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क्यों यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू न होना देश के लिए झटका है?

    • आईचौक
    • Updated: 07 दिसम्बर, 2015 05:18 PM
  • 07 दिसम्बर, 2015 05:18 PM
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दुनिया के कई प्रमुख देश पहले ही अपने यहां यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपना चुके हैं. इसलिए भारत के लिए भी इसे लागू करना जरूरी है. आइए जानें क्यों भारत के लिए जरूरी है समान नागरिक संहिता.

सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश देने संबंधी याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करने के मुद्दे पर निर्णय संसद को लेना और इस मामले में कानूनी स्थिति पहले से ही स्पष्ट है. देश में लंबे समय से यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने को लेकर विवाद रहा है.

जिस देश में कई धर्मों और जातियों के लोग रहते हों और उनकी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं और आस्थाएं हों उनके लिए समान संहिता लागू करना आसान काम नहीं है. लेकिन समान नागरिक संहिता को लागू करने से देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने, वोट बैंक की राजनीति खत्म करने, धार्मिक विवाद कम करने और खासकर महिलाओं की स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी. दुनिया के कई प्रमुख देश पहले ही अपने यहां यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपना चुके हैं. इसलिए भारत के लिए भी इसे लागू करना जरूरी है. आइए जानें क्यों भारत के लिए जरूरी है समान नागरिक संहिताः

एक देश लेकिन कानून अलग-अलगः समान नागरिक संहिता का मतलब देश के सभी धर्मों के लोगों (उनके निजी कानूनों से अलग) के लिए एकसमान कानून लागू करना है. अभी देश में विवाह, संपत्ति, उत्तराधिकार, गोद लेना, गुजारा भत्ता जैसे मामलों में अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग निजी कानून लागू हैं. जैसे हिंदुओं को एक ही विवाह करने का अधिकार है तो वहीं मुस्लिम को उनके शरीया कानून के मुताबिक चार विवाह करने की छूट है. इसी तरह उत्तराधिकर से लेकर तलाक और तलाक के बाद गुजारा भत्ते के मुद्दे पर सभी धर्मों के अलग निजी कानून हैं. समान नागरिक संहिता लागू होने से अलग-अलग कानूनों को खत्म करके सभी धर्मों के लिए एकसमान कानून लागू करने में मदद मिलेगी. इससे निजी कानूनों के नाम पर विभिन्न तरह के भेदभावों, खासकर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों को रोका जा सकेगा.

गोवा में लागू है सिविल कोडः गोवा देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पहले से ही सिविल कोड लागू है. गोवा में सभी धर्मों के लोगों को एक ही...

सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश देने संबंधी याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करने के मुद्दे पर निर्णय संसद को लेना और इस मामले में कानूनी स्थिति पहले से ही स्पष्ट है. देश में लंबे समय से यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने को लेकर विवाद रहा है.

जिस देश में कई धर्मों और जातियों के लोग रहते हों और उनकी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं और आस्थाएं हों उनके लिए समान संहिता लागू करना आसान काम नहीं है. लेकिन समान नागरिक संहिता को लागू करने से देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने, वोट बैंक की राजनीति खत्म करने, धार्मिक विवाद कम करने और खासकर महिलाओं की स्थिति सुधारने में मदद मिलेगी. दुनिया के कई प्रमुख देश पहले ही अपने यहां यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपना चुके हैं. इसलिए भारत के लिए भी इसे लागू करना जरूरी है. आइए जानें क्यों भारत के लिए जरूरी है समान नागरिक संहिताः

एक देश लेकिन कानून अलग-अलगः समान नागरिक संहिता का मतलब देश के सभी धर्मों के लोगों (उनके निजी कानूनों से अलग) के लिए एकसमान कानून लागू करना है. अभी देश में विवाह, संपत्ति, उत्तराधिकार, गोद लेना, गुजारा भत्ता जैसे मामलों में अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग निजी कानून लागू हैं. जैसे हिंदुओं को एक ही विवाह करने का अधिकार है तो वहीं मुस्लिम को उनके शरीया कानून के मुताबिक चार विवाह करने की छूट है. इसी तरह उत्तराधिकर से लेकर तलाक और तलाक के बाद गुजारा भत्ते के मुद्दे पर सभी धर्मों के अलग निजी कानून हैं. समान नागरिक संहिता लागू होने से अलग-अलग कानूनों को खत्म करके सभी धर्मों के लिए एकसमान कानून लागू करने में मदद मिलेगी. इससे निजी कानूनों के नाम पर विभिन्न तरह के भेदभावों, खासकर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों को रोका जा सकेगा.

गोवा में लागू है सिविल कोडः गोवा देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पहले से ही सिविल कोड लागू है. गोवा में सभी धर्मों के लोगों को एक ही कानून के तहत चलना पड़ता है. इसके तहत यहां होने वाले सभी जन्म, शादियां और मृत्यु को दर्ज कराना जरूरी है. साथ ही यहां आय और प्रॉपर्टी में पति-पत्नी और उनके बच्चों को बिना किसी लिंग भेदभाव के समान अधिकार प्राप्त होता है. यहां तक कि वे मुस्लिम भी जिनकी शादियां गोवा में रजिस्टर्ड हैं एक से ज्यादा निकाह नहीं कर सकते और न ही तीन बार तलाक-तलाक बोलकर तलाक दे सकते हैं. तलाक की स्थिति में पति-पत्नी दोनों को आधी-आधी संपत्ति पर हक मिलता है और किसी एक की मृत्यु होने पर पूरी संपत्ति दूसरे के पास चली जाती है. गोवा के उदाहरण से पता चलता है कि इस कानून को पूरे देश में लागू करने से कितनी सारी समस्याएं सुलझ सकती हैं.

देश की एकता और महिलाओं के लिए जरूरीः यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने पर देश को सही मायनों में एकूीकृत राष्ट्र बनाने में मदद मिलेगी. उदाहरण के तौर पर देश में विभन्न खाप पंचायतों द्वारा जारी किए जाने वाले तालिबानी फरमान पर रोक लगेगी, जिससे हर साल सैकड़ों लोग ऑनर किंलिग का शिकार होते हैं. इससे उन मुस्लिम कानूनों पर भी रोक लग सकेगी, जिससे महिलाओं के साथ जबर्दस्त भेदभाव होता है. मुस्लिमों के शरिया कानