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स्वरा जी, हर वक्त वजाइना का नाम लेना फेमिनिज्‍म नहीं..

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 29 जनवरी, 2018 02:31 PM
  • 29 जनवरी, 2018 02:31 PM
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आपकी हर फिल्म के साथ एक मैसेज दिया जाता है और आपकी हर फिल्म में एक अनोखी बात होती है, लेकिन क्या ये जरूरी है कि हर फिल्म के साथ नैतिकता का एक पाठ पढ़ाया ही जाए? हर फिल्म को एक मैसेज देना ही चाहिए?

नमस्ते स्वरा जी,

मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूं. यकीन मानिए आपकी फिल्में और आपकी दमदार एक्टिंग किसी की मोहताज नहीं है. आपके बोल्ड स्टेटमेंट्स की मैं इज्जत करती हूं. आपका हर बात पर स्टैंड लेना भी मुझे पसंद है, लेकिन आपका ओपन लेटर जो आपने अभी संजय लीला भंसाली और पद्मावत के लिए लिखा है उससे इत्तेफाक नहीं रखती हूं.

आपकी हर फिल्म के साथ एक मैसेज दिया जाता है और आपकी हर फिल्म में एक अनोखी बात होती है, लेकिन क्या ये जरूरी है कि हर फिल्म के साथ नैतिकता का एक पाठ पढ़ाया ही जाए? हर फिल्म को एक मैसेज देना ही चाहिए? हर फिल्म के अंत में एक ऐसा कैरेक्टर ही हो जो आम घर से निकल कर आया हो और उसकी जिंदगी की छोटी-छोटी चीजें दिखाई जाएं.

अगर पद्मावत बनी है तो ये उस दौर को दिखाती है जहां वाकई हमारे समाज में ये सब होता था. इसे एक तरह से इतिहास दिखाना ही कहेंगे. अगर फिल्म देवदास में शाहरुख खान मरा था तो उस फिल्म की एंडिंग बदली नहीं जा सकती थी. इस हिसाब से तो आप तब भी यही कहेंगी कि संजय लीला भंसाली ने एक एल्कोहॉल एडिक्ट को ग्लैमराइज किया.

पद्मावती ने शायद ऐसा इसलिए किया ताकि वो 'वजाइना' न बन जाए...

पद्मावती को जौहर करने के लिए किसी ने कहा तो नहीं था. उन्होंने अपने हिसाब से अपनी इच्छा से ये चुना था. उस समय न मैं थी न आप, लेकिन उस समय शायद पद्मावती ने जो किया वही उसके लिए सही होगा.. जरा एक बार सोच कर देखिए अगर वो ऐसा नहीं करती तो क्या खुद वो वजाइना नहीं बन जाती किसी के लिए. वो खुद भी शायद यही सोच रही होगी कि वो एक वजाइना की तरह न बन जाए. क्योंकि उस समय उनकी वजाइना ही वो चीज़ थी जिसे वो देने से डरती थीं.

रेप के बाद भी एक महिला को जीने का हक है उसे सांस लेने का अपने अधिकारों के लिए लड़ने का हक है, बिलकुल सही कह रही हैं आप और...

नमस्ते स्वरा जी,

मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूं. यकीन मानिए आपकी फिल्में और आपकी दमदार एक्टिंग किसी की मोहताज नहीं है. आपके बोल्ड स्टेटमेंट्स की मैं इज्जत करती हूं. आपका हर बात पर स्टैंड लेना भी मुझे पसंद है, लेकिन आपका ओपन लेटर जो आपने अभी संजय लीला भंसाली और पद्मावत के लिए लिखा है उससे इत्तेफाक नहीं रखती हूं.

आपकी हर फिल्म के साथ एक मैसेज दिया जाता है और आपकी हर फिल्म में एक अनोखी बात होती है, लेकिन क्या ये जरूरी है कि हर फिल्म के साथ नैतिकता का एक पाठ पढ़ाया ही जाए? हर फिल्म को एक मैसेज देना ही चाहिए? हर फिल्म के अंत में एक ऐसा कैरेक्टर ही हो जो आम घर से निकल कर आया हो और उसकी जिंदगी की छोटी-छोटी चीजें दिखाई जाएं.

अगर पद्मावत बनी है तो ये उस दौर को दिखाती है जहां वाकई हमारे समाज में ये सब होता था. इसे एक तरह से इतिहास दिखाना ही कहेंगे. अगर फिल्म देवदास में शाहरुख खान मरा था तो उस फिल्म की एंडिंग बदली नहीं जा सकती थी. इस हिसाब से तो आप तब भी यही कहेंगी कि संजय लीला भंसाली ने एक एल्कोहॉल एडिक्ट को ग्लैमराइज किया.

पद्मावती ने शायद ऐसा इसलिए किया ताकि वो 'वजाइना' न बन जाए...

