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Microsoft vs Google: ऑनलाइन सर्च की दुनिया पर कौन काबिज होगा?

    • prakash kumar jain
    • Updated: 26 मार्च, 2023 05:36 PM
  • 16 फरवरी, 2023 03:12 PM
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बार बार के कुछ गलत उत्तरों की समस्या का हल माइक्रोसॉफ्ट और गूगल दोनों के लिए बड़ी चुनौती होगी, ठीक वैसे ही, जैसे छह साल से अधिक समय से हम स्वचालित कार तकनीक के साथ होते हुए भी दूर हैं. हर हाल हमेशा इंसान ही आगे रहेगा, आखिर तकनीक भी मानव की ही देन है

हलचल तो खूब है इन दिनों. दोनों ही टेक दिग्गज अपने अपने एआई चैटबॉट के सहारे ताल ठोक रहे हैं. पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट ने ऐलान किया कि वह ओपनएआई चैटजीपीटी (Open AI ChatGPT) के साथ अरसे से लंबित एकीकरण को अंजाम दे रहा है और पेश करने जा रहा है सर्च, ब्राउज़िंग और चैट के एकीकृत अनुभव के लिए अपने सर्च इंजन बिंग का नया अवतार "वेब का को-पायलट". इससे कुछ घंटे पहले ही गूगल ने अपने चैटबॉट "बार्ड" के बारे में ब्लॉग पोस्ट किया था. हालाँकि गूगल का कदम जोखिम भरा नहीं होगा, फिलहाल कहना मुश्किल है, चूंकि यही कंपनी सालों से एक ही प्रारूप में चली आ रही है. परंतु निःसंदेह परंपरागत दो बड़ी टेक कंपनियों के बीच चल रहे इस खेल की परिणति जोखिम भरे ऑनलाइन सर्च के अगले दौर में ही होगी.

दोनों ही कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणाली का इस्तेमाल कर रही है जिसे पब्लिक इंटरनेट के लिए अरबों शब्दों से लैस किया गया है, उनके बारे में प्रशिक्षित किया गया है. लेकिन ये गलत और पक्षपातपूर्ण जानकारियां भी देते हैं. गूगल की बात करें तो क्या वेब पब्लिशर्स, जो उसके लिए अहम् है, आक्रोशित नहीं होंगे कि महज वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा के लिए उनके कंटेंट्स को एक्सप्लॉइट किया जाएगा ? फिर चैटबॉट की दक्षता को लेकर गूगल पर पहले ही सवाल उठ चुके हैं, जब एक लांच इवेंट में यूजर्स द्वारा पूछे गए सवालों के 'बार्ड' द्वारा दिए गए उत्तर गलत पाए गए और ज्योंही खबर वायरल हुई, कंपनी के शेयरों में आठ फीसदी की गिरावट दर्ज हुई या यों कहें कि एक फैक्चुअल एरर ने गूगल को सौ बिलियन डॉलर का फटका लगा दिया.

इंटरनेट की दुनिया में जंग शुरू हो गई है ऑनलाइन सर्च की बादशाहत को लेकर...

बात करें चैटजीपीटी की तो गत वर्ष लांच होने के बाद से ही उसे त्वरित जवाबों के लिए सराहना मिलने लगी थी. इंटरनेट...

हलचल तो खूब है इन दिनों. दोनों ही टेक दिग्गज अपने अपने एआई चैटबॉट के सहारे ताल ठोक रहे हैं. पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट ने ऐलान किया कि वह ओपनएआई चैटजीपीटी (Open AI ChatGPT) के साथ अरसे से लंबित एकीकरण को अंजाम दे रहा है और पेश करने जा रहा है सर्च, ब्राउज़िंग और चैट के एकीकृत अनुभव के लिए अपने सर्च इंजन बिंग का नया अवतार "वेब का को-पायलट". इससे कुछ घंटे पहले ही गूगल ने अपने चैटबॉट "बार्ड" के बारे में ब्लॉग पोस्ट किया था. हालाँकि गूगल का कदम जोखिम भरा नहीं होगा, फिलहाल कहना मुश्किल है, चूंकि यही कंपनी सालों से एक ही प्रारूप में चली आ रही है. परंतु निःसंदेह परंपरागत दो बड़ी टेक कंपनियों के बीच चल रहे इस खेल की परिणति जोखिम भरे ऑनलाइन सर्च के अगले दौर में ही होगी.

