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Updated: 27 जुलाई, 2016 09:20 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सत्ता में आए लगभग डेढ़ वर्ष का समय हुआ है, इस दौरान यह सरकार अपने जनहित के सकारात्मक कामों के लिए कम, फिजूल के हंगामों के लिए बहुत अधिक चर्चा में रही है. कभी दिल्ली पुलिस की मांग के जरिए तो कभी राज्यपाल नजीब जंग से बिना बात जंग छेड़कर यह पार्टी बवाल करती रही है. आजकल यह अपने विधायकों की गिरफ्तारी को लेकर धरती-आकाश एक किए हुए है. गिरफ्तारी तो खैर सत्ता में आने के बाद से अबतक इनके 11 विधायकों की हो चुकी है, लेकिन ताजा मामला ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खान और महरौली से विधायक नरेश यादव को क्रमशः दिल्ली और पंजाब पुलिस द्वारा गिरफ्तारी का है.

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 फिजूल के हंगामों के लिए बहुत अधिक चर्चा में रही है आम आदमी पार्टी

अमानतुल्लाह साहब की गिरफ्तारी एक महिला द्वारा कार से कुचलने की कोशिश करने का आरोप लगाने पर हुई तो वहीँ नरेश यादव महोदय को पंजाब पुलिस ने मलेरकोटला में हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया. पुलिस का कहना है कि प्रथम दृष्टि में आरोप सत्य प्रतीत होने पर ही उसने अदालत से वारंट हासिल करके नरेश यादव को गिरफ्तार किया. इन ताजा गिरफ्तारियों को आप द्वारा हमेशा की तरह केंद्र सरकार की साज़िश बताया जा रहा है तथा इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय में जाने की बात भी कही जा रही है.

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दरअसल सत्ता में आने के बाद से ही आम आदमी पार्टी का ये दस्तूर रहा है कि उसके नेताओं के खिलाफ जब भी कोई कानूनी कार्रवाई होती है, उसे केंद्र सरकार की साज़िश बता दिया जाता है और अगर कार्रवाई उचित सिद्ध हो जाती है, तो आम आदमी पूरी बेशर्मी के साथ अपनी ही बातों से पलट जाती है. अमानतुल्लाह की गिरफ्तारी के मामले में भी इस पार्टी ने पीड़ित महिला का एक स्टिंग वीडियो जिसमें वो कह रही है कि उसने आप विधायक पर पुलिस के दबाव में आरोप लगाया है, जारी करके हंगामा मचाने और विधायक का बचाव करने की पूरी कोशिश की. लेकिन, जब एक खबरिया चैनल ने इस वीडियो की पुष्टि हेतु उस महिला से बात की तो उसने कहा कि वीडियो में वो है जरूर, पर आवाज उसकी नहीं है. यानी कि वीडियो से छेड़छाड़ की गई है. इस तरह अपने विधायक के बचाव में रचे गए ‘आप’ के स्टिंग का पर्दाफाश हुआ.

इस पार्टी को राजनीति में आए हुए तो ठीक ठाक लम्बा समय हो गया है, लेकिन अभी भी इसमें न तो राजनीतिक परिपक्वता दिखती है और न ही एक सांगठनिक अनुशासन ही नजर आता है. इसके जनप्रतिनिधियों का आचरण ऐसा स्वच्छंद है कि जैसे उनके ऊपर अपने पद का कोई नैतिक व संवैधानिक दायित्व ही न हो. इसी कारण कभी कोई विधायक किसी महिला के साथ बदसलूकी कर बैठता है, तो कभी कोई सांसद संसद भवन में वीडियो रिकॉर्डिंग करने लगता है. इन जनप्रतिनिधियों में यह प्रवृत्ति यूं ही नहीं है. दरअसल पार्टी के आचरण को देखते हुए इसके उनके दिमाग में यह बात बैठ गयी है कि वे कुछ भी कर दें, पार्टी उसपर होने वाली कार्रवाई को केंद्र की साज़िश बताते हुए उनके साथ ही खड़ी रहेगी. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में ही अनुशासनहीनता और गैर-जिम्मेदाराना रवैये का स्तर इतना प्रबल है कि उसे देखकर भी इसके जनप्रतिनिधियों को अनुशासन की धज्जियां उड़ाने की पूरी प्रेरणा मिल रही है.

