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Updated: 05 दिसम्बर, 2020 04:53 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
  @masahid.abbas
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पूरी दुनिया लड़ रही है महामारी से, सबको चिंता है कोरोना वायरस (Coronavirus Pandemic) की और इंतजार है कोरोना की वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) का, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) को चिंता है अपनी नीतियों की, जो उन्होंने पिछले चार वर्षों तक अपनाए रखी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति, चुनाव हार चुके हैं उनके राष्ट्रपति पद के कार्यकाल में अब चंद दिन ही रह गए हैं इसलिए वह हर वो काम कर लेना चाहते हैं जो उनकी रणनीतियों का हिस्सा रही हैं. वह H1-B वीज़ा को लेकर भी सख्त रुख अपना रहे हैं, तो विदेशी नीतियों में भी अपनी ही रणनीति के तहत आगे भी अमेरिका को चलते हुए देखना चाहते हैं. ज़रा सा पीछे जाइए, साल 2020 की शुरूआत ही थी कि अमेरिका ने अपने सबसे बड़े आलोचक ईरान (US Iran Conflict) के सबसे वरिष्ठ सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी (Qasem Soleimani) की हत्या कर दी थी. अपने सबसे ताकतवर सैन्य कमांडर की मौत पर ईरान आगबबूला हो बैठा था और अपने सैन्य कमांडर के जनाज़े को उठाने से पहले ईरान ने ईराक स्थित अमेरिकी एयरबेस पर कई राकेट दाग डाले थे. ईरान ने दावा किया कि इस हमले में अमेरिका के 80 से ज़्यादा सैनिक मारे गए हैं जबकि अमेरिका ने इससे इंकार कर दिया था. हालांकि अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल दागना ही किसी भी देश के लिए बड़ी हिम्मत का काम होता है. ईरान के मिसाइल दागने के बाद दुनिया सकते में आ गई थी. पूरी दुनिया जानती थी कि अमेरिका खामोश रहने वालों में से नहीं है वह ज़रूर पलटवार करेगा. डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनी सेना को ईरान पर हमले के लिए तैयार रहने को कह दिया था. बाद में सबके समझाने के बाद ट्रंप ने इस हमले को टाल दिया था.

Donald Trump, America, President, Joe Biden, US Presidential Election. Iran, Warईरान ट्रंप और कुछ नहीं बस मुसीबत खड़ी कर रहे हैं

ईरान ताकत के मामले में अमेरिका से बहुत पीछे खड़ा है, उसकी सीमा से सटे सभी देशों की ज़मीन पर अमेरिका ने अपना एयरबेस तैयार कर रखा है. ईरान का पड़ोसी सऊदी अरब भी ईरान से चिढ़ खाता है और हमेशा ईरान के खिलाफ हुए कार्यवायी को पहला समर्थन देता है. खै़र उस समय तो युद्ध होते होते टल गया था. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल में ही ईरान को सबक सिखाना चाहते थे. उनको पूरी उम्मीद थी कि वह फिर से अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीतेंगें और दूसरे कार्यकाल में ईरान पर और सख्ती करेंगें. डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार गए, जीत मिली जो बाइडन को, ये वही जो बाइडन हैं जो बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहते हुए उपराष्ट्रपति के पद पर थे.

माना जाता है कि बराक ओबामा ने जिन शर्त पर ईरान के साथ समझौता किया था, उस शर्त को तैयार करने वाले जो बाइडन ही थे. ईरान-अमेरिका के बीच हुए समझौते में जो बाइडन की बड़ी भूमिका थी. बराक ओबामा के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप निर्वाचित होकर आए थे और अपने कार्यकाल के शुरू होते ही वह ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से अलग हो गए थे. हालांकि उस समझौते में शामिल रहे अन्य देशों ने अमेरिका के इस कदम को गलत माना था, लेकिन वह सभी देश खुलकर इसके खिलाफ बोलने से परहेज खाते रहे.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान को हर कीमत पर झुकाना चाहते थे, चाहे इसके लिए अमेरिका को ईरान से युद्ध ही क्यों न करना पड़े. वहीं ईरान तमाम प्रतिबंधों को झेलने के बावजूद अमेरिका के आगे झुकने को तैयार नहीं हुआ. वह हमेशा अमेरिका के खिलाफ मुखर रहा. जो बाइडन ने अपने चुनावी प्रचार में बार-बार दोहराया था कि अगर वह चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बनते हैं तो ईरान के साथ हुए समझौते का मसौदा दुबारा से तैयार करेंगें और ईरान के साथ एक बहुत बड़ा शांति का समझौता करेंगें, इस समझौते में ईरान के साथ उसके सबसे बड़े दुश्मन में से एक सउदी अरब को भी शामिल करेंगें और फिर सभी देश शांति की राह पर आगे बढ़ेंगें.

