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दोस्त, हमारी बुलेट ट्रेन कहां है?

    • विक्रम किलपडी
    • Updated: 27 मई, 2015 10:52 AM
  • 27 मई, 2015 10:52 AM
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मोदी ने 'अच्छे दिनों' का नारा दिया था. चुनाव अभियान के दौरान कई युवा मतदाताओं के लिए अच्छे दिन एक कीवर्ड था, जिसे वे बदलाव के तौर पर देख रहे थे. लेकिन...

अच्छे दिन कट्टरपंथ का ओवरहाल करने में चले गए. 25 मई 2015 की शाम मथुरा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से तो यही लगा. यह सत्ता में उनकी सरकार के एक वर्ष की निशानी भी है. चुनाव अभियान के दौरान कई युवा मतदाताओं के लिए अच्छे दिन एक कीवर्ड था, जिसे वे बदलाव के तौर पर देख रहे थे. एक साल बाद, उन्होंने अच्छे दिन को महत्वपूर्ण लिखने के लिए ही केवल वोट नहीं दिया था, उस जुमले की तरह कि विदेशों में जमा कालाधन वापस आने पर हर भारतीय को 15,00,000 लाख रुपये वापस मिलेंगे. हालांकि संसद ने इस बिल पर पानी फेर दिया है पर आजकल वहां सब मौन हैं.

अच्छे दिन कितने अच्छे हैं इस बारे में कोई बात नहीं की जा रही, प्रधानमंत्री ने उनकी सरकार में घोटालेबाजों के लिए बुरे दिनों को ध्यान केंद्रित करने के लिए चुना है. ये उनके पुराने वादे के उलट था "गिलास आधा भरा है या आधा खाली है?" लेकिन किसी ने भी गौर नहीं किया और भीड़ ने ताली बजाई, मथुरा की गर्मी में पीएम गरजे, अच्छे दिन हकीकत में यहां थे.

पहले से वादा खिलाफी से ऊब चुके लोगों को मोदी सरकार की सफलताओं का संदेश देने के लिए भारतीय जनता पार्टी करीब 200 सभाएं करने जा रही है. इसे जन कल्याण पर्व का नाम दिया गया है. शायद ही कभी सरकारें इस तरह से सत्ता में एक साल का जश्न मनाती हों, ये खुद अपनी पीठ थपथपाने जैसा है. इसे घातक तानाशाही के तख्तापलट की तरह भी देखा जा सकता है.

यह फिर से इस बात का सबूत है कि भाजपा अपने आप को एक पार्टी के तौर पर सत्ता में नहीं देखती, लेकिन एक विपक्ष के तौर पर पार्टी विरोधात्मक रवैया अपनाती है. प्रधानमंत्री इस भावना से अनजान नहीं हैं, वह जब विदेश में घरेलू राजनीति पर रोशनी डालते हैं, तो कहते हैं कि उनके सत्ता में आने से पहले लोगों को भारत में पैदा होने पर शर्म आती थी. नाराज भारतीयों ने ट्विटर की समझ रखने वाले प्रधानमंत्री को अपना संदेश देने के लिए ट्विटर को #ModiInsultsIndia से भर दिया. लेकिन उन्होंने खुद को सही साबित करने के लिए नहीं चुना और यहां तक कि माफी भी नहीं मांगी. सोशल मीडिया...

अच्छे दिन कट्टरपंथ का ओवरहाल करने में चले गए. 25 मई 2015 की शाम मथुरा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से तो यही लगा. यह सत्ता में उनकी सरकार के एक वर्ष की निशानी भी है. चुनाव अभियान के दौरान कई युवा मतदाताओं के लिए अच्छे दिन एक कीवर्ड था, जिसे वे बदलाव के तौर पर देख रहे थे. एक साल बाद, उन्होंने अच्छे दिन को महत्वपूर्ण लिखने के लिए ही केवल वोट नहीं दिया था, उस जुमले की तरह कि विदेशों में जमा कालाधन वापस आने पर हर भारतीय को 15,00,000 लाख रुपये वापस मिलेंगे. हालांकि संसद ने इस बिल पर पानी फेर दिया है पर आजकल वहां सब मौन हैं.

