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हैदराबाद केस: जज्बाती विरोध से नहीं रुकेंगे रेप!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 04 दिसम्बर, 2019 04:52 PM
  • 04 दिसम्बर, 2019 04:41 PM
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हैदराबाद की महिला डॉक्टर के rape और Murder ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया है. रेप पर कानून सख्त हो लोग सड़कों पर हैं मगर बड़ा सवाल ये भी है कि लोग उन चीजों का विरोध क्यों नहीं करते जो रेप का कारण बनते हैं.

जज्बात में पागल होकर या नेतागीरी से किसी समस्या का समाधान नहीं निकलता. दिल्ली गैंग रेप (Nirbhaya GangRape) के खिलाफ देशभर में हुआ यादगार आंदोलन सबको याद है. लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ. रेप की घटनाएं (Rape Incident in India) बढ़ ही रही हैं. और अब सिर काटने या चौराहे पर लटकाने जैसा इस्लामी कानून लागू करने की बातें भी जज्बाती ही हैं. गहराई में जाइये. स्थाई समाधान की तरफ बढ़िए. निर्भया और दिशा (Hyderabad doctor) के क़ातिलों को ग़ौर से देखिए-समझिये, और फिर बलात्कार की घटनाएं थमने का समाधान खोजिए. कल दिल्ली में और आज हैदराबाद में सामूहिक बलात्कार की चर्चित घटनाओं को अंजाम देने वाले 4+4 हत्यारों पर नजर डालिये. आठों शराबी. आठों गरीब और अशिक्षित. आठों की उम्र 16 से 22 के बीच. इसमें से ज्यादातर का पेशा ट्रक/बस में क्लीनर या ड्राइवर और साथ ही इसमें से ज्यादातर का रिश्ता बाल मजदूरी से.

बलात्कार से पहले हमें उन चीजों का विरोध करना होगा जो बलात्कार की जनक हैं

बलात्कार के खिलाफ लड़ाई में क्या आपने कभी सरकार से शराब बंद करने की मांग की? खुलेआम जारी बाल मज़दूरी के खिलाफ सड़कों पर मोमबत्तियां लेकर निकले? कभी-कभी बाल मजदूरी इस क़द्र संस्कार हीनता की तरफ ले जाती है कि इंसान के रूप में हैवान पनपता है. हारमोन्स में बदलाव आने के समय संस्कारहीन और शराबी किशोर जंगली जानवरों से बद्तर व्यवहार कर सकते हैं. ये बायलोजिकल और समाज शास्त्र का सच है. इस सच पर क्या आप फिक्र करते हैं? बलात्कार के खिलाफ आंदोलन में क्या आपने कभी शिक्षा के अधिकार की अनिवार्यता के लिए सड़कों पर संघर्ष किया?

यदि ऐसे अपराधों को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखकर समाधान के प्रयास नहीं किए तो चंद दिनों बाद आक्रोश जताने के लिए पुनः रेडी रहिएगा. दूसरी 'दिशा' फिर हवस की लपटों में सती होगी. देश...

जज्बात में पागल होकर या नेतागीरी से किसी समस्या का समाधान नहीं निकलता. दिल्ली गैंग रेप (Nirbhaya GangRape) के खिलाफ देशभर में हुआ यादगार आंदोलन सबको याद है. लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ. रेप की घटनाएं (Rape Incident in India) बढ़ ही रही हैं. और अब सिर काटने या चौराहे पर लटकाने जैसा इस्लामी कानून लागू करने की बातें भी जज्बाती ही हैं. गहराई में जाइये. स्थाई समाधान की तरफ बढ़िए. निर्भया और दिशा (Hyderabad doctor) के क़ातिलों को ग़ौर से देखिए-समझिये, और फिर बलात्कार की घटनाएं थमने का समाधान खोजिए. कल दिल्ली में और आज हैदराबाद में सामूहिक बलात्कार की चर्चित घटनाओं को अंजाम देने वाले 4+4 हत्यारों पर नजर डालिये. आठों शराबी. आठों गरीब और अशिक्षित. आठों की उम्र 16 से 22 के बीच. इसमें से ज्यादातर का पेशा ट्रक/बस में क्लीनर या ड्राइवर और साथ ही इसमें से ज्यादातर का रिश्ता बाल मजदूरी से.

