• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
स्पोर्ट्स

ARG defeat: सिकंदर वही जो जीतता है, बशर्ते वह मुक़द्दर का भी सिकंदर हो!

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 23 नवम्बर, 2022 03:58 PM
  • 23 नवम्बर, 2022 03:58 PM
offline
अर्जेंटीना के प्रशंसक चाहेंगे कि मेस्सी यह विश्व कप जीतें, लेकिन उन्हें यह भी पता है कि प्रतिपक्षी टीम यहां मन बहलाने के लिए नहीं आई है. वह भी दम लगाकर खेल रही है. यही फ़ुटबॉल है, यही विश्व कप है. जो सिकंदर हो वही जीतता है- बशर्ते वह मुक़द्दर का भी सिकंदर हो. और जो हारता है, वह बहुधा कलंदर होता है. विश्वास न हो तो 1950, 1954, 1974, 1982, 1986, 2006 के विश्व कप देख लीजिए.

कल खेले गए विश्व कप मुक़ाबले में अर्जेंटीना को सऊदी अरब के हाथों हार का सामना करना पड़ा. अर्जेंटीना टूर्नामेंट फ़ेवरेट थी और इस परिणाम को अप्रत्याशित बताया जा रहा है, लेकिन विश्व कप उलटफेरों का ही नाम है. हार के अनेक कारण थे. पहले हाफ़ में सऊदी अरब ने ऑफ़साइड ट्रैप बिछाया, जिसमें अर्जेंटीनी खिलाड़ी हिरन की तरह फंसते रहे. उन्होंने अपनी बैकलाइन को हाई रखा, ताकि जब अर्जेंटीनी फ़ारवर्ड्स- मेस्सी और मार्तीनेज़- इन-बिहाइंड रन निकालें तो ख़ुद को ऑफ़साइड पोज़िशन में पाएं . अमूमन डिफ़ेंडर्स मैन-मार्किंग का गेम खेलते हैं, जिससे प्रतिपक्षी फ़ॉरवर्ड ऑनसाइड बने रहते हैं. सऊदी अरब ने पहले हाफ़ में ज़ोनल मार्किंग की रणनीति अपनाई. अर्जेंटीना जैसी आला दर्जे की तकनीकी टीम से इस फंदे में फंसने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन उन्होंने सऊदी अरब को हलके में लिया. दूसरे हाफ़ में सऊदी अरब ने हाई-प्रेस किया और अपनी ऊर्जा और दमखम से अर्जेंटीनियों को हतप्रभ कर दिया. अपने शरीर को मोर्चे में झोंकने और येलो कार्ड लेने से उन्हें परहेज़ नहीं था. उनके एक डिफ़ेंडर ने तो गोल-लाइन से हेडर करके एक गेंद को क्लीयर किया, वहीं उनके गोलची ने जान की बाज़ी लगाकर गोलचौकी की रक्षा की.

सऊदी अरब से हारना मेसी के लिए भी एक उदासी भरा पल था

याद रहे, अर्जेंटीना की टीम हाई-प्रेस के लिए जानी जाती है. लेकिन पहले हाफ़ में उन्होंने चार गोल किए थे (जिसमें से तीन ऑफ़साइड क़रार दिए जाकर अमान्य घोषित कर दिए गए), इससे वे दूसरे हाफ़ में थोड़ा रिलैक्स होकर उतरे थे. उन्होंने इसकी क़ीमत चुकाई. फ़ुटबॉल में भाग्य का भी बड़ा योगदान होता है. कल अर्जेंटीना का साथ भाग्य ने नहीं दिया. मेस्सी का एक हेडर और एक शॉट गोलची ने रोका, वहीं एक ऑफ़साइड तो बहुत ही क़रीबी मामला था. बड़ी आसानी से उसे ऑनसाइड क़रार दिया जा सकता था, जिससे...

