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टेक महिंद्रा के सीईओ ने तो 94% आईटी ग्रेजुएट्स का दिल ही दुखा दिया!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 04 जून, 2018 06:11 PM
  • 04 जून, 2018 06:11 PM
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भारतीय इंजीनियरों के सन्दर्भ में टेक महिंद्रा के सीईओ ने जो कहा है उसपर देश के सॉफ्टवेर इंजीनियरों और कॉलेजों दोनों को गंभीरता से संज्ञान लेकर नई तकनीक पर हाथ साफ करना शुरू कर देना चाहिए.

भारतीय इंजीनियरों के ऊपर गहराए संकट के बदल गहराने का नाम नहीं ले रहे. खबर है कि भारतीय इंजीनियर बड़ी आईटी कंपनियों में नौकरी के लायक नहीं हैं. आहत होने या फिर बुरा मानने की आवश्यकता नहीं है. ये कथन हमारा नहीं बल्कि आईटी इंडस्ट्री के जाने माने नाम टेक महिंद्रा के सीईओ सीपी गुरनानी का है. सीपी गुरनानी का कहना है कि 94 फीसदी आईटी ग्रैजुएट भारतीय बड़ी आईटी कंपनियों में नौकरी के लिए योग्य नहीं हैं.

इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक खबर को अगर सही मानें तो गुरनानी का मत है कि मैनपावर स्किलिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉकचेन, साइबर सिक्यॉरिटी, मशीन लर्निंग जैसी नई टेक्नॉलजी में प्रवेश करना भारतीय आईटी कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है. उन्हें लगता है कि इन सब बातों को देखते हुए जब नौकरी की बात आती है, तो बड़ी आईटी कंपनियां 94 फीसदी आईटी ग्रैजुएट भारतीयों को इसके लिए योग्य नहीं मानती हैं.

टेक महिंद्रा के स ईओ ने जो कहा उसपर भारतीय इंजीनियरों को गहनता से विचार करना चाहिए

अपने इस कथन की वजह के रूप में गुरनानी शिक्षा व्यवस्था को भी जिम्मेदार मानते हैं दिल्ली का उदाहरण पेश करते हुए गुरनानी का कहना है कि आज दिल्ली में 60 फीसदी नंबर पाने वाला छात्र बीए इंग्लिश में दाखिला नहीं पा सकता, लेकिन वह इंजीनियरिंग में जरूर दाखिला पा जाएगा. गुरनानी ने नासकॉम के हवाले से भी एक अहम जानकारी दी है और कहा है कि 2022 तक साइबर सिक्यॉरटी में करीब 6 मिलियन यानी 60 लाख लोगों की आवश्यकता है, लेकिन हमारे पास स्किल की कमी है.

मुद्दा यह है कि अगर मैं रोबोटिक्स व्यक्ति की तलाश में हूं और इसकी बजाय मुझे मेनफ्रेम का व्यक्ति मिलता है, तो यह स्किल गैप बनाता है. यह एक बड़ी चुनौती के रूप में आता है. बात जब नासकॉम और टेक्नोलॉजी की चल रही है तो आपको एक अहम जानकारी देते...

भारतीय इंजीनियरों के ऊपर गहराए संकट के बदल गहराने का नाम नहीं ले रहे. खबर है कि भारतीय इंजीनियर बड़ी आईटी कंपनियों में नौकरी के लायक नहीं हैं. आहत होने या फिर बुरा मानने की आवश्यकता नहीं है. ये कथन हमारा नहीं बल्कि आईटी इंडस्ट्री के जाने माने नाम टेक महिंद्रा के सीईओ सीपी गुरनानी का है. सीपी गुरनानी का कहना है कि 94 फीसदी आईटी ग्रैजुएट भारतीय बड़ी आईटी कंपनियों में नौकरी के लिए योग्य नहीं हैं.

इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक खबर को अगर सही मानें तो गुरनानी का मत है कि मैनपावर स्किलिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ब्लॉकचेन, साइबर सिक्यॉरिटी, मशीन लर्निंग जैसी नई टेक्नॉलजी में प्रवेश करना भारतीय आईटी कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है. उन्हें लगता है कि इन सब बातों को देखते हुए जब नौकरी की बात आती है, तो बड़ी आईटी कंपनियां 94 फीसदी आईटी ग्रैजुएट भारतीयों को इसके लिए योग्य नहीं मानती हैं.

टेक महिंद्रा के स ईओ ने जो कहा उसपर भारतीय इंजीनियरों को गहनता से विचार करना चाहिए

अपने इस कथन की वजह के रूप में गुरनानी शिक्षा व्यवस्था को भी जिम्मेदार मानते हैं दिल्ली का उदाहरण पेश करते हुए गुरनानी का कहना है कि आज दिल्ली में 60 फीसदी नंबर पाने वाला छात्र बीए इंग्लिश में दाखिला नहीं पा सकता, लेकिन वह इंजीनियरिंग में जरूर दाखिला पा जाएगा. गुरनानी ने नासकॉम के हवाले से भी एक अहम जानकारी दी है और कहा है कि 2022 तक साइबर सिक्यॉरटी में करीब 6 मिलियन यानी 60 लाख लोगों की आवश्यकता है, लेकिन हमारे पास स्किल की कमी है.

मुद्दा यह है कि अगर मैं रोबोटिक्स व्यक्ति की तलाश में हूं और इसकी बजाय मुझे मेनफ्रेम का व्यक्ति मिलता है, तो यह स्किल गैप बनाता है. यह एक बड़ी चुनौती के रूप में आता है. बात जब नासकॉम और टेक्नोलॉजी की चल रही है तो आपको एक अहम जानकारी देते चलें. गत वर्ष भी एक खबर आई थी.

खबर के अनुसार ग्लोबल मार्केट में बढ़ती अस्थिरता के अलावा नयी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल न कर पाने के चलते भारतीय इंजीनियरों की एक बड़ी संख्या को नौकरी से निकाला गया था. तब खबर ये भी थी कि आने वाले तीन सालों में स्थिति बद से बदतर होगी और प्रति वर्ष 2 लाख सॉफ्टवेर इंजीनियरों को नौकरी से निकाला जायगा.

विशेषज्ञों का मत है कि जहां इसके जिम्मेदार खुद इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स हैं तो इसके एक प्रमुख वजह देश में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए इंजीनियरिंग कॉलेज और प्राचीन सिलेबस हैं. एक ऐसे वक़्त में जब दुनिया आगे निकलने की होड़ में अपने को लगातार अपग्रेड कर रही है हमारे संस्थान शिक्षा के उस ढर्रे पर चल रहे हैं जिसका उद्देश्य सिर्फ खानापूर्ति करके डिग्री और नंबर देना है.

बात अगर कोर्स की हो तो आज हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्रों को शायद 5 से 10 प्रतिशत ही ऐसी चीजें पढ़ाई जाती हैं जिसका इस्तेमाल कर वो नौकरी पा सकते हैं. इसके अलावा शेष जो चीजें होती हैं उनका इस्तेमाल कहीं भी नहीं होता.

बहरहाल, अब चाहे नासकॉम की रिपोर्ट हो या फिर आईटी जाएंट टेक महिंद्रा के सीईओ का बयान कहना गलत नहीं है कि अब वो समय आ गया है जब भारतीय इंजीनियर परंपरागत मेथड को छोड़कर नई तकनीक पर हाथ साफ करें. यदि वो ऐसा कर ले गए तो ठीक अन्यथा अपनी नौकरी जाने और बेरोजगार होने के जिम्मेदार वो स्वयं होंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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