• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

करवा चौथ के अंधविश्वास को तोड़ने के लिए पुरुष समाज ही आगे आए

    • vinaya.singh.77
    • Updated: 06 नवम्बर, 2020 05:18 PM
  • 06 नवम्बर, 2020 05:11 PM
offline
करवा चौथबीते अभी कुछ ही वक़्त हुआ है ऐसे में इस डेबेट की शुरुआत हो गयी है कि ये त्योहार अंध विश्वास को बढ़ावा देता है. त्योहार को लेकर सबसे बड़ी विडंबना ये है कि आज इसकी चपेट में पढ़ा लिखा वर्ग भी आ गया है.

मानव मन भी बड़ा अजीब है, कहां विज्ञान के विकास के साथ हम सोचते थे कि मनुष्य तर्कवादी बनेगा, अन्धविश्वास से दूर भागेगा, किसी भी रीति रिवाज को मानने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसेगा और फिर उसे मानेगा. लेकिन जिस तरह से चीजें घटित हो रही हैं और लगातार लोग बाबाओं, मौलवियों या हकीमों के चक्कर में पड़ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि हम उल्टा चलने लगे हैं. खैर इस विषय पर बहुत सी बातें लिखी जा सकती हैं लेकिन फिलवक्त मैं बात कर रहा हूं पुरुषों के उम्र के बीमा की (करवा चौथ का उद्देश्य तो यही है), मतलब एक ऐसे त्यौहार की जो न सिर्फ पूरी तरह से अन्धविश्वास पर आधारित है बल्कि आज के पढ़े लिखे युवाओं को भी अपने चपेट में ले रहा है. सिर्फ हिन्दुस्तान में ही ऐसी सोच देखने को मिल सकती है जहां एक नारी के भूखे प्यासे व्रत रहने से उसका पति (वैसे इस रोग ने लड़कियों को भी अपने चपेट में ले रखा है जहां लड़की अपने पुरुष दोस्त या बॉयफ्रेंड के लिए भी यह व्रत रख रही है) दीर्घायु होगा.

हिंदू महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत रखा ही इसलिए जाता है ताकि पतियों की उम्र लंबी हो

न तो विज्ञान इसकी पुष्टि करता है और न ही इसके लिए कोई अन्य प्रमाण है लेकिन एक दूसरे की देखादेखी और प्रिंट मीडिया तथा दूरदर्शन इत्यादि के प्रभाव में पढ़कर आज की पीढ़ी की महिलायें इस व्रत को न सिर्फ खुद रखती हैं बल्कि अपने घर की अन्य लड़कियों या परिचित महिलाओं को भी इसे करने के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रेरित करती हैं. इसे अगर महिलाओं की मानसिक गुलामी का त्यौहार भी कहा जाए तो भी शायद गलत नहीं होगा.

अब ये बात भी सच है कि बहुत सी महिलाएं या लड़कियां न चाहते हुए भी दूसरों के दबाव में इसे करती होंगी. कुछ अन्य बेहद शिक्षित और तथाकथित प्रबुद्ध महिलाएं इसके पक्ष...

मानव मन भी बड़ा अजीब है, कहां विज्ञान के विकास के साथ हम सोचते थे कि मनुष्य तर्कवादी बनेगा, अन्धविश्वास से दूर भागेगा, किसी भी रीति रिवाज को मानने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसेगा और फिर उसे मानेगा. लेकिन जिस तरह से चीजें घटित हो रही हैं और लगातार लोग बाबाओं, मौलवियों या हकीमों के चक्कर में पड़ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि हम उल्टा चलने लगे हैं. खैर इस विषय पर बहुत सी बातें लिखी जा सकती हैं लेकिन फिलवक्त मैं बात कर रहा हूं पुरुषों के उम्र के बीमा की (करवा चौथ का उद्देश्य तो यही है), मतलब एक ऐसे त्यौहार की जो न सिर्फ पूरी तरह से अन्धविश्वास पर आधारित है बल्कि आज के पढ़े लिखे युवाओं को भी अपने चपेट में ले रहा है. सिर्फ हिन्दुस्तान में ही ऐसी सोच देखने को मिल सकती है जहां एक नारी के भूखे प्यासे व्रत रहने से उसका पति (वैसे इस रोग ने लड़कियों को भी अपने चपेट में ले रखा है जहां लड़की अपने पुरुष दोस्त या बॉयफ्रेंड के लिए भी यह व्रत रख रही है) दीर्घायु होगा.