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किसी भी संगठन में अनुशासन ऊपर से आता है. अगर संगठन का शीर्ष नेतृत्व गंभीरता और परिपक्वता का परिचय देता है तो उसका प्रभाव पूरे संगठन और उसके निचले स्तर पर तक पड़ता है तथा सब उसी तरह का आचरण दिखाते हैं. पर आम आदमी पार्टी में तो जो शीर्ष नेतृत्व है, सबसे ज्यादा अगम्भीरता और अनुशासनहीनता वहीँ दिखाई देती है. फिर चाहें वो प्रधानमंत्री को लेकर आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग हो या निजी बातचीत में अपने पूर्व नेताओं को अपशब्द कहना हो अथवा विपक्षी दलों के नेताओं पर बिना किसी आधार के हवा-हवाई आरोप लगाना हो या फिर अपने पर होने वाली किसी भी कानूनी कार्रवाई के लिए केंद्र सरकार पर आरोप लगा देना, ये सब गैर-जिम्मेदाराना और अनुशासनविहीन कृत्य आप के शीर्ष नेतृत्व यानी अरविन्द केजरीवाल द्वारा किए जाते रहे हैं.

विपक्षी नेताओं पर बिना सबूत के आरोप लगाने में तो इनका कोई सानी ही नहीं है. केजरीवाल के अनगिनत ऐसे बयान मिल जाएंगे, जिनमे वे अन्य दलों खासकर भाजपा के नेताओं पर बिना किसी सबूत के घोटाले आदि आरोप लगाए हैं. हाल ही में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी पर भी उन्होंने घोटाले का आरोप लगाया था, जिसपर गडकरी ने मानहानि का मुकदमा कर दिया. अब केजरीवाल महोदय के पास अपने आरोप को सिद्ध करने के लिए कोई सबूत तो था नहीं कि मुकदमे का सामना करते, इसलिए गडकरी से निजी भेंट करके संभवतः माफ़ी मांगकर इस मामले में अपनी जान छुड़ाई. ऐसे ही, केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली पर भी डीडीसीए में घोटाले का आरोप लगा दिए तो जेटली ने भी क्रिमिनल और सिविल मानहानि के दो मुकदमे कर दिए, जिनपर स्टे लगवाने के लिए केजरीवाल अदालतों के चक्कर काट रहे हैं.

कुल मिलाकर यही प्रतीत होता है कि यह पार्टी वैचारिक रूप से पूर्णतः दरिद्रता की स्थिति में है. इसकी न तो देश-समाज के विकास को लेकर कोई सोच है और न ही कोई विचारधारा. ये ऐसी विचारविहीन और पाखंडपूर्ण पार्टी है, जिसका नेता अपने शासनक्षेत्र दिल्ली में डॉ. पंकज नारंग की हत्या होने पर संवेदना जताने नहीं पहुंच पाता, पर रोहित वेमुला की आत्महत्या पर हैदराबाद पहुंचकर केंद्र सरकार पर निराधार आरोप लगाने में उसे तनिक भी देरी नहीं लगती. इस पार्टी की बस इतनी वैचारिकता है कि सबूत हो या न हो, दूसरों पर आरोप लगाने में कोई देरी मत करो और अगर कोई अपने पर आरोप लगा दे तो उसे झट केंद्र की साज़िश बता दो. इसी सिद्धांत पर ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी पार्टी डूबी हुई है.

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अन्ना आन्दोलन के दौरान जब यह पार्टी बनी थी तो कांग्रेसी कुशासन से त्रस्त आम जनता को निश्चय ही इससे उम्मीदें थीं कि ये कुछ नए तरह की साफ-सुथरी और मुद्दों की राजनीति का विकास करेंगे. लेकिन, पहली बार कांग्रेस से गठबंधन करके और अब दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद दोनों ही मौकों पर गाड़ी-बंगला-सुरक्षा न लेने से लेकर तमाम और वादों पर इस पार्टी की कथनी-करनी में अंतर का जो दोहरा चरित्र सामने आया है, उसने न केवल इसके प्रति बल्कि किसी भी नए राजनीतिक दल के प्रति आम लोगों के विश्वास की भ्रूण हत्या कर दी है. बहरहाल, इस विचारविहीन पार्टी से निपटने का आदर्श समाधान यही है कि इसके बयानों-आरोपों को नजरंदाज करते हुए बड़ी और गंभीर राजनीतिक पार्टियां उसपर प्रतिक्रिया ही न दें. यानी कि इसका  पूर्णतः राजनीतिक बहिष्कार कर दिया जाए. यह भारतीय राजनीति में शेष वैचारिक गंभीरता और दायित्वबोध की भावना की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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