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Updated: 24 जून, 2022 02:13 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
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विधान परिषद चुनाव के बाद शिवसेना के भीतर जारी उथल पुथल में हर घंटा बीतने के साथ लगातार नए-नए ट्विस्ट और टर्न्स नजर आ रहे हैं. महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट जिस तरह बना हुआ है, उसमें महाराष्ट्र विकास आघाड़ी की सरकार का टिकना लगभग असंभव है. यह भी निश्चित दिख रहा कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के रूप में अपनी कुर्सी भी नहीं बचा पाएंगे. उद्धव के सामने पार्टी बचाए रखने का भी सबसे बड़ा संकट है. मगर अबतक आए अपडेट में एक गुंजाइश बनी कि शायद उद्धव पार्टी बचा ले जाए. यह दूसरी बात है कि आईसीयू से निकली सेना पर भविष्य में उनका कितना कंट्रोल होगा, साफ साफ नहीं कहा जा सकता.

कुछ लोग मौजूदा संकट में विधानसभा भंग होने, राष्ट्रपति शासन और एक बार फिर चुनाव तक की बातें कर रहे. मगर मौजूदा हालात में तीनों स्थितियां लगभग ना के बराबर हैं. चुनाव में जाने के लिए राज्य में कोई भी पार्टी फिलहाल तैयार नहीं दिख रही. सबसे ज्यादा शिवसेना के सभी विधायक, जो ऐतिहासिक संकट में है. एकनाथ शिंदे ने दो तिहाई से ज्यादा पार्टी विधायकों को भरोसे में ले लिया है. उधर, उद्धव के बाद संजय राउत ने भी बागी नेताओं को 24 घंटे की मोहलत देकर उनकी हर शर्त मानने की बात दोहराई. शर्तों में आघाड़ी से अलग होने और उद्धव का मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना शामिल है.

खैर. राजनीतिक हलचल के बीच राज्य में नई सरकार किस तरह बनेगी, इसे लेकर कयासों का बाजार गर्म है. भाजपा की तरफ से शिंदे गुट को दिया जाने वाला ऑफर और सत्ता के नए समीकरण लगातार सामने आ रहे हैं. वैसे राज्य में नई सरकार गठन के तीन बड़े रास्ते दिखाई दे रहे हैं. आइए जानते हैं वे तीन रास्ते क्या हो सकते हैं और सेना के बागी गुट को मिले भाजपा के ऑफर में क्या है?

shivsenaदेवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे. फोटो- इंडिया टुडे/पीटीआई.

1) शिंदे के समर्थन से भाजपा बना सकती है सरकार

महाराष्ट्र में 288 सदस्यों की विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 है. 2019 के चुनाव में सेना के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी भाजपा ने सबसे ज्यादा 106 सीटें जीती थीं. लोकल रिपोर्ट्स की मानें तो करीब 7 निर्दलीय विधायक इस वक्त भाजपा के साथ हैं. सेना के बागी नेता शिंदे ने 45 से ज्यादा विधायकों के समर्थन का दावा किया है. शिंदे ने भाजपा को सपोर्ट कर दिया तो सदन में भाजपा बहुमत के आंकड़े से भी आगे निकल जाएगी. अभी तक के घटनाक्रम के लिहाज से भविष्य में सत्ता का यही सबसे सटीक और स्पष्ट समीकरण दिख रहा है.

2) शिवसेना-भाजपा सरकार बनाए

2019 के नतीजों में भाजपा-शिवसेना के गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया था.  भाजपा ने 106 तो शिवसेना ने दूसरे बड़े दल के रूप में सर्वाधिक 56 सीटें जीती थीं. हालांकि चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री के पद की जिद को लेकर शिवसेना गठबंधन से अलग हो गई थी. विधान परिषद चुनाव के बाद बागियों ने उद्धव को कांग्रेस/एनसीपी के गठबंधन से बाहर निकलने और हिंदुत्व की लाइन पर लौटने को कहा. उद्धव और संजय राउत भी विधायकों की सभी मांग मानने को राजी हैं, लेकिन सभी बागियों को गुवाहाटी से वापस मुंबई आकर बातचीत करने को कहा है.

शिवसेना-भाजपा के बीच गठबंधन की गुंजाइश फिलहाल है. और इसकी सबसे बड़ी वजह राज्य में बिना किसी ठाकरे के शिवसेना का बड़ा भविष्य नहीं होना है. विधायकों को यह बात अच्छी तरह पता है कि शिंदे कुशल रणनीतिकार हो सकते हैं. विधायकों को साथ लेकर चल भी सकते हैं, मगर उनमें अभी तक वैसा कौशल नहीं दिखा है कि शिवसेना के कोर मतदाताओं को भी प्रभावित कर सकें. दुर्भाग्य से बागी गुट में ऐसा कोई चेहरा नहीं है.

3) शिवसेना शिंदे को समझा-बुझाकर आघाड़ी सरकार ही बचा ले

राज्य में भविष्य का तीसरा रास्ता यह भी हो सकता है. बशर्ते शिवसेना किसी तरह शिंदे को समझाने में कामयाब हो जाए और उन्हें वापस बुला ले. हो सकता है कि आघाड़ी सरकार बचाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी, सेना के बागियों की तमाम शिकायतों को दूर करते हुए भाजपा को रोकने के लिए उन्हें सरकार में और ज्यादा वजन दे. मगर फिलहाल आघाड़ी सरकार के लिए बागियों के गुट का वापस आना अवरोधकों से भरा नजर आ रहा है. बागी विधायकों की स्थानीय राजनीति भी उन्हें इजाजत नहीं देती. असल में सेना के विधायकों ने हिंदुत्व के मुद्दे पर किसी एनसीपी या कांग्रेस उम्मीदवारों को हराकर ही चुनाव जीता है. सेना-कांग्रेस-एनसीपी की आघाड़ी में बने रहने का मतलब है कि भविष्य में सेना के विधायकों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ेगा. सेना विधायकों की यह बड़ी चिंता है.

shivsenaउद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे.

भाजपा ने एकनाथ शिंदे को क्या ऑफर दिया है?

विधान परिषद चुनाव के बाद सेना में मची खलबली को लेकर भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अभी तक कोई टीका टिप्पणी नहीं की है. भविष्य में सरकार या पार्टी की योजनाओं को लेकर भी किसी बड़े नेता ने खुलासे नहीं किए हैं. देवेंद्र फडणवीस दो दिन पहले दिल्ली में ही थे. उन्होंने कोई बयान तो नहीं दिया, मगर मराठी मीडिया का दावा है कि उनकी नजर सभी तरह की राजनीतिक घटनाओं पर है. लोकल मीडिया तो भाजपा की तरफ से शिंदे को मिले ऑफर को भी लगातार कवर रहा है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक़ बागी गुट अभी भी आघाड़ी सरकार को लेकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के रुख का इंतज़ार कर रहा है. आघाड़ी को लेकर ठाकरे का रुख साफ होने के बाद शिंदे आज या अगले दिन तक महाराष्ट्र के राज्यपाल को भाजपा के पक्ष में सेना विधायकों के समर्थन का पत्र सौंप सकते हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भाजपा ने सेना के बागी धड़े को बहुत बड़ा ऑफर दिया है. इसके तहत शिंदे को उप मुख्यमंत्री का पद, नई सरकार में 8 कैबिनेट और 5 राज्य मंत्रियों का पद शामिल है. इसके अलावा बागी धड़े को केंद्र की एनडीए सरकार में भी हिस्सा दिया जाएगा.

केंद्र में भाजपा बागी धड़े से दो सांसदों को मंत्री बनाने के लिए तैयार है. विधान परिषद चुनाव के बाद सेना ने पार्टी के विधायकों सांसदों की आपात बैठक बुलाई थी. इसमें बड़े पैमाने पर विधायक तो गैरहाजिर रहे ही, कुछ सांसद भी मीटिंग में नहीं पहुंचे थे. सांसदों के तेवर भी बगावती है. सेना के कई सांसद भी एनसीपी/कांग्रेस के साथ गठबंधन की वजह से नाराज हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में सेना के 18 सांसद जीते थे.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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