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कृत्रिम चांद बनाकर कई जानवरों की जिंदगी में कलह घोलने जा रहा है चीन

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 21 अक्टूबर, 2018 05:47 PM
  • 21 अक्टूबर, 2018 05:47 PM
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चीन की सड़कों को रोशन करने के लिए कृत्रिम चांद बनाने का आइडिया भले ही सुनने में हैरान करने वाला लगे, लेकिन यही आइडिया जानवरों को परेशान भी करने वाला है.

कभी चांदनी रात तो कभी अमावस का अंधेरा. जल्द ही ये सब बातें बेमतलब हो सकती हैं. कम से कम चीन में तो ऐसा होने ही वाला है. चीन की एक कंपनी ने घोषणा की है कि वह जल्द ही कृत्रिम चांद बनाने जा रहा है, जो रात में चीन की सड़कों को रोशन करेगा. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि अब चीन के कुछ इलाकों में कभी रात नहीं होगी. लेकिन अगर कभी रात ही नहीं होगी तो उन जीवों का क्या होगा जो रात में ही निकलते हैं? क्या वो जीव धीरे-धीरे उस इलाके से और फिर हो सकता है धीरे-धीरे धरती से ही विलुप्त नहीं हो जाएंगे? आइए आपको बताते हैं कि कैसे चांद की रोशनी और अंधेरी रात जानवरों की जिंदगी का अहम हिस्सा हैं और अगर कृत्रिम चांद लगा दिया गया तो उससे क्या मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.

चीन जल्द ही एक नकली चांद बनाने की योजना बना रहा है.

- जब अमावस की रात होती है, तभी Badger नाम के जानवर अपने साथी से सहवास के लिए अपना इलाका बनाते हैं. इसके लिए वह जगह-जगह पेशाब कर के अपने इलाके के निशान छोड़ते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार उनका सहवास करीब 90 मिनट तक चल सकता है और इस दौरान किसी भी दुश्मन से खुद को बचाने के लिए वह अपना इलाका बनाते हैं. लेकिन वो ऐसा सिर्फ तभी करते हैं, जब अमावस की रात यानी पूरी अंधेरी रात होती है, जब सूरज और धरती के बीच चांद आ जाता है. लेकिन अगर अंधेरा कभी होगा ही नहीं और चांद हमेशा चमकेगा. ऐसे में Badger के जीवन का ये अहम और सबसे जरूरी काम नहीं हो सकेगा, जिसके चलते उनकी प्रजाति विलुप्त भी हो सकती है.

अमावस की रात नहीं होगी तो ये जीव विलुप्त हो सकते...

कभी चांदनी रात तो कभी अमावस का अंधेरा. जल्द ही ये सब बातें बेमतलब हो सकती हैं. कम से कम चीन में तो ऐसा होने ही वाला है. चीन की एक कंपनी ने घोषणा की है कि वह जल्द ही कृत्रिम चांद बनाने जा रहा है, जो रात में चीन की सड़कों को रोशन करेगा. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि अब चीन के कुछ इलाकों में कभी रात नहीं होगी. लेकिन अगर कभी रात ही नहीं होगी तो उन जीवों का क्या होगा जो रात में ही निकलते हैं? क्या वो जीव धीरे-धीरे उस इलाके से और फिर हो सकता है धीरे-धीरे धरती से ही विलुप्त नहीं हो जाएंगे? आइए आपको बताते हैं कि कैसे चांद की रोशनी और अंधेरी रात जानवरों की जिंदगी का अहम हिस्सा हैं और अगर कृत्रिम चांद लगा दिया गया तो उससे क्या मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.

चीन जल्द ही एक नकली चांद बनाने की योजना बना रहा है.

- जब अमावस की रात होती है, तभी Badger नाम के जानवर अपने साथी से सहवास के लिए अपना इलाका बनाते हैं. इसके लिए वह जगह-जगह पेशाब कर के अपने इलाके के निशान छोड़ते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार उनका सहवास करीब 90 मिनट तक चल सकता है और इस दौरान किसी भी दुश्मन से खुद को बचाने के लिए वह अपना इलाका बनाते हैं. लेकिन वो ऐसा सिर्फ तभी करते हैं, जब अमावस की रात यानी पूरी अंधेरी रात होती है, जब सूरज और धरती के बीच चांद आ जाता है. लेकिन अगर अंधेरा कभी होगा ही नहीं और चांद हमेशा चमकेगा. ऐसे में Badger के जीवन का ये अहम और सबसे जरूरी काम नहीं हो सकेगा, जिसके चलते उनकी प्रजाति विलुप्त भी हो सकती है.

अमावस की रात नहीं होगी तो ये जीव विलुप्त हो सकते हैं.

- अगर कृत्रिम चांद की रोशनी किसी समुद्री इलाके में पड़े, जहां पर मूंगा जीव हो तो उसकी जिंदगी भी प्रभावित हो सकती है. मूंगा दिसंबर में पूरे चांद की रोशनी में अंडे और स्पर्म छोड़ते हैं. अब अगर हर वक्त पूरे चांद जैसी रोशनी ही रहेगी तो हो सकता है कि मूंगा की जिंदगी प्रभावित हो. हालांकि, अंडे और स्पर्म छोड़ने में पूरे चांद की रोशनी के अलावा वातावरण और तापमान जैसे फैक्टर भी काम करते हैं. आपको बता दें कि मूंगा समुद्र में पाया जाने वाला जीव है, जो स्थिर रहता है और बहुत सारे मूंगे एक साथ मिलकर बड़ी श्रृंखला बना देते हैं.

मूंगा दिसंबर में पूरे चांद की रोशनी में अंडे और स्पर्म छोड़ते हैं.

- एक स्टडी में पाया गया कि पूरे चांद की रोशनी में कुत्ते और बिल्लियों का व्यवहार भी बदल जाता है. स्टडी में मिला कि पूरे चांद वाली रात में कुत्ते और बिल्ली सामान्य परिस्थितियों की तुलना में अधिक चोटिल होते हैं. पूरे चांद वाली रात के अगले दिन कुत्तों के घायल होने की घटनाएं 28 फीसदी और बिल्लियों के घायल होने की घटनाएं करीब 23 फीसदी बढ़ीं. हालांकि, वैज्ञानिक अभी तक यह ठीक से नहीं समझ सकें हैं कि पूरे चांद की रोशनी में कुत्ते-बिल्लियों के व्यवहार में ये बदलाव क्यों देखने को मिलता है.

पूरे चांद की रोशनी में कुत्ते और बिल्लियों का व्यवहार बदल जाता है.

- पूरे चांद की रोशनी में अल्ट्रावाइलेट किरणों का प्रोटीन के साथ रिएक्शन होने पर बिच्छू नीले रंग में चमकता है. बिच्छू एक रात्रिचर जीव है, जो रोशनी से दूर भागता है और अंधेरे में निकलता है. ऐसे में चीन का कृत्रिम चांद बिच्छू की जिंदगी को भी खतरे में डाल सकता है. क्योंकि अगर बिच्छू घर से बाहर निकलेगा नहीं तो शिकार कैसे करेगा और खाएगा क्या? और खाएगा नहीं तो मर जाएगा.

बिच्छू एक रात्रिचर जीव है, जो रोशनी से दूर भागता है और अंधेरे में निकलता है.

- जब आसमान में पूरा चांद होता है तो ईगल उल्लू अपने गले के सफेद पंखों के जरिए एक दूसरे से बातें करते हैं. वहीं दूसरी ओर, अन्य उल्लू ऐसा नहीं करते. वो पूरे चांद के दौरान कुछ भी करने से बचते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि वह अपने दुश्मनों से बचे रहने के लिए चुप रहते हैं. अब आप ही सोचिए, अगर रोज पूरे चांद की रोशनी होगी तो इन पक्षियों का क्या होगा.

कृत्रिम चांद की रोशनी से उल्लुओं को भी भारी दिक्कत होने वाली है.

शीशे का उपग्रह करेगा चांद का काम

चीन के आसमान में कृत्रिम चांद टांगने की घोषणा चेंगडु एयरोस्पेस साइंस इंस्टिट्यूट माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सिस्टम रिसर्च इंस्टिट्यूट ने की है. चाइना डेली के अनुसार यह नकली चांद एक शीशे जैसा काम करेगा, जिससे टकराकर सूरज की किरणें धरती पर आएंगी. यह धरती से करीब 500 किलोमीटर की दूरी पर होगा, जबकि असल चांद धरती से 3,80,000 किलोमीटर दूर है. हालांकि, चंगडु इंस्टीट्यूट के चेयरमैन वु चेनफेंग का दावा है कि इससे 10 किलोमीटर से लेकर 80 किलोमीटर तक के इलाके में रोशनी की जा सकेगी, जो चांद की रोशनी से 8 गुना अधिक होगी.

क्यों बना रहा है चीन अपना पर्सनल चांद?

अपना पर्सनल चांद बनाने की वजह सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है. चीन इस चांद के जरिए रात के अंधेरे को दूर भगाकर स्ट्रीट लाइट पर होने वाला खर्च बचाना चाहता है. चाइना डेली के अनुसार इस नकली चांद से 50 वर्ग किलोमीटर के इलाके में रोशनी कर के हर साल बिजली पर होने वाले खर्च में करीब 17.3 करोड़ डॉलर यानी करीब 1270 करोड़ रुपए बचाए जा सकते हैं.

चीन ने नकली चांद तो बनाने की योजना बना ली है, लेकिन इसके आड़े आने वाली सबसे बड़ी दिक्कत है धरती से इसकी दूरी. अभी तक यह सिर्फ एक थ्योरी है, लेकिन वास्तव में ये कैसा होगा, ये तब पता चलेगा, जब वह बन जाएगा. नकली चांद से एक खास इलाके में रोशनी करने के लिए उसे एक निश्चित जगह पर रखना होगा, क्योंकि अगर 10 किलोमीटर के हिस्से को रोशनी देने में दिशा में एक डिग्री के 100वें हिस्से की चूक से भी रोशनी किसी दूसरे इलाके में जा सकती है. वहीं अगर इसकी रोशनी बहुत कम हुई तो ये भी सवाल उठेंगे कि इसमें पैसे बर्बाद क्यों किए? साथ ही, हर वक्त उजाला होने से लोगों को रात में सोने में भी दिक्कतें हो सकती हैं. आपको बताते चलें कि इससे पहले भी रातों को रोशन करने के लिए इस तरह के नकली चांद बनाने की योजनाएं बन चुकी हैं. रूस भी ऐसी कोशिश 1993 के दौरान कर चुका है, लेकिन फेल रहा. अब देखना ये होगा कि चाइनीज नकली चांद आसमान पर टिकेगा भी या नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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