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Updated: 14 मई, 2019 10:42 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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कई सालों पहले हमने एक खाड़ी युद्ध देखा था, ईराक के खिलाफ अन्य देशों की फौजें खड़ी हो गई थीं. उसके बाद से ईराक के हालात कुछ सुधरे नहीं. बल्कि किसी न किसी वजह से बिगड़े ही हैं. अब एक बार फिर दूसरे ऐसे ही युद्ध का ढांचा तैयार किया जा रहा है. पिछले युद्ध में जहां जॉर्ज बुश ने अमेरिकी फौजों को ईराक के विरुद्ध खड़ा किया था अब ट्रंप अमेरिकी फौजों को ईरान के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं. अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने जैसे युद्ध की तैयारी शुरू कर दी है. ईरानी जलक्षेत्र के आस-पास अमेरिकी एयरक्राफ्ट कैरियर आ गया है और खबर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के पास ईरान के खिलाफ 1 लाख 20 हज़ार सैनिकों को तैनात करने का प्लान भी आ गया है.

अमेरिका का ऐसा करना अभी अमेरिकी-ईरानी रिश्तों के बिगड़ने का संकेत तो दे रहा है, लेकिन ईरानी रेवोल्यूशन और Iran hostage crisis के बाद से ये पहली बार होगा जब अमेरिका ईरान के खिलाफ कुछ कर रहा है. असल में ये 40 साल पुरानी घटना का असर है.

फिलहाल ईरान चारों तरफ से घिरा हुआ है. जहां एक ओर ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ़ सोमवार की रात नई दिल्ली पहुंचे हैं. ज़रीफ़ भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाक़ात करेंगे ताकि वो भारत और ईरान के तेल समझौते पर बात कर सकें. दरअसल, अमेरिका ने भारत को ईरान से तय सीमा में तेल खरीदने की छूट दी थी, लेकिन अब वो छूट भी खत्म हो गई है. दूसरी ओर अमेरिका से युद्ध के खतरे को भांपते हुए ईरान की रेवोल्यूशनरी गार्ड फोर्स भी तैयारी कर रही है. हालांकि, अभी जनरल होसैन सलामी ने कहा है कि ये सिर्फ मनोवैज्ञानिक युद्धनीति है.

अमेरिका, ईरान, बंदी, युद्धअमेरिका और ईरान के रिश्तों पर अभी भी 40 साल पुरानी घटना भारी पड़ रही है

40 साल पुरानी घटना जो अमेरिका और ईरान के रिश्ते में दरार की शुरुआत थी...

1979 में ईरानी रेवोल्यूशन की शुरुआत हुई. जब तत्कालीन सुल्तान रेज़ा शाह पहल्वी के तख्तापलट की तैयारी हुई. दरअसल, 1953 में अमेरिका की मदद से ही शाह को ईरान का राज मिला था और उसने अपने काल में ईरान में अमेरिकी सभ्यता को फलने-फूलने तो दिया, लेकिन साथ ही साथ आम लोगों पर कई तरह के अत्याचार भी किए. ऐसे में कई धार्मिक गुरू शाह के खिलाफ हो लिए और 1979 वो साल बना जिसने ईरान की सूरत ही बदल दी. शाह ने अमेरिका में अक्टूबर 1979 में पनाह ली और नवंबर 1979 में शुरू हुआ. ईरान पर इस्लामिक रिपब्लिक कानून लागू किया गया जब धर्म गुरू अयातोल्लाह रूहोलियाह खोमिनी (Grand Ayatollah Ruhollah Khomeini) के साथ कई धार्मिक संगठन हो लिए और साथ ही कई कट्टर स्टूडेंट्स भी हो लिए.

ईरान में नवंबर 4, 1979 को तेहरान की अमेरिकी एम्बेसी पर हमला हुआ. इसमें 63 लोगों को कब्जे में लिया गया. उसके बाद तीन और लोगों को बंदी बनाकर लाया गया. कुल 66 लोगों को बंदी बनाया गया. कुछ दिन बाद उनमें से कई लोगों को छोड़ा गया, लेकिन बचे 52 लोगों को तेहरान की अमेरिकी एम्बेसी में ही 444 दिनों तक रहना पड़ा. पूरे डेढ़ साल.

इन 52 बंधकों को 20 जनवरी, 1981 में छुड़वाया गया था. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने इसे ब्लैकमेल और आतंकवाद की घटना बताई थी. ये घटना इतनी ताकतवर थी कि अमेरिका में भी जिमी कार्टर को अपनी सत्ता गंवानी पड़ गई थी. इसे ईरान में अमेरिकी के दख्ल का विरोध बताया जा रहा था. ईरानी जनता अमेरिकी प्रभाव को कम करना चाहती थी जिससे न सिर्फ ईरान में बल्कि पूरी दुनिया में उठापठक मच गई थी.

ईरान के सुल्तान शाह उस समय अमेरिका में अपने कैंसर का इलाज करवा रहे थे और ईरानी रेवोल्यूशन के विद्रोही उनकी वापसी चाहते थे. उनपर आरोप लगा था कि अपनी खूफिया पुलिस की मदद से उन्होंने ईरानी जनता के खिलाफ कई अपराध किए हैं. ईरान की मांग अमेरिका द्वारा खारिज कर दी गई थी और अमेरिका में शाह का होना इस मामले को और ज्यादा बढ़ा रहा था.

इसे विएना संधि के खिलाफ बताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने बाकायदा आर्मी ऑपरेशन Eagle Claw की मदद से बंधकों को छुड़वाने की कोशिश भी की थी, लेकिन ये सफल न हो पाया. इस ऑपरेशन में 8 अमेरिकी सर्विसमैन और 1 ईरानी नागरिक की मौत भी हो गई थी.

इस ऑपरेशन के बाद ईरान के कई अमेरिका से संबंध रखने वाले नागरिकों को देशनिकाला दे दिया गया था. भले ही नजरबंद किए गए किसी भी अमेरिकी नागरिक को मारा नहीं गया, लेकिन उनके साथ बहुत अच्छा बर्ताव भी नहीं किया गया और नतीजा ये निकला कि अमेरिका और ईरान के रिश्ते बेहद खराब हो गए.

अमेरिका ने तब से लेकर अब तक इसे लेकर कोई भी विद्रोह नहीं किया. इस घटना पर एक ऑस्कर विनिंग फिल्म भी बनी Argo.

अमेरिका और ईरान के रिश्तों को तब से ही बहुत तनावपूर्ण माना जा रहा है. ईरान और अमेरिका के रिश्तों का तनाव अब 40 साल बाद ऐसी स्थिति पर पहुंच गया है कि किसी युद्ध जैसे हालात बन गए हैं. जिस विद्रोह के कारण अमेरिका में सत्ता ही बदल गई और जिमी कार्टर दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रपति नहीं बन पाए, जिस विद्रोह के चलते अमेरिका जो खुद को दुनिया का सबसे ताकतवर देश मानता है उसे कमजोर साबित कर दिया गया और ये सब सिर्फ अमेरिकी नागरिकों को बंदी बनाने के कारण हुआ. ऐसे में वाजिब है कि अमेरिका अभी भी अपनी उसी 40 साल पुरानी दुश्मनी का बदला लेने की कोशिश करे. उस समय तो राजनायिक कारणों से कुछ हो नहीं पाया, लेकिन जिस तरह के हालात अभी बना दिए गए हैं उस हिसाब से अमेरिका की नियत युद्ध वाली ही लग रही है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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