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I Love U से पहले ये सवाल जरूर पूछ लेना- 'सुनो, तुम किस धर्म के हो?'

    • रणविजय सिंह
    • Updated: 04 फरवरी, 2018 06:01 PM
  • 04 फरवरी, 2018 06:01 PM
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हमारा धर्म हमें इंसान नहीं हैवान बना रहा है. हर धर्म में प्यार करने को सबसे अच्छा काम मान गया है. ये वो काम है जो इंसानियत के लिए जरूरी है. लेकिन हमने अपने धर्म को नए तरह से लिख दिया है. इसके मुताबिक अब प्यार करना जुर्म है, खास कर किसी और धर्म में प्यार करना तो सबसे बड़ा गुनाह.

'तुम किस धर्म के हो?' ये वो सवाल है जो अब प्यार के इजहार से पहले पूछना जरूरी होगा. अब प्यार को भी धर्म, जाति और समुदाय के हिसाब से बांटा जाएगा. आप हिंदू हैं तो मुसलमान से प्यार करना खतरनाक है. आप मुस्लिम हैं तो हिंदू से प्यार करना लव जिहाद. अगर आपने ये कायदा नहीं माना तो जिस दिल की धड़कने किसी मुसलमान/हिंदू के लिए धड़की थीं, वो बेजान शरीर के एक हिस्से में पड़ी होगी. आपकी भावनाएं जो प्रेम से ओत-प्रोत थीं, उन भावनाओं का चीरहरण आहत भावनाएं करेंगी. ये दौर प्यार का नहीं, सौदे का दौर है. ये दौर इंसानियत का नहीं, हैवानों का दौर है. ये धार्मिक भावनाओं के स्खलन का दौर है.

हम जब पैदा होते हैं तो हमारे साथ कोई धर्म का चोला नहीं होता. न ही कोई निशानी जिसे हम लेकर आए हैं. हम सिर्फ इंसान होते हैं. ये इंसान किसी हिंदू के घर पैदा हुआ तो हिंदू हो गया, किसी मुसलमान के घर पैदा हुआ तो मुस्लिम हो गया. उसी धर्म के नियम कायदे, माने और समझ होते ही ये इंसान हिंदू और मुसलमान हो गया. कहा जाता है कि सभी धर्म इंसान को इंसानियत का रास्ता दिखाते हैं. फिर न जाने क्यों इस दौर में धर्म का साथ जुड़ना भर ही इंसानियत को जमींदोज कर रहा है.

धर्म का चश्मा हमें अंधा कर गया और हमें पता भी न चला

वो कौन सी नई सीख है जो गीता, कुरान और बाईबल में लिखी बातों से बड़ी हो गई? वो क्या वजह है कि एक इंसान-इंसान न होकर सिर्फ धार्मिक बुत बन बैठा है? सोचिए क्या दौर है जब दिल की भावनाओं को भी धर्म के धागे से बांध दिया गया है. मतलब ऐसा कि अगर आपको किसी गैर धर्म के लड़के/लड़की से प्यार हो जाए तो आपकी जान पर बन आए. ऐसा नहीं कि ये पहले नहीं होता था, लेकिन उस वक्त प्यार करने की सजा मौत थी. और अब धर्म से अलग प्यार करने की सजा मौत है. इन दोनों ही मामलों में हम समाज के तौर पर टूट रहे...

'तुम किस धर्म के हो?' ये वो सवाल है जो अब प्यार के इजहार से पहले पूछना जरूरी होगा. अब प्यार को भी धर्म, जाति और समुदाय के हिसाब से बांटा जाएगा. आप हिंदू हैं तो मुसलमान से प्यार करना खतरनाक है. आप मुस्लिम हैं तो हिंदू से प्यार करना लव जिहाद. अगर आपने ये कायदा नहीं माना तो जिस दिल की धड़कने किसी मुसलमान/हिंदू के लिए धड़की थीं, वो बेजान शरीर के एक हिस्से में पड़ी होगी. आपकी भावनाएं जो प्रेम से ओत-प्रोत थीं, उन भावनाओं का चीरहरण आहत भावनाएं करेंगी. ये दौर प्यार का नहीं, सौदे का दौर है. ये दौर इंसानियत का नहीं, हैवानों का दौर है. ये धार्मिक भावनाओं के स्खलन का दौर है.

