• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

हैदराबाद रेप पीड़िता को दिशा कहने से क्या फायदा जब 'निर्भया' से कुछ न बदला

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 04 दिसम्बर, 2019 06:33 PM
  • 04 दिसम्बर, 2019 06:33 PM
offline
Hyderabad Rape Case इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि पीड़िता का नाम बदल दिया गया है. अब ये केस दिशा रेप केस के नाम से जाना जाएगा. सवाल ये है कि क्या नाम बदल देना समस्या का समाधान है या फिर नाम बदलकर हम अपनी कमियों पर पर्दा डाल रहे हैं.

साल 2012 का 12 महिना दिसंबर. खूब चर्चा बटोरी थी 2012 के दिसंबर ने. वजह था दिल्ली गैंगरेप (Delhi Gangrape). वारदात को इस तरह अंजाम दिया गया था कि कठोर से कठोर आदमी सिहर उठे. पत्थर दिल व्यक्ति का दिल पसीज जाए. घटना हुई तो विरोध होना स्वाभाविक था. सारा देश सड़कों पर था. क्या हिंदू क्या मुस्लिम. पीड़िता के साथ पूरा देश खड़ा था. मांग की जा रही थी कि वारदात को अंजाम देने वाले दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. लोग कह रहे थे कि सजा ऐसी हो कि, हर वो शख्स जिसके दिमाग में ऐसी किसी भी वारदात को अंजाम देने का प्लान बन रहा हो, दी गई सजा देखकर ही अपना इरादा बदल दे. 2012 में हुए दिल्ली गैंगरेप में यूं तो बहुत कुछ हुआ मगर जिस बात ने लोगों का ध्यान सबसे ज्यादा खींचा वो था पीड़िता के नाम जिसे पहले दामिनी किया गया फिर निर्भया (Nirbhaya Gangrape). ऐसा क्यों हुआ? कारण बना सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जिसने तर्क दिया था कि जिस पीड़िता के साथ वारदात हुई है उसके नाम को गुप्त रखा जाए. उसकी पीड़िता की आइडेंटिटी को जगजाहिर न किया जाए. उसकी तस्वीरों को न दिखाया जाए.

हैदराबाद रेप केस मामले में लड़की का नाम बदलकर दिशा करना समस्या का समाधान नहीं है

ये बातें 2012 की हैं. हम इस बात को 2019 में लिख रहे हैं. यानी निर्भया मामला 7 साल बाद उठा है. किसी भी समाज को बदलने के लिए 7 साल एक लंबा वक़्त होता है. तो अब सवाल होगा कि क्या इन बीते हुए 7 सालों में सब सही हो गया है? जवाब है नहीं. हालात बद से बदतर हैं. लड़कियों का निर्मम बलात्कार अब भी हो रहा है. इन बीते हुए 7 सालों में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि अब न सिर्फ बलात्कार होता है. बल्कि सबूत मिटाने के लिए बलात्कार जैसी घृणित वारदात के बाद पीड़िता को जलाकर मार दिया जाता है.

दिसंबर 2012 के बाद,...

साल 2012 का 12 महिना दिसंबर. खूब चर्चा बटोरी थी 2012 के दिसंबर ने. वजह था दिल्ली गैंगरेप (Delhi Gangrape). वारदात को इस तरह अंजाम दिया गया था कि कठोर से कठोर आदमी सिहर उठे. पत्थर दिल व्यक्ति का दिल पसीज जाए. घटना हुई तो विरोध होना स्वाभाविक था. सारा देश सड़कों पर था. क्या हिंदू क्या मुस्लिम. पीड़िता के साथ पूरा देश खड़ा था. मांग की जा रही थी कि वारदात को अंजाम देने वाले दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. लोग कह रहे थे कि सजा ऐसी हो कि, हर वो शख्स जिसके दिमाग में ऐसी किसी भी वारदात को अंजाम देने का प्लान बन रहा हो, दी गई सजा देखकर ही अपना इरादा बदल दे. 2012 में हुए दिल्ली गैंगरेप में यूं तो बहुत कुछ हुआ मगर जिस बात ने लोगों का ध्यान सबसे ज्यादा खींचा वो था पीड़िता के नाम जिसे पहले दामिनी किया गया फिर निर्भया (Nirbhaya Gangrape). ऐसा क्यों हुआ? कारण बना सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जिसने तर्क दिया था कि जिस पीड़िता के साथ वारदात हुई है उसके नाम को गुप्त रखा जाए. उसकी पीड़िता की आइडेंटिटी को जगजाहिर न किया जाए. उसकी तस्वीरों को न दिखाया जाए.

हैदराबाद रेप केस मामले में लड़की का नाम बदलकर दिशा करना समस्या का समाधान नहीं है

ये बातें 2012 की हैं. हम इस बात को 2019 में लिख रहे हैं. यानी निर्भया मामला 7 साल बाद उठा है. किसी भी समाज को बदलने के लिए 7 साल एक लंबा वक़्त होता है. तो अब सवाल होगा कि क्या इन बीते हुए 7 सालों में सब सही हो गया है? जवाब है नहीं. हालात बद से बदतर हैं. लड़कियों का निर्मम बलात्कार अब भी हो रहा है. इन बीते हुए 7 सालों में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि अब न सिर्फ बलात्कार होता है. बल्कि सबूत मिटाने के लिए बलात्कार जैसी घृणित वारदात के बाद पीड़िता को जलाकर मार दिया जाता है.

