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ऑनलाइन एजुकेशन/ वर्क फ्रॉम होम वालों नयी रिसर्च आपको टेंशन के सिवा और कुछ न देगी!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 03 सितम्बर, 2022 05:59 PM
  • 03 सितम्बर, 2022 05:59 PM
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ऑनलाइन एजुकेशन और वर्क फ्रॉम होम वाले इस दौर में, मोबाइल से बच्चों का सिर्फ बचपन नहीं आपकी भी जवानी खो रही है. जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी ने मोबाइल, लैपटॉप, टैब को लेकर जो शोध किया है उसके परिणाम चौंकाने वाले हैं.

कोरोना के इस दौर में क्या नन्हें मुन्ने बच्चे क्या युवा... अपने घरों के अलावा आप दोस्तों में, रिश्तेदारों में कहीं भी चले जाइये मोबाइल, टैब, लैपटॉप खुले मिलेंगे. कहीं या तो बच्चे अपने अपने उज्जवल भविष्य के नाम पर ऑनलाइन वाली पढ़ाई में व्यस्त हैं. तो कहीं युवा अपने घर के किसी कोने में बैठे 9 घंटे की शिफ्ट पूरी कर रहे हैं. लोगों का यही रूप आज का सच है. यही न्यू नॉर्मल है. लेकिन क्या ये उतना ही परफेक्ट है जितना दिख रहा हैया फिर जितना बताया जा रहा है? जवाब है नहीं. एक शोध हुआ है जिसमें चौंकाने वाली बातें निकल कर सामने आई हैं. कहा गया है कि फोन, लैपटॉप, टैब, स्मार्टवॉच या किसी भी अन्य गैजेट्स की स्क्रीन से निकलने वाली ब्राइट- ब्लू लाइट आंखों को ख़राब करने के अलावा इंसान को समय से पहले बूढ़ा भी कर सकती है. 

मोबाइल, लॅपटॉप, टैब के इस्तेमाल पर जो नया शोध हुआ है उसका परिणाम आपको हैरान कर देगा

ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा की गयी रिसर्च में प्रयोग के लिए मक्खियों पर टेस्टिंग की गयी और जो नतीजे आए वो चौंकाने वाले थे. परिणाम सटीक हों इसलिए पहले मक्खियों को अंधेरे में रखा गया. बाद में मक्खियों को एलईडी की ब्लू लाइट के संपर्क में लाया गया . शोधकर्ताओं ने पाया कि ब्लू लाइट में आने के बाद मक्खियों की उम्र  बढ़ गयी है. दिलचस्प ये कि ब्लू लाइट कैसे मक्खियों की उम्र को प्रभावित कर रही थी? उन्हें  2 दिन, 20 दिन, 40 दिन और 60 दिन की उम्र में अंधेरे से ब्लू लाइट में रखा गया फिर मक्खियों के माइटोकॉन्ड्रिया पर ब्लू लाइट के प्रभाव की जांच की गई.

शोध में ये स्पष्ट हुआ कि ब्लू लाइट न केवल मक्खियों की आखों पर बुरा प्रभाव डाल रही थीं , बल्कि उनकी स्किन सेल्स पर भी इसके नकारात्मक प्रभाव दिखे. पूर्व में...

कोरोना के इस दौर में क्या नन्हें मुन्ने बच्चे क्या युवा... अपने घरों के अलावा आप दोस्तों में, रिश्तेदारों में कहीं भी चले जाइये मोबाइल, टैब, लैपटॉप खुले मिलेंगे. कहीं या तो बच्चे अपने अपने उज्जवल भविष्य के नाम पर ऑनलाइन वाली पढ़ाई में व्यस्त हैं. तो कहीं युवा अपने घर के किसी कोने में बैठे 9 घंटे की शिफ्ट पूरी कर रहे हैं. लोगों का यही रूप आज का सच है. यही न्यू नॉर्मल है. लेकिन क्या ये उतना ही परफेक्ट है जितना दिख रहा हैया फिर जितना बताया जा रहा है? जवाब है नहीं. एक शोध हुआ है जिसमें चौंकाने वाली बातें निकल कर सामने आई हैं. कहा गया है कि फोन, लैपटॉप, टैब, स्मार्टवॉच या किसी भी अन्य गैजेट्स की स्क्रीन से निकलने वाली ब्राइट- ब्लू लाइट आंखों को ख़राब करने के अलावा इंसान को समय से पहले बूढ़ा भी कर सकती है. 

मोबाइल, लॅपटॉप, टैब के इस्तेमाल पर जो नया शोध हुआ है उसका परिणाम आपको हैरान कर देगा

ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा की गयी रिसर्च में प्रयोग के लिए मक्खियों पर टेस्टिंग की गयी और जो नतीजे आए वो चौंकाने वाले थे. परिणाम सटीक हों इसलिए पहले मक्खियों को अंधेरे में रखा गया. बाद में मक्खियों को एलईडी की ब्लू लाइट के संपर्क में लाया गया . शोधकर्ताओं ने पाया कि ब्लू लाइट में आने के बाद मक्खियों की उम्र  बढ़ गयी है. दिलचस्प ये कि ब्लू लाइट कैसे मक्खियों की उम्र को प्रभावित कर रही थी? उन्हें  2 दिन, 20 दिन, 40 दिन और 60 दिन की उम्र में अंधेरे से ब्लू लाइट में रखा गया फिर मक्खियों के माइटोकॉन्ड्रिया पर ब्लू लाइट के प्रभाव की जांच की गई.

शोध में ये स्पष्ट हुआ कि ब्लू लाइट न केवल मक्खियों की आखों पर बुरा प्रभाव डाल रही थीं , बल्कि उनकी स्किन सेल्स पर भी इसके नकारात्मक प्रभाव दिखे. पूर्व में ऐसी कई रिसर्च आ चुकी हैं, जिनमें ये पाया गया है कि फोन, लैपटॉप, टीवी, टैब, स्मार्ट वॉच  जैसे गैजेट्स से निकलने वाली ब्लू लाइट स्किन सेल्स में कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं. इससे जहां एक तरफ कई मामलों में स्किन सेल्स में कमी दिखी है तो वहीं ऐसे भी मामले सामने आए जिनमें ब्लू लाइट ने स्किन सेल्स को ही मार दिया.

गौरतलब है कि सेल्स के ये बदलाव किसी भी सूरत में हल्के में नहीं लिए जा सकते. ये इंसान को समय से पहले बूढ़ा बनाते हैं. यदि कोई घंटे भर भी ब्लू लाइट के संपर्क में रहता है तो स्किन सेल्स अपने स्वरुप में परिवर्तन महसूस करना शुरू कर देते हैं, इसका नतीजा ये निकलता है कि आदमी का बुढ़ापा उसकी शक्ल सूरत पर जाहिर हो जाता है. कई बार इसके कारण जहां झाइयां और काले धब्बे पड़ते हैं तो वहीं चेहरे की त्वचा भी लटक जाती है. 

ध्यान रहे कि, तमाम अलग अलग डॉक्टर्स भी इस बात को लेकर एकमत हैं कि जब कभी भी हमारी स्किन ब्लू लाइट के संपर्क में आती है. तो त्वचा पर लाली, सूजन जैसी चीजें दिखती हैं. वहीं जब बात आंखों की हो तो चाहे वो आंखों का चिपचिपा और गीला होना हो. या अत्यधिक सूखा होना. तमाम परेशानियां हैं जिनका सामना व्यक्ति अपनी आंखों के अंतर्गत करता है.  

हो सकता है कि हम मोबाइल, टीवी, टैब और लैपटॉप से निकलने वाली ब्लू लाइट को एक बार के लिए इग्नोर कर दें लेकिन खतरा किस हद तक बड़ा है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इससे न्यूरॉन्स की कोशिकाएं तक प्रभावित कर रही हैं.  ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर जडविगा गिबुल्टोविक्ज के अनुसार टीवी, लैपटॉप और फोन जैसे रोजमर्रा के उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी के अत्यधिक संपर्क में आने से हमारे शरीर में त्वचा और वसा कोशिकाओं से लेकर संवेदी न्यूरॉन्स तक कोशिकाओं की एक विस्तृत श्रृंखला पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है.’

गिबुल्टोविक्ज ने ये भी कहा है कि, ‘हम सबसे पहले दिखाते हैं कि फल मक्खियों में कोशिकाओं के सही ढंग से कार्य करने के लिए आवश्यक विशिष्ट रसायन मेटाबोलाइट्स के स्तर नीली रोशनी के संपर्क में आने से बदल जाते हैं. बहरहाल अब जबकि इतनी जरूरी रिसर्च हमारे सामने है. तो ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि इससे उन तमाम लोगों को सबक लेना चाहिए जो या तो नौकरी या फिर पढ़ाई लिखाई के नाम पर अपने जीवन का बड़ा हिस्सा मोबाइल टैब टीवी लैपटॉप की स्क्रीन पर खर्च कर रहे हैं.

हम आपसे ये बिलकुल नहीं कहेंगे कि अपनी ज़िन्दगी से इन चीजों को निकाल दें ऐसा इसलिए भी क्योंकि सही मायनों  ये संभव भी नहीं है. हां इतना जरूर है कि हम इनका उतना ही इस्तेमाल करें जितने की जरूरत है. चूंकि कहा यही गया है कि जानकी ही बचाव है. तो जानकारी हमने आपको दे दी है. अब आप पार निर्भर करता है कि आप खुद का, अपने बच्चों का. जानने वालों का बचाव करते हैं या नहीं.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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