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Periods leave बिहार सरकार तब से दे रही जब जोमेटो का नाम नहीं था!

    • अनु रॉय
    • Updated: 22 अगस्त, 2020 05:43 PM
  • 22 अगस्त, 2020 05:43 PM
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जोमेटो (Zomato) द्वारा पीरियड के दिनों में छुट्टी (Period Leave) के नाम पर फेमिनिस्ट (Feminist) भले ही अपनी त्योरियां चढ़ा रहे हों लेकिन उन्हें समझना होगा कि ये परंपरा बिहार में बरसों से चल रही है और महिलाओं को अपने मुश्किल दिनों में छुट्टी दी जा रही है.

पीरियड के दिनों में छुट्टी (Period Leave) बिहार सरकार (Bihar Government) तब से दे रही जब इन मल्टीनेशनल कम्पनी (MNC) का नाम भी नहीं था. अभी जब Zomato ने पिरीयड (Period) के दिनों में छुट्टी देने की बात कही और दूसरी मल्टीनेशनल कम्पनी भी इस आइडिया पर काम कर रही है, तो कुछ प्रोग्रेसिव लोग तारीफ़ के पुल बांध रहें हैं तो कुछ फ़ेमिनिस्ट (Feminist ) जम कर इस आइडिया के ख़िलाफ़ बोल रहें हैं. प्रोग्रेसिव लोगों को लग रहा कि पिरीयड के टाइम में इतना दर्द और उसमें काम करना मुश्किल होता है, तो ये अच्छी बात है. वहीं भयंकर फ़ेमिनिस्ट लोगों को लग रहा है कि पिरीयड में छुट्टी मिलने से पेट्रियार्की और बढ़ेगी, औरतों के साथ डिस्क्रिमिनेशन और बढ़ेगा. कम्पनी उनको नौकरी पर रखने से पहले सोचेगी. वर्क प्लेस में मर्द औरतों पर सेक्सिस्ट कॉमेंट करेंगे. तो क्या पिरीयड वाली छुट्टी मिलने से पहले क्या वर्क-प्लेस में डिस्क्रिमिनेशन नहीं होता रहा है?

जोमाटो का पीरियड के दौरान अपने कर्मचारियों को छुट्टी देना नारीवादियों को खूब खटक रहा है

क्या पुरुष एम्प्लॉई की तुलना में किसी भी महिला एम्प्लॉई की सैलरी कम नहीं रही है? आप ग्लोबल जेंडर गैप की रिपोर्ट देख लीजिए भारत 136th नम्बर पर है 144 देशों की सूची में. क्या तब ही पिरीयड पर छुट्टी मिल रहा था क्या? और जिसको सेक्सिस्ट कॉमेंट करना है वो तो किसी भी बात पर कर ही देता है जैसे कोई न्यू ड्रेस पहन तब, बाल नए स्टाइल से बांधों तब, तो क्या इसके लिए वो सब करना औरतें छोड़ दें?

हां, पिरीयड लीव का नाम सिक-लीव कर दें और पुरुष एम्प्लॉई को भी बीमार होने पर छुट्टी मिले जिसके लिए उसकी सैलरी भी न कटे ये एक रास्ता हो सकता है लेकिन पिरीयड के दिनों में छुट्टी मिलनी ही चाहिए. मैं ख़ुद गुज़रती हूं उस दर्द से...

पीरियड के दिनों में छुट्टी (Period Leave) बिहार सरकार (Bihar Government) तब से दे रही जब इन मल्टीनेशनल कम्पनी (MNC) का नाम भी नहीं था. अभी जब Zomato ने पिरीयड (Period) के दिनों में छुट्टी देने की बात कही और दूसरी मल्टीनेशनल कम्पनी भी इस आइडिया पर काम कर रही है, तो कुछ प्रोग्रेसिव लोग तारीफ़ के पुल बांध रहें हैं तो कुछ फ़ेमिनिस्ट (Feminist ) जम कर इस आइडिया के ख़िलाफ़ बोल रहें हैं. प्रोग्रेसिव लोगों को लग रहा कि पिरीयड के टाइम में इतना दर्द और उसमें काम करना मुश्किल होता है, तो ये अच्छी बात है. वहीं भयंकर फ़ेमिनिस्ट लोगों को लग रहा है कि पिरीयड में छुट्टी मिलने से पेट्रियार्की और बढ़ेगी, औरतों के साथ डिस्क्रिमिनेशन और बढ़ेगा. कम्पनी उनको नौकरी पर रखने से पहले सोचेगी. वर्क प्लेस में मर्द औरतों पर सेक्सिस्ट कॉमेंट करेंगे. तो क्या पिरीयड वाली छुट्टी मिलने से पहले क्या वर्क-प्लेस में डिस्क्रिमिनेशन नहीं होता रहा है?

जोमाटो का पीरियड के दौरान अपने कर्मचारियों को छुट्टी देना नारीवादियों को खूब खटक रहा है

क्या पुरुष एम्प्लॉई की तुलना में किसी भी महिला एम्प्लॉई की सैलरी कम नहीं रही है? आप ग्लोबल जेंडर गैप की रिपोर्ट देख लीजिए भारत 136th नम्बर पर है 144 देशों की सूची में. क्या तब ही पिरीयड पर छुट्टी मिल रहा था क्या? और जिसको सेक्सिस्ट कॉमेंट करना है वो तो किसी भी बात पर कर ही देता है जैसे कोई न्यू ड्रेस पहन तब, बाल नए स्टाइल से बांधों तब, तो क्या इसके लिए वो सब करना औरतें छोड़ दें?

हां, पिरीयड लीव का नाम सिक-लीव कर दें और पुरुष एम्प्लॉई को भी बीमार होने पर छुट्टी मिले जिसके लिए उसकी सैलरी भी न कटे ये एक रास्ता हो सकता है लेकिन पिरीयड के दिनों में छुट्टी मिलनी ही चाहिए. मैं ख़ुद गुज़रती हूं उस दर्द से और मैं फ़ेमिनिस्ट दीदी से सहमति नहीं रखती. डिस्क्रिमिनेशन बहुत सारी वजहों से हो रहा पहले उसे दूर करके के लिए आवाज़ उठाइए न कि एक कम्फ़र्ट मिलने जा रहा उसे भी छीन लें.

वैसे टॉपिक पर अम्मा से डिस्कस कर रही थी अम्मा ने बताया कि बिहार में तो 1992 से ही पिरीयड के लिए छुट्टी देती है बिहार सरकार और मैं नेक्स्ट लेवल पर सर्प्राइज़ हो गयी. अम्मा कही, 'ई कोन बड़का बात है. आइ ई जोमैटो छुट्टी दे रहा है, बिहार में कहिया से छुट्टी मिल रहा है.'

बताइए, हमारा बिहार इस मामले में इतना प्रोग्रेसिव है मुझे पता भी नहीं था. थोड़ा ढूंढा तो पता चला कि 45 साल तक सभी बिहार सरकार की एम्प्लॉई स्त्रियां महीने में दो दिन छुट्टी ले सकती हैं, अपनी मर्ज़ी से. उन्हें किसी को रीज़न बताने की ज़रूरत नहीं है. और इसे बाईलोजीकल-लिव का नाम दिया गया है. है न ये सुंदर बात मेरे बिहार की.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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