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तीन लोकेशन, तीन कहानी... सफाई को लेकर जागरुकता की जरूरत सिर्फ औपचारिक नहीं

    • अंकिता जैन
    • Updated: 09 नवम्बर, 2020 10:25 PM
  • 09 नवम्बर, 2020 10:25 PM
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हम साफ़ सफाई की बात तो खूब करते हैं लकिन जब उसे करने की बारी आती है तो पीछे हट जाते हैं. हमें समझना होगा कि अपने परिवेश को हमें साफ़ रखना है इसलिए लिए न तो पीएम मोदी (PM Modi) सामने आएंगे न केंद्र सरकार.

पिछले दो दिनों में दो अच्छी ख़बरें पढ़ने मिलीं. कर्नाटक में सड़क पर पड़े पिज़्ज़ा के कचरे में से पुलिस ने उसका बिल निकाला, जिसमें कचरा फेंकने वाले का फ़ोन नंबर मिल गया. पुलिस ने उन्हें वापस आकर कचरा उठाने के लिए कहा. वे नहीं माने तो नंबर सोशल मीडिया पर डाला और उन लड़कों को कचरा उठाने के लिए ढेरों फ़ोन गए जिसके बाद उन्हें 80 किलोमीटर वापस आकर सड़क पर फेंका अपना कचरा उठाना पड़ा. दूसरी ख़बर आंध्रप्रदेश की है जहां एक महिला ने घर के बाहर सड़क पर कचरा फेंका तो नगर निगम ने वही कचरा उनके घर में रिटर्न गिफ़्ट के रूप में फेंक दिया. वहां के नगर निगम ने यह सुनिश्चित किया है कि सड़क पर कचरा फेंकने वालों का पता लगते ही उन्हें उन्हीं का कचरा रिटर्न गिफ्ट के रूप में दिया जाएगा और पेनल्टी फीस भी लगाई जाएगी.

बेहतर है कि इंसान जहां रहे साफ़ सफाई से रहे

भोपाल में मैं I-Clean से जुड़ी थी जिसमें हम हर संडे शहर को साफ़ करने निकलते थे. नगर निगम की सहायता लेते थे. सार्वजनिक स्थलों पर स्वयं कचरा हटाते थे, उन जगहों को सुंदर बनाते थे, कलाकारी करते थे. वहां देखा कि लोग हमें यूं देखते थे मानो हम कोई घृणित कार्य कर रहे हों. जिनके मोहल्लों को हम चमकाते थे उनमें से मात्र 10% लोग सहयोग देते थे.

जशपुर अभी अन-एक्सप्लोर्ड जगह है फिर भी यहां आप जंगल में स्थित कुछ जगहों पर घूमने जाएंगे तो शराब की बोतलें, डिस्पोजेबल, प्लास्टिक कचरा दिखने लगा है. उन जगहों पर गंदगी फैलाकर क्या कोई मैडल मिल जाता है? प्रकृति का कितना नुकसान होता है? जंगल पहाड़ों में रहने वालों जीव-जंतुओं का कितना नुकसान होता है? आप जिन्हें जमादार कहते हैं वे आपके इधर-उधर फेंके गए कचरे की वजह से कितना परेशान होते हैं यह आपको तभी समझ आएगा जब आप ख़ुद शहर साफ़ करने...

पिछले दो दिनों में दो अच्छी ख़बरें पढ़ने मिलीं. कर्नाटक में सड़क पर पड़े पिज़्ज़ा के कचरे में से पुलिस ने उसका बिल निकाला, जिसमें कचरा फेंकने वाले का फ़ोन नंबर मिल गया. पुलिस ने उन्हें वापस आकर कचरा उठाने के लिए कहा. वे नहीं माने तो नंबर सोशल मीडिया पर डाला और उन लड़कों को कचरा उठाने के लिए ढेरों फ़ोन गए जिसके बाद उन्हें 80 किलोमीटर वापस आकर सड़क पर फेंका अपना कचरा उठाना पड़ा. दूसरी ख़बर आंध्रप्रदेश की है जहां एक महिला ने घर के बाहर सड़क पर कचरा फेंका तो नगर निगम ने वही कचरा उनके घर में रिटर्न गिफ़्ट के रूप में फेंक दिया. वहां के नगर निगम ने यह सुनिश्चित किया है कि सड़क पर कचरा फेंकने वालों का पता लगते ही उन्हें उन्हीं का कचरा रिटर्न गिफ्ट के रूप में दिया जाएगा और पेनल्टी फीस भी लगाई जाएगी.

बेहतर है कि इंसान जहां रहे साफ़ सफाई से रहे

भोपाल में मैं I-Clean से जुड़ी थी जिसमें हम हर संडे शहर को साफ़ करने निकलते थे. नगर निगम की सहायता लेते थे. सार्वजनिक स्थलों पर स्वयं कचरा हटाते थे, उन जगहों को सुंदर बनाते थे, कलाकारी करते थे. वहां देखा कि लोग हमें यूं देखते थे मानो हम कोई घृणित कार्य कर रहे हों. जिनके मोहल्लों को हम चमकाते थे उनमें से मात्र 10% लोग सहयोग देते थे.

जशपुर अभी अन-एक्सप्लोर्ड जगह है फिर भी यहां आप जंगल में स्थित कुछ जगहों पर घूमने जाएंगे तो शराब की बोतलें, डिस्पोजेबल, प्लास्टिक कचरा दिखने लगा है. उन जगहों पर गंदगी फैलाकर क्या कोई मैडल मिल जाता है? प्रकृति का कितना नुकसान होता है? जंगल पहाड़ों में रहने वालों जीव-जंतुओं का कितना नुकसान होता है? आप जिन्हें जमादार कहते हैं वे आपके इधर-उधर फेंके गए कचरे की वजह से कितना परेशान होते हैं यह आपको तभी समझ आएगा जब आप ख़ुद शहर साफ़ करने निकलेंगे.

लेकिन हमने तो यह सरकार की ज़िम्मेदारी मान ली है. विदेश जाएंगे तो वहां इतने सभ्य बन जाते हैं फिर अपने देश में ऐसी असभ्यता क्यों? ऐसे में कर्नाटक पुलिस और आंध्र नगर निगम ने जो किया वही उपाय लगते हैं उद्दंड लोगों को सबक सिखाने के लिए.

आपका नगर है, आपका शहर है, आपके पर्यटन स्थल हैं उन्हें साफ़-सुथरा रखने की ज़िम्मेदारी सिर्फ सरकार की क्यों? आपकी भी होनी चाहिए ना? हम बाहर निकलते हैं तो कचरे के लिए एक एक्स्ट्रा पैकेट लेकर निकलते हैं. सारा उसी में भरते हैं और डस्टबिन देखकर फेंकते हैं. जंगल-पहाड़ घूमने जाते हैं तो कोशिश करते हैं कि आसपास बिखरा कचरा भी समेट दें. यह बहुत आसान काम है. करके देखिए, अच्छा लगेगा.

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