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Updated: 28 फरवरी, 2018 05:55 PM
अमित अरोड़ा
अमित अरोड़ा
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उच्चतम न्यायालय के आदेश पर 1 मार्च 2018 से देश में कुल 12 विशेष फास्ट ट्रैक न्यायालय शुरू होने जा रहे है. इन न्यायालयों का काम सांसदों और राज्यों के विधायकों पर चल रहे अपराधिक मामलों का एक वर्ष के भीतर-भीतर निपटारा करना है.

उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दो विशेष न्यायालयों को सांसदों व विधायकों के खिलाफ चल रहे अपराधिक मामलों के निपटारे के लिए नामित किया है. आदेश के अनुसार पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में 1 मार्च 2018 से ऐसे सभी मामलों की सुनवाई आरंभ होगी. सांसदों व विधायकों के विरुद्ध दिल्ली में चल रहे सभी मामले 1 मार्च 2018 से पहले इन दो विशेष न्यायालयों को स्थानांतरित करने होंगे. उच्चतम न्यायालय के आदेश ने इन लंबित मामलों को फास्ट ट्रैक किए जाने और एक वर्ष के अंदर फ़ैसले के प्रयास के लिए कहा है.

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प्रथम दृष्टया तो यह एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा नज़र आता है. वह प्रकिया जिसका उद्देश्य पुराने मामलों का शीघ्र निपटारा है. हालांकि, यह एक प्रशासनिक और क़ानूनी फ़ैसला है पर इसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम होने वाले हैं. दिल्ली में इस समय राहुल गांधी और सोनिया गांधी के विरुद्ध नेशनल हेराल्ड केस, दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अरुण जेटली द्वारा मानहानि का मामला लंबित है. यह दोनों मामले अब फास्ट ट्रैक न्यायालय में चलेंगे और इनका निर्णय एक वर्ष के अंदर अपेक्षित है. 2019 के लोक सभा चुनाव लगभग एक साल बाद ही हैं. यदि यह दोनों फ़ैसले गांधी परिवार और अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध आए तो उनका सीधा प्रभाव 2019 के लोक सभा चुनावों पर पड़ेगा.

इसी प्रकार देश में शुरू हो रहे अन्य 10 विशेष फास्ट ट्रैक न्यायालय भी सांसदों और राज्यों के विधायकों पर अपने निर्णय सुनाएंगे. सामान्यता भारत में क़ानूनी मसले न्यायालयों में सालों-साल चलते रहते हैं. इसी के कारण राजनेताओं के मन में क़ानून का डर समाप्त सा हो गया है. उच्चतम न्यायालय के इस एक आदेश से अगले एक साल में राजनेताओं के जीवन में भूचाल आने वाला है.

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लेखक

अमित अरोड़ा अमित अरोड़ा @amit.arora.986

लेखक पत्रकार हैं और राजनीति की खबरों पर पैनी नजर रखते हैं.

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