बात कड़वी लगेगी...लेकिन आखिरकार हमने अपनी 'पहचान' दिखा दी. सोशल मीडिया पर घूम रही महामना एक्सप्रेस की गंदी और अस्तव्यस्त बॉगियों की तस्वीरें इसी बात का इशारा कर रही हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब नरेंद्र मोदी बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी का सपना बेच रहे थे तो सबने इसे हाथों हाथ लिया. बुलेट ट्रेन जब आएगी तब आएगी लेकिन जो मिला, हममें तो उसकी भी इज्जत करने के संस्कार नहीं हैं. आश्चर्य होता है कि हजारों वर्षों की सभ्यता और संस्कृति को संजोने का दावा हम कैसे करते चले आ रहे हैं.
यह भी पढ़ें- दोस्त, हमारी बुलेट ट्रेन कहां है?
कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में महामना एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई थी. कहा गया कि वाराणसी और दिल्ली के बीच चलने वाली यह ट्रेन नई डिजाइन और नए बदलाव वाले रेल डिब्बों की शुरुआत है. कई वर्ल्ड क्लास सुविधाओं वाली इस ट्रेन का नाम बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सह-संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय के नाम पर रखा गया जिन्हें 'महामना' के नाम से भी जाना जाता है.
दिल्ली से वारणसी के बीच की दूरी को केवल 14 घंटों में पूरा करने वाली 18 कोचों वाली इस ट्रेन की खूब प्रशंसा भी हुई. लेकिन महज 10 दिनों में हमने इसकी हालत क्या से क्या कर दी?
यह भी पढ़ें- बुलेट ट्रेन के मामले में प्रभु की आवाज धीमी क्यों रही?
बात कड़वी लगेगी...लेकिन आखिरकार हमने अपनी 'पहचान' दिखा दी. सोशल मीडिया पर घूम रही महामना एक्सप्रेस की गंदी और अस्तव्यस्त बॉगियों की तस्वीरें इसी बात का इशारा कर रही हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब नरेंद्र मोदी बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी का सपना बेच रहे थे तो सबने इसे हाथों हाथ लिया. बुलेट ट्रेन जब आएगी तब आएगी लेकिन जो मिला, हममें तो उसकी भी इज्जत करने के संस्कार नहीं हैं. आश्चर्य होता है कि हजारों वर्षों की सभ्यता और संस्कृति को संजोने का दावा हम कैसे करते चले आ रहे हैं. यह भी पढ़ें- दोस्त, हमारी बुलेट ट्रेन कहां है? कुछ ही दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में महामना एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई थी. कहा गया कि वाराणसी और दिल्ली के बीच चलने वाली यह ट्रेन नई डिजाइन और नए बदलाव वाले रेल डिब्बों की शुरुआत है. कई वर्ल्ड क्लास सुविधाओं वाली इस ट्रेन का नाम बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सह-संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय के नाम पर रखा गया जिन्हें 'महामना' के नाम से भी जाना जाता है. दिल्ली से वारणसी के बीच की दूरी को केवल 14 घंटों में पूरा करने वाली 18 कोचों वाली इस ट्रेन की खूब प्रशंसा भी हुई. लेकिन महज 10 दिनों में हमने इसकी हालत क्या से क्या कर दी? यह भी पढ़ें- बुलेट ट्रेन के मामले में प्रभु की आवाज धीमी क्यों रही? साफ-सफाई की बात छोड़ भी दीजिए. लेकिन ट्रेन के सामानों की हुई चोरी का क्या. दो फेरों के बाद ही ट्रेन में लगे सामानों के गायब होने की खबरें आने लगी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कई नलों की टोटियां गायब मिली. और तो और जो सामान निकाले नहीं जा सके, वे भी टूटी हुई हालत में मिले. यह भी पढ़ें- हमारे लिए तो चमत्कार ही है सात मिनट में बुलेट ट्रेन की सफाई मीडिया में आई तस्वीरों के बाद ट्विटर पर लोगों की प्रतिक्रिया... अब अगली बार जब हम और आप सरकार या अधिकारियों को दोष दे रहे हों, तो जरूरी है कि अपने अंदर भी झांक लें कि हम क्या करते हैं. अगर 10 दिन पहले शुरू हुई एक ट्रेन की हालत ऐसी हो जाती है तो क्या हमें शर्म नहीं आनी चाहिए. खासकर, तब जब हम बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी की उम्मीद लगाए बैठे हैं... यह भी पढ़ें- बुलेट ट्रेन बाद में, पहले ट्रेनों में पुख्ता सुरक्षा तो दीजिए सर! इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |