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बुलेट ट्रेन बाद में, पहले ट्रेनों में पुख्ता सुरक्षा तो दीजिए सर!

    • विनीत कुमार
    • Updated: 26 जुलाई, 2015 11:12 AM
  • 26 जुलाई, 2015 11:12 AM
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राष्ट्रीय स्तर के फेंसिंग (तलवारबाजी) चैंपियन होशियार सिंह को चलती ट्रेन से फेंक दिया गया. उनकी मौत हो गई. अफसोस की बात यह रही कि होशियार के साथ जीआरपी के दो जवानों ने यह हैवानियत की.

करीब चार साल पहले राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा को जब चलती ट्रेन से कुछ असामाजिक तत्वों ने बाहर फेंका, तब इसे लेकर खूब हो-हल्ला मचा. उस घटना में अरुणिमा अपना एक पैर गंवा बैठीं थीं. हमने एक वॉलीबॉल खिलाड़ी खो दिया. अरुणिमा के लिए इतनी ही राहत थी कि उसकी जान बच गई थी. उसने अपनी हिम्मत बंटोरी. नई जिंदगी को लक्ष्य दिया. और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ गई. दुनिया की पहली विकलांग पर्वतारोही बनकर.
 
लेकिन होशियार सिंह को ये मौका नहीं मिला.
 
राष्ट्रीय स्तर के फेंसिंग (तलवारबाजी) चैंपियन होशियार सिंह को चलती ट्रेन से फेंक दिया गया. उनकी मौत हो गई. अब क्या कहेंगे, वे अरुणिमा की तरह भाग्यशाली नहीं रहे? तकदीर ने उन्हें दूसरा मौका देने से इंकार कर दिया? अफसोस की बात यह रही कि अरुणिमा के केस में कुछ लुटेरों ने ऐसा किया था. होशियार को तो जीआरपी के दो जवानों ने दो सौ रुपये देने से इंकार करने पर हैवानियत दिखा दी.
 
भारत में रेलवे भले ही ट्रांसपोर्ट का सबसे सबसे बड़ा जरिया हो. लेकिन साल दर साल सफर के दौरान यात्रियों के साथ होने वाले अपराध इस बात की तस्दीक कर देते हैं कि सुरक्षा के लिहाज से यह अब भी भरोसेमंद नहीं है. खासकर महिलाओं को लिए हालात और भी खराब हैं. मजाल है, जो हम और आप अपने घर की किसी महिला सदस्य को ट्रेन में कहीं जाने के लिए अकेले बैठा दें और निश्चिंत हो जाएं. आप टिकट राजधानी की लें या शताब्दी की, वह थर्ड टियर हो या फर्स्ट टियर, जब तक वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच जाती, सांसे फूली रहती हैं.
 
सुरक्षा के मामले में भारतीय रेलवे के पिछले चार-पांच सालों का ट्रैक रिकॉर्ड ही उठा कर देखने पर बात साफ हो जाती है. साल 2012 में बच्चों और महिलाओं से उत्पीड़न के 165 मामले दर्ज किए गए. यह संख्या 2013 में 242 और 2014 में 312 तक जा पहुंची. इस साल जनवरी तक ऐसे 28 मामलों को दर्ज किया जा चुका है. ऐसे ही मर्डर और चोरी की घटनाओं में भी ग्राफ ऊपर जाता दिख रहा है. इस साल जनवरी तक ट्रेनों में चोरी के 966 मामले सामने आ चुके हैं. पिछले साल चलती ट्रेन में मर्डर के 30 मामले दर्ज किए गए. यह मामले चलती ट्रेन के हैं लेकिन रेलवे के अंदर आने वाली...

करीब चार साल पहले राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा को जब चलती ट्रेन से कुछ असामाजिक तत्वों ने बाहर फेंका, तब इसे लेकर खूब हो-हल्ला मचा. उस घटना में अरुणिमा अपना एक पैर गंवा बैठीं थीं. हमने एक वॉलीबॉल खिलाड़ी खो दिया. अरुणिमा के लिए इतनी ही राहत थी कि उसकी जान बच गई थी. उसने अपनी हिम्मत बंटोरी. नई जिंदगी को लक्ष्य दिया. और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ गई. दुनिया की पहली विकलांग पर्वतारोही बनकर.
 
लेकिन होशियार सिंह को ये मौका नहीं मिला.
 
राष्ट्रीय स्तर के फेंसिंग (तलवारबाजी) चैंपियन होशियार सिंह को चलती ट्रेन से फेंक दिया गया. उनकी मौत हो गई. अब क्या कहेंगे, वे अरुणिमा की तरह भाग्यशाली नहीं रहे? तकदीर ने उन्हें दूसरा मौका देने से इंकार कर दिया? अफसोस की बात यह रही कि अरुणिमा के केस में कुछ लुटेरों ने ऐसा किया था. होशियार को तो जीआरपी के दो जवानों ने दो सौ रुपये देने से इंकार करने पर हैवानियत दिखा दी.
 
भारत में रेलवे भले ही ट्रांसपोर्ट का सबसे सबसे बड़ा जरिया हो. लेकिन साल दर साल सफर के दौरान यात्रियों के साथ होने वाले अपराध इस बात की तस्दीक कर देते हैं कि सुरक्षा के लिहाज से यह अब भी भरोसेमंद नहीं है. खासकर महिलाओं को लिए हालात और भी खराब हैं. मजाल है, जो हम और आप अपने घर की किसी महिला सदस्य को ट्रेन में कहीं जाने के लिए अकेले बैठा दें और निश्चिंत हो जाएं. आप टिकट राजधानी की लें या शताब्दी की, वह थर्ड टियर हो या फर्स्ट टियर, जब तक वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच जाती, सांसे फूली रहती हैं.
 
सुरक्षा के मामले में भारतीय रेलवे के पिछले चार-पांच सालों का ट्रैक रिकॉर्ड ही उठा कर देखने पर बात साफ हो जाती है. साल 2012 में बच्चों और महिलाओं से उत्पीड़न के 165 मामले दर्ज किए गए. यह संख्या 2013 में 242 और 2014 में 312 तक जा पहुंची. इस साल जनवरी तक ऐसे 28 मामलों को दर्ज किया जा चुका है. ऐसे ही मर्डर और चोरी की घटनाओं में भी ग्राफ ऊपर जाता दिख रहा है. इस साल जनवरी तक ट्रेनों में चोरी के 966 मामले सामने आ चुके हैं. पिछले साल चलती ट्रेन में मर्डर के 30 मामले दर्ज किए गए. यह मामले चलती ट्रेन के हैं लेकिन रेलवे के अंदर आने वाली अन्य जगहों जैसे स्टेशन आदि के आंकड़े और भी चौंकाते हैं.
 
सवाल है कि सरकार अपने यात्रियों को सुरक्षित माहौल क्यों नहीं दे सकती?  क्यों 200 रुपयों के लिए एक खिलाड़ी को चलती ट्रेन से फेंका जाता है ? हम बड़े-बड़े वादों के पीछे भाग तो रहे हैं. लेकिन कुछ बेसिक जरूरतों को पूरा करने में हमारे पसीने छूट जाते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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