दोनों ही कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणाली का इस्तेमाल कर रही है जिसे पब्लिक इंटरनेट के लिए अरबों शब्दों से लैस किया गया है, उनके बारे में प्रशिक्षित किया गया है. लेकिन ये गलत और पक्षपातपूर्ण जानकारियां भी देते हैं. गूगल की बात करें तो क्या वेब पब्लिशर्स, जो उसके लिए अहम् है, आक्रोशित नहीं होंगे कि महज वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा के लिए उनके कंटेंट्स को एक्सप्लॉइट किया जाएगा ? फिर चैटबॉट की दक्षता को लेकर गूगल पर पहले ही सवाल उठ चुके हैं, जब एक लांच इवेंट में यूजर्स द्वारा पूछे गए सवालों के 'बार्ड' द्वारा दिए गए उत्तर गलत पाए गए और ज्योंही खबर वायरल हुई, कंपनी के शेयरों में आठ फीसदी की गिरावट दर्ज हुई या यों कहें कि एक फैक्चुअल एरर ने गूगल को सौ बिलियन डॉलर का फटका लगा दिया.

इंटरनेट की दुनिया में जंग शुरू हो गई है ऑनलाइन सर्च की बादशाहत को लेकर...

बात करें चैटजीपीटी की तो गत वर्ष लांच होने के बाद से ही उसे त्वरित जवाबों के लिए सराहना मिलने लगी थी. इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले ज़्यादातर यूजर्स AI चैटबॉट chatGPT का नाम जानने लगे. चर्चाएं जोर पकड़ने लगी कि अपनी नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग की वजह से आने वाले समय में ये गूगल का विकल्प बन सकता है. क्या खूब है सवाल का जवाब देता है, जोक भी मारता है और इंसान की तरह कविता भी रच देता है. लेकिन जिच तो है. चिंता भी है कि यह तथ्यों को कितना समझता है ? क्योंकि ऐसे आंकड़ें नहीं है कि चैटजीपीटी कितनी बार गलत जानकारी देता है, ओपेनएआई ने उपलब्ध जो नहीं कराये हैं. सिर्फ अपने मुंह मियां मिट्ठू बनती है कि टूल को नियमित रूप से अपडेट किया जा रहा है, बेहतर बनाया जा रहा है. सो निहित है जब वे बेहतरी के लिए अपडेशन की बात करते हैं तो स्वीकार करते हैं कि गलतियां होती हैं, बार बार होती है. कह सकते हैं जितनी बार इस्तेमाल किया जाता है, 5 से 10 प्रतिशत गलतियां होती ही हैं. नतीजन यूजर्स इसके जवाबों को लेकर सतर्क रहता है.

कहा गया है कि चैटजीपीटी इंटीग्रेटेड माइक्रोसॉफ्ट का नया AI चैटबॉट किसी भी अनैतिक कार्य, मसलन राजनीतिक बयानबाजी, हेट स्पीच आदि, को रोकने में सक्षम होगा. प्रॅक्टिकली फर्क समझ में इस हद तक आता है कि जब बिज़नेस इनसाइडर के लोगों ने नए माइक्रोसॉफ्ट बिंग को नौकरी के लिए एक कवर लेटर लिखने को कहा तो इसने इंकार करते हुए कहा कि मैं आपके लिए एक कवर लेटर नहीं लिख सकता क्योंकि यह अनैतिक और अन्य आवेदकों के लिए अनुचित होगा, लेकिन चैटबॉट ने कई कवर लेटर राइटिंग रिसोर्सेज के लिंक और साथ ही कुछ टिप्स जरूर शेयर कर दिए ताकि आप स्वयं कवर लेटर तैयार करें. और तो और गुड लक विश भी कर दिया. इसके विपरीत ओपनएआई के चैटजीपीटी ने बाकायदा कवर लेटर लिख दिया. ऑन ए लाइटर नोट इस बीच McAfee की एक हालिया रिपोर्ट बताएं तो कई भारतीय प्रेम पत्र लिखने के लिए ChatGPT पर जा रहे हैं. "मॉडर्न लव" नामक अध्ययन से पता चला है कि 62 प्रतिशत भारतीय वयस्क इस वेलेंटाइन डे पर अपने प्रेम पत्र लिखने के लिए एआई का उपयोग करना चाहते हैं.

