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Updated: 10 नवम्बर, 2022 09:57 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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समुद्री जल क्षेत्र भारतीय नाविकों व मछुआरों के लिए अभी भी सुरक्षित नहीं हैं. खतरे ही खतरे हैं. बीच समुद्र में लहरों के बीच हिचकोले खाते जहाजों के समक्ष अब खतरे और ज्यादा मंडराने लगे हैं. आधुनिक तकनीकों और सख्त पहरेदारी सर्तकता के बावजूद ये हाल है. जल सीमा में खतरे क्यों बढ़े हैं और उनमें लगातर इजाफा क्यों हुआ है, इसको लेकर केंद्र सरकार भी चिंतित है. भारतीय शिपों, जहाजों, मछुआरों नाविकों को खतरे समुद्री तूफानों से नहीं, बल्कि समुद्री लुटेरों से ज्यादा हैं. करीब आठ हजार किलोमीटर दूर गिनी की समुद्री सीमा में हमारा एक जहाज पिछले दिनों दिन के उजाले में खुलेआम लूटा गया था. जिसपर ना ज्यादा चर्चा है और ना ही बंधकों की रिहाई पर अधिकारी स्तर पर मुकम्मल प्रयास हो रहे हैं. बंधकों के परिजन दर-दर भटक रहे हैं. अगस्त के दूसरे सप्ताह की बात है, जब दबंगई से हथियारों के बल पर अफ्रीकी मुल्क इक्वेटोरियल गिनी के लोगों ने हमारे एक जहाज जिसमें 16 भारतीय नाविक सवार हैं, को अगवा कर लिया. गुनाह भी उन्होंने कोई ऐसा नहीं किया, जो अगवा होने का कारण बनें. भारतीय नाविक किसकी गिरफ्त में है, ये पता करने में ही महीना बीत गया. सच्चाई सामने आई तो अधिकारियों में हलचल हुई. हमारे जहाज को वहां की अधिकृत नेवी ने नहीं, बल्कि लुटेरों में बंधक बनाया.

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हिमाकत ऐसी कि बंधक भारतीयों से बातचीत भी नहीं कराते, सिर्फ वहां स्थित भारतीय दूतावास से ही संपर्क करने देते हैं. नाविकों के पारिवारिक जन परेशान हैं, अपनों के घर पहुंचने का तीन महीने से बेसब्री ये इंतजार कर रहे हैं, परिजन दिल्ली में अधिकारियों से गुहार लगाते फिर रहे हैं. पर, अभी तक उन्हें किसी भी तरह का कोई संतुष्टि पूर्ण जवाब नहीं मिला. राज्यसभा सांसद ए ए रहीम ने अपने स्तर से कोशिशें शुरू की हैं.

उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर को खत लिखा है जिसमें उन्होंने उनसे जहाज ‘एमवी हीरोइक इदुन’ के सभी चालकों को गिनी में बंधक से आजाद करवाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की है. उनके अनुरोध के बाद विदेश मंत्रालय में हलचल हुई है, दिल्ली से गिनी में अपने दूतावास को फोन किए गए हैं, मौजूदा स्थिति जानी गई है. वहां से जवाब आया कि भारतीय दूतावास के अधिकारियों और ‘पपुआ न्यू गिनी’ प्रशासन के बीच सकारात्मक बातचीत जारी है.

बंधक नाविकों के कप्तान से भी बात है. जहाज अब वहां के अधिकृत अधिकारियों की निगरानी में है. लेकिन रिहाई कब होगी, किसी को नहीं पता? गौरतलब है, जल सीमाओं में सुरक्षा का मुद्दा हमेशा से चुनौती रहा है, अब ज्यादा हो गया है. केंद्रीय लेवल पर प्रयास बेशक जारी हैं और प्रयासों में मामूली सुधार हुआ भी है. पर, उतना नहीं हुआ, जितने की जरूरत है.

समुद्री सीमाओं में रोजाना हमारे गरीब मछुआरे बिलावजह श्रीलंकाई, पाकिस्तानी, चीन, बांग्लादेशी व अन्य जल सीमा क्षेत्रों के देश के लुटेरों से लुटते रहते हैं. बंधक बनाए जाते हैं. लेकिन पर्याप्त कोशिशों के बाद भी उन पर अंकुश नहीं लग पाता. दुख की बात ये है, घटना होने पर जब हमारे विदेश मंत्रालय से उन देशों से संपर्क किया जाता है तो वह अपना पल्ला झाड़े लेते हैं. अपनी सफाई में घटना की जिम्मेदारी समुंद्री लुटेरों पर मंढ़ देते हैं.

जबकि, इन घटनाओं में प्रत्यक्ष रूप से उनकी नौसेना की भागीदारी होती है. गिनी में बंद हमारे नाविकों के साथ भी यही हुआ है. परिवार के लोगों को अंदेशा है कि कहीं, उन्हें नाइजीरियन को ना सौंप दें, ऐसा होता है तो मामला और उलझ जाएगा. हालांकि, गिनी स्थित भारतीय दूतावास बंधक नाविकों की रिहाई के लिए प्रत्यनरत हैं. लेकिन जल्द रिहाई की आस फिलहाल नहीं दिखती.

‘एमवी हीरोइक इदुन’ पर नाइजीरियन क्रूड आयल चोरी करने का आरोप लगाया गया है जिसे भारत ने नकार दिया है. सरकार के नकारने के बावजूद भी बंधक नाविकों ने अपने पास से जुर्माना भी भर दिया, तब भी छोड़ने को राजी नहीं है गिनी की नौसेना. वह अब नाइजीरिया नौसेना को सौंपने की तैयारी में है. चालक दल के कप्तान ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय से मदद की गुहार लगाई है.

