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क़तर तो क़तर LGBTQ पर FIFA का रुख भी किसी कठमुल्ला से कम नहीं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 नवम्बर, 2022 06:50 PM
  • 22 नवम्बर, 2022 06:50 PM
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LGBTQ अधिकारों पर जैसा रवैया क़तर का है. वो इसलिए भी कम विचलित करता है क्योंकि एक मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण क़तर पहले ही इस मुद्दे पर अपनी राय रख चुका था. मगर जिस बात को लेकर मन वाक़ई खिन्न होता है वो है इतने अहम मसले पर FIFA का रुख. क़तर की देखा देखी FIFA, LGBTQ अधिकारों पर कटटरपंथ की बेड़ियों में जकड़े एक मौलाना ही तरह नजर आ रहा है.

Fifa World Cup 2022 सुर्ख़ियों में है. वजह रोमांचकारी खेल, आक्रामक टीमें, फुटबॉल के पीछे भागते खिलाड़ी और गोल न होकर ऐसे विवाद हैं जिनकी एकमात्र वजह क़तर है. ध्यान रहे, भले ही क़तर साल 2022 के फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी कर रहा हो मगर अपने अंदर व्याप्त कट्टरपंथ के कारण उसने ऐसे कई प्रतिबंध लगा दिए हैं जो खेल प्रेमियों के अलावा किसी भी समझदार इंसान को विचलित कर सकते हैं. यानी चाहे वो टूर्नामेंट से पहले ग्राउंड से कुरान की आयतें पढ़वाना हो या फिर इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए जाकिर नाइक को बुलवाना, शराबऔर ड्रग्स पर प्रतिबंध लगाने से लेकर वेश्यावृति पर रोक लगाने तक क़तर ने फैंस से 'खुश' होने के सभी मौके छीन लिए हैं. जिक्र क़तर के कटटरपंथी रवैये का हुआ है तो हम LGBTQ जैसे अहम मसले पर क़तर के रुख को क्यों ख़ारिज कर दें. चूंकि क़तर एक मुस्लिम मुल्क है और इस्लाम में समलैंगिकता हराम है फुटबॉल वर्ल्ड कप की शुरुआत से बहुत पहले ही क़तर ने इस मामले में अपना स्टैंड क्लियर कर दिया था. तब ही क़तर ने इस बात को जाहिर कर दिया था कि यदि कोई LGBTQ को प्रमोट करता है या फिर इसका समर्थन करता है उसके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा.

समलैंगिकों पर चाहे वो फीफा का रुख हो या क़तर का दोनों ही हैरान करने वाला है

LGBTQ अधिकारों पर जैसा रवैया क़तर का है. वो इसलिए भी कम विचलित करता है क्योंकि एक मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण क़तर पहले ही इस मुद्दे पर अपनी राय रख चुका था. मगर जिस बात को लेकर मन वाक़ई खिन्न होता है वो है इतने अहम मसले पर FIFA का रुख. क़तर की देखा देखी FIFA, LGBTQ अधिकारों पर कटटरपंथ की बेड़ियों में जकड़े एक मौलाना ही तरह नजर आ रहा है. LGBTQ के तहत जैसे फरमान फीफा ने यूरोप की 8 टीमों को जारी किया है उसके इस बात की तस्दीख कर दी है कि एक खेल संस्था के रूप में फीफा के...

Fifa World Cup 2022 सुर्ख़ियों में है. वजह रोमांचकारी खेल, आक्रामक टीमें, फुटबॉल के पीछे भागते खिलाड़ी और गोल न होकर ऐसे विवाद हैं जिनकी एकमात्र वजह क़तर है. ध्यान रहे, भले ही क़तर साल 2022 के फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी कर रहा हो मगर अपने अंदर व्याप्त कट्टरपंथ के कारण उसने ऐसे कई प्रतिबंध लगा दिए हैं जो खेल प्रेमियों के अलावा किसी भी समझदार इंसान को विचलित कर सकते हैं. यानी चाहे वो टूर्नामेंट से पहले ग्राउंड से कुरान की आयतें पढ़वाना हो या फिर इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए जाकिर नाइक को बुलवाना, शराबऔर ड्रग्स पर प्रतिबंध लगाने से लेकर वेश्यावृति पर रोक लगाने तक क़तर ने फैंस से 'खुश' होने के सभी मौके छीन लिए हैं. जिक्र क़तर के कटटरपंथी रवैये का हुआ है तो हम LGBTQ जैसे अहम मसले पर क़तर के रुख को क्यों ख़ारिज कर दें. चूंकि क़तर एक मुस्लिम मुल्क है और इस्लाम में समलैंगिकता हराम है फुटबॉल वर्ल्ड कप की शुरुआत से बहुत पहले ही क़तर ने इस मामले में अपना स्टैंड क्लियर कर दिया था. तब ही क़तर ने इस बात को जाहिर कर दिया था कि यदि कोई LGBTQ को प्रमोट करता है या फिर इसका समर्थन करता है उसके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा.

