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ये कौन सी दुनिया है, जहां वर्जिनिटी टेस्ट जैसी बकवास पंचायती है!

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 02 जून, 2016 04:37 PM
  • 02 जून, 2016 04:37 PM
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'किसी लड़की की वर्जिनिटी सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने से भंग होती है', ये वो मिथक है, जिसकी ताजा शिकार महाराष्ट्र के नासिक की एक नवविवाहिता बनी है. जिसे शादी के 48 घंटे के भीतर उसके पति ने तलाक दे दिया.

नासिक में एक पति ने शादी के 48 घंटो के बाद ही अपनी पत्नी को तलाक दे दिया, वो सिर्फ इसलिए क्योंकि सुहागरात पर शारीरिक संबंध बनाते हुए पत्नी को ब्लीडिंग नहीं हुई. इस मामले में चौंकाने वाली बात ये है कि सुहागरात के लिए गांव की पंचायत ने लड़के को सफेद चादर देकर शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहा था, ताकि पत्नी की वर्जिनिटी का टेस्ट हो सके. लेकिन अगली सुबह चादर पर खून के निशान नहीं दिखने पर पंचायत ने तलाक के निर्देश दे दिए. इतना ही नहीं, तलाक के बाद भी लड़की को कई दिनों तक कमरे में बंद करके रखा गया, ताकि वह इसकी शिकायत कहीं और न करे.

मतलब गांव में किसकी पत्नी पवित्र है और किसकी नहीं यह टेस्ट करने का अधिकार पंचायत को है. और यदि उसके मुताबिक वह ‘पवित्र’ नहीं है तो उसकी जिंदगी तय करने का ठेका भी पंचायत का है. हैरानी की बात है कि लोगों ने बेडरूम वाली अपनी निजी जिंदगी में पंचायत को जगह दे रखी है. हां, इन पंचायतों के पास लड़कों की पवित्रता जांचने की कोई तरीका नहीं है. और किसी ने इस बारे में पूछा भी नहीं.

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लड़की पढ़ी लिखी थी और पुलिस फोर्स में भर्ती होने की तैयारी कर रही थी. जाहिर है, उसके लिए बहुत सी शारिरिक गतिविधियों जैसे खेल-कूद या व्यायाम में एक्टिव रहना जरूरी होता है. इन शारीरिक अभ्यासों की वजह से अक्सर लड़कियों की वर्जिनिटी भंग हो जाती है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि लड़की अपवित्र हो गई.

क्या सोचता है समाज-

महिलाओं की हाइमन झिल्ली जिसके टूटने पर हो रही ब्लीडिंग के आधार पर महिला का वर्जिन होना या नहीं होना निर्धारित किया जाता है, वो तो उसी वक्त टूट जाती है जब लड़की साइकल चलाकर स्कूल...

नासिक में एक पति ने शादी के 48 घंटो के बाद ही अपनी पत्नी को तलाक दे दिया, वो सिर्फ इसलिए क्योंकि सुहागरात पर शारीरिक संबंध बनाते हुए पत्नी को ब्लीडिंग नहीं हुई. इस मामले में चौंकाने वाली बात ये है कि सुहागरात के लिए गांव की पंचायत ने लड़के को सफेद चादर देकर शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहा था, ताकि पत्नी की वर्जिनिटी का टेस्ट हो सके. लेकिन अगली सुबह चादर पर खून के निशान नहीं दिखने पर पंचायत ने तलाक के निर्देश दे दिए. इतना ही नहीं, तलाक के बाद भी लड़की को कई दिनों तक कमरे में बंद करके रखा गया, ताकि वह इसकी शिकायत कहीं और न करे.

मतलब गांव में किसकी पत्नी पवित्र है और किसकी नहीं यह टेस्ट करने का अधिकार पंचायत को है. और यदि उसके मुताबिक वह ‘पवित्र’ नहीं है तो उसकी जिंदगी तय करने का ठेका भी पंचायत का है. हैरानी की बात है कि लोगों ने बेडरूम वाली अपनी निजी जिंदगी में पंचायत को जगह दे रखी है. हां, इन पंचायतों के पास लड़कों की पवित्रता जांचने की कोई तरीका नहीं है. और किसी ने इस बारे में पूछा भी नहीं.

