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टेक्नोलॉजी

स्मार्टफोन के वो फीचर्स जिन्हें देखकर कभी फोन नहीं खरीदना चाहिए..

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 11 जुलाई, 2018 12:45 PM
  • 11 जुलाई, 2018 12:45 PM
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स्मार्टफोन के कुछ स्पेसिफिकेशन सुनने में तो बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन असल में इनका कोई खास काम नहीं होता और यूजर इन्हें खरीदकर सिर्फ पैसे बर्बाद करता है. तो चलिए देखते हैं ऐसे ही स्पेसिफिकेशन.

टेक्नोलॉजी भी बड़ी अजीब है. जो चीज़ लोगों को ज्यादा समझ नहीं आती वो उन्हें देखकर बहुत आकर्षित करती है, लेकिन तकनीक के मामले में ये धारणा गलत साबित हो सकती है. ज्यादातर लोगों को ये लगता है कि जितनी ज्यादा अच्छी स्पेसिफिकेशन होगी उतना ही बेहतर फोन होगा, लेकिन ऐसा असल में होता नहीं है. कई फीचर्स सिर्फ स्पेसिफिकेशन शीट पर ही बेहतर दिखते हैं, लेकिन असल में होते नहीं हैं. उनका इस्तेमाल ही नहीं हो पाता और यूजर का पैसा एक तरह से बर्बाद ही हो जाता है. अगर कोई यूजर बहुत ज्यादा टेक फ्रेंड्ली नहीं है तो उसे ऐसे फोन लेने की जरूरत ही नहीं होती. चलिए आज ऐसे पांच फीचर्स की बात करते हैं जिनका ज्यादा इस्तेमाल नहीं हो पाता और उनपर पैसा लगाना व्यर्थ ही जाता है.

1. जिनमें तीन कैमरा सेंसर हों...

स्मार्टफोन जिसमें दो कैमरा सेंसर होते हैं उसमें एक आम कैमरा सेंसर, दूसरा टेलिफोटो लेंस और तीसरा मोनोक्रोम लेंस. एक फोटो खींचता है, दूसरा उसमें बेहतर फोकस, जूम फीचर देता है और तीसरा लाइट के बेहतर उपयोग के लिए है. सिस्टम अपने आप तीनों कैमरा का मिलाजुला रूप तैयार करता है और एक फोटो देता है. ऐसी टेक्नोलॉजी अभी कुछ ही फ्लैगशिप स्मार्टफोन्स में हैं जो लगभग 50 हज़ार की रेंज में हैं. तीन कैमरा वाले स्मार्टफोन के कारण फोटो का साइज भी काफी हैवी हो जाता है और यकीनन डुअल कैमरा एवरेज रेंज वाले फोन से भी हम अच्छी क्वालिटी की फोटो खींच सकते हैं.

इसलिए ज्यादा पैसा देकर एकदम फ्लैगशिप किलर फोन लेना और तीन कैमरे का इस्तेमाल करना उतना बेहतर भी नहीं होगा. अगर आपको बहुत बेहतरीन फोटो खींचनी है और प्रोफेशनल लेवल चाहते हैं तो कैमरा भी ले सकते हैं. अगर फोन से ही लेनी है या आप बहुत ज्यादा टेक फ्रेंड्ली हैं तो इन फोन्स में निवेश कर सकते हैं अन्यथा नहीं.

2. जिनमें 8GB रैम हो...

8GB...

टेक्नोलॉजी भी बड़ी अजीब है. जो चीज़ लोगों को ज्यादा समझ नहीं आती वो उन्हें देखकर बहुत आकर्षित करती है, लेकिन तकनीक के मामले में ये धारणा गलत साबित हो सकती है. ज्यादातर लोगों को ये लगता है कि जितनी ज्यादा अच्छी स्पेसिफिकेशन होगी उतना ही बेहतर फोन होगा, लेकिन ऐसा असल में होता नहीं है. कई फीचर्स सिर्फ स्पेसिफिकेशन शीट पर ही बेहतर दिखते हैं, लेकिन असल में होते नहीं हैं. उनका इस्तेमाल ही नहीं हो पाता और यूजर का पैसा एक तरह से बर्बाद ही हो जाता है. अगर कोई यूजर बहुत ज्यादा टेक फ्रेंड्ली नहीं है तो उसे ऐसे फोन लेने की जरूरत ही नहीं होती. चलिए आज ऐसे पांच फीचर्स की बात करते हैं जिनका ज्यादा इस्तेमाल नहीं हो पाता और उनपर पैसा लगाना व्यर्थ ही जाता है.

1. जिनमें तीन कैमरा सेंसर हों...

स्मार्टफोन जिसमें दो कैमरा सेंसर होते हैं उसमें एक आम कैमरा सेंसर, दूसरा टेलिफोटो लेंस और तीसरा मोनोक्रोम लेंस. एक फोटो खींचता है, दूसरा उसमें बेहतर फोकस, जूम फीचर देता है और तीसरा लाइट के बेहतर उपयोग के लिए है. सिस्टम अपने आप तीनों कैमरा का मिलाजुला रूप तैयार करता है और एक फोटो देता है. ऐसी टेक्नोलॉजी अभी कुछ ही फ्लैगशिप स्मार्टफोन्स में हैं जो लगभग 50 हज़ार की रेंज में हैं. तीन कैमरा वाले स्मार्टफोन के कारण फोटो का साइज भी काफी हैवी हो जाता है और यकीनन डुअल कैमरा एवरेज रेंज वाले फोन से भी हम अच्छी क्वालिटी की फोटो खींच सकते हैं.

इसलिए ज्यादा पैसा देकर एकदम फ्लैगशिप किलर फोन लेना और तीन कैमरे का इस्तेमाल करना उतना बेहतर भी नहीं होगा. अगर आपको बहुत बेहतरीन फोटो खींचनी है और प्रोफेशनल लेवल चाहते हैं तो कैमरा भी ले सकते हैं. अगर फोन से ही लेनी है या आप बहुत ज्यादा टेक फ्रेंड्ली हैं तो इन फोन्स में निवेश कर सकते हैं अन्यथा नहीं.

2. जिनमें 8GB रैम हो...

8GB रैम वाले लैपटॉप का चलन अभी ज्यादा है. लेकिन 8 जीबी वाले स्मार्टफोन? जहां अभी 6 जीबी रैम वाले स्मार्टफोन्स मार्केट में चलने लगे हैं वहीं 8GB वाले फोन भी लॉन्च हो गए हैं. पर क्या इतनी रैम की जरूरत है? अगर आप फोन का इस्तेमाल म्यूजिक, इंटरनेट, कॉलिंग, टेक्स्टिंग, फोटो एडिंटिंग, कैमरा आदि के लिए करते हैं और हेवी गेमिंग के न तो शौकीन हैं और न हीं कई टैब्स में काम करते हैं तो 8GB रैम की जरूरत आपको है ही नहीं. स्मार्टफोन की एक लिमिटेशन होती है कि उसमें एक समय पर कुछ ही काम किए जा सकते हैं. लैपटॉप जहां कई विंडो एक साथ खोली जा सकती हैं उसमें 8GB रैम और स्मार्टफोन में 8 जीबी रैम को एक जैसा पावर नहीं मिल सकता. ऐसे में यकीनन ये सिर्फ स्पेसिफिकेशन शीट पर ही अच्छी लगेगी न ही इसका काम है और न ही इससे कोई बेहतर परिणाम मिलते हैं.

3. Dolby Atmos साउंड सिस्टम वाले...

आजकल डॉल्बी एटमोस या ऑब्जेक्ट आधारित ऑडियो स्पीकर का चलन ज्यादा हो गया है स्मार्टफोन में. डॉल्बी एटमोस एक ऑडियो फॉर्मेट होता है जो फिल्मों के लिए मल्टीचैनल मूवी साउंडट्रैक बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. इसमें साउंड थ्री-डायमेंशनल (तीन अलग-अलग कोनों से) आती है और ऐसा लगता है जैसे आप उसी जगह हों जहां ये फिल्म चल रही है. ये सिर्फ एक्शन की फील देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

ये तब बेहतर है जब आप डॉल्बी थिएटर में फिल्म देख रहे हों, या फिर तब जब आपके पास डॉल्बी होम थिएटर सिस्टम हो, लेकिन यकीनन स्मार्टफोन में इसका क्या काम? ऐसे कितने वीडियो या म्यूजिक ट्रैक होंगे जो डॉल्बी एटमोस कम्पैटिबल होंगे? ये किसी तरह के स्पीकर का नाम नहीं है जो साउंड क्वालिटी अच्छी करेगा. साउंड वैसी ही समझ आएगी. फिर इस तरह के फीचर के लिए स्मार्टफोन लेने से क्या मतलब?

4. डेका कोर प्रोसेसर वाले फोन...

अब जो हाल रैम का है वो ही प्रोसेसर का है. आप अगर बहुत हैवी प्रोसेसर ले लेंगे तो वो बैटरी ज्यादा खाएगा और उससे काम वैसा लेंगे नहीं तो यकीनन इतनी पावर फालतू ही जाएगी. आपके पास गेमिंग लैपटॉप तो है नहीं, फोन से लिमिटेड काम ही ले सकते हैं ऐसे में क्या वाकई इतने भारी प्रोसेसर की जरूरत है?

5. फ्रंट कैमरा सेल्फी फ्लैश वाले फोन..

कम लाइट वाली जगह सेल्फी के लिए वैसे भी अच्छी नहीं होती है. सिर्फ सेल्फी ही नहीं वो किसी भी तरह की फोटो के लिए अच्छी नहीं होती. फ्रंट कैमरा सेंसर वैसे भी छोटे होते हैं और जितनी लाइट उनमें आती है उसके हिसाब से फोटो खींचते हैं. शायद इसीलिए सेल्फी फ्लैश कैमरा का आविष्कार हुआ, लेकिन ये कितनी बार काम आता है?

रियर कैमरा फ्लैश में डुअल टोन का इस्तेमाल किया जाता है और इसलिए वो बेहतर रिजल्ट दे सकते हैं. लेकिन सेल्फी फ्लैश में सिंगल LED फ्लैश होता है और इसमें क्या उम्मीद की जा सकती है कि सेल्फी कितनी अच्छी होगी? सिर्फ फ्रंट फ्लैश पर सेल्फी खींचना सही क्वालिटी नहीं देता. ऐसे में ब्यूटिफाई फीचर इसे और भी ज्यादा अप्राकृतिक बना देता है. ऐसे में सेल्फी फ्लैश का क्या काम?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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