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'संगीत से फसल अच्छी होती है', इसे हंसी में उड़ाने से पहले बात को समझने की जरूरत है

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 08 अक्टूबर, 2018 08:27 PM
  • 08 अक्टूबर, 2018 08:26 PM
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डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने कहा कि पौधों को संगीत सुनाकर ज्‍यादा पैदावार ली जा सकती है, तो तर्कशास्त्रियों के कान खड़े हो गए. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वनस्‍पतिशास्‍त्री इसे पूरी तरह खारिज कर रहे हैं.

कुछ दिन पहले ही डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर (वीसी) विलास भाले ने कहा कि भजन के जरिए फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.

क्या किसान खेत में हल-बैल के साथ भजन-कीर्तन का सामान लेकर जाएगा और भजन गा-गा कर बुआई करेगा? भाले के बयान के बाद इसी तरह के सवाल उन्हें घेरे हुए हैं. अपने एक बयान से विलास भाले विवादों में तो आ गए हैं, लेकिन उनका बयान सिरे से खारिज कर देने लायक भी नहीं है. उनके बयान पर हंसने वाले और सवाल खड़ा करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन उनके दावों की जांच करने वाला कोई नहीं. चलिए हम आपको बताते हैं इस बारे में, लेकिन पहले जानते हैं भाले का पूरा बयान क्या था.

कुछ रिसर्च ये दावा करती हैं कि संगीत से पौधों की ग्रोथ पर असर पड़ता है.

जब सवालों में घिर गए वीसी

डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय में अंतर विश्वविद्यालय युवा उत्सव का आयोजन किया गया था. इसके उद्घाटन भाषण में भाले ने भारतीय कला और संस्कृति की महानता पर विस्तार से बताया. उन्होंने यह भी कहा कि शास्त्रीय संगीत से मवेशियों में दूध की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलती है और भजन से फसलों को बढ़ने में मदद मिलती है. इनके इसी बयान पर अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने उनके खिलाफ एक पत्र जारी करके उनसे अपने बयान पर स्पष्टीकरण मांगा.

विलास भाले के बयान पर उनकी खूब आलोचना हो रही है और सवाल भी पूछे जा रहे हैं.

भाले ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उनके बयान की गलत व्याख्या की गई है. उन्होंने ऐसा नहीं कहा था कि भजन से फसलों की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है. वह बोले कि...

कुछ दिन पहले ही डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर (वीसी) विलास भाले ने कहा कि भजन के जरिए फसलों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.

क्या किसान खेत में हल-बैल के साथ भजन-कीर्तन का सामान लेकर जाएगा और भजन गा-गा कर बुआई करेगा? भाले के बयान के बाद इसी तरह के सवाल उन्हें घेरे हुए हैं. अपने एक बयान से विलास भाले विवादों में तो आ गए हैं, लेकिन उनका बयान सिरे से खारिज कर देने लायक भी नहीं है. उनके बयान पर हंसने वाले और सवाल खड़ा करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन उनके दावों की जांच करने वाला कोई नहीं. चलिए हम आपको बताते हैं इस बारे में, लेकिन पहले जानते हैं भाले का पूरा बयान क्या था.

कुछ रिसर्च ये दावा करती हैं कि संगीत से पौधों की ग्रोथ पर असर पड़ता है.

जब सवालों में घिर गए वीसी

डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय में अंतर विश्वविद्यालय युवा उत्सव का आयोजन किया गया था. इसके उद्घाटन भाषण में भाले ने भारतीय कला और संस्कृति की महानता पर विस्तार से बताया. उन्होंने यह भी कहा कि शास्त्रीय संगीत से मवेशियों में दूध की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलती है और भजन से फसलों को बढ़ने में मदद मिलती है. इनके इसी बयान पर अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने उनके खिलाफ एक पत्र जारी करके उनसे अपने बयान पर स्पष्टीकरण मांगा.

विलास भाले के बयान पर उनकी खूब आलोचना हो रही है और सवाल भी पूछे जा रहे हैं.

भाले ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उनके बयान की गलत व्याख्या की गई है. उन्होंने ऐसा नहीं कहा था कि भजन से फसलों की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है. वह बोले कि उन्होंने भजन से फसलों के प्रभावित होने की बात कही थी. उन्होंने कहा कि उनका बयान शास्त्रीय संगीत के संबंध में था.