पद्मावती को जौहर करने के लिए किसी ने कहा तो नहीं था. उन्होंने अपने हिसाब से अपनी इच्छा से ये चुना था. उस समय न मैं थी न आप, लेकिन उस समय शायद पद्मावती ने जो किया वही उसके लिए सही होगा.. जरा एक बार सोच कर देखिए अगर वो ऐसा नहीं करती तो क्या खुद वो वजाइना नहीं बन जाती किसी के लिए. वो खुद भी शायद यही सोच रही होगी कि वो एक वजाइना की तरह न बन जाए. क्योंकि उस समय उनकी वजाइना ही वो चीज़ थी जिसे वो देने से डरती थीं.

रेप के बाद भी एक महिला को जीने का हक है उसे सांस लेने का अपने अधिकारों के लिए लड़ने का हक है, बिलकुल सही कह रही हैं आप और मैं भी ये मानती हूं, लेकिन क्या कोई महिला खुद को रेप से बचाने के लिए कुछ मेहनत नहीं कर सकती? उस दौर में मानसिकता जो रही थी उसके हिसाब से पद्मावती या पद्मिनी को यही सही लगा होगा.

यहां भी मैं साफ कर दूं कि जौहर और सति प्रथा का समर्थन नहीं कर रही मैं. मैं सिर्फ उस वक्त की सच्चाई के बारे में बात कर रही हूं. वो दौर ही ऐसा था. उस दौर में मैडम फेमिनिस्ट नहीं हुआ करते थे. फेमिनिज्म पर बातें नहीं हुआ करती थीं.

पद्मावती के 'I' पर भी आपको ऐतराज?

आपने पद्मावती के 'I' के बारे में लिखा और कहा कि भंसाली के 185 करोड़ फंसे हुए थे इसलिए उन्होंने कुछ नहीं कहा. पर जब ये फिल्म पद्मावती थी तब आप इसका सपोर्ट कर रही थीं, अरे मैडम पद्मावती का I भंसाली ने अपने लिए नहीं हटाया है. ये भारत की एक कम्युनिटी के लिए हटाया गया है जिसकी भावनाएं आहत न हो. भले ही उस कम्युनिटी के लोगों को ये बात समझ न आए और वो भारत को ही नुकसान पहुंचाने की सोचें, लेकिन सच्चाई तो यही है न. भंसाली जी ने आपसे फिल्म गुजारिश के सेट पर अपने डायलॉग के बारे में पूछा था तो आप खुश हुई थीं न कि आपकी बात को तवज्जो दी जा रही है. शायद इसी तरह से फिल्म का नाम बदलना किसी की बात को अहमियत देना था.

उस फिल्म का नाम बदला गया ताकि वो बिना किसी को ठेस पहुंचाए सिनेमा घरों में आए, इसलिए नहीं कि वो फेमिनिस्ट फिल्म से नॉन फेमिनिस्ट बन जाए. इस हिसाब से तो रामलीला जब फिल्म बनाई गई थी तब भी उसके नाम बदलने पर आपको आपत्ती करनी चाहिए थी.

आपने इस ट्वीट में कुछ लोगों का विरोध किया जिन्हें इस बात से दिक्कत थी कि आपने वजाइना बोला? मैडम आपने भी तो यही किया न? अपने ओपन लेटर का टाइटल ही आपने ऐसा दिया. हर बात में वजाइना और पेनिस बोलना बोल्डनेस नहीं होता और न ही वो किसी भी हालत में हर बार सही ठहराया जा सकता है.

हां, महिलाओं को रेप के बाद भी जिंदा रहने का हक है. हां, पति के मरने के बाद भी जिंदा रहने का हक है. हां, उन्हें वजाइना से बाहर सोचे जाने का हक है. हां, हिस्ट्री पर फिल्म बनाई गई है और उस प्रथा को दिखाया गया है जो हमारे समाज में एक अभिषाप की तरह थी. हां, 19वीं सदी में अमेरिकी रंगभेद की आंधी को बिना जातिगत भेदभाव के नहीं दिखाया जा सकता है, पर मैडम ये आप नहीं तय कर सकतीं कि किसी को किस बात पर फिल्म बनानी है किसपर नहीं. आपने अनारकली ऑफ आरा को चुना क्योंकि आपको वो सही लगा. शानदार फिल्म थी वो, बेहतरीन अभिनय था आपका. इसी तरह संजय लीला भंसाली को जो सही लगा उसपर उन्होंने फिल्म बनाई.

स्वरा जी, आपको जो सही लगा आपने बोला, मुझे जो सही लगा वो मैंने लिखा .. इसी तरह से भंसाली जी को जो सही सब्जेक्ट लगा उसपर उन्होंने फिल्म बनाई. अंत में बस इतना ही कहूंगी कि मैं इस लेटर से पहले भी आपकी फैन थी और आगे भी रहूंगी.

आपकी फैन...

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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