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Freedom Of Speech का सबसे वीभत्स चेहरा तो शायर मुनव्वर राणा निकले!

    • सिद्धार्थ अरोड़ा सहर
    • Updated: 03 नवम्बर, 2020 09:30 PM
  • 03 नवम्बर, 2020 09:30 PM
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एक जाना पहचाना चेहरा होने के बावजूद जिस तरह का बयान शायर मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) ने फ्रांस (France) मामले पर दिया है वो ये साफ़ बताता है कि उन पर कट्टरपंथ बुरी तरह हावी है और उनका असली चेहरा सांप्रदायिक है जो हत्या और सांप्रदायिक हिंसा (सांप्रदायिक हिंसा) का पक्षधर है.

‘अहिंसा परमो धर्मः’ के नारे को जितना अच्छा भारत ने समझा उतना शायद ही किसी ने समझा हो. गीतासार से निकले इस अधूरे श्लोक को गांधी जी की मेहरबानी से बच्चा-बच्चा रट बैठा. इसका असर कुछ यूं आया कि जब कभी आप देखें कि किसी राह चलते बच्चे को कोई ताकतवर आदमी गाली बक दे, धक्का दे दे, पीट दे तो उसकी निरुपमा राय जैसी कॉमन इंडियन मां यही कहती मिलती है कि चलो छोड़ो जो हुआ सो हुआ, हम उनके जैसे नहीं हैं. लड़ाई-झगड़े में क्या रखा है. बात आगे न बढ़ाओ. ये अतिश्योक्ति नहीं है, फैक्ट बता रहा हूं. दिल्ली दंगों के वक्त मेरे एरिया में हल्ला मचा कि मस्जिद से कुछ ऐलान हुआ है और नमाज़ के बाद बड़ी संख्या में ‘भले’ लोग चाकू तलवार लेकर आ रहे हैं, दंगे के बहाने टारगेट दुकानों को लूटना है और लड़कियों को छेड़ना है.

एक जाना पहचाना चेहरा होने के बाद मुनव्वर राणा ने बहुत गैर-जिम्मेदाराना बात की है

आनन-फानन गली खाली खाली की गयी और जिसके घर में जो था, लेकर उतरने लगे कि बंद दुकाने न तोड़ी जाएं. लेकिन मोहल्ले की मम्मियां, ख़ुद मेरी पर्सनल मम्मी भी यही बोलीं, अरे रहने दो, मार-कुटाई में कुछ नहीं रखा. ‘अहिंसा परमो धर्मः’ हालांकि पीसीआर बड़ी संख्या में आ गयीं, साथ ही सीआईएसएफ ने भी बैरिकेड लगा दिया और दंगा रोक लिया, अहिंसा परमो धर्मः चरितार्थ हुआ.

'अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च' 

अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हुई हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है. पहला हिस्सा हमने रटा और दूसरा हिस्सा इस्लाम में रटाया गया, बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी, शायर, नेता, मंत्री या फिल्म स्टार, अगर मुस्लिम है तो फ़्रांस की घटना पर या तो चुप रहा या हत्यारे के पक्ष में ‘लेकिन’ लगा बैठा. सेकुलरिज्म है, यकीनन...

‘अहिंसा परमो धर्मः’ के नारे को जितना अच्छा भारत ने समझा उतना शायद ही किसी ने समझा हो. गीतासार से निकले इस अधूरे श्लोक को गांधी जी की मेहरबानी से बच्चा-बच्चा रट बैठा. इसका असर कुछ यूं आया कि जब कभी आप देखें कि किसी राह चलते बच्चे को कोई ताकतवर आदमी गाली बक दे, धक्का दे दे, पीट दे तो उसकी निरुपमा राय जैसी कॉमन इंडियन मां यही कहती मिलती है कि चलो छोड़ो जो हुआ सो हुआ, हम उनके जैसे नहीं हैं. लड़ाई-झगड़े में क्या रखा है. बात आगे न बढ़ाओ. ये अतिश्योक्ति नहीं है, फैक्ट बता रहा हूं. दिल्ली दंगों के वक्त मेरे एरिया में हल्ला मचा कि मस्जिद से कुछ ऐलान हुआ है और नमाज़ के बाद बड़ी संख्या में ‘भले’ लोग चाकू तलवार लेकर आ रहे हैं, दंगे के बहाने टारगेट दुकानों को लूटना है और लड़कियों को छेड़ना है.

एक जाना पहचाना चेहरा होने के बाद मुनव्वर राणा ने बहुत गैर-जिम्मेदाराना बात की है

आनन-फानन गली खाली खाली की गयी और जिसके घर में जो था, लेकर उतरने लगे कि बंद दुकाने न तोड़ी जाएं. लेकिन मोहल्ले की मम्मियां, ख़ुद मेरी पर्सनल मम्मी भी यही बोलीं, अरे रहने दो, मार-कुटाई में कुछ नहीं रखा. ‘अहिंसा परमो धर्मः’ हालांकि पीसीआर बड़ी संख्या में आ गयीं, साथ ही सीआईएसएफ ने भी बैरिकेड लगा दिया और दंगा रोक लिया, अहिंसा परमो धर्मः चरितार्थ हुआ.

'अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च' 

अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हुई हिंसा भी उसी प्रकार श्रेष्ठ है. पहला हिस्सा हमने रटा और दूसरा हिस्सा इस्लाम में रटाया गया, बड़े से बड़ा बुद्धिजीवी, शायर, नेता, मंत्री या फिल्म स्टार, अगर मुस्लिम है तो फ़्रांस की घटना पर या तो चुप रहा या हत्यारे के पक्ष में ‘लेकिन’ लगा बैठा. सेकुलरिज्म है, यकीनन है पर ठीक वैसे ही है जैसे भूत-प्रेत है, जैसे कम्युनिज्म है, ये है पर आपको दिखाई नहीं देता, इसका अस्तित्व संशय में है लेकिन इसका ज़िक्र चर्चा में हमेशा बना रहेता है. भूत, प्रेत, कम्युनिज्म, सेकुलरिज्म शांतिप्रियता इन सबका ठिकाना चर्चा है. ये शब्द चर्चा से नहीं हटते क्योंकि यहां से निकलने के बाद इनके पास कोई ठिया नहीं बचता.

अज़ीम शायर मुनव्वर इन सब शब्दों के खोखले अर्थों से हमेशा विपरीत रहे हैं, आप ‘पार्टनर’ फिल्म याद कीजिए, उसमें भास्कर दिवाकर चौधरी कहता है कि वो वेजिटेरियन है, लेकिन दिन में, रात में सब चलता है. मुनव्वर उस सीन को देखकर बहुत हंसे थे, उन्होंने उछल के ताली बजाई थी साथ ही डेविड जी से शिकायत भी की थी कि ये रोल तो उनके लिए रिज़र्व रखना था. मुनव्वर भी हर मुद्दे पर बहुत सुघड़ रहते हैं, निष्पक्षता इनके दांतों से टपकती है, कई बार तो ‘चूती’ हुई घुटनों तक पहुंच जाती है तो बिचारे समेट के मुंह  में भर लेते हैं.

बस इस्लाम पर कोई हमला इनको बर्दाश्त नहीं होता, इस्लाम के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की लापरवाही इन्हें पसंद नहीं, न! ये अचानक नॉन-वेजिटेरियन हो जाते हैं! फिर चाहें वो जज हो या मत्री, ये हल्ला-दल्ला करने से भी परहेज़ नहीं करते. मुंडी काटने को लेकर भी इनका स्टैंड बड़ा क्लियर है, इन्हें कार्टून पसंद नहीं, इनका मानना है कि कार्टून तो साले हम ख़ुद हैं, एडिशनल बनाने की क्या ज़रुरत है? काटो मुंडी, एक क्यों दस काटो, ईद की प्रैक्टिस करते रहो.

आईपीएल साल में दो महीने होता है, वर्ल्ड कप चार साल में डेढ़ महीने होता है, पर प्लेयर प्रैक्टिस करना थोड़ी छोड़ते हैं, प्रैक्टिस करते रहो, ‘बकरा’ बदलते रहो. बॉयकाट-वॉयकाट तो डरपोक लोगों के खेल हैं, चोंचले बाजी है, ग़रीब आदमी जिसके पास नेट नहीं है, मोबाइल ही नहीं है, है भी तो मात्र शुरु से छः बच्चों पर है, बाकी बचे आठ बच्चे जो मोबाइल नहीं ख़रीद सकते वो बिचारे ट्वीटर पर क्या खाकर बॉयकाट करेंगे?

अजी हटाओ, ये बॉयकाट ट्रेंड ग़रीब-विरोधी है, चाकू मोबाइल से सस्ता पड़ता है, ईज़ी अवेलेबल है, किसी दिवाली ऑफर की भी ज़रूरत नहीं, कोई चॉइस भी नहीं कि शाओमी का लें या क्सिओमी का (अच्छा दोनों एक ही हैं? हमें नहीं पता हम इतने पढ़े लिखे नहीं) वैसे भी इतनी आबादी है, एक आधी मुंडी उड़ भी गयी तो क्या हुआ, फिर आ जायेगी. यहां `हाथ भले ही कम पड़ जाएं सिर तो कम नहीं पड़ते न?

मैं पूरे होशो-हवास में व्यंग्यात्मक रूप से मुनन्नर नाना जी के साथ हूं, कम से कम वो ख़ुलकर अपनी बात तो कहते हैं, साथ ही ‘धर्म हिंसा तथैव च’ को चरितार्थ करने का आवाहन करते हैं. शाबाश नाना जी, गीता तो बस आपने पढ़ी है, शिवगामी देवी की बहू पर इतना एटीट्यूड अच्छा लगता है, काला चश्मा भी आप पर जचदा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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