हम जब पैदा होते हैं तो हमारे साथ कोई धर्म का चोला नहीं होता. न ही कोई निशानी जिसे हम लेकर आए हैं. हम सिर्फ इंसान होते हैं. ये इंसान किसी हिंदू के घर पैदा हुआ तो हिंदू हो गया, किसी मुसलमान के घर पैदा हुआ तो मुस्लिम हो गया. उसी धर्म के नियम कायदे, माने और समझ होते ही ये इंसान हिंदू और मुसलमान हो गया. कहा जाता है कि सभी धर्म इंसान को इंसानियत का रास्ता दिखाते हैं. फिर न जाने क्यों इस दौर में धर्म का साथ जुड़ना भर ही इंसानियत को जमींदोज कर रहा है.

धर्म का चश्मा हमें अंधा कर गया और हमें पता भी न चला

वो कौन सी नई सीख है जो गीता, कुरान और बाईबल में लिखी बातों से बड़ी हो गई? वो क्या वजह है कि एक इंसान-इंसान न होकर सिर्फ धार्मिक बुत बन बैठा है? सोचिए क्या दौर है जब दिल की भावनाओं को भी धर्म के धागे से बांध दिया गया है. मतलब ऐसा कि अगर आपको किसी गैर धर्म के लड़के/लड़की से प्यार हो जाए तो आपकी जान पर बन आए. ऐसा नहीं कि ये पहले नहीं होता था, लेकिन उस वक्त प्यार करने की सजा मौत थी. और अब धर्म से अलग प्यार करने की सजा मौत है. इन दोनों ही मामलों में हम समाज के तौर पर टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं और खात्मे की कगार पर हैं.

आज धर्म के नाम पर कोई शंभू किसी को आग लगा देता है, तो कोई अंकित अपनी जान गवां देता है. और ये धर्मिक उन्माद बढ़ता ही जा रहा है. लोग घरों में बैठे सोच रहे हैं कि समाज को ये क्या हो गया है. हर दिन धर्म के नाम पर लोगों की मौत और फिर उस धर्म के ठेकेदार का रोना-धोना. इन सब के बीच मरती इंसानियत की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता. जब शंभू किसी को जलाता है तो हम मुसलमानों की क्रूर घटनाओं को याद करते हैं और शंभू को जायज ठहराते हैं. जब कोई अंकित मारा जाता है तो फिर हम इसे भी जायज ठहराने में लग जाते हैं.

दरअसल, हमारा धर्म हमें इंसान नहीं हैवान बना रहा है. हर धर्म में प्यार करने को सबसे अच्छा काम मान गया है. ये वो काम है जो इंसानियत के लिए जरूरी है. लेकिन हमने अपने धर्म को नए तरह से लिख दिया है. इस धर्म में अब नई तकरीरें जुड़ी हैं. इन नई तकरीरों के मुताबिक अब प्यार करना जुर्म है, खास कर किसी और धर्म में प्यार करना तो सबसे बड़ा गुनाह. इस नए धर्म का एक, और आखिरी मकसद दूसरे के धर्म को कुचलना है. और इंसान को और बेहतर शैतान बनाने की ओर अग्रसर करना. इस तरह से वो दिन दूर नहीं जब मरते इंसान से हम पूछेंगे- 'तुम किस धर्म के हो?' हमारा हुआ तो बचाने की थोड़ी कोश‍शि होगी, दूसरे धर्म का हुआ तो मारने में हम भी पीछे न रहेंगे.

इस लिए कहता हूं, ये दौर मर रही भावनाओं का दौर है. अब दोस्त धर्म देखकर चुने जाएंगे, प्यार धर्म की नोंक पर होगा. माथे का तिलक और टोपी आपकी पहचान होगी. और चेहरे हरे और भगवा रंग से पुते होंगे. ताकि पहचान हो सके कि कौन हिंदू है और कौन मुसलमान. क्योंकि ये दिल किसी गैर धर्म के लिए धड़के, ये अब गुनाह है. तो दोस्त प्यार करने से पहले पूछ जरूर लेना- 'तुम किस धर्म के हो?'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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