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Updated: 18 जून, 2022 09:31 PM
डॉ. ऋषि अग्रवाल 'सागर'
डॉ. ऋषि अग्रवाल 'सागर'
  @editorrishi
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भारतीय सेना को मात्र नौकरी का ज़रिया समझने वाले वे युवा जो आज देश की संपत्ति को नुक़सान पहुँचा रहे हैं, वो किसी भी हाल में अग्निवीर बनने के काबिल नहीं. अगर उन्हें अग्निवीर नहीं बनना तो बेशक ना बने, सरकार की कोई योजना समझ ना आये तो उसका विरोध करे, पर विरोध का ये तरीक़ा कदापि उचित नहीं कि ट्रेन-गाड़ी-बाइक जला दिया जाये, पथराव किया जाये.ऐसे करने से क्या हासिल होगा? विपक्ष आपको निशाना बना रहा है और आप योजना के विरोध के चक्कर में उनका निशाना बन रहे हैं. किसने कहा कि आप अग्निवीर ही बनो? आपको अगर अग्निवीर नहीं बनना तो और भी बहुत सारी नौकरी है उसकी तैयारी करो, पर जिन्हें अग्निवीर बनना है कम से कम उनका तो रास्ता मत रोको. एक तरफ़ हम भारत को ये कहते हैं कि इजराइल इत्तु-सा है और आस पास मुस्लिम बाहुल्य मुल्कों को अपने पैरों के तले दबा कर रखता है और भारत अरब देशों के आगे झुक जाता है. किसी को ये जानना में रुचि नहीं वो ये सब कैसे कर पाता है? इजराइल में हर युवा को 18 से 21 साल की उम्र में सेना में भर्ती होना अनिवार्य है और अल्प समय (25 साल की उम्र तक या चार साल होने पर) के बाद उन्हें अन्य कामों को करने के लिए सैन्य सेवा से मुक्त कर देते हैं.

Bihar, Agniveer, Agnipath Scheme, Indian Army, Soldier, Narendra Modi, Prime Minister, Employment अग्निपथ स्कीम के विरोध में हिंसा और आगजनी के जरिये उग्र प्रदर्शन करता युवा वर्ग

इज़राइल सरकार ये सब इसलिए करती हैं जिससे कभी भी देश पर कोई आपदा आये तो अन्य सेक्टर में काम करने वाले वो पूर्व सैनिक तुरन्त जवाबी कार्यवाही के लिए तैयार रहे. लेकिन इससे हमें क्या लेना देना, जिन्हें भारतीय सेना मात्र पैसा कमाने का ज़रिया लगे. सच तो ये हैं कि विपक्ष को बस मौक़ा चाहिए कैसे भी कर मोदी सरकार को सत्ता से हटाया जाये और उसके लिए साम दाम दण्ड भेद सब चलेगा. मोदी सरकार की हर योजना के विरोध में विपक्ष ने हंगामा किया है.

नोटबंदी, जीसटी, राम मंदिर, उज्ज्वला, शौचालय, मकान, स्वच्छता अभियान, तीन तलाक, CAA, विदेश नीति, कृषि बिल जैसी अनेकों योजनाओं के खिलाफ आमजन को भड़काने का भरसक प्रयास किया है जो बदस्तूर अभी भी जारी है. उनको तो बस मौका चाहिए, कि कोई योजना आये और हम लोगों को भड़काये. अग्निपथ पर चलने के लिए जब युवाओं के लिए एक सुनहरा मौका खोजा तो विपक्ष को ज़रिया मिल गया, युवाओं को भ्रमित करने का.

पर एक बात उन युवकों से पूछनी है कि ऐसी कौनसी प्राइवेट कम्पनी है जो 10th पास करने के तुरंत बाद 17.5 साल की उम्र में प्रथम वर्ष 30,000, द्वितीय वर्ष 33,000, तृतीय वर्ष 36,500 और चतुर्थ वर्ष 40,000 और फिर रिटायरमेंट में 11.72 लाख रुपये देगी?

हर युवा जानता है कि दसवीं पास करने के बाद सरकारी नौकरी के सपने हवाई बातें बन चुकी है. भारतीय सेना में शामिल होने के लिए 12th पास होना ज़रूरी था, जिसे अब अग्निपथ के माध्यम से 10th किया गया. अग्निपथ की आधी जानकारी पढ़कर आक्रोशित होकर जिस तरह युवा सड़कों पर हंगामा मचा रहे हैं वो ये क्यों जानना नहीं चाहते कि अग्निपथ के माध्यम से शामिल युवा में पच्चीस प्रतिशत को स्थाई और बाक़ी को अन्य नौकरी के लिए प्राथमिकता मिलेगी.