कल खेले गए विश्व कप मुक़ाबले में अर्जेंटीना को सऊदी अरब के हाथों हार का सामना करना पड़ा. अर्जेंटीना टूर्नामेंट फ़ेवरेट थी और इस परिणाम को अप्रत्याशित बताया जा रहा है, लेकिन विश्व कप उलटफेरों का ही नाम है. हार के अनेक कारण थे. पहले हाफ़ में सऊदी अरब ने ऑफ़साइड ट्रैप बिछाया, जिसमें अर्जेंटीनी खिलाड़ी हिरन की तरह फंसते रहे. उन्होंने अपनी बैकलाइन को हाई रखा, ताकि जब अर्जेंटीनी फ़ारवर्ड्स- मेस्सी और मार्तीनेज़- इन-बिहाइंड रन निकालें तो ख़ुद को ऑफ़साइड पोज़िशन में पाएं . अमूमन डिफ़ेंडर्स मैन-मार्किंग का गेम खेलते हैं, जिससे प्रतिपक्षी फ़ॉरवर्ड ऑनसाइड बने रहते हैं. सऊदी अरब ने पहले हाफ़ में ज़ोनल मार्किंग की रणनीति अपनाई. अर्जेंटीना जैसी आला दर्जे की तकनीकी टीम से इस फंदे में फंसने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन उन्होंने सऊदी अरब को हलके में लिया. दूसरे हाफ़ में सऊदी अरब ने हाई-प्रेस किया और अपनी ऊर्जा और दमखम से अर्जेंटीनियों को हतप्रभ कर दिया. अपने शरीर को मोर्चे में झोंकने और येलो कार्ड लेने से उन्हें परहेज़ नहीं था. उनके एक डिफ़ेंडर ने तो गोल-लाइन से हेडर करके एक गेंद को क्लीयर किया, वहीं उनके गोलची ने जान की बाज़ी लगाकर गोलचौकी की रक्षा की.

सऊदी अरब से हारना मेसी के लिए भी एक उदासी भरा पल था

याद रहे, अर्जेंटीना की टीम हाई-प्रेस के लिए जानी जाती है. लेकिन पहले हाफ़ में उन्होंने चार गोल किए थे (जिसमें से तीन ऑफ़साइड क़रार दिए जाकर अमान्य घोषित कर दिए गए), इससे वे दूसरे हाफ़ में थोड़ा रिलैक्स होकर उतरे थे. उन्होंने इसकी क़ीमत चुकाई. फ़ुटबॉल में भाग्य का भी बड़ा योगदान होता है. कल अर्जेंटीना का साथ भाग्य ने नहीं दिया. मेस्सी का एक हेडर और एक शॉट गोलची ने रोका, वहीं एक ऑफ़साइड तो बहुत ही क़रीबी मामला था. बड़ी आसानी से उसे ऑनसाइड क़रार दिया जा सकता था, जिससे नतीजे बदल जाते.

खेल की गति में अंतर आ जाता. मोमेंटम अर्जेंटीना के हाथ में चला जाता. अतीत में ऐसे अनेक मैच हुए हैं, जिनमें क़रीबी मामलों में गोल को ऑनसाइड दे दिया गया और लाभान्वित टीमों ने बड़े टाइटिल जीत लिए. चंद सेंटीमीटर के अंतर से और उनकी कैसे व्याख्या की जाए- रेफ़री के इस विवेक से फ़ुटबॉल में जीत-हार तय होती है. एक और बात ध्यान रखें- सऊदी अरब की टीम लम्बे अरसे से एक साथ ट्रेन कर रही थी, जबकि अर्जेंटीना के सितारे अभी पखवाड़ा पहले तक यूरोप की विभिन्न लीग में खेल रहे थे.

वे क़तर आकर असेम्बल हुए, किंतु टीम में प्रशिक्षण की लय नहीं थी. फ़ुटबॉल का खेल भले मैदान पर खेला जाता हो, उसकी अंतर्वस्तु ट्रेनिंग-फ़ेसिलिटी में रची जाती है, जिसमें निरंतर अभ्यास से खिलाड़ी अपनी मसल-मेमरी में कोच की रणनीतियों को ढाल लेते हैं. जब विश्व कप जैसा कोई आयोजन होता है तो अनेक क्षणभंगुर फ़ुटबॉल-विशेषज्ञ उभर आते हैं, जो नियमित रूप से फ़ुटबॉल नहीं देखते और खेल की इन बारीक़ियों को नहीं समझते.

