर्चा ये भी है कि मार्गदर्शक मंडल भी अंगड़ाई लेने लगा है - और राष्ट्रीय परिषद में बीजेपी आला कमान के लिए नई चुनौतियां खड़ी करने वाला है.

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