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होली का वैज्ञानिक महत्व भी जान लीजिए

    • आईचौक
    • Updated: 21 मार्च, 2019 01:42 AM
  • 20 मार्च, 2019 05:50 PM
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होली का त्योहार सिर्फ पौराणिक कथाओं के हिसाब से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण है. इस दिन कैसे अपना खयाल रखा जा सकता है ये जान लेना भी जरूरी है.

होली 2019 आ चुकी है और सियासी रंग भारत पर चढ़ने से पहले लोग जमकर होली खेलेंगे. हर बार की तरह इस बार भी बाज़ार होली के रंग-गुलाल और गुजिया से सज गया है. दुकानों पर ठंडाई का सामान भी मिलने लगा है और यही वो समय है जब फागुन की खुशियां मौसम में भी फैल गई हैं. जहां एक ओर होली पर हमेशा होलिका और प्रहलाद, राधा-श्याम की कहानी कही जाती है वहीं दूसरी ओर होली के असली महत्व को समझने के लिए सिर्फ पौराणिक कथाओं को जानना काफी नहीं है.

होली का वैज्ञानिक महत्व भी उतना ही जरूरी है और इसके बारे में ज्यादा बात होती भी नहीं है. पर इसके वैज्ञानिक महत्व कम नहीं हैं.

होलिका दहन की जरूरत-

होलिका दहन की जरूरत न सिर्फ गांव में बल्कि शहरों में भी होती है. इसका वैज्ञानिक महत्व बीमारियों से बचाता है. दरअसल, होली उस समय आती है जब भारत में तेज़ी से मौसम बदल रहा होता है और कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं जो माहौल को दूषित करते हैं. होलिका दहन की आग से उस इलाके के आस-पास के बैक्टीरिया खत्म होते हैं और इसके कारण कई बीमारियों से बचाव होता है.

होलिका दहन कई तरह के बैक्टीरिया को मारता है

होलिका दहन में एक रिवाज है कि लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं. और इसी परिक्रमा के समय लोगों के शरीर का तापमान भी 50 डिग्री पार कर जाता है क्योंकि आग के पास जाने से उकता ताप हमें भी महसूस होता है. ये गर्मी बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का नाश करने में मदद करती है.

साथ ही, अगर होली दिवाली के समय को देखें तो दोनों बड़े त्योहार ऐसे समय पर आते हैं जब मौसम में बदलाव होने वाला होता है और इन त्योहारों के समय घरों की सफाई की जाती है और इसी तरह से कई तरह के बैक्टीरिया सिर्फ सफाई से भी चले जाते हैं. ध्यान रहे यहां त्योहारों वाली बेहतरीन सफाई की बात हो रही...

होली 2019 आ चुकी है और सियासी रंग भारत पर चढ़ने से पहले लोग जमकर होली खेलेंगे. हर बार की तरह इस बार भी बाज़ार होली के रंग-गुलाल और गुजिया से सज गया है. दुकानों पर ठंडाई का सामान भी मिलने लगा है और यही वो समय है जब फागुन की खुशियां मौसम में भी फैल गई हैं. जहां एक ओर होली पर हमेशा होलिका और प्रहलाद, राधा-श्याम की कहानी कही जाती है वहीं दूसरी ओर होली के असली महत्व को समझने के लिए सिर्फ पौराणिक कथाओं को जानना काफी नहीं है.

होली का वैज्ञानिक महत्व भी उतना ही जरूरी है और इसके बारे में ज्यादा बात होती भी नहीं है. पर इसके वैज्ञानिक महत्व कम नहीं हैं.

होलिका दहन की जरूरत-

होलिका दहन की जरूरत न सिर्फ गांव में बल्कि शहरों में भी होती है. इसका वैज्ञानिक महत्व बीमारियों से बचाता है. दरअसल, होली उस समय आती है जब भारत में तेज़ी से मौसम बदल रहा होता है और कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं जो माहौल को दूषित करते हैं. होलिका दहन की आग से उस इलाके के आस-पास के बैक्टीरिया खत्म होते हैं और इसके कारण कई बीमारियों से बचाव होता है.

होलिका दहन कई तरह के बैक्टीरिया को मारता है

होलिका दहन में एक रिवाज है कि लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं. और इसी परिक्रमा के समय लोगों के शरीर का तापमान भी 50 डिग्री पार कर जाता है क्योंकि आग के पास जाने से उकता ताप हमें भी महसूस होता है. ये गर्मी बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का नाश करने में मदद करती है.

साथ ही, अगर होली दिवाली के समय को देखें तो दोनों बड़े त्योहार ऐसे समय पर आते हैं जब मौसम में बदलाव होने वाला होता है और इन त्योहारों के समय घरों की सफाई की जाती है और इसी तरह से कई तरह के बैक्टीरिया सिर्फ सफाई से भी चले जाते हैं. ध्यान रहे यहां त्योहारों वाली बेहतरीन सफाई की बात हो रही है रोज़ के झाडू पोंछे की नहीं.

प्राकृतिक रंग शरीर में स्फूर्ति‍ लाते हैं-

ये सिर्फ प्राकृतिक रंगों के लिए ही सच है और कैमिकल वाले रंग नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन अगर आप उन लोगों में से एक हैं जो प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं और पलाश, जासौन, नारंगी, चाएपत्ती, चुकंदर, गेंदा आदि की मदद से बने रंगों से होली खेलते हैं तो ये त्योहार शरीर में स्फूर्ति‍ भरने के लिए काफी है. होली के समय मौसम में बदलाव के कारण लोगों को थकान, आलस आदि रहता है और ये प्राकृतिक रंग इसी आलस को दूर करने में मदद करते हैं.

एक साइंटिफिक थ्योरी कहती है कि हमारा शरीर अलग-अलग रंगों से बना हुआ है और इस थ्योरी के मुताबिक मॉर्डन लाइफस्टाइल से कई तरह के रंगों की कमी हो जाती है. अगर इस थ्योरी में जरा भी सच्चाई है तो भी होली एक ऐसा त्योहार है जो कई तरह की रंगों की कमियों को दूर कर सकता है.

रंगो का वैज्ञानिक महत्व भी है

जहां तक होली का सवाल है तो ये देखकर कहना गलत नहीं होगा कि ये त्योहार सिर्फ पौराणिक मान्यताओं के कारण ही नहीं मनाया जा रहा है.

जब होली मनाने की बात हो रही है तो यहां ये भी जान लेना चाहिए कि होली में किस तरह से अपनी सेहत, स्किन और बालों की सुरक्षा कर सकते हैं.

1. त्योहार तो ठीक, लेकिन स्वास्थ्य का खयाल रखना भी जरूरी-

पिछले कुछ सालों में अपने आस पड़ोस में देखें तो होली एक ऐसा त्योहार है जिसमें लोग बीमार भी बहुत ज्यादा पड़ रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण है कैमिकल वाले रंग. कोशिश करें कि उन रंगों से दूर रहें और होली खेलते समय सनग्लास पहनने का ट्रेंड भले ही बॉलीवुड वाला लगे, लेकिन इससे आंखों की सुरक्षा भी हो सकती है और इससे कोई नुकसान तो है नहीं. कोशिश करें कि किसी भी तरह का रंग मुंह के अंदर न जाए और पानी से ज्यादा न खेला जाए.

2. त्वचा बहुत महत्वपूर्ण है उसका खयाल रखें-

त्वचा भी हमारे शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है जिसे सुरक्षित रखना जरूरी है. भले ही आपके पास कितना भी महंगा मॉश्चराइजर क्यों न हो, लेकिन नारियल या सरसों का तेल होली के रंगों से बचाव का सबसे बेहतरीन तरीका है. साथ ही, इसका ध्यान रखें कि अगर आप होली खेलकर बहुत ज्यादा धूप में खड़े होते हैं तो वो रंग त्वचा में समा सकता है और ये वाकई एक खतरनाक स्थिति होगी क्योंकि इससे न तो रंग जल्दी छूटता है और साथ ही इसके कारण बहुत ज्यादा स्किन एलर्जी का खतरा भी होता है. इसी के साथ, रंगों को छुड़ाने के लिए पत्थर से रगड़ने का तरीका भले ही बचपन में सही लगता हो, लेकिन अभी तो बिलकुल नहीं है इसलिए ऐसा न करें. साथ ही बहुत ज्यादा कैमिकल वाला साबुन या शैंपी इस्तेमाल करना भी सही नहीं.

होली खेलने के समय रंगों से बचाव भी जरूरी है.

3. बालों का ख्याल रखना है तो फैशन छोड़िए-

भले ही ये आम धारणा है कि बालों को तो गंदा होना ही है बाद में धो लेंगे, लेकिन सच तो ये है कि अगर आप बालों को पहले धोकर और एक जूड़ा बांधकर जाएंगे तो इससे सिर की त्वचा में मौजूद तेल और रूसी हट जाएगी और रंग सिर में एब्जॉर्ब नहीं होगा. इसी के साथ अगर बाल नहीं धुले हैं तो सरसों का तेल या नारियल का तेल लगाकर जाएं. साथ ही अगर आप ज्यादा कैमिकल रंग का इस्तेमाल कर रहे हैं तो बालों को खुला छोड़ दें ताकि ज्यादा से ज्यादा रंग बाहर निकल सके.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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