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चंद्रयान 2 की कामयाबी का श्रेय लेने वाले रूसी रुकावट के समय कहां थे?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 जुलाई, 2019 08:37 PM
  • 22 जुलाई, 2019 08:37 PM
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आखिरकार, चंद्रयान 2 को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया गया. इसरो के लिए ये बिल्कुल भी आसान नहीं थी. चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग में ठीक वैसी ही जटिलताएं आई थीं जैसी जटिलताओं का सामना उस महिला को करना पड़ता है जो प्रसव में है और जिसके बच्चे का जन्म होने वाला हो.

चंद्रयान-2 की कामयाब लांचिंग के बाद कांग्रेस और भाजपा के बीच श्रेय लेने की होड़ लग गई है. इसरो ने जैसे चंद्रमा के लिए अपने मिशन को लांच किया, वैसे ही कांग्रेस ने नेहरू के विजन की याद दिलाते हुए इस उपलब्धि के लिए कांग्रेस की सरकारों के काम की याद दिलाई. कांग्रेस के इस कदम के बाद बीजेपी कैसे पीछे रहती. दोनों राजनीतिक दलों के बीच खूब बातें हुई. लेकिन, इस पूरे प्रोजेक्‍ट की सच्‍चाई यह है कि चंद्रयान-2 की राह में कांग्रेस के दौर में भी रुकावट आई और भाजपा के दौर में भी मिशन निर्विघ्‍न नहीं रहा. इस प्रोजेक्‍ट का अमल में आना किसी प्रसव पीड़ा से कम नहीं है. जिसको सहने वाले हैं तो सिर्फ और सिर्फ इसरो के वैज्ञानिक.

किसी बच्चे का जन्म जितना ही जटिल रहा है चंद्रयान-2 का लॉन्च. हो सकता है कि सवाल हो कि आखिर हम किस आधार पर चंद्रयान-2 के लॉन्च की तुलना एक बच्चे के जन्म से कर रहे हैं ? हो सकता है कि कोई ये भी कह दे कि चार लोग बैठे होंगे और उनके प्रयासों से चंद्रयान-2 अंतरिक्ष में पहुंच गया. जबकि किसी बच्चे के जन्म में ऐसा नहीं होता और वो पूर्ण रूप से एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है. बात बिल्कुल सही है. जब हम चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग पर गौर करें तो मिलता है कि इस लॉन्चिंग ने भी तमाम दुविधाओं का सामना किया है.

चंद्रयान 2 का लॉन्च इसरो के लिए बिल्कुल भी आसन नहीं था और इसके लिए उसे तमाम तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ा

बात समझने के लिए हमें 2007 में जाना होगा. 12 नवम्बर 2017 को रशियन फेडेरल स्पेस एजेंसी (रॉसकॉसमॉस ) और इसको के प्रतिनिधियों ने दोनों एजेंसियों के लिए चंद्रयान -2 परियोजना पर एक साथ काम करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. करार हुआ कि ऑर्बिटर और रोवर बनाने की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी. जबकि लैंडर...

चंद्रयान-2 की कामयाब लांचिंग के बाद कांग्रेस और भाजपा के बीच श्रेय लेने की होड़ लग गई है. इसरो ने जैसे चंद्रमा के लिए अपने मिशन को लांच किया, वैसे ही कांग्रेस ने नेहरू के विजन की याद दिलाते हुए इस उपलब्धि के लिए कांग्रेस की सरकारों के काम की याद दिलाई. कांग्रेस के इस कदम के बाद बीजेपी कैसे पीछे रहती. दोनों राजनीतिक दलों के बीच खूब बातें हुई. लेकिन, इस पूरे प्रोजेक्‍ट की सच्‍चाई यह है कि चंद्रयान-2 की राह में कांग्रेस के दौर में भी रुकावट आई और भाजपा के दौर में भी मिशन निर्विघ्‍न नहीं रहा. इस प्रोजेक्‍ट का अमल में आना किसी प्रसव पीड़ा से कम नहीं है. जिसको सहने वाले हैं तो सिर्फ और सिर्फ इसरो के वैज्ञानिक.

किसी बच्चे का जन्म जितना ही जटिल रहा है चंद्रयान-2 का लॉन्च. हो सकता है कि सवाल हो कि आखिर हम किस आधार पर चंद्रयान-2 के लॉन्च की तुलना एक बच्चे के जन्म से कर रहे हैं ? हो सकता है कि कोई ये भी कह दे कि चार लोग बैठे होंगे और उनके प्रयासों से चंद्रयान-2 अंतरिक्ष में पहुंच गया. जबकि किसी बच्चे के जन्म में ऐसा नहीं होता और वो पूर्ण रूप से एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है. बात बिल्कुल सही है. जब हम चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग पर गौर करें तो मिलता है कि इस लॉन्चिंग ने भी तमाम दुविधाओं का सामना किया है.

