• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

मोबाइल और बच्चे एक दूसरे के दोस्त नहीं, दुश्मन हैं!

    • अंकिता जैन
    • Updated: 28 मई, 2020 03:11 PM
  • 28 मई, 2020 03:11 PM
offline
वो मां बाप जो अपने बच्चों को संभालने के लिए मोबाइल (Mobile ) देते हैं वो जाने अनजाने उनका जीवन तबाह कर रहे हैं. साथ ही ये मां बाप अपने बच्चे को अपराधी भी खुद ही बना रहे हैं.

बहुत साल पहले अख़बार में यह ख़बर पढ़ी थी कि एक डॉक्टर के दो छोटे-छोटे बच्चों में लड़ाई हुई और उनमें से एक ने छोटे भाई का चाकू से पेट काट दिया. उससे पूछा गया कि तुमने ऐसा क्यों किया तो उसने कहा कि वह ऑपेरशन कर रहा था. वह बच्चा जिसे चाकू लगा था बच ना सका. यह ख़बर बहुत पुरानी है लेकिन बच्चों द्वारा अनजाने में ही किए जा रहे क्राइम अभी भी होते हैं. अपनी पत्रिका 'रूबरू दुनिया' के लिए मैंने उज्जैन के संप्रेषण गृह (बच्चों की जेल) की संरक्षक का साक्षात्कार किया. उस जेल में कुछ बच्चे 8 से 12 वर्ष के थे जिन्होंने क्रूर अपराध किए थे, जैसे किसी की हत्या, किसी का सर पत्थर से कुचलना, किसी को चाकू मारना, किसी को जलाना. इन बातों पर यकीन कर पाना कठिन था, लेकिन दुर्भाग्य से यह सच था. मुझे इन बच्चों से बात करने की इजाज़त तो नहीं मिली लेकिन उनकी संरक्षक ने बताया कि कई बच्चे संभ्रांत परिवारों के हैं और माता-पिता की उपेक्षा उन्हें यहां तक ले आती है.

पिछले दिनों एक मिलने वाले आए थे उन्होंने बताया कि उनके किसी रिश्तेदार की दो बच्चियों में झगड़ा हुआ. एक ने अपने खिलौने वाले धनुषबाण की नोंक में सुई फंसाकर दूसरी की तरफ चला दी. वह सुई उसकी आंख में लगी. अब महीनों से इलाज चल रहा है. पता नहीं उसकी आंख ठीक हो भी पाएगी या नहीं. अपनी हालिया रेलयात्रा के दौरान एक सहयात्री परिवार मिला. पति-पत्नी साथ में साढ़े तीन साल के दो जुड़वा बच्चे.

मोबाइल हमारे बच्चों के जीवन में केवल परेशानियां पैदा कर रहा है

बेटे थे. उन्हें बोगी में बैठे बमुश्किल पांच मिनिट हुआ होगा और उनकी खुराफातें शुरू हो गईं. कुछ समय बीता और एक ने मां का, एक ने पिता का फ़ोन लिया और अपने पसंदीदा गेम खेलने लगे. वीडियो देखने लगे. फिर कुछ देर बाद जब उनसे मोबाइल ले लिए गए तो वे खेलने लगे. खेल उनका...

बहुत साल पहले अख़बार में यह ख़बर पढ़ी थी कि एक डॉक्टर के दो छोटे-छोटे बच्चों में लड़ाई हुई और उनमें से एक ने छोटे भाई का चाकू से पेट काट दिया. उससे पूछा गया कि तुमने ऐसा क्यों किया तो उसने कहा कि वह ऑपेरशन कर रहा था. वह बच्चा जिसे चाकू लगा था बच ना सका. यह ख़बर बहुत पुरानी है लेकिन बच्चों द्वारा अनजाने में ही किए जा रहे क्राइम अभी भी होते हैं. अपनी पत्रिका 'रूबरू दुनिया' के लिए मैंने उज्जैन के संप्रेषण गृह (बच्चों की जेल) की संरक्षक का साक्षात्कार किया. उस जेल में कुछ बच्चे 8 से 12 वर्ष के थे जिन्होंने क्रूर अपराध किए थे, जैसे किसी की हत्या, किसी का सर पत्थर से कुचलना, किसी को चाकू मारना, किसी को जलाना. इन बातों पर यकीन कर पाना कठिन था, लेकिन दुर्भाग्य से यह सच था. मुझे इन बच्चों से बात करने की इजाज़त तो नहीं मिली लेकिन उनकी संरक्षक ने बताया कि कई बच्चे संभ्रांत परिवारों के हैं और माता-पिता की उपेक्षा उन्हें यहां तक ले आती है.

पिछले दिनों एक मिलने वाले आए थे उन्होंने बताया कि उनके किसी रिश्तेदार की दो बच्चियों में झगड़ा हुआ. एक ने अपने खिलौने वाले धनुषबाण की नोंक में सुई फंसाकर दूसरी की तरफ चला दी. वह सुई उसकी आंख में लगी. अब महीनों से इलाज चल रहा है. पता नहीं उसकी आंख ठीक हो भी पाएगी या नहीं. अपनी हालिया रेलयात्रा के दौरान एक सहयात्री परिवार मिला. पति-पत्नी साथ में साढ़े तीन साल के दो जुड़वा बच्चे.