बलात्कार से पहले हमें उन चीजों का विरोध करना होगा जो बलात्कार की जनक हैं

बलात्कार के खिलाफ लड़ाई में क्या आपने कभी सरकार से शराब बंद करने की मांग की? खुलेआम जारी बाल मज़दूरी के खिलाफ सड़कों पर मोमबत्तियां लेकर निकले? कभी-कभी बाल मजदूरी इस क़द्र संस्कार हीनता की तरफ ले जाती है कि इंसान के रूप में हैवान पनपता है. हारमोन्स में बदलाव आने के समय संस्कारहीन और शराबी किशोर जंगली जानवरों से बद्तर व्यवहार कर सकते हैं. ये बायलोजिकल और समाज शास्त्र का सच है. इस सच पर क्या आप फिक्र करते हैं? बलात्कार के खिलाफ आंदोलन में क्या आपने कभी शिक्षा के अधिकार की अनिवार्यता के लिए सड़कों पर संघर्ष किया?

यदि ऐसे अपराधों को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखकर समाधान के प्रयास नहीं किए तो चंद दिनों बाद आक्रोश जताने के लिए पुनः रेडी रहिएगा. दूसरी 'दिशा' फिर हवस की लपटों में सती होगी. देश की राजधानी दिल्ली की चलती बस में फिर किसी निर्भया के गुप्तांग में लोहे की सरिया उतार दी जाएगी.

ये सब क्यों होता रहेगा? क्योंकि आप का विरोध गलत दिशा मे जा रहा है. पूरा देश सड़कों पर उतरा. कोई मोमबत्ती लेकर तो कोई उग्रता से. संसद घेरी, गांधी की प्रतिमा के नीचे प्रदर्शन किये. सत्ता को कोसा. सब कुछ किया, लेकिन बलात्कार की घटनाएं घटी नहीं बढ़ती गयीं. किसी मासूम बेटी का बलात्कार और फिर उसके ख़ाक हो जाने तक आप इतने जज्बाती रहते हो कि आपको इन घटनाओं के मूल कारणों की ख़बर ही नहीं रहती.

हम आम इंसान ही नहीं संसद सदस्य भी कह रहे हैं कि बलात्कारियों की लिंचिंग कर दो. चौराहे पर लटका दो. उनका सिर कलम कर दो. उनमें आग लगा दो. क्या ये संभव है? ये सब सिर्फ जज्बाती बातें हैं. इस्लामी देशों जैसा इस्लामी क़ानून भारत में लागू होना संभव नहीं है. हांलाकि हम बलात्कार की घटनाओं से बुरी तरह जूझ रहे हैं. हमें सख्त फैसले करने होंगे. गुनाहगारों को जल्दी से जल्दी सख्त से सख्त सज़ा दिलवाने के रास्ते भी तय करने होंगे. हैदराबाद सुर्खियों मे है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कश्मीर. और दिल्ली जैसे लगभग सभी प्रदेश अलग-अलग वक्त की कहानी बन चुके हैं.

देश की आजादी के बाद कुछ ही आंदोलन यादगार रहे हैं. दिल्ली में एक बस में निर्भया के गैंग रेप के खिलाफ देश भर में उबाल था. अब हैदराबाद का गुस्सा देशभर में गूंज रहा है. दिशा जैसी कितनी ही लड़कियां हवस का शिकार बनकर राख होती रहती हैं. कोई घटना ख़बर बन कर आंदोलन शुरु करवा देती है, लेकिन तमाम मामले ख़बर ना बनकर खामोशी के कफन से ढक दिए जाते हैं.

दरअसल हमें जब किसी सामूहिक रेप और दर्दनाक हत्या की खबर मिलती है तो हम इतने जज्बाती हो जाते हैं कि दिल हिला देने वाले सामूहिक बलात्कार के असल कारणों से ही बेखबर रहते हैं. ऐसे में क्या ख़ाक रेप का ऐसा सिलसिला रुकेगा. हरगिज नहीं. सिर्फ समाज का आम इंसान ही नहीं बल्कि जन प्रतिनिधियों द्वारा भी किसी रेप की घटना के बाद गैरसंजीदा और जज्बाती बयान आने लगते हैं.

इस्लामी क़ानून की तरह बलात्कारी को चौराहे पर सूली पर लटका दिया जाये. पब्लिक के बीच बलात्कारी का सिर कलम किया जाये. लेकिन करोड़ों आम और ख़ास लोगों में किसी ने भी सरकार पर इस बात का दबाव नहीं बनाया कि संस्कारों की हत्या करने वाली बाल मजदूरी बंद हो. शराब बंद कर दी जाये. बलात्कार के हर ऐसे कांड को अंजाम देने वाला हर हैवान शराब पीकर ही हैवान बनता है. किसी शराबी बलात्कारी ने किसी दिशा को ज़िन्दा जला दिया था. किसी बलात्कारी ने शराब पीकर ही किसी निर्भया के गुप्तांग में लोहे की सरिया डाल दी थी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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