हिंदू महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत रखा ही इसलिए जाता है ताकि पतियों की उम्र लंबी हो

न तो विज्ञान इसकी पुष्टि करता है और न ही इसके लिए कोई अन्य प्रमाण है लेकिन एक दूसरे की देखादेखी और प्रिंट मीडिया तथा दूरदर्शन इत्यादि के प्रभाव में पढ़कर आज की पीढ़ी की महिलायें इस व्रत को न सिर्फ खुद रखती हैं बल्कि अपने घर की अन्य लड़कियों या परिचित महिलाओं को भी इसे करने के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रेरित करती हैं. इसे अगर महिलाओं की मानसिक गुलामी का त्यौहार भी कहा जाए तो भी शायद गलत नहीं होगा.

अब ये बात भी सच है कि बहुत सी महिलाएं या लड़कियां न चाहते हुए भी दूसरों के दबाव में इसे करती होंगी. कुछ अन्य बेहद शिक्षित और तथाकथित प्रबुद्ध महिलाएं इसके पक्ष में थोथी दलील यह देती हैं कि इसी बहाने उनको सजने संवरने तथा खरीददारी करने का अवसर मिल जाता है. कुछ अन्य का यह भी कहना है कि उनको मनचाहा उपहार भी इस दिन मिल जाता है लेकिन इन सारे दलीलों के बाद भी इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है.

उपहार लेने के तथा सजने संवरने के अन्य भी बहाने हैं लेकिन इसके लिए इस अन्धविश्वास को आगे बढ़ाने को कत्तई उचित नहीं ठहराया जा सकता है. लेकिन अगर इसके लिए महिलाएं दोषी हैं तो कहीं न कहीं पुरुष समाज भी उतना ही दोषी है. दरअसल चाहे आप कितनी भी महिला पुरुष बराबरी की बात कर लीजिये, आज भी महिलाओं को उतने अधिकार हासिल नहीं हैं जितने पुरुषों को.

और इस अन्धविश्वास के लिए सबसे बड़ा विरोध सबसे पहले पुरुष समाज की तरफ से ही आना चाहिए और उनको अपनी पत्नी या घर की अन्य महिलाओं को इसे नहीं करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. अगर इसे रोकने के लिए थोड़ी सख्ती भी करनी पड़े तो घर के बड़े बुजुर्गों को करना चाहिए (सती प्रथा को ख़त्म करने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ा था, वह उस समय भी सर्वमान्य रीति थी).

क्योंकि अगर इसके करने से ही पुरुषों की उम्र महफूज रहती तो शायद ही कोई विधवा स्त्री हिन्दुस्तान में मिलती, खासकर हिन्दू समाज में. खैर इस अन्धविश्वास को ख़त्म करना इतना आसान भी नहीं होगा क्योंकि बाजार में इसके चलते हर साल करोड़ों का दांव लगता है और कोई भी कंपनी अपना नुक्सान नहीं होने देना चाहेगी. चाहे इसके चलते उन्हें पुरे समाज को ही मानसिक रूप से बीमार ही क्यों न करना पड़े.

ये भी पढ़ें -

...और इस तरह मैंने पत्नी जी के लिए करवा चौथ का व्रत रखा

फ्रांस विरोध में कट्टरपंथ का लबादा ओढ़कर इन बच्चों ने तो कठमुल्लाओं के कान काट दिए हैं!

करवा चौथ के नाम पर औरतों की सोच पर सवाल उठाना बचकाना ही है

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