लेकिन रेडिट यूज़र्स ने जो खुलासा किया है, चिंता का विषय है. उन्होंने पता लगा ही लिया कि कई फिल्टरों के होने के बावजूद क्लेवर(चालाक)सोशल इंजीनियरिंग से कैसे चैटजीपीटी का अपने ही क्रिएटर्स की निंदा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी टूल ने यूक्रेन में नागरिकों के मारे जाने से संबंधित सवालों का जवाब देते हुए रुसी समर्थक शब्दों का इस्तेमाल किया था, वह भी बिना किसी स्पष्टीकरण के. अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगे कैसी गलतियां हो सकती हैं.

पहली झलक में गूगल तकनीक के इस्तेमाल को लेकर फीयरलेस नजर आ रहा है और शायद यही निडर होना ही जोखिम भरा है. माइक्रोसॉफ्ट के नए बिंग से जो भी उदाहरण पब्लिक डोमेन में शेयर किये गए हैं, उनसे लगता है कि चैटबॉट के जवाब हाशिये पर होते हुए भी ज्यादा विश्वसनीय होंगे चूंकि बॉट के जवाबों में लिंक भी होंगे, फुटनोट भी होंगे जो संबंधित सोर्स तक ले जाएंगे. इसके विपरीत गूगल का 'बार्ड' पेज के बीचोंबीच सर्च परिणामों के ऊपर एक संक्षिप्त सा उत्तर भर देगा बगैर किसी फुटनोट या लिंक के. तो यूजर कंटेंट के सोर्स तक नहीं पहुंच पाएगा या पता लगाना मुश्किल काम होगा. पता नहीं गूगल क्यों जल्दबाजी में हैं ? शायद दबाव में है, वजहें कई हैं. अच्छा होता यदि गूगल अपनी AI लेबोरेटरी डीपमाइंड में चल रहे डेवलपमेंट के परिणामों की प्रतीक्षा करता। डीपमाइंड लगा जो हुआ है कि चैटबॉट सवालों के जवाब में ही संबंधित स्त्रोत की भी जानकारी दे दे. एक और फर्क है. जहां चैटजीपीटी चेतावनी देता है कि उनका टूल गलत उत्तर दे सकता है, गूगल ने अपने टूल से संबंधित प्रदर्शन में ऐसी कोई चेतावनी नहीं दी है.

माना ओपन एआई ने खूब मेहनत कर अपने भाषाई मॉडल को खूब रिच किया है और परफेक्ट भी बनाया है ; जबरदस्त सेटिंग्स की हैं जो शब्दों का अनुमान सहज ही लगा लेते हैं. लेकिन समझने की ज़रूरत है कि इस मॉडल को ज्यादा बड़ा बनाने से ये और अधिक सटीक होगा क्या ? कई, जो निरंतर अनुसंधान में लगे रहते हैं, मानते हैं कि मॉडल के विकास के साथ ही इसकी दक्षता में कमी आएगी। तो स्पष्ट है कि बार बार के कुछ गलत उत्तरों की समस्या का हल माइक्रोसॉफ्ट और गूगल दोनों के लिए बड़ी चुनौती होगी, ठीक वैसे ही, जैसे छह साल से अधिक समय से हम स्वचालित कार तकनीक के साथ होते हुए भी दूर हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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