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अंकित की हत्या से ज्यादा ख़ौफ़नाक है 'सेलेक्टिव चुप्पी'

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 04 फरवरी, 2018 11:36 AM
  • 04 फरवरी, 2018 11:36 AM
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दिल्ली में 23 साल के युवक अंकित सक्सेना की निर्मम हत्या के बाद उन लोगों की चुप्पी अखरने वाली है. जो मुसलमानों के हिमायती बन उनके लिए हमदर्दी भरी बातें करते थे .

पहले कासगंज का चंदन अब दिल्ली में अंकित सक्सेना की ऑनर किलिंग. कभी तिरंगा निकालने के लिए तो कभी प्यार करने के लिए आये दिन मासूमों की हत्या हो रही है. हमारे सामने, हमारे बीच हो रही इन हत्याओं पर हम ये कहकर बात खत्म कर दे रहे हैं कि "हमारा क्या? या फिर हमसे क्या मतलब. मगर रुकिए, ठहरिये और इस पर गौर करिए. इन हत्याओं का हमसे मतलब है, बिल्कुल मतलब है और हमें इसपर बात करनी भी चाहिए. आइये पहले बात करते हैं अंकित सक्सेना और उसकी मौत पर.

दिल्ली में हुई इस वारदात ने फिर इंसानियत को शर्मसार किया है

23 साल का अंकित एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था, लड़की भी अंकित से उतना ही प्यार करती थी. दोनों ने उज्जवल भविष्य को लेकर शायद सपने भी देखे थे. दोनों का प्यार करना शायद लड़की के पिता को नागवार गुजरा. वजह साफ थी अंकित "हिन्दू" था जबकि लड़की "मुस्लिम" थी जिसके मद्देनजर लड़की के पिता ने लड़के की ऑनर किलिंग कर दी. अब आप ही सोचिये. आज के इस दौर में तमाम तरह की नफरत और गलत फहमियों के कारण जब दोनों समुदाय दो अलग छोर पर हैं, दोनों के बीच खाई है तो क्या ऐसे में प्यार की जगह है? दिल बहलाने को हम कुछ भी जवाब दे सकते हैं मगर हकीकत के आईने में जब इस सवाल को देखें तो शायद इसका बेहतर जवाब "नहीं" ही होगा.

पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि यहां ऑनर किलिंग के नाम पर मुसलामानों द्वारा एक हिन्दू युवक की मौत अपने आप में कई सारे सवालों को जन्म देती है. ये घटना हमें ये बताती है कि आज भी हमारे समाज में एक लड़की को ये अधिकार नहीं है कि वो अपनी पसंद का लड़का चुने और उसे अपना जीवन साथी बनाए. कहा जा सकता है कि यहां लड़की के भाग्य का फैसला उसके पैदा होने के साथ ही उसके मां बाप और रिश्तेदारों द्वारा कर दिया जाता है.

चूंकि अब ये मामला सिर्फ ऑनर किलिंग न होकर हिन्दू...

पहले कासगंज का चंदन अब दिल्ली में अंकित सक्सेना की ऑनर किलिंग. कभी तिरंगा निकालने के लिए तो कभी प्यार करने के लिए आये दिन मासूमों की हत्या हो रही है. हमारे सामने, हमारे बीच हो रही इन हत्याओं पर हम ये कहकर बात खत्म कर दे रहे हैं कि "हमारा क्या? या फिर हमसे क्या मतलब. मगर रुकिए, ठहरिये और इस पर गौर करिए. इन हत्याओं का हमसे मतलब है, बिल्कुल मतलब है और हमें इसपर बात करनी भी चाहिए. आइये पहले बात करते हैं अंकित सक्सेना और उसकी मौत पर.