दिसंबर 2012 के बाद, दिसंबर 2019 फिर चर्चा में है. कारण है हैदराबाद की डॉक्टर का रेप फिर हत्या (Hyderabad Disha Rape Case). 2012 की तरह इस बार भी लड़की की आइडेंटिटी को जगजाहिर न करने की बात की जा रही है. आज भी सब कुछ वैसा ही है जैसा 7 साल पहले इसी दिसंबर में तब था जब देश की राजधानी दिल्ली में चलती बस के अन्दर निर्भया के साथ हवस के भूखे भेड़ियों ने बलात्कार किया था. मांग से लेकर मुद्दा तक सब कुछ जस का तस है.

आज फिर दोषियों को लेकर तरह तरह की मांग हो रही है. एक वर्ग है जो कह रहा है कि इन्हें बीच सड़क पर फांसी दे दी जाए. तो वहीं दूसरा वर्ग वो भी है जो इनके लिए ठीक वैसी ही सजा की मांग कर रहा है जैसा इस्लामिक देशों में होता है. हजार तर्क दिए जा रहे हों. लाखों बातें हों मगर बड़ा सवाल ये है कि हैदराबाद रेप पीड़िता को दिशा कहने से क्या फायदा जब 'निर्भया' से कुछ न बदला. बाकी बात अगर निर्भया की हो तो उस मामले का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यही है कि निर्भया के नाम पर झूठे आडंबर या ये कहें कि बस खाना पूर्ति हुई है. महिला सुरक्षा जैसे गंभीर मसले पर हमारी सरकारें कितना गंभीर रही हैं इसे उस निर्भया फंड से भी समझ सकते हैं. 

पूरे देश की चेतना को हिला कर रख देने वाले निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक कोष की जरूरत महसूस हुई. मामले का तत्कालीन यूपीए सरकार ने संज्ञान लिया और 2013 के बजट में निर्भया फंड की घोषणा की. आपको बताते चलें कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शुरुआती तौर पर 1000 करोड़ का आवंटन भी किया. 2014-15 और 2016-17 में एक-एक हजार करोड़ और आवंटित किए गए.

इस फंड को लेकर सबसे दिलचस्प बात ये है कि पैसा आवंटित होने के बावजूद भी सरकारें इसे खर्च करने में नाकाम रहीं. आपको बताते चलें कि गृह मंत्रालय द्वारा इस फंड के लिए आवंटित धन का मात्र एक फीसदी खर्च होने की वजह से साल 2015 में सरकार ने गृह मंत्रालय की जगह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्भया फंड के लिए नोडल एजेंसी बना दिया.

निर्भया फंड के तहत पूरे देश में दुष्कर्म संबंधी शिकायतों और मुआवजे के निस्तारण के लिए 660 एकीकृत वन स्टॉप सेंटर बनने थे. जिससे पीड़िताओं को कानूनी और आर्थिक मदद भी मिले और उनकी पहचान भी छिपी रहे. साथ ही सार्वजनिक स्थानों और परिवहन में सीसीटीवी कैमरे लगने थे. जिससे अपराधी की पहचान की जा सके.

गौरतलब है कि साल 2018 में इस फंड के अंतर्गत पीड़ित को मिलने वाले मुआवजे को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी अपनी चिंता जाहिर कर चुका है. तब एक सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) ने बताया कि विभिन्न राज्यों में रेप की शिकार मात्र 5-10 फीसदी पीड़िताओं को ही निर्भया फंड के तहत मुआवजा मिल रहा है. नालसा ने बताया कि आंध्र प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों की मानें तो पिछले साल यौन हिंसा के दर्ज 901 मामलों में सिर्फ एक पीड़िता को मुआवजा मिला. प्राधिकरण ने कुछ आंकड़ों का हवाला दिया था और बताया था कि ऐसा कोई फंड है अभी इसकी भी जानकारी लोगों के पास नहीं है.

बहरहाल, बात हैदराबाद मामले के मद्देनजर हुई है. साथ ही ये भी बताया गया है कि अब मामला दिशा रेप केस के नाम से जाना जा रहा है. तो बता दें कि सिर्फ नाम बदलने से कुछ नही होगा. बात तब है जब इन व्यर्थ की खानापूर्तियों के इतर वाकई 'दिशा' को न्याय और उसके दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिले.

हमें याद रखना होगा कि अब ये मामला सिर्फ पोस्टर, बैनर, पैम्पलेट और मोमबत्तियों तक सीमित नहीं है. अब न्याय होना चाहिए. सम्पूर्ण न्याय और जैसे हैदराबाद मामले में 'नाम बदलने' का खेल या ये कहें कि नाम बदला गया शायद यही न्याय के मार्ग में एक बड़ा अवरोध है. नाम बदलकर हम केवल अपनी कमियों पर पर्दा डाल रहे हैं.

ये भी पढ़ें -

हैदराबाद केस: जज्बाती विरोध से नहीं रुकेंगे रेप!

हम जया बच्चन की बात से असहमत हो सकते थे अगर...

हैदराबाद की महिला डॉक्टर की मौत के बाद जो रहा है, वह बलात्कार से भी घिनौना है !

         


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