ये भी पढ़ें- दाग अच्छे हैं... इसीलिए बाजार में बिक रहा कौमार्य

लड़की पढ़ी लिखी थी और पुलिस फोर्स में भर्ती होने की तैयारी कर रही थी. जाहिर है, उसके लिए बहुत सी शारिरिक गतिविधियों जैसे खेल-कूद या व्यायाम में एक्टिव रहना जरूरी होता है. इन शारीरिक अभ्यासों की वजह से अक्सर लड़कियों की वर्जिनिटी भंग हो जाती है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि लड़की अपवित्र हो गई.

क्या सोचता है समाज-

महिलाओं की हाइमन झिल्ली जिसके टूटने पर हो रही ब्लीडिंग के आधार पर महिला का वर्जिन होना या नहीं होना निर्धारित किया जाता है, वो तो उसी वक्त टूट जाती है जब लड़की साइकल चलाकर स्कूल जाती है, व्यायाम करती है, या खेल-कूद में हिस्सा लेती है, डांस करती है. लेकिन दकियानूसी लोग महिला को एक प्रोडक्ट की तरह मानते हैं, जिस पर वर्जिनिटी की सील का लगा होना उसके फ्रेश या पवित्र होने की गारंटी होता है. वो इस प्रोडक्ट को इसी गारंटी के साथ खरीदना चाहता है. और यूज करने के बाद सिर्फ ये कहकर थ्रो कर देता है कि ये फ्रेश नहीं था. वाह, लड़के तो राम हैं, उन्हें तो सिर्फ सीता ही चलेगी, उससे कम में तो बात ही नहीं बनेगी.

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पढ़े-लिखे भी हैं ऐसी मानसिकता का शिकार-

यहां तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि ये सोच सिर्फ अनपढ़ लोगों के दिमाग में बसती है. हाल ही में खबर आई कि बैंगलुरू के एक साइंटिस्ट ने शादी से पहले अपनी इंजीनियर पत्नी को वर्जिनिटी टेस्ट कराने के लिए मजबूर किया. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए लड़की ने भी टेस्ट दे दिया और पास भी कर लिया. लेकिन शादी के 5 साल के बाद भी साइंटिस्ट ने अपनी पत्नी पर शक करना नहीं छोड़ा. अब लड़की ने पति के खिलाफ केस दर्ज करवाया है.

गावों में तो और भी बुरा है हाल-

गांव-देहातों में तो हालात और भी बुरे हैं, वहां के मामले प्रकाश में नहीं आते. वहां लोग रिवाजों के नाम पर लड़कियों का वर्जिनिटी टेस्ट करते हैं. कुछ तरीके तो समझ से परे हैं. लड़की को पानी में सांस रोककर तब तक रहना होता है, जब तक एक व्यक्ति 100 कदम न चल ले, अगर वो ये करती है तो पवित्र है, वरना अपवित्र. अंगारों पर चलना, जलती हुई सलाख हथेली पर रखने जैसे कई रिवाज समाज ने बना रखे हैं. अगर लड़की इस तरह के परीक्षण में फेल होती है, तो उसे पीटा और प्रताड़ित भी किया जाता है, इसे उस आदमी का नाम बताने पर मजबूर किया जाता है जिसकी वजह से वो अपवित्र हो गई.

 अंगारों पर चलने से अगर पांव जले, तो लड़की को अपवित्र माना जाता है

लड़की का वर्जिन होना जरूरी है, ये बात हमारी जड़ों में पानी की तरह डाली गई है. और पीढ़ियों को सींचा गया है. अब इससे बना पौधा भला कैसे फल देगा. अनपढ़ों को शिक्षित किया भी जा सकता है लेकिन पढ़े-लिखों के दिमाग से इस बात को मिटाना नामुमकिन है. मामला जहां आस्था और रिवाजों से जुड़ जाता है वहां कानून के हाथ भी बहुत छोटे दिखाई देते हैं. जिसका नतीजा ये कि 21वीं सदी में भी यहां सिर्फ सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है. बहरहाल, बाकी मुद्दों की तरह ये भी महिलाओं से जुड़ा एक अहम मुद्दा है जिस पर हमेशा की तरह, बहस जारी ही रहेगी.

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(अपडेट: यह लेख लिखे जाने पर नासिक के मामले में एक प्रगति ये हुई कि दबाव में ही सही, पति ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए पत्नीे को वापस घर ले जाने की बात कही है. लेकिन, इससे उन महिलाओं को न्याय कैसे मिलेगा, जिन्हें पंचायत ने पहले अपने वर्जिनिटी टेस्ट में फेल किया.)

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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