मतलब सीधा-सा है सेना के मार्ग से गुजर कर आने वाले युवाओं को पुलिस, असम राइफल, अर्द्ध सैनिक बल जैसी अनेकों नौकरी में प्राथमिकता मिलेगी. आज के युवाओं के पास डिग्री तो है किन्तु ज्ञान नहीं है.भारतीय सेना अब इनको विभिन्न क्षेत्रों की ट्रेनिंग भी देगी और अनुशासन रहना भी सिखायेगी. आरक्षण के माध्यम से डिग्री, नौकरी सबको चाहिए लेकिन शारीरिक व मानसिक परिश्रम कोई नहीं करना चाहता.

अगर भारतीय सेना 4 साल सेना में रखकर, विभिन्न क्षेत्रों में आपको मजबूत बनाकर भेज रही है तो इसमें क्या बुराई है? लेकिन सबको यहाँ आराम पसंद वाली नौकरी चाहिए, खूब सारा वेतन मिले और ज़िन्दगी भर पेंशन.पर ये किसी ने सोचा कि दसवीं पास वो नौजवान चार साल की नौकरी कर छोटी-सी आयु में 25 लाख रुपये के क़रीब पाके आगे का भविष्य सुधार सकता है और उन रुपये से आगे की शिक्षा या फिर कोई भी व्यापार कर सकता है.

भारतीय सेना पर पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव कम होगा और अधिक से अधिक हथियार ख़रीद कर सेना को मज़बूत बनायेगी. अग्निपथ योजना कोई मनरेगा वाली योजना नहीं है जिसमें मन चाहे नियम घुसेड़ दिये जाये. ज़रा पूछो देश के उन फौजी भाइयों से जो अभी देश सेवा में अपने जीवन के सुनहरे पल व्यतीत कर देते हैं और एक उम्र बीत जाने के बाद वो सेवानिवृत्त होकर जब लौटते हैं तो उनके पास रहती है एक बैठक (कमरा) जिसमें उसका बाकी जीवन पेंशन के माध्यम से गुजरता है.

ना उसने अपने बच्चों के साथ बचपन जिया, ना ही उनको बढ़ते देख पाता है और ना ही अपनी पत्नी को मानसिक-शारीरिक प्यार दे पाता है और जब वो सेना से सेवानिवृत्त हो घर आता है तो घरवालों को मात्र वो एक पैसों का खजाना ही प्रतीत होता है. उन फौजी भाइयों के मन की पीड़ा को किसी ने जानने की कोशिश नहीं की. कारगिल युद्ध से पहले कोई फ़ौज में जाना नहीं चाहता था और ना ही किसी फौजी के साथ अपनी बेटी ब्याहना नहीं चाहता था.

पर भला हो अटल बिहारी बाजपेई जी का, जिन्होंने कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले फौजी भाइयों को ससम्मान घर भेजने और लाखों रुपये उनके परिवार को भरण-पोषण के लिये देने का ऐलान किया. उसके बाद से युवाओं और उनके परिवार वालों के लिए सेना भर्ती पहली प्राथमिकता बन गई और लड़की को ब्याहने के लिये फौजी पहली पसन्द.

अपने देश की सेवा करने का अगर किसी को एक भी दिन मौक़ा मिले तो अपने आपको भाग्यशाली समझना चाहिए. सोचिए भारत सरकार आपको पूरे चार साल देश सेवा करने का मौका दे रही है और इस मौके के खिलाफ ना जाके इसका स्वागत करना चाहिए. जो लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे है उनके अंदर देश सेवा का नहीं अपितु नौकरी का भाव है.

ऐसे लोगों को सेना से नहीं, अपनी नौकरी से मतलब है अन्यथा देश सेवा करने का मौका चार साल का मिले या पन्द्रह साल, क्या फ़र्क पड़ता है. देश सेवा ही सच्ची सेवा है, मार्ग चाहे कैसा भी हो, बाकी किसी योजना को लागू होने के बाद उसको समय देना चाहिए तभी तो पता लगेगा, उसमें अच्छा क्या था और बुरा क्या? ख़ुद को इतनी जल्दी चाणक्य मत बनाओ, कि देश जल उठे और देश की अर्थव्यवस्था जो कोरोना काल में चौपट हो चुकी है आगे भी यथास्थिति बनी रहे जो कि विपक्ष की दोहरी चाल है. बाक़ी विरोध करने वालों को ईश्वर सदबुद्धि दे.

लेखक

डॉ. ऋषि अग्रवाल 'सागर' डॉ. ऋषि अग्रवाल 'सागर' @editorrishi

लेखक साहित्य जगत से जुड़े हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं

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