अच्छे दिन कितने अच्छे हैं इस बारे में कोई बात नहीं की जा रही, प्रधानमंत्री ने उनकी सरकार में घोटालेबाजों के लिए बुरे दिनों को ध्यान केंद्रित करने के लिए चुना है. ये उनके पुराने वादे के उलट था "गिलास आधा भरा है या आधा खाली है?" लेकिन किसी ने भी गौर नहीं किया और भीड़ ने ताली बजाई, मथुरा की गर्मी में पीएम गरजे, अच्छे दिन हकीकत में यहां थे.

पहले से वादा खिलाफी से ऊब चुके लोगों को मोदी सरकार की सफलताओं का संदेश देने के लिए भारतीय जनता पार्टी करीब 200 सभाएं करने जा रही है. इसे जन कल्याण पर्व का नाम दिया गया है. शायद ही कभी सरकारें इस तरह से सत्ता में एक साल का जश्न मनाती हों, ये खुद अपनी पीठ थपथपाने जैसा है. इसे घातक तानाशाही के तख्तापलट की तरह भी देखा जा सकता है.

यह फिर से इस बात का सबूत है कि भाजपा अपने आप को एक पार्टी के तौर पर सत्ता में नहीं देखती, लेकिन एक विपक्ष के तौर पर पार्टी विरोधात्मक रवैया अपनाती है. प्रधानमंत्री इस भावना से अनजान नहीं हैं, वह जब विदेश में घरेलू राजनीति पर रोशनी डालते हैं, तो कहते हैं कि उनके सत्ता में आने से पहले लोगों को भारत में पैदा होने पर शर्म आती थी. नाराज भारतीयों ने ट्विटर की समझ रखने वाले प्रधानमंत्री को अपना संदेश देने के लिए ट्विटर को #ModiInsultsIndia से भर दिया. लेकिन उन्होंने खुद को सही साबित करने के लिए नहीं चुना और यहां तक कि माफी भी नहीं मांगी. सोशल मीडिया की निगरानी करने वाली सरकार की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि मोदी सरकार ने सरकारी फैसलों पर की गई नकारात्मक टिप्पणियों को ट्रैक करने और उनमें तेजी से सुधार के सुझाव के लिए एक पूरी डिवीजन को तैनात किया था.

हां, सरकार के पास 140 शब्दों के नीति विशेषज्ञों और उनके ट्वीट्स की निगरानी करने वाले नौकरशाहों को तैनात करने के पैसे हैं, लेकिन समाज कल्याण के खर्च में कटौती की गई है.

महिला एवं बाल कल्याण योजनाओं के बजट को आधा कर दिया गया है, तभी महिलाओं और बच्चों के बारे में कुछ होता नहीं दिखता. भाजपा के औसत मतदाता पुरुष हैं, ऐसे में संसद और जय जयकार करने वाले खेमे में पुराने सितारों की व्यूह रचना से इनकार नहीं किया जा सकता.  

हेल्थ फंडिंग को 20 फीसदी कम कर दिया है. शिक्षा में 17 फीसदी कटौती की गई है. लेकिन गाय के मूत्र से बने फिनाइल को सरकारी कार्यालयों की सफाई में इस्तेमाल किया जा रहा है. यहां तक कि हरियाणा अपने बैलों, गायों और बछड़ों को आधार की तरह पहचान पत्र देने पर उतर आया है. इस तरह के कुछ जन कल्याण पर्व वैलफेयर बजट में कटौती के बाद होने जा रहे हैं.

बाकी के बारे में पता नहीं, लेकिन यह प्रधानमंत्री के लिए अच्छे दिन हैं. उन्होंने 365 दिनों के भीतर 18 देशों की यात्रा की है. लेकिन अच्छे दिन के कीड़े ने उन्हें शायद काट लिया और दूर फेंक दिया; और वे अभी भी दरभंगा या मंगलुरु के लिए बुलेट ट्रेन का इंतज़ार कर रहे हैं.

या यह उन पुरुषों और उनके शानदार पुष्पकविमान की तरह होगा?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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