दरअसल, पौधों पर संगीत के असर को लेकर वर्षों से रिसर्च चल रही है. भाले की बात इन्‍हीं रिसर्च से मिलती-जुलती है.

रिसर्च, जो भाले के बयान का समर्थन करती हैं

विलास भाले का बयान सुनकर लोगों के मन में ये सवाल उठता होगा कि क्या पौधों के कान होते हैं जो गाना सुनेंगे? क्या उनमें जान भी होती है? क्या वो संगीत को समझते हैं? इन सवालों का जवाब कुछ रिसर्च से मिल सकता है, तो कुछ लोगों के अनुभवों से:

1. अन्नामलाई यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान के विभाग प्रमुख डॉ. टी. सी. सिंह ने 1962 में संगीत के पौधों के विकास पर असर को लेकर रिसर्च की. बालसम के पौधों पर उन्होंने संगीत के असर का एक्सपेरिमेंट किया और पाया कि उनकी लंबाई 20 फीसदी अधिक बढ़ गई और पौधे का बायोमास 72 फीसदी बढ़ गया. पहले तो उन्होंने शास्त्रीय संगीत का पौधे पर असर का अध्ययन किया और फिर रागा म्यूजिक से एक्सपेरिमेंट किया. दोनों ही स्थितियों में उन्हें लगभग एक जैसे परिणाम मिले. इतना ही नहीं, उन्होंने तो भरतनाट्यम का असर भी पौधों पर देखा और पाया कि पिटूनिया और मारीगोल्ड जैसे फूल समय से करीब दो सप्ताह पहले ही खिल गए.

2. इनके अलावा प्लांट फिजियोलोजिस्ट सर जगदीश चंद्र बोस ने अपनी पूरी जिंदगी पौधों को समर्पित कर दी और कई रिसर्च किए. 1902 में Response in the Living and Non-Living और 1926 में The Nervous Mechanism of Plants नाम से उनकी रिसर्च को छापा गया. उन्होंने अपनी रिसर्च में पाया कि पौधे बाहरी वातावरण, रोशनी, ठंड, गर्मी और शोर (noise) तक पर प्रतिक्रिया देते हैं. उन्होंने इसके लिए एक रिकॉर्डर तक बनाया था.

3. दक्षिण अफ्रीका में 2008 में 91 हेक्टेयर में अंगूर की खेती में संगीत का इस्तेमाल कर के अच्छी पैदावार करने का उदाहरण भी है. यहां Dorothy Retallack ने एक्सपेरिमेंट करने के लिए दो अलग-अलग खेतों में से एक में संगीत बजाया गया और दूसरे में नहीं, ताकि दोनों की पैदावार में फर्क देखा जा सके. उन्होंने पाया कि इससे अंगूर की पैदावार अच्छी हुई.

4. इटली में भी ऐसा किया गया. यहां म्यूजिक का इस्तेमाल कीटों को भगाने के लिए किया गया था, लेकिन उन्होंने पाया कि इससे पैदावार काफी अच्छी हुई है, जिसके बाद संगीत को एक प्रोडक्टिविटी टूल की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा. यहां Mozart, Vivaldi, Haydn और Mahler साउंड का इस्तेमाल किया गया.

मवेशियों का दूध बढ़ाने के लिए तो संगीत सुनाना कोई नई बात नहीं है. ये दुनियाभर में किया जाता है. लेकिन संगीत से फसल का अच्छा होने को लेकर प्रमाणों के नाम पर सिर्फ कुछ थ्योरी ही हैं. प्रेक्टिकल की बात करें तो अगर सभी रिसर्च को मान भी लिया जाए तो संगीत से अच्छी फसल पैदा करना अपने आप में एक चुनौती होगा. आखिर पूरे खेत में संगीत का इंतजाम करना भी बेहद कठिन है. और वो भी उस स्थिति में जब ये भी नहीं पता कि संगीत का पौधों पर असर होगा भी या नहीं. और अगर होगा भी तो कितना और कैसा? तमाम रिसर्च के बावजूद अभी भी फसलों की संगीत से अच्छी पैदावार होना सिर्फ थ्योरी ही है, जिस पर अभी बहस चलती रहेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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