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नीरज चोपड़ा का मतलब सोने पर सुहागा!

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 09 अगस्त, 2021 09:29 PM
  • 09 अगस्त, 2021 09:29 PM
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ओलंपिक खेलों में एथलेटिक्स को सबसे अव्वल स्थान प्राप्त है. एथेलेटिक्स ही वास्तव में खेलों की जननी है. एथलेटिक्स में भारत के हिस्से में अभी तक किसी ओलंपिक खेलों में कोई महान सफलता नहीं आई थी. लेकिन, टोक्यो ओलंपिक खेलों में जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतकर नीरज चोपड़ा ने साबित कर दिया कि भारत के खिलाड़ी एथलेटिक्स में भी दमखम रखते हैं.

ओलम्पिक खेलों में एथलेटिक्स को सबसे अव्वल स्थान प्राप्त है. शुरुआत के कुछ दशकों में ओलंपिक में एथलेटिक्स या फील्ड एंड ट्रैक प्रतियोगितायें ही छाई रही थीं. बाद में एनी खेलों को भी जोड़ा गया. कहा जाता है कि खेलों की जननी है एथलेटिक्स. लेकिन, उसी एथलेटिक्स में भारत के हिस्से में ओलंपिक खेलों में कभी कोई महान सफलता नहीं आई थी. लेकिन, टोक्यो ओलंपिक खेलों में जेवलिन थ्रो (भाला फेंक प्रतियोगिता) में गोल्ड मेडल जीतकर नीरज चोपड़ा ने साबित कर दिया कि भारत के खिलाड़ी एथलेटिक्स में भी दमखम रखते हैं. वे अब अपने हिस्से के आकाश को छूने के लिए तैयार हैं. नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक खेलों से पहले ही अपनी स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतने के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे. हां, मिल्खा सिंह, गुरुबचन सिंह रंधावा, श्रीराम सिंह, पीटी उषा तथा अंजू बॉबी जार्ज जैसे धावकों ने भारत को एशियाई खेलों से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों में कुछ पदक और सफलताएं दिलवाईं थी. पर ये सब ओलंपिक खेलों में पदक पाने से चूक गए थे. उस कमी को अब नीरज चोपड़ा ने पूरा कर दिया.

टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड हासिल कर नीरज चोपड़ा ने भारत का मान बढ़ा दिया है

सच में नीरज चोपड़ा ने एक बड़ी लकीर खींच दी है. गोल्ड मेडल जीतने के जश्न के दौरान नीरज चोपड़ा ने इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि तिरंगे को ससम्मान सही ढंग से समेटा जाए. इन छोटी- छोटी बातों से उनके व्यक्तित्व का अंदाजा होता है. नीरज चोपड़ा ने यह जो गोल्ड मेडल देश को दिलवाया है, उसे जीतने के लिए उन्होंने कितनी कड़ी मेहनत की होगी या कितना पसीना बहाया होगा, यह अब किसी को बताने की जरूरत तो नहीं है.

उन्हें सारा देश अब करीब से जानने लगा है और अपना हीरो मानने लगा है. उन्होंने देश को स्वर्णिम क्षण देकर सच में बहुत ही बड़ा उपकार किया. कोरोना की दो...

ओलम्पिक खेलों में एथलेटिक्स को सबसे अव्वल स्थान प्राप्त है. शुरुआत के कुछ दशकों में ओलंपिक में एथलेटिक्स या फील्ड एंड ट्रैक प्रतियोगितायें ही छाई रही थीं. बाद में एनी खेलों को भी जोड़ा गया. कहा जाता है कि खेलों की जननी है एथलेटिक्स. लेकिन, उसी एथलेटिक्स में भारत के हिस्से में ओलंपिक खेलों में कभी कोई महान सफलता नहीं आई थी. लेकिन, टोक्यो ओलंपिक खेलों में जेवलिन थ्रो (भाला फेंक प्रतियोगिता) में गोल्ड मेडल जीतकर नीरज चोपड़ा ने साबित कर दिया कि भारत के खिलाड़ी एथलेटिक्स में भी दमखम रखते हैं. वे अब अपने हिस्से के आकाश को छूने के लिए तैयार हैं. नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक खेलों से पहले ही अपनी स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतने के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे. हां, मिल्खा सिंह, गुरुबचन सिंह रंधावा, श्रीराम सिंह, पीटी उषा तथा अंजू बॉबी जार्ज जैसे धावकों ने भारत को एशियाई खेलों से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों में कुछ पदक और सफलताएं दिलवाईं थी. पर ये सब ओलंपिक खेलों में पदक पाने से चूक गए थे. उस कमी को अब नीरज चोपड़ा ने पूरा कर दिया.

टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड हासिल कर नीरज चोपड़ा ने भारत का मान बढ़ा दिया है

सच में नीरज चोपड़ा ने एक बड़ी लकीर खींच दी है. गोल्ड मेडल जीतने के जश्न के दौरान नीरज चोपड़ा ने इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि तिरंगे को ससम्मान सही ढंग से समेटा जाए. इन छोटी- छोटी बातों से उनके व्यक्तित्व का अंदाजा होता है. नीरज चोपड़ा ने यह जो गोल्ड मेडल देश को दिलवाया है, उसे जीतने के लिए उन्होंने कितनी कड़ी मेहनत की होगी या कितना पसीना बहाया होगा, यह अब किसी को बताने की जरूरत तो नहीं है.

उन्हें सारा देश अब करीब से जानने लगा है और अपना हीरो मानने लगा है. उन्होंने देश को स्वर्णिम क्षण देकर सच में बहुत ही बड़ा उपकार किया. कोरोना की दो लहरों से जूझते देश को मानो तो उन्होंने और ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाले बाकी खिलाड़ियों ने नई पीढ़ी को संजीवनी दे दी है. भारत इनका सदैव कृतज्ञ रहेगा.

जब नीरज चोपड़ा के हमउम्र लाखों नौजवान उम्र-जनित भावनाओं के वशीभूत हो कर तफ़रीह, ऐशो-आराम में डूबे होंगे तब नीरज चोपड़ा और अन्य ओलंपिक पदक विजेतागण कड़ी धूप,बारिश और सर्दी में सूर्योदय से शाम तक मैदान पर पसीना बहा रहे होंगे. उन्होंने कई अवरोधों का भी सामना किया होगा. पर उन्होंने न सिर्फ़ अपने मनोबल को बरक़रार रखा, बल्क़ि; अपने लक्ष्य को भी कभी अपने निग़ाहों से ओझल नहीं होने दिया.

नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक खेलों के इतिहास में ट्रेक एंड फील्ड में भारत का पहला गोल्ड मेडल हासिल करके हरेक भारतीय को गौरवान्वित किया है. उनकी यह उपलब्धि देश के लिए अमूल्य और ऐतिहासिक है. ऐसे पल हमारे नसीब में अबतक बहुत कम ही आये हैं.नीरज चोपड़ा ने जब टोक्यो में जेवलिन हाथ में लिया तब उनकी मेहनत पर यक़ीन और भरोसा उनके चेहरे पर अंकित था.

इस भरोसे ने देश की उम्मीदों को भी परवान चढ़ा दिया था और उन्होंने अपने 130 करोड़ हमवतनों को मायूस भी नहीं किया. उन्होंने देश की झोली उम्मीदों से भी ज़्यादा भर कर दे दी. नीरज चोपड़ा अब मिल्खा सिंह और श्रीराम सिंह की तरह भारतीय सेना के एक और शानदार खिलाडी के तौर पर उभरे है, जिन्होंने एथलेटिक्स में बेहतरीन प्रदर्शन किया. नीरज चोपड़ा अभी तक सूबेदार हैं.

उम्मीद की जानी चाहिए कि उन्हें सेना में प्रोन्नत किया जायेगा और कोई बेहतर पद मिलेगा. भारतीय सेना ने अभी तक उनकी ट्रेनिंग आदि के लिए भरपूर निवेश भी किया है. वे पुणे के आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीच्यूट में ट्रेनिंग करते रहे हैं. नीरज चोपड़ा के गोल्ड मेडल जीतने के बाद अब कुछ बातें भविष्य में होती नजर आ रही हैं.

पहली तो यह कि अब हमारे धावकों के सामने नीरज चोपड़ा का उदाहरण होगा कि अगर वे ओलंपिक में पदक ले सकते हैं तो हम क्यों नहीं. इससे देश भर के लाखों नौजवान एथलेटिक्स में आएँगे. वे मेहनत करेंगे और ओलंपिक खेलों में मेडल लाने की हर चंद कोशिश करेंगे. उन्हें सफलता भी मिलेगी. दूसरी संभावना यह भी लग रही है कि अब देश भर के युवाओं का एथलेटिक्स के प्रति आकर्षण ज्यादा बढ़ेगा.