डोनाल्ड ट्रंप को ये बात नागवार गुज़री, वह किसी भी कीमत पर ईरान के साथ अमेरिका का समझौता नहीं चाहते हैं. अभी हाल ही में ईरान के सबसे बड़े परमाणु वैज्ञानिक डा0 मोहसिन फखीज़ादे को बहुत ही साजिश के साथ मारा गया है. यह हमला इतना टेक्निकल था जिसे मोहसिन फखीज़ादे के सुरक्षाबल भी नहीं भांप सके थे. मशीनगन के द्वारा हुए इस हमले को ईरान ने इस्राइल की करतूत बताया. इस्राइल के मुखिया नेतन्याहू ने तो कई साल पहले ही मोहसिन फखीज़ादे का नाम लेकर कहा था कि इस नाम को याद रखियेगा.

ईरान का शक इसलिए भी यकीऩ में बदल गया कि इस्राइल ने इस आरोपों का खंडन तक नहीं किया. न तो उसने इस घटना में खुद के हाथ होने की बात कबूली और न ही इससे इंकार किया है. ईरान अमेरिका के मुकाबले तो कमज़ोर है लेकिन इस्राइल के खिलाफ कुछ हद तक बराबरी रखता है. इस्राइल भी कभी नहीं चाहता है कि ईरान के साथ अमेरिका का कोई समझौता हो. ईरान के लिए सबसे बड़े वैज्ञानिक को खोना बिल्कुल वैसा ही था जैसे उसने कासिम सुलेमानी को खोया था.

इस बार भी उम्मीद जताई जा रही थी कि ईरान अपने वैज्ञानिक का ज़नाजा उठाने से पहले इस्राइल के साथ भी वही कहानी दोहरा सकता है जैसा उसने अमेरिका के साथ किया था. यह काम ईरान के लिए ज़्यादा मुश्किल नहीं था क्योंकि इस्राइल से सटे लेबनान में ईरान की अच्छी पैठ है. लेकिन ईरान ने इस्राइल पर किसी भी तरह का कोई एक्शन नहीं लिया. ईरान और अमेरिका दोनों ही देशों के आलाधिकारी दबे मन से ये बात ज़रूर मानते हैं कि ये सब सिर्फ इसलिए हुआ है कि ईरान अपनी शालीनता को खो दे और इस्राइल या अमेरिका के खिलाफ कोई बड़ा एक्शन ले ले, ताकि ईरान को एक और चोंट दे दी जाए और जो बाइडन जिस समझौते की बात दोहरा रहे हैं, वह किसी भी सूरत में न हो सके.

ईरान में भी कोरोना वायरस ने तबाही मचा रखी है लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते उसकी मदद कोई भी देश नहीं कर रहा है. ईरान के पास दवाओं की कमी है, टेस्टिंग किट की कमी है, इसलिए इस वक्त वह इस रणनीति का शिकार तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहता है, उसे पूरी उम्मीद है कि जो बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति पद की कमान संभालने के बाद उसकी राह कुछ आसान होगी. उसे कोरोना की वैक्सीन भी मिल सकती है और प्रतिबंधों में भी कुछ हद तक छूट मिल सकती है.

ईरान 20 जनवरी, 2021 के इंतज़ार में है, जो बाइडन इसी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगें. तब तक ईरान किसी भी सूरत में डोनाल्ड ट्रंप की साजिशों और उनकी रणनीतियों से बचने की कोशिश में है. फिलहाल अगर डोनाल्ड ट्रंप ने इस्राइल के हाथों ईरान को और उकसाया तो नतीजे गंभीर हो सकते हैं, और यह बात तय है कि ईरान, अमेरिका या इस्राइल किसी में भी कोई टकराव होता है तो उसकी आंच कई देशों तक जाएगी.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास @masahid.abbas

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं

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