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Updated: 17 सितम्बर, 2021 01:04 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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'आम आदमी' का चेहरा बन चुके अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) मोदी लहर और भाजपा (BJP) की आक्रामक रणनीतियों के बावजूद तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे हैं. आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के मुखिया अरविंद केजरीवाल लंबे समय से पार्टी के विस्तार की योजनाओं पर भी काम कर रहे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर आम आदमी पार्टी यानी आप ने 100 विधानसभा सीटों पर संभावित प्रत्याशियों की घोषणा के साथ अपने पैरों को फैलाना शुरू कर दिया है. दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बीते दिनों अयोध्या में तिरंगा यात्रा निकाली और उससे पहले रामलला के दर्शन भी किए. मनीष सिसोदिया ने रामराज्य (Ram Mandir) को सुशासन का पर्याय बताते हुए कहा कि रामराज्य सरकार का सबसे अच्छा रूप है. कभी अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर की जगह यूनिवर्सिटी बनाने की बात कहने वाली आम आदमी पार्टी अब अपनी रणनीति में 360 डिग्री के एंगल का बदलाव ला चुकी है.

वैसे, इस बदलाव की शुरुआत पिछले दिल्ली चुनाव में ही हो गई थी जब अरविंद केजरीवाल ने खुद को 'अच्छा हिंदू' बताते हुए हनुमान भक्त घोषित किया था. वहीं, पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा विपक्षी दल बनी आम आदमी पार्टी एक हालिया हुए सर्वे में कांग्रेस की बराबरी पर खड़ी हुई नजर आ रही है. अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के अपने पिछले दौरे पर घोषणा की थी कि राज्य का मुख्यमंत्री कोई सिख ही होगा. केजरीवाल पंजाब की अपनी अधिकतर यात्राओं में 'पगड़ी' पहने ही दिखाई पड़े हैं. उत्तराखंड में भी आप ने भाजपा के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को चुनौती देने के लिए रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल को अपना सीएम उम्मीदवार घोषित कर राष्ट्रवाद (Nationalism) को हवा दी है.

दिल्ली का 'आम आदमी' राज्यों के हिसाब से अपनी राजनीतिक वरीयताओं को बदल रहा है.दिल्ली का 'आम आदमी' राज्यों के हिसाब से अपनी राजनीतिक वरीयताओं को बदल रहा है.

अगले साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर भी अरविंद केजरीवाल एंड टीम रणनीतियां बनाने में जुटी हुई हैं. दिल्ली का 'आम आदमी' राज्यों के हिसाब से अपनी राजनीतिक वरीयताओं को बदल रहा है. तिरंगा यात्रा के जरिये हिंदुत्व (Hindutva) और राष्ट्रवाद की अलख जगाने में जुटी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी एंड टीम भाजपा के फर्जी राष्ट्रवाद को बेनकाब करने की बात कह रही है. अब यहां ये बताना जरूरी नहीं है कि अरविंद केजरीवाल ही पाकिस्तान पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांग रहे थे. आम आदमी पार्टी उत्तर भारत के हर राज्य में (जहां भाजपा के सामने कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है) खुद को मजबूती के साथ प्रोजेक्ट कर रही है. और, ये अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का एक प्रतिबिंब मात्र है.

साझा विपक्ष का चेहरा बनने की तैयारी

अरविंद केजरीवाल द्वारा आम आदमी पार्टी के राजनीतिक विस्तार को तेजी देने के पीछे की अहम वजह दिल्ली में भाजपा और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ हो रही साझा विपक्ष की तैयारी कही जा सकती है. दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए साझा विपक्ष बनाने की कोशिशों को तकरीबन सभी विपक्षी दलों का समर्थन मिल रहा है. लेकिन, इसकी अगुवाई कौन करेगा, इस पर अभी भी संशय बना हुआ है. कांग्रेस चाह रही है कि सभी सियासी दल राहुल गांधी के नाम पर मुहर लगाएं. वहीं, अंदरखाने ममता बनर्जी, शरद पवार जैसे नाम भी अपने लिए प्रेशर ग्रुप बनाने की तैयारी कर रहे हैं. इस स्थिति में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के दिमाग में भी प्रधानमंत्री पद की कुर्सी का विचार नहीं होगा, ये कहना थोड़ा अजीब लगता है.