समलैंगिकों पर चाहे वो फीफा का रुख हो या क़तर का दोनों ही हैरान करने वाला है

LGBTQ अधिकारों पर जैसा रवैया क़तर का है. वो इसलिए भी कम विचलित करता है क्योंकि एक मुस्लिम राष्ट्र होने के कारण क़तर पहले ही इस मुद्दे पर अपनी राय रख चुका था. मगर जिस बात को लेकर मन वाक़ई खिन्न होता है वो है इतने अहम मसले पर FIFA का रुख. क़तर की देखा देखी FIFA, LGBTQ अधिकारों पर कटटरपंथ की बेड़ियों में जकड़े एक मौलाना ही तरह नजर आ रहा है. LGBTQ के तहत जैसे फरमान फीफा ने यूरोप की 8 टीमों को जारी किया है उसके इस बात की तस्दीख कर दी है कि एक खेल संस्था के रूप में फीफा के चाल, चरित्र और चेहरे में गहरा विरोधाभास है.

हुआ कुछ यूं कि कतर Qatar में हो रहे फीफा वर्ल्ड कप 2022 में समावेशन को बढ़ावा देने और किसी भी प्रकार के भेदभाव के खिलाफ सन्देश भेजने के उद्देश्य से इंग्लैंड समेत यूरोप की अन्य टीमों जैसे नीदरलैंड, फ्रांस, डेनमार्क, बेल्जियम, जर्मनी, स्वीडन, नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड और व्हेल्स ने वन लव बैंड पहनकर मैदान में खेलने की बात की थी जिसपर FIFA ने कड़ा ऐतराज जताया है.

बताते चलें कि इंग्लिश कप्तान हैरी केन और नीदरलैंड के कप्तान वर्जिल वैन डिज्क पहले ही अपनी प्रेस कांफ्रेंस में इस बात की घोषणा कर चुके थे कि वो समलैंगिकों पर अपने नर्म रुख के चलते वन लव बैंड पहनकर ही मैदान में खेलने आएंगे. मगर क्योंकि FIFA भी अपनी जिद पर अड़ा है, बयान जारी हुआ कि यदि कोई भी खिलाड़ी मैदान में वन लव बैंड पहने हुए खेलता पाया गया तो उसे येलो कार्ड दिखा दिया जाएगा.

चेतवानी क्योंकि इसलिए भी अहम थी क्योंकि कहीं न कहीं इससे खिलाडियों का खेल भी प्रभावित हो सकता था इसलिए इंग्लॅण्ड समेत बाकी की टीमों ने अपना विचार बदल लिया. मामले में दिलचस्प ये कि टीमों द्वारा लिए गए इस फैसले की किरकिरी तब और और हो रही है जब हम ईरान जको देखते हैं जिसने अपने लोगों को समर्थन देने के उद्देश्य से बिना सजा की परवाह किये मैदान में अपना राष्ट्रगान नहीं गया. लोगों का तर्क है कि इंग्लैंड के कप्तान समेत बाकी लोगों ने जब समलैंगिकों को समर्थन देने की बात की थी तो उन्हें अपनी बातों पर कायम रहना चाहिए था.

गौरतलब है कि समलैंगिक समुदाय जो लड़ाई लड़ रहा है वो समानता की लड़ाई है. साथ रहने की लड़ाई है और उससे भी बढ़कर ज़िंदा रहने की लड़ाई है. ऐसे में देश दुनिया के तमाम लोग उसके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हैं. ऐसी ही कुछ उम्मीद FIFA से भी रखी जा रही थी.

FIFA ने जिस तरह क़तर में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप 2022 में समलैंगिकों के साथ भेदभाव किया है ये वही रुख है जो किसी क़तर के किसी मौलवी का है. एक संस्था के रूप में फीफा और क़तर दोनों को ही इस बात को समझना होगा कि सबकी तरह समलैंगिक समुदाय को भी जीने का हक़ है. उनके भी वही अधिकार हैं जो किसी साधारण इंसान के हैं.

जिक्र क़तर का समलैंगिकों के खिलाफ कट्टरता का हुआ है तो हमें उस घटना को भी नहीं भूलना चाहिए जहां एक अमेरिकी पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार हुआ है.

क़तर ने न केवल हिदायत दी बल्कि अपनी बातों को अमली जामा भी पहनाया. दरअसल वेल्स के खिलाफ यूएसए का मैच देखने पहुंचे एक अमेरिकी स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट को रेनबो टीशर्ट पहनना महंगा पड़ गया और उसे थोड़ी देर के लिए हिरासत में लिया गया. बताया जा रहा है कि अमेरिका का स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट LGBTQ अधिकारों का पक्षधर था और उनके समर्थन में रेनबो टीशर्ट में ग्राउंड के अंदर घुसने की कोशिश में था.

खेल को कवर करने वाले इस पत्रकार का नाम ग्रांट वाहल बताया जा रहा है जो अमेरिकी वेबसाइट सीबीएस स्पोर्ट्स के लिए सबस्टैक कॉलम लिखता है. वाहल के विषय में कहा यही जा रहा है कि हिरासत में रखे जाने के बाद उसे ग्राउंड में एंट्री तब ही मिली जब उसने अपनी टीशर्ट बदली.

बहरहाल, अब चाहे वो समलैंगिकता का समर्थन करने वाले खिलाड़ियों पर फीफा का रुख हो या उनपर क़तर का रवैया दोनों ही लोगों ने ये बता दिया है कि करनी और कथनी में अंतर है. समानता की बातें करना आसान है लेकिन जब बात उसे निभाने की आती है तो अच्छे अच्छे मैदान छोड़ देते हैं. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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