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समाज

भारत में मुसलमानों की बढ़ती आबादी से जुड़े सारे मिथक अब टूट जाएंगे

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 17 अगस्त, 2019 01:20 PM
  • 17 अगस्त, 2019 01:20 PM
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जनसंख्या को लेकर जो आंकड़े नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे ने दिए हैं उनमें मुसलमानों को लेकर एक बड़ा मिथक टूटा है, आंकड़े बता रहे हैं कि देश के मुस्लिम परिवारों की प्रजनन दर बहुत तेजी के साथ लगातार कम हो रही है.

देश के 73 वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता को संबोधित किया और तमाम मुख्य मुद्दों पर अपनी बात रखी. अपने भाषण में प्रधानमंत्री बढ़ती हुई जनसंख्या पर खासे गंभीर आए. उन्होंने देश की बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंता जताई और कहा कि, 'हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करता है. लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है जो इस बात को अच्छे से समझता है. ये वर्ग इससे होने वाली समस्याओं को समझते हुए अपने परिवार को सीमित रखता है. ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं. ये लोग एक तरह से देशभक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं.' इसके अलावा पीएम मोदी ने ये भी कहा कि सीमित परिवारों से ना सिर्फ खुद का बल्कि देश का भी भला होने वाला है. जो लोग सीमित परिवार के फायदे को समझा रहे हैं वो सम्मान के पात्र है. घर में बच्चे के आने से पहले सबको सोचना चाहिए कि क्या हम उसके लिए तैयार हैं. यदि पीएम मोदी के भाषण पर गौर किया जाए तो मिलता है कि उन्होंने देश में आबादी के नियंत्रण के लिये छोटे परिवार पर जोर दिया. बात जनसंख्या की आई है तो जो सबसे पहली तस्वीर हमारे दिमाग में जनसंख्या को लेकर बनेगी वो देश में रहने वाले मुसलमानों की होगी.

लाल किले पर दिए अपने भाषण में पीएम मोदी भी आबादी को लेकर खासे गंभीर नजर आए

ध्यान रहे कि एक बड़ा वर्ग है जिसका मानना है कि इस देश की बढ़ती हुई जनसंख्या का कारण मुसलमान हैं. जिनके यहां बच्चों को खुदा की रहमत माना जाता है और परिवार नियोजन जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है. साथ सवाल है कि क्या ये सच है? क्या इस देश की बढ़ती हुई आबादी के जिम्मेदार मुसलमान ही हैं? तो जवाब है नहीं.

इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट...

देश के 73 वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता को संबोधित किया और तमाम मुख्य मुद्दों पर अपनी बात रखी. अपने भाषण में प्रधानमंत्री बढ़ती हुई जनसंख्या पर खासे गंभीर आए. उन्होंने देश की बढ़ती जनसंख्या को लेकर चिंता जताई और कहा कि, 'हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करता है. लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है जो इस बात को अच्छे से समझता है. ये वर्ग इससे होने वाली समस्याओं को समझते हुए अपने परिवार को सीमित रखता है. ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं. ये लोग एक तरह से देशभक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं.' इसके अलावा पीएम मोदी ने ये भी कहा कि सीमित परिवारों से ना सिर्फ खुद का बल्कि देश का भी भला होने वाला है. जो लोग सीमित परिवार के फायदे को समझा रहे हैं वो सम्मान के पात्र है. घर में बच्चे के आने से पहले सबको सोचना चाहिए कि क्या हम उसके लिए तैयार हैं. यदि पीएम मोदी के भाषण पर गौर किया जाए तो मिलता है कि उन्होंने देश में आबादी के नियंत्रण के लिये छोटे परिवार पर जोर दिया. बात जनसंख्या की आई है तो जो सबसे पहली तस्वीर हमारे दिमाग में जनसंख्या को लेकर बनेगी वो देश में रहने वाले मुसलमानों की होगी.

लाल किले पर दिए अपने भाषण में पीएम मोदी भी आबादी को लेकर खासे गंभीर नजर आए

ध्यान रहे कि एक बड़ा वर्ग है जिसका मानना है कि इस देश की बढ़ती हुई जनसंख्या का कारण मुसलमान हैं. जिनके यहां बच्चों को खुदा की रहमत माना जाता है और परिवार नियोजन जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है. साथ सवाल है कि क्या ये सच है? क्या इस देश की बढ़ती हुई आबादी के जिम्मेदार मुसलमान ही हैं? तो जवाब है नहीं.

इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DI) ने इस सन्दर्भ में कुछ आंकड़े पेश किये हैं जिनका आधार नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे है. यदि इन आंकड़ों पर यकीन किया जाए तो मिलता है कि इसके जरिये न सिर्फ मुसलमानों को लेकर एक बड़ा मिथक टूटा है. बल्कि इसमें ये भी बता चल रहा है कि देश के मुस्लिम परिवारों की प्रजनन दर बहुत तेजी के साथ कम हुई है.

नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे में साल 1992-93 में हिंदू परिवारों में प्रजनन दर 3.3 थी जो साल 2015-16 में 2.1 हुई है जबकि बात अगर मुस्लिम परिवारों की हो तो 1992-93 में मुस्लिम परिवारों में प्रजनन दर 4.4 थी जो 2015-16 में घटते घटते 2.6 हो गई है. इस हिसाब से मुसलमानों की प्रजनन दर जहां 40 प्रतिशत तक कम हुई है वहीं हिंदू परिवारों में ये कमी 27 प्रतिशत तक कम दर्ज की गई है.  यानी कहा जा सकता है कि हिन्दू और मुस्लिम परिवार पिछले 22-23 सालों में प्रजनन दर को लेकर लगभग समानता की स्थिति में आ गए हैं.

NFHS का सर्वे बता रहा है कि मुसलमानों ने तेजी के साथ अपनी प्रजनन दर में कमी की है

गौरतलब है कि स्वतंत्रता के समय मुस्लिम प्रजनन क्षमता हिंदू प्रजनन क्षमता से लगभग 10% अधिक थी. ये अंतर 1970 का दशक आते आते और बढ़ा. ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय तक हिन्दुओं ने गर्भ निरोधक के तरीके इस्तेमाल करने शुरू कर दिए थे. जबकि मुसलमान ऐसा कोई तरीका नहीं अपना रहे थे. 90 का दशक आते आते स्थिति गंभीर हो गई और मुस्लिम परिवारों में बच्चों की एक बड़ी संख्या दिखने लगी.

अब चूंकि रिपोर्ट में मुसलमानों की प्रजनन दर घटते हुए दिखाई गई है इसलिए सवाल होगा कि आखिर मुसलमानों में ये गिरावट कैसे आई? तो वजह जहां एक तरफ गरीबी और महंगाई को माना जा सकता है तो वहीं दूसरी तरफ इसका एक बड़ा कारण वो ताने थे जो मुसलमान ज्यादा बच्चे होने के चलते खाते थे. यानी नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों ने ये साफ कर दिया है कि मुसलमानों ने अपनी इस कुरीति को न सिर्फ दूर किया बल्कि अब वो उसे एक ऐसे लेवल पर ले आए हैं जहां ये बात अब उनके लिए गर्व करने का कारण बन गई है.

बात अगर हिन्दुओं की हो तो भले ही उनमें भी गिरता दर्ज हुई हो. मगर जो आंकड़े बता रहे हैं हिन्दुओं में अब भी प्रजनन दर और मृत्यु दर का संतुलन बना हुआ है. इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि यदि हिन्दू परिवार में किसी कारणवश दो लोगों की मौत होती है तो उनका स्थान लेने के लिए दो लोग तैयार हैं. लेकिन चिंता का कारण आने वाला समय है क्योंकि इनकी प्रजनन दर में हमेशा गिरावट ही दर्ज की गई है.

बहरहाल, कहना गलत नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री को आबादी के लिहाज से बेफिक्र हो जाना चाहिए ऐसा इसलिए भी क्योंकि हिंदू और मुसलमान दोनों ही जानते हैं कि उनके पास संसाधन सीमित हैं और अगर आबादी बढ़ गई तो इससे नुकसान किसी और का नहीं बल्कि उनका खुद है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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