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ओलंपिक खिलाड़ियों को पुरस्कृत कीजिये लेकिन भेदभाव मत होने दीजिये...

    • vinaya.singh.77
    • Updated: 10 अगस्त, 2021 04:43 PM
  • 10 अगस्त, 2021 04:43 PM
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टोक्यो से आने के बाद खिलाड़ियों के लिए पुरस्कार की घोषणा हो रही है, उन्हें सम्मानित किया जा रहा है. जीतने के बाद तारीफ़ करना और सिर माथे पर बैठाना गलत नहीं है लेकिन पहले भी थोड़ा उत्साहवर्धन करना जरुरी था. और एक और चीज जो पदक जीतने के बाद खटकती है वह है विभिन्न खिलाडियों को मिलने वाली पुरस्कार की राशि.

अभी अभी टोक्यो में ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक संपन्न हुआ है. इस बार भारत ने सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए कुल 7 पदक जीते हैं. जो आज तक के सर्वाधिक हैं. 7 पदक और वह भी 135 करोड़ जनसंख्या वाले देश द्वारा प्राप्त करना और वह भी आज तक का सर्वाधिक होना, पता नहीं गर्व करने का विषय है या अफ़सोस करने का. पहले तो हमें गर्व ही करना चाहिए कि कम से कम इस बार सबसे अधिक पदक मिले और उसमें भी एक स्वर्ण पदक शामिल है. लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में खेल की क्या स्थिति है, यह भी इससे स्पष्ट हो जाता है. और यही सबसे अफ़सोस वाली बात है क्योंकि एकदम छोटे छोटे देश भी हमसे पदक तालिका में बहुत आगे हैं. अगली बार 2024 में हम कम से कम दहाई में जरूर पहुंचे. यही उम्मीद की जा सकती है. पदक जीतने के बाद जिस तरह से हमारा मीडिया इन विजेताओं का स्वागत कर रहा है और जिस तरह से इसे भुनाया जा रहा है. उसे देखकर बरबस ही एक ख्याल जेहन में आता है.

टोक्यो से आने के बाद अब खिलाड़ियों पर इनाम की बरसात हो रही है, उन्हें सम्मानित किया जा रहा है

काश इसका एक दहाई हिस्सा भी ओलम्पिक शुरू होने से पहले इनके उत्साहवर्धन के लिए किया जाता तो शायद ये खिलाड़ी दोगुने उत्साह से खेलों में हिस्सा लेते और पदकों की संख्या में इज़ाफ़ा हो गया होता. जीतने के बाद तारीफ़ करना और सिर माथे पर बैठाना गलत नहीं है लेकिन पहले भी थोड़ा उत्साहवर्धन करना जरुरी था. और एक और चीज जो पदक जीतने के बाद खटकती है वह है विभिन्न खिलाडियों को मिलने वाली पुरस्कार की राशि.

वैसे तो ओलम्पिक में क्वालीफाई करने के बाद ही अगर इन खिलाडियों को दिए जाने वाली पुरस्कार राशि की घोषणा कर दी जाती, जो सभी भाग लेने वालों के लिए होती, तो शायद खिलाड़ी और उत्साह से और बिना ख़ास फिक्र के खेलते.लेकिन पदक जीतने के बाद भी जिस तरह से अलग...

अभी अभी टोक्यो में ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक संपन्न हुआ है. इस बार भारत ने सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए कुल 7 पदक जीते हैं. जो आज तक के सर्वाधिक हैं. 7 पदक और वह भी 135 करोड़ जनसंख्या वाले देश द्वारा प्राप्त करना और वह भी आज तक का सर्वाधिक होना, पता नहीं गर्व करने का विषय है या अफ़सोस करने का. पहले तो हमें गर्व ही करना चाहिए कि कम से कम इस बार सबसे अधिक पदक मिले और उसमें भी एक स्वर्ण पदक शामिल है. लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में खेल की क्या स्थिति है, यह भी इससे स्पष्ट हो जाता है. और यही सबसे अफ़सोस वाली बात है क्योंकि एकदम छोटे छोटे देश भी हमसे पदक तालिका में बहुत आगे हैं. अगली बार 2024 में हम कम से कम दहाई में जरूर पहुंचे. यही उम्मीद की जा सकती है. पदक जीतने के बाद जिस तरह से हमारा मीडिया इन विजेताओं का स्वागत कर रहा है और जिस तरह से इसे भुनाया जा रहा है. उसे देखकर बरबस ही एक ख्याल जेहन में आता है.