मोबाइल हमारे बच्चों के जीवन में केवल परेशानियां पैदा कर रहा है

बेटे थे. उन्हें बोगी में बैठे बमुश्किल पांच मिनिट हुआ होगा और उनकी खुराफातें शुरू हो गईं. कुछ समय बीता और एक ने मां का, एक ने पिता का फ़ोन लिया और अपने पसंदीदा गेम खेलने लगे. वीडियो देखने लगे. फिर कुछ देर बाद जब उनसे मोबाइल ले लिए गए तो वे खेलने लगे. खेल उनका ऐसा था कि मेरे साथ बैठा अद्वैत बार-बार मुझे देखता.

वे हाथों से बंदूक बनाकर बोल रहे थे 'मैं तुझे मार डालूंगा', 'मुझसे बचकर रहना', 'मैं बहुत डेंजर हूं', 'मुझसे पंगा मत लेना'. ऐसा करते हुए वे पूरी कोशिश कर रहे थे कि उनके हाव-भाव उनकी बातों से मेल खाएं. सहयात्री और उनके माता-पिता इन बातों को मासूम शरारत समझकर हंस रहे थे. साथ ही एक पुलिस वाला बैठा था उसकी ओर इशारा कर किसी सहयात्री ने कहा उन्हें मारकर दिखाओ.

एक बच्चा गया, उंगली से बंदूक बनाई, धांय-धांय की आवाज़ निकाली और बोला, 'मैं तुझे मार डालूंगा, मैं बहुत डेंजर हूं'. सभी सहयात्री फिर हंस पड़े. किसी ने उसे समझाया कि बेटा ऐसे नहीं करते ग़लत बात होती है तो वह बोला, 'मैं तुझे जूते से मारूंगा'. वह व्यक्ति मुस्कुराकर चला गया और उन बच्चों की ये करिस्तानियां चलती रहीं.

बच्चों की इस तरह की हरक़तों पर उस समय तो हम हंस देते हैं, लेकिन फिर यही प्रवर्तियाँ जब जटिल रूप धारण कर लेती हैं तो रोना पड़ता है. बालमन पर सबसे ज़्यादा प्रभाव 'विज़ुअल' का पड़ता है. मतलब वो जो देखते हैं उससे ही सबसे ज़्यादा सीखते हैं, बजाय सुनकर या समझाकर. इसलिए कहा भी जाता है कि बच्चों के सामने ग़लत हरक़त नहीं करनी चाहिए, वे बड़ों से ही सीखते हैं.

आजकल बच्चों को सिखाने के लिए बड़ों के अलावा मोबाइल भी हैं. उनमें कितने ही ऐसे कार्टून्स और गेम्स हैं जिनमें मार-काट, बंदूक आदि का प्रयोग रहता है. उनमें डायलॉग्स भी हिंसक हो सकते हैं. जो बच्चों के मन पर असर डालते हैं. वे जो देख रहे हैं वही सीख रहे हैं. एक चाइनीज़ कार्टून के लिए कितने ही बच्चे दीवाने पाए. कई ऐसे भी देखने में आए जो उसके मुख्य किरदार के जैसे अपनी पेंट खोलकर खड़े हो जाते.

यह सब आज आपको बाल-क्रीड़ा लग सकती है पर असल में यह बाल-क्रीड़ा नहीं है. यह एक ग़लत शिक्षा है जो बच्चों को ग़लत दिशा दे सकती है. उनके भीतर कहीं न कहीं हिंसक प्रवर्ति को जन्म दे सकती है. यह ज़रूरी है कि बच्चों को जब भी इस तरह की हरक़तें करते देखें उन्हें सही ग़लत समझाएं. ग़लत के नुकसान बताएं और सही के फ़ायदे. उनकी ग़लत हरक़तों पर हंसे नहीं. ज़रूरत पड़ने पर उन्हें डांटें भी.

बच्चा यदि किसी बात के लिए झूठ बोल रहा है तो उसकी बुद्धिमानी मानकर मुस्कुराएं नहीं बल्कि उसके उस छोटे से झूठ पर भी उसे टोकें, समझाएं. आज का छोटा झूठ कल का बड़ा झूठ बन सकता है. ये बच्चे कल आने वाली एक बेहतर दुनिया की उम्मीद हैं, लेकिन वह बेहतरी काफ़ी हद तक हमारी आज की परवरिश पर टिकी है.

ये भी पढ़ें -

Lockdown crime: आम, इंसान, इंसानियत, ईमान, और बेइमान

Coronavirus outbreak: प्रवासी मजदूरों के लिए अच्छी खबर बिहार की मुसीबत बन रही है!

कोरोना वायरस से उपजे हालात पर विपक्ष की मीटिंग का हाल भी तीसरे मोर्चे जैसा है 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