उन्होंने कहा कि यह जगह बहुत संवेदनशील है और इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता कि नाइजीरिया को सौंपे जाने के बाद वहां की सरकार भारतीयों के साथ कैसा व्यवहार करेगी. ऐसे में शीघ्र कदम उठाया जाना चाहिए. हिंदुस्तान में इस वक्त चुनावी मौसम है, गुजरात, हिमाचल प्रदेश व दिल्ली एमसीडी चुनाव हो रहे हैं जिसमें सरकार, नेता व शासन-सिस्टम उसी में व्यस्त हैं. पर, ऐसे में हम अपने लोगों को मरने के लिए भी नहीं छोड़ सकते?

उन्हें किसी भी सूरत में छुडवाना होगा. केंद्र सरकार को तत्काल प्रभाव से गिनी व नाइजीरिया सरकार से बात करनी चाहिए और सभी बंदक भारतीय नाविकों की रिहाई सुनिश्चित करवानी चाहिए. क्योंकि हुकुमत की ये पहली जिम्मेदारी भी है. गिनी स्थिति भारतीय दूतावास स्तर पर प्रयास जारी हैं, पर ऐसा लगता है वह नाकाफी हैं. गिनी में बंधक बनाए गए जहाज में कई प्रदेशों के नागरिक हैं. कुछ विदेशी भी हैं.

कुछ 26 नाविकों में 16 तो भारतीय ही हैं जिनमें महाराष्ट्र के चार, केरल और तमिलनाडु के तीन-तीन, उत्तराखंड के दो, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान का एक-एक नाविक शामिल हैं. इसी तरह श्रीलंका के आठ तथा पोलिस और फिलीपींस के एक-एक नाविक शामिल हैं. वो भी अपने देशों की हुकूमत से अपनी रिहाई की गुहार लगा रहे हैं. इस संबंध में श्रीलंका की नौसेना ने भारतीय नौसेना से संपर्क किया. मतलब, खुद के बस की बात नहीं है.

वैसे, देखा जाए तो प्राइवेट जहाजों के साथ समुद्री लुटेरे और जल सीमा से जुड़े देश बहुत बुरा बर्ताव करते आए हैं. कई बार नौका हमेशा के लिए जप्त कर लेते हैं, देते ही नहीं? गुजरात, केरल व समुद्र तटीय क्षेत्रों के ऐसे लोग जो अपनी निजी नौकाओं से मछली पकड़ने जैसा व्यापार करते हैं, उनके साथ समुद्री सीमाओं के नाम पर पड़ोसी देश बुरा सलूक करते हैं. गिनी का मामला भी कमोबेश कुछ ऐसा ही है. खुदा ना खास्ता ये नेबी, आर्मी या मर्चेंट का कोई जहाज होता तो अभी मसला सुलझ भी गया होता.

बहरहाल, पूर्व में भी इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं. सन् 2011 में भी सोमालियाई डाकुओं ने 15 भारतीय क्रू-मेंबर्स को बंधक बनाया था. वह जहाज प्राइवेट था. डाकुओं और जहाज चलाने वाली कंपनी के बीच हुए समझौते के बाद रिहाई हुए थी. तब खबरें ऐसी भी आईं थीं कि उनसे मोटी फिरौती वसूली गई. खैर, इस मसले पर खुलकर कोई सार्वजनिक बयान सामने नहीं आया था.

2015 में इंडियन नेवी ने कई सोमालियाई डाकुओं को समुद्र से गिरफ्तार किया था. वो लूट की योजना बना रहे थे. वहीं, 2015 में पाकिस्तान ने 12 भारतीय मछुआरों को उनकी दो नावों सहित बंधक बनाया. तब मामला दो दिन के भीतर की सुलझ गया था, सभी भारतीयों को पाकिस्तान ने सकुशल छोड़ दिया था. श्रीलंका भी लगातार ऐसी हरकतें समय-समय पर करता रहता है. बहरलाल, एक नाविक उत्तर प्रदेश के जिले कानपुर के दादा नगर लेबर कॉलोनी से हैं, उनके पिता मनोज सांसद-विधायक से गुहार लगा रहे हैं, वह उन्हें आश्वासन दे रहे हैं, प्रधानमंत्री तक उनकी बात पहुंचाने का भरोसा दे रहे हैं.

पर, अपनों के दर्द अपनों के लिए दहल रहे हैं, मां-बाप के कलेजे कंपकंपा रहे हैं. बंदक सभी 16 भारतीय अब गिनी नौसेना की गिरफत में जहां, जिनसे भारतीय दूतावास के अधिकारियों की बात हुई है, ज्यादातर इस समय बीमार हैं. वायरल, टाइफाइड व बुखार के शिकार हो चुके हैं, उनका उपचार भी अच्छे से नहीं कराया जा रहा. इसमें जब तक केंद्र सरकार लेबर पर हस्तक्षेप नहीं होगा, रिहाई सुनिश्चित नहीं होगी.

फिलहाल, जब से मीडिया में ये खबर चर्चा में आई है, केंद्र सरकार ने सभी तरह के प्रयास तेज कर दिए हैं. प्रधानमंत्री खुद भी पूरी घटना पर नजर बनाए हुए हैं. पूरे देशवासियों को बंधकों की रिहाई का इंतजार है. पीड़ितों परिजन अपनों के आने की राह ताक रहे हैं. उन पर क्या गुजर रही है, शायद इस बात का हम-आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते है. सभी भारतीयों के सकुशल वापसी के लिए समूचा हिंदुस्तान ईश्वर प्रार्थना कर रहा है. प्रयास और दुआएं दोनों एक साथ की जा रही हैं. अब बस इंतजार उनके आने का है.

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