यही कारण था कि कल सोशल मीडिया पर चलता रहा- मेस्सी हार गए, वो कभी माराडोना नहीं बन सकेंगे. इसमें अव्वल तो यह है कि विश्व कप अभी समाप्त नहीं हुआ है, बहुत खेल बाक़ी है. दूसरे, अगर विश्व कप जीतने की ही बात हो तो यह सुविधापूर्ण तरीक़े से भुला दिया जाता है कि 1982 के विश्व कप में माराडोना ने एक ब्राज़ीली खिलाड़ी के पेट में लात मार दी थी और रेड कार्ड लेकर लौटे थे, वहीं 1994 में ड्रग्स का सेवन करने के आरोप में उन्हें विश्व कप से बाहर निकाल दिया गया था.

दोनों ही अवसरों पर टीम ने इसका ख़ामियाज़ा भुगता. 1986 के विश्व कप में भी क्वार्टर फ़ाइनल में उन्होंने हाथ से गोल किया. कल जहां  चंद सेंटीमीटर के अंतर से गोल ऑफ़साइड क़रार दिए जा रहे थे, वहीं माराडोना 1986 में हाथ से गोल करके विश्व कप जीत रहे थे. अगर तब आज जैसी वीडियो असिस्टेंस तकनीक होती तो न केवल वह गोल अमान्य होता, माराडोना को रेड कार्ड भी दिखाया जाता और मैक्सिको-86 की पूरी किंवदंती ही उलट जाती.

अर्जेंटीना की हार से हर वो शख्स दुखी है जिसे फुटबॉल में रुचि है

यह भी भुला दिया जाता है कि उस विश्व कप की सर्वश्रेष्ठ टीमें फ्रांस और ब्राज़ील थीं, जो आपस में ही भिड़ गईं, अर्जेंटीना को उनका सामना नहीं करना पड़ा. और फ़ाइनल में जब जर्मन जीत की कगार पर थे, तब निर्णायक गोल बुरुचागा ने किया था, माराडोना ने नहीं. लेकिन इतिहास कहता है कि माराडोना ने 1986 का विश्व कप जीता और मेस्सी ने अभी तक एक भी विश्व कप नहीं जीता.

यों तो डी-स्टेफ़ानो, पुस्कस, यूसेबियो, क्राएफ़, बैजियो, सोक्रेटीज़, प्लातीनी ने भी कभी विश्व कप नहीं जीता, इसके बावजूद ये सर्वकालिक महान 10 फ़ुटबॉलरों की सूची में शामिल होते रहे हैं. महानताओं के निर्णय प्रतिभा से होते हैं, जीत-हार से नहीं. हां ये ज़रूर है कि जीत से महानता मिथक बन जाती है. अर्जेंटीना के प्रशंसक चाहेंगे कि मेस्सी यह विश्व कप जीतें, लेकिन उन्हें यह भी पता है कि प्रतिपक्षी टीम यहां मन बहलाने के लिए नहीं आई है.

वह भी दम लगाकर खेल रही है. यही फ़ुटबॉल है, यही विश्व कप है. जो सिकंदर हो वही जीतता है- बशर्ते वह मुक़द्दर का भी सिकंदर हो. और जो हारता है, वह बहुधा कलंदर होता है. विश्वास न हो तो 1950, 1954, 1974, 1982, 1986, 2006 के विश्व कप देख लीजिए- इन सबमें सर्वश्रेष्ठ टीमें हारकर बाहर हो गई थीं, उनसे कमतर के सिर जीत का सेहरा बंधा था.

ये भी पढ़ें -

सऊदी ने 2-1 से अर्जेंटीना का तेल निकाल कर ट्विटर को विमर्श में जाने का मौका दे दिया है!

कतर ने 'पैसे' देकर खरीदा था फीफा विश्व कप! जानिए पूरी कहानी

क़तर तो क़तर LGBTQ पर FIFA का रुख भी किसी कठमुल्ला से कम नहीं!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    महेंद्र सिंह धोनी अपने आप में मोटिवेशन की मुकम्मल दास्तान हैं!
  • offline
    अब गंभीर को 5 और कोहली-नवीन को कम से कम 2 मैचों के लिए बैन करना चाहिए
  • offline
    गुजरात के खिलाफ 5 छक्के जड़ने वाले रिंकू ने अपनी ज़िंदगी में भी कई बड़े छक्के मारे हैं!
  • offline
    जापान के प्रस्तावित स्पोगोमी खेल का प्रेरणा स्रोत इंडिया ही है
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