दिल्ली में हुई इस वारदात ने फिर इंसानियत को शर्मसार किया है

23 साल का अंकित एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था, लड़की भी अंकित से उतना ही प्यार करती थी. दोनों ने उज्जवल भविष्य को लेकर शायद सपने भी देखे थे. दोनों का प्यार करना शायद लड़की के पिता को नागवार गुजरा. वजह साफ थी अंकित "हिन्दू" था जबकि लड़की "मुस्लिम" थी जिसके मद्देनजर लड़की के पिता ने लड़के की ऑनर किलिंग कर दी. अब आप ही सोचिये. आज के इस दौर में तमाम तरह की नफरत और गलत फहमियों के कारण जब दोनों समुदाय दो अलग छोर पर हैं, दोनों के बीच खाई है तो क्या ऐसे में प्यार की जगह है? दिल बहलाने को हम कुछ भी जवाब दे सकते हैं मगर हकीकत के आईने में जब इस सवाल को देखें तो शायद इसका बेहतर जवाब "नहीं" ही होगा.

पूरे दावे के साथ कहा जा सकता है कि यहां ऑनर किलिंग के नाम पर मुसलामानों द्वारा एक हिन्दू युवक की मौत अपने आप में कई सारे सवालों को जन्म देती है. ये घटना हमें ये बताती है कि आज भी हमारे समाज में एक लड़की को ये अधिकार नहीं है कि वो अपनी पसंद का लड़का चुने और उसे अपना जीवन साथी बनाए. कहा जा सकता है कि यहां लड़की के भाग्य का फैसला उसके पैदा होने के साथ ही उसके मां बाप और रिश्तेदारों द्वारा कर दिया जाता है.

चूंकि अब ये मामला सिर्फ ऑनर किलिंग न होकर हिन्दू मुसलमान में बदल गया है. अतः यही कहा जा सकता है कि इस पर उन लोगों का अप्रोच अखरने वाला है. जो एक पक्ष की बात तो रखते हैं मगर दूसरे पक्ष को नकार देते हैं. इसे सीधे शब्दों में कहें तो समाज का वो बुद्धिजीवी वर्ग इस पर खामोश है जो किसी मुसलमान की मौत पर फौरन आंसू बहाकर कोहराम मचा देता था. इस मुद्दे पर उनका भी अप्रोच अखरने वाला है जो अपने को मुसलमानों का हिमायती कहते हैं, इस बड़ी वारदात पर इनकी भी कलम खामोश है ये भी चुप हैं एक हिन्दू युवक की मौत पर.

इस मौत के विरोध में समाज के सभी वर्गों को आगे आना चाहिए

आज समय आ गया है कि, चाहे देश के लिए कुर्बान होने वाला कासगंज का चंदन हो या फिर दिल्ली का अंकित सक्सेना. हमें चुप्पी तोड़ कर हर उस मौत पर सवाल करना चाहिए जो एक निर्दोष की है. यदि आज हम चुप हैं तो यकीन जानिये भविष्य में हमारे सामने और कई चंदन होंगे और कई अंकित होंगे. इसके अलावा हमें उस सिलेक्टिव अप्रोच से भी लड़ना होगा जिसके अनुसार हम रहीम की मौत पर तो खूब आंसू बहाते हैं मगर बात जब राम की होती है तो हमारे आंसुओं को हमारा सिलेक्टिव अप्रोच रोक देता है.

बहरहाल अंकित सक्सेना की मौत इंसानियत पर एक बड़ी क्षति है. लोगों का इस विषय पर गुस्सा होना लाजमी है. सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर अंकित सक्सेना टॉप ट्रेंड में है और वहां लोग एक बेगुनाह की मौत पर जम कर प्रतिक्रिया दे रहे हैं और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की मांग कर रहे हैं.

ट्विटर पर अंकित सक्सेना की हत्या पर लगातार आ रहे ट्वीट्स को देखकर एक बात तो साफ है कि, अब भी हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो धर्म और जाती से इतर अपराध को अपराध मानते हैं. अपराधी चाहे हिन्दू से लेकर मुस्लिम तक किसी भी समुदाय का हो उसे कठोर से कठोर दंड देने की वकालत करते हैं. अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि हमें सिलेक्टिव न होकर हर उस इंसान के लिए आगे आना चाहिए जो निर्दोष है या फिर उसके साथ किसी भी तरह का अन्याय हो रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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