दरअसल, अरविंद केजरीवाल हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के सॉफ्ट रूप के सहारे उत्तर भारत के राज्यों में खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. पंजाब जैसे राज्य के लिए इसी के चलते केजरीवाल को सिख और अल्ट्रा सेकुलर बनने में भी कोई समस्या नहीं होती है. आसान शब्दों में कहें, तो अरविंद केजरीवाल भी भाजपा के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के 'ब्लैक होल' में अन्य सियासी दलों के जैसे बुरी तरह से फंस चुके हैं. आम आदमी पार्टी को स्थापित करने की कोशिश में उन्होंने वही रास्ता पकड़ लिया है, जिस रास्ते पर चलकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी परास्त हो चुके हैं. राजनीति के सेलेबस में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दो ऐसे विषय हैं, जिसमें भाजपा हमेशा से ही 'सौ में सौ' नंबर लाती रही है. भाजपा और नरेंद्र मोदी के सामने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का हिंजुत्व और राष्ट्रवाद कितनी देर टिकेगा, ये शायद बताने की जरूरत नहीं है.

राजनीति और सिस्टम को बदलने की बात कहने वाला आम आदमी अब बदल गया है.राजनीति और सिस्टम को बदलने की बात कहने वाला आम आदमी अब बदल गया है.

क्या 'दिल्ली मॉडल' काफी नहीं था?

हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश में दिल्ली का वो 'आम आदमी' गायब हो गया, जो जनता से राजनीति और सिस्टम को बदलने का वादा करके आया था. एक साफ-सुथरी ईमानदार छवि के साथ अनाड़ियों की तरह राजनीति करने वाला अरविंद केजरीवाल अब सियासत का पीएचडी होल्डर नजर आने लगा है. 'दिल्ली मॉडल' के तहत अच्छे सरकारी स्कूल, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, भ्रष्टाचार मुक्त राज्य जैसी बेहतर चीजों का भारतीय राजनीति को परिचय देने वाला 'आम आदमी' अरविंद केजरीवाल अपनी चिर-परिचित राजनीतिक शैली को छोड़कर उसी रणनीति से भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उस व्यूह की रचना की गई है. अऱविंद केजरीवाल को जनता ने इसलिए नहीं चुना था कि वो हिंदू हैं या सिख हैं. उन्हें इसलिए चुना गया था कि वो एक अलग तरीके के राजनीति का फॉर्मूला लेकर लोगों के बीच गए थे.

दिल्ली मॉडल के इस फॉर्मूले ने गुजरात मॉडल को काफी हद तक कमजोर साबित कर दिया. खुद ही अंदाजा लगाइए कि भाजपा के नेताओं ने आखिर बार गुजरात मॉडल की बात कब की थी? केजरीवाल एक सही ट्रैक पर चल रहे थे. लेकिन, पॉलिटिकली करेक्ट होने के चक्कर में उन्होंने खुद को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की ओर मोड़ लिया. जनता के मुद्दों की बात करने वाला आम आदमी अब झाड़ू लेकर राजनीति की सफाई करने का मकसद खोकर 'सौ टका' खरा भारतीय राजनीतिक दल बन चुका है. कहना गलत नहीं होगा कि अरविंद केजरीवाल ने अपनी महत्वाकांक्षाओं की वजह से उन मुद्दों से मुंह मोड़ लिया है, जो वो जनता से कर तीसरी बार सत्ता में आए थे. फ्री बिजली, फ्री पानी और बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था उनकी राजनीति का केंद्र बिंदु है, नाकि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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