नौजवान इस खेल को भी अब अपने करियर के रूप में लेंगे. याद रख लें कि खेलों में करियर बनाना कोई घाटे का सौदा नहीं रह गया है. आप जैसे ही एक मुकाम को छूते हैं तो आपको कोई अच्छी नौकरी तो मिल ही जाती है. उसके बाद धन और दूसरी सुविधाएं भी खिलाडियों को मिलने ही लगती हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को विज्ञापनों से भी मोटी कमाई होने लगती है.

नीरज चोपड़ा को तो सेना, उनके राज्य, केन्द्र सरकार और दूसरी जगहों से कुल जमा 20 करोड़ रुपये तक तो मिल जाएगा पुरस्कार की शक्ल में. इसके अलावा वे विज्ञापनों से भी खूब कमा सकेंगे. उनके लिए अब भारत भी सब कुछ देने को तैयार है. हालांकि किसी भी नौजवान को अपने करियर के शुरू में यह नहीं सोचना चाहिए कि उसे फलां-फलां पदक जीतने पर कितना धन मिलेगा.

खिलाड़ी को लक्ष्य तो सिर्फ शिखर पर जाने का होना चाहिए. देखिए, मुझे कहने दें कि हमारे यहां सुविधाओं का बहुत रोना रोया जाता है. कहने वाले तो यह कहते हैं कि सुविधाओं के अभाव में प्रतिभाएं दम तोड़ देती हैं. अगर उन्हें सुविधाएं मिलती तो वह कुछ और जौहर दिखाते. इस बार के ओलंपिक खेलों में अफ्रीकी देशों जैसे केन्या, इथोपिया और युगांडा के भी बहुत से धावकों ने अपने देशों को कई-कई गोल्ड मेडल जितवाए हैं.

क्या इन अफ्रीकी देशों में खिलाड़ियों को भारत से अधिक सुविधाएं मिलती है? कतई नहीं. हमारे देश के कम से कम 100 शहरों मे खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर कायदे का विकसित हो चुका है. खेलों में या जीवन के किसी भी अन्य क्षेत्र में कामयाबी तो तब ही मिलती है, जब आप में सफल होने का जुनून पैदा हो जाता है.

एक बार महान धावक श्रीराम सिंह बता रहे थे कि हमारे अधितकर खिलाड़ी नौकरी मिलने के बाद सोचते हैं कि उन्हें जीवन में सब कुछ मिल गया. वे फिर शांत हो जाते हैं. श्रेष्ठ खिलाड़ी वही होता है जो बार-बार सफल होता है. सारी दुनिया जमैका के धावक और आठ बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बोल्ट को इसलिए मानती है, क्योंकि वे बार-बार ओलंपिक खेलों में सफल होते थे.

वे 100 मीटर और 200 मीटर और अपनी टीम के साथियों के साथ 4x100 मीटर रिले दौड़ के विश्व रिकार्डधारी हैं. इन सभी तीन दौड़ों का ओलंपिक रिकॉर्ड भी बोल्ट के नाम है.1984 में कार्ल लुईस के बाद 2008 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में बोल्ट एक ओलंपिक में तीनों दौड़ जीतने वाले और एक ओलंपिक में ही तीनों दौड़ों में विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले पहले व्यक्ति बने.

इसके साथ ही 2008 में वे 100 और 200 मीटर स्पर्धा में ओलंपिक खिताब पाने वाले भी पहले व्यक्ति बने.नीरज चोपड़ा का आदर्श बोल्ट होने चाहिए. उनका अगला लक्ष्य 2024 के पेरिस ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतना होना चाहिए. और अंत में एक बात और! यह पहली बाद ऐसा हुआ है कि देश ने ओलंपिक में सर्वाधिक पदक जीते.

इसमें एक बड़ा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी और उनके दो मंत्रियों पूर्व खेल मंत्री किरण रिजीजू और वर्तमान खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को भी दिया जाना चाहिये जिन्होंने समय निकालकर खिलाडियों का भरपूर प्रोत्साहन किया और उनका मनोबल बढ़ाया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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