चंद्रयान 2 का लॉन्च इसरो के लिए बिल्कुल भी आसन नहीं था और इसके लिए उसे तमाम तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ा

बात समझने के लिए हमें 2007 में जाना होगा. 12 नवम्बर 2017 को रशियन फेडेरल स्पेस एजेंसी (रॉसकॉसमॉस ) और इसको के प्रतिनिधियों ने दोनों एजेंसियों के लिए चंद्रयान -2 परियोजना पर एक साथ काम करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. करार हुआ कि ऑर्बिटर और रोवर बनाने की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी. जबकि लैंडर के निर्माण का काम (रॉसकॉसमॉस) करेगा. 18 सितंबर 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में भारत सरकार ने मिशन को मंजूरी दे दी थी. अंतरिक्ष यान का डिज़ाइन अगस्त 2009 में पूरा हुआ और दिलचस्प बात ये है कि तब दोनों ही देशों के वैज्ञानिकों ने इसकी संयुक्त समीक्षा भी की थी.

चंद्रयान-2 के मिशन को लेकर इसरो शुरू से ही गंभीर था और जो उसकी जिम्मेदारियां थीं वो उसने समय पर पूरी कीं. मगर मिशन को जनवरी 2013 तक के लिए स्थगित कर दिया जिसे बाद में फिर 2016 के लिए पुनर्निर्धारित किया गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रूस, समय पर लैंडर विकसित करने में असमर्थ था. बाद में रॉसकॉसमॉस ने मंगल पर फोबोस-ग्रंट मिशन की विफलता के कारण, करार से अपने हाथ पीछे खींच लिए. ध्यान रहे कि रॉसकॉसमॉस फ़ोबोस-ग्रंट मिशन से जुड़े तकनीकी पहलुओं का उपयोग चंद्र परियोजनाओं में भी कर रहा था, जिनकी समीक्षा किए जाने की आवश्यकता थी.

जब रूस ने 2015 तक भी लैंडर प्रदान करने में असमर्थता का हवाला दिया, तो फिर मोदी सरकार ने ताल ठोंकी. भारत सरकार ने चंद्र मिशन को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का निर्णय लिया. यानी भारत द्वारा ये फैसला लिया गया कि चंद्रयान 2 से जुड़ी हर चीज का निर्माण वो बिना किसी विदेशी मदद के खुद करेगा. गौरतलब है कि अंतरिक्ष यान का लॉन्च मार्च 2018 के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन वाहन पर आगे परीक्षण करने के लिए पहले अप्रैल और फिर अक्टूबर तक देरी की गई थी.

19 जून 2018 को, कार्यक्रम की चौथी व्यापक तकनीकी समीक्षा बैठक के बाद, कॉन्फ़िगरेशन और लैंडिंग अनुक्रम में कई बदलावों को लागू करने की योजना बनाई गई थी, जिसमें इस बात का निर्धारण स्वयं हो गया था कि लॉन्चिंग 2019 की पहली छमाही के बाद ही होगी. आपको बताते चलें कि लॉन्चिंग में देर इसलिए भी हुई क्योंकि फरवरी 2019 में हुए शुरूआती परीक्षण के दौरान लैंडर के मामूली नुकसान हुआ था और माना जा रहा था कि इस नुकसान पर काम करने के बाद ही इसरो चंद्रयान को अंतरिक्ष में रवाना करेगा.

बाद में चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग को 14 जुलाई 2019 के लिए निर्धारित किया गया था और लैंडिंग की उम्मीद 6 सितंबर 2019 की जताई जा रही थी. लेकिन एक तकनीकी गड़बड़ के कारण लॉन्च को रद्द कर दिया गया था. 18 जुलाई को, इसरो ने लॉन्च के नए समय के रूप में 22 जुलाई 2019, 09:13 यूटीसी की घोषणा की थी.

इतनी जानकारियों से साफ हो गया है कि चंद्रयान 2 का लॉन्च कोई एक दिन का प्रोसेस नहीं था. और न ही किसी एक पार्टी के भरोसे यह अमल में आया. इसके लिए इसरो ने काफी मेहनत की है और वैसे ही तमाम तरह की जटिलताओं का सामना किया है जो तकलीफें एक महिला को अपने प्रसव के दौरान होती हैं. कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष में चंद्रयान-2 का लॉन्च, कई मायनों में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. इस लांच के बाद भारत ने भी पूरी दुनिया को बता दिया है कि तमाम क्षेत्रों की तरह अब वो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी किसी से पीछे नहीं है. भारतीय वैज्ञानिकों की इस कामयाबी का जश्‍न हमें राजनीतिक चश्‍मा उतारकर करना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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