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कॉमन सिविल कोड कानून पर ये 16 सवाल सरकार की मंशा तो नहीं...

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 14 अक्टूबर, 2016 08:13 PM
  • 14 अक्टूबर, 2016 08:13 PM
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कई ऐसे मुद्दे हैं जो हमारी आपकी जिंदगी के लिए बेहद अहम हैं. इन मुद्दों पर कानून धर्म के मुताबिक हैं. अब सावल है कि क्या एक देश में अलग-अलग कानून जरूरी है?

लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने देश की जनता से कॉमन सिविल कोड या यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) पर 16 सवाल किए हैं. इन सवालों को इसलिए दिया गया है क्योंकि सरकार संविधान में दिए दिशा निर्देशों पर चलते हुए देश में सभी नागरिकों के लिए एक सामन आचार संहिता लागू करने की कोशिश करना चाहती है. मतलब साफ है कि मौजूदा सरकार चाहती है कि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में दिए इस निर्देश पर आगे बढ़ते देश में इस कानून को बनाने की कवायद की जाए.

कॉमन सिविल कोड पर पूछे सवाल

भारतीय सविंधान में मौलिक अधिकार वह हैं जिसे दिए जाने की गारंटी संविधान देता है और जिसके हनन पर आप सर्वोच्च अदालत तक का दरवाजा खटखटा सकते हैं. इसके अलावा, राज्य को चलाने के लिए संविधान में कुछ नीति निर्देशक तत्व हैं, जिसपर आजादी के बाद स्पष्ट कानून नहीं बनाया जा सका, लेकिन माना गया कि भविष्य में समाज और राज्य की सहूलियत के लिए इसपर कानून बनाने का प्रयास किया जाए. इन्हीं निर्देशों के चलते अभी तक देश में कई कानून बनाए जा चुके हैं जैसे- शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, इत्यादि. अब सवाल सिविल कोड की और उसके लिए कुछ जरूरी सवाल-

इसे भी पढ़ें: कॉमन सिविल कोड के पक्षधर थे आंबेडकर

सवाल नं 1: क्या आपको पता है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक सभी सरकारों को पूरे देश में सभी नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का प्रयास करने का निर्देश दिया गया है? हां/ नहीं

क्या इस विषय में आपके पास कोई अन्य विकल्प है तो बताएं?

सवाल नं 2: देश में धर्मिक संप्रदायों को कई मामलों पर अपना...

लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने देश की जनता से कॉमन सिविल कोड या यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) पर 16 सवाल किए हैं. इन सवालों को इसलिए दिया गया है क्योंकि सरकार संविधान में दिए दिशा निर्देशों पर चलते हुए देश में सभी नागरिकों के लिए एक सामन आचार संहिता लागू करने की कोशिश करना चाहती है. मतलब साफ है कि मौजूदा सरकार चाहती है कि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में दिए इस निर्देश पर आगे बढ़ते देश में इस कानून को बनाने की कवायद की जाए.

कॉमन सिविल कोड पर पूछे सवाल

भारतीय सविंधान में मौलिक अधिकार वह हैं जिसे दिए जाने की गारंटी संविधान देता है और जिसके हनन पर आप सर्वोच्च अदालत तक का दरवाजा खटखटा सकते हैं. इसके अलावा, राज्य को चलाने के लिए संविधान में कुछ नीति निर्देशक तत्व हैं, जिसपर आजादी के बाद स्पष्ट कानून नहीं बनाया जा सका, लेकिन माना गया कि भविष्य में समाज और राज्य की सहूलियत के लिए इसपर कानून बनाने का प्रयास किया जाए. इन्हीं निर्देशों के चलते अभी तक देश में कई कानून बनाए जा चुके हैं जैसे- शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, इत्यादि. अब सवाल सिविल कोड की और उसके लिए कुछ जरूरी सवाल-

इसे भी पढ़ें: कॉमन सिविल कोड के पक्षधर थे आंबेडकर

सवाल नं 1: क्या आपको पता है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक सभी सरकारों को पूरे देश में सभी नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का प्रयास करने का निर्देश दिया गया है? हां/ नहीं

क्या इस विषय में आपके पास कोई अन्य विकल्प है तो बताएं?

सवाल नं 2: देश में धर्मिक संप्रदायों को कई मामलों पर अपना धार्मिक कानून लागू करने का मौजूदा अधिकार है. यह कानून पुराने, रूढ़ीवादी और महिलाओं के हित में नहीं हैं. क्या आप चाहते हैं कि ऐसे सभी मामलों पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना चाहिए? हां/ नहीं

सवाल नं 3: क्या आपको लगता है कि पुराने और दकियानूसी कानून को हटाते हुए परिवार और समुदाय के लिए आवश्यक कानूनों को संकलित करने से सभी नागरिकों को फायदा होगा? हां/ नहीं

सवाल नं 4: क्या कॉमन सिविल कोड या पारिवारिक धार्मिक मामलों पर कानून को संकलित करने से महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिलेगा? हां/ नहीं

सवाल नं 5: क्या कॉमन सिविल कोड को वैकल्पिक होना चाहिए? हां/ नहीं

सवाल नं 6: क्या इन प्रथाओं पर पाबंदी लगाने की जरूरत है?

महिलाओं का कई शादी करना- हां/नहीं

पुरुषों का कई शादी करना- हां/नहीं

महिला और पुरुष में मैत्री-करार से साथ रहने की प्रथा-

इसे भी पढ़ें: मुस्लिम महिलाओं का आधा धर्म और आधी नागरिकता

 आप भी बताएं क्या जरूरी है महिलाओं को बराबरी का अधिकार देना?

समाज में महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने के लिए क्या जरूरी?

कानून मंत्रालय ने अपने सवालों से जानने की कोशिश की है कि कैसे देश में सभी धर्म और जाति की महिलाओं तक अधिकार पहुंचाने के लिए क्या कदम उठाया जाना चाहिए. गौरतलब है कि चाहे देश में मुस्लिम महिलाओं का शादी और तलाक के मौजूदा कानून से अधिकारों के हनन का मामला हो या हिंदू महिलाओं को संपत्ति जैसे अधिकारों लेने के लिए सशक्त करने की चुनौती. दोनों मामलों में पुराने और दकियानूस रीति-रिवाज बाधक साबित हो रहे हैं और मांग इन्हीं रीति-रिवाजों से पल्ला झाड़ने की है. ये हैं महिलाओं से जुड़े सवाल-

सवाल नं 7: क्या तीन बार तलाक कहने की प्रथा पर पाबंदी लगाना चाहिए- हां/नहीं

सवाल नं 8: क्या हिंदू महिलाओं को संपत्ति का अधिकार लेने के लिए सशक्त करने की जरूरत है क्योंकि रीतियों के मुताबिक परिवार में पुरुषों का संपत्ति पर कब्जा होता है. हां/नहीं

सवाल नं 9: क्या आपको लगता है कि कोर्ट से तलाक लेने के लिए दो साल इंतजार करने का कानून क्रिस्चियन महिलाओं के बराबरी के अधिकार का हनन है? हां/नहीं

सवाल नं 10: क्या आपको लगता है कि शादी के लिए सभी धर्मों में एक समान उम्र का प्रावधान जरूरी है? हां/नहीं

इसे भी पढ़ें: क्यों यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू न होना देश के लिए झटका है?

सवाल नं 11: क्या आपको लगता है कि तलाक लेने के लिए सभी धर्मों में शर्त एक जैसी होनी चाहिए? हां/नहीं

सवाल नं 12: क्या आपको लगता है कि कॉमन सिविल कोड से तलाक लेने वाली महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता लेने की समस्या हल हो सकती है? हां/नहीं

सवाल नं 13: शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बनाने के लिए क्या कदम उठाना  जाना चाहिए?

सवाल नं 14: उन शादी-शुदा जोडों की मदद करने के लिए क्या प्रावधान होना चाहिए जो दूसरे धर्म और दूसरी जाति के होते हुए विवाह करते हैं?

क्या कॉमन सिविल कोड से मजबूत होगा नागरिक अधिकार?

सावल नं 15: क्या कॉमन सिविल कोड से नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होगा? हां/नहीं

सवाल नं 16: देश में रीति रिवाजों और निजी कानूनों को संकलित करने की जरूरत के लिए नागरिकों को कैसे शिक्षित किया जाए?

इन सवालों के जवाब आप कानून मंत्रालय की वेबसाइट पर दिए ईमेल (1ci-d1a@nic.in) पर मेल अथवा उनके दिए पत पर पत्र के जरिए दे सकते हैं.

यदि इन सवालों पर गौर किया जाए, तो सरकार लोगों के मन के भ्रम को भी दूर करना चाहती है. जैसे कि संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का प्रावधान है या नहीं. यदि प्रश्‍नों के स्वरूप को देखें तो समझ आ जाता है कि सरकार की मंशा इसे लागू करने की है, बस वह लोगों की नब्ज़ टटोलना चाहती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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