टोक्यो से आने के बाद अब खिलाड़ियों पर इनाम की बरसात हो रही है, उन्हें सम्मानित किया जा रहा है

काश इसका एक दहाई हिस्सा भी ओलम्पिक शुरू होने से पहले इनके उत्साहवर्धन के लिए किया जाता तो शायद ये खिलाड़ी दोगुने उत्साह से खेलों में हिस्सा लेते और पदकों की संख्या में इज़ाफ़ा हो गया होता. जीतने के बाद तारीफ़ करना और सिर माथे पर बैठाना गलत नहीं है लेकिन पहले भी थोड़ा उत्साहवर्धन करना जरुरी था. और एक और चीज जो पदक जीतने के बाद खटकती है वह है विभिन्न खिलाडियों को मिलने वाली पुरस्कार की राशि.

वैसे तो ओलम्पिक में क्वालीफाई करने के बाद ही अगर इन खिलाडियों को दिए जाने वाली पुरस्कार राशि की घोषणा कर दी जाती, जो सभी भाग लेने वालों के लिए होती, तो शायद खिलाड़ी और उत्साह से और बिना ख़ास फिक्र के खेलते.लेकिन पदक जीतने के बाद भी जिस तरह से अलग अलग राज्य अपने खिलाड़ियों के लिए पुरस्कार की घोषणा कर रहे हैं. उससे भी एक असमानता नजर आने लगी है.

हर राज्य की पुरस्कार राशि अलग अलग है और अगर टीम गेम जैसे हॉकी की बात करें तो पूरी टीम ने मिलकर कांस्य पदक जीता लेकिन हर खिलाडी को उसके प्रदेश के हिसाब से नकद पुरस्कार मिलेगा.अब किसी खिलाड़ी को एक करोड़ तो दूसरे खिलाडी को 75 लाख और कुछ खिलाडियों को सिर्फ 50 लाख ही मिलेंगे. इसके अलावा भी कुछ राज्य अपने खिलाडियों को ताजी सरकार में अच्छी नौकरी दे रहे हैं तो कुछ राज्य नहीं दे रहे.

कुछ राज्य खिलाडियों को जमीं या घर भी देने की घोषणा कर रहे हैं तो कुछ राज्य यह नहीं कर रहे.अब ऐसे में खिलाडी अपने आप को ठगा हुआ महसूस करेंगे कि उन्होंने भी उतना ही परिश्रम किया देश की जीत के लिए लेकिन उनको दूसरे खिलाडियों की तुलना में कम मिल रहा है जो सरासर गलत है.

दरअसल पहले तो केंद्र सरकार को पुरस्कारों की घोषणा आयोजन के पहले ही कर देना चाहिए और सिर्फ विजेताओं के लिए ही नहीं बल्कि सभी खिलाड़ी, जो ओलम्पिक में भाग ले रहे हैं, उन सबके लिए भी पुरस्कार घोषित किये जाने चाहिए जिससे खिलाड़ी एक आर्थिक सुरक्षा के साथ बेफिक्र होकर खेलेंगे.

दूसरे विभिन्न राज्य अपने खिलाडियों के लिए जो भी पुरस्कार घोषित कर रहे हैं, उसके बाद केंद्र सभी खिलाडियों को बराबर राशि मिले, यह सुनिश्चित भी करे. इससे न सिर्फ खिलाडियों के बीच एक अच्छा माहौल रहेगा, बल्कि सभी खिलाड़ी उस राज्य की तरफ ही भागने से बचेंगे जो सबसे ज्यादा पुरस्कार घोषित कर रहा है.

इस बार के पुरस्कारों पर अगर नजर डालें तो जो भी खिलाड़ी हरियाणा की तरफ से खेलता है, उसे सबसे ज्यादा पुरस्कार मिल रहा है. और अगर बाकि खिलाडियों के लिए भी बराबर की राशि नहीं दी गयी तो सभी उभरते हुए खिलाड़ी सिर्फ और सिर्फ हरियाणा की तरफ से ही खेलना चाहेंगे जो खेलों के विकास के लिए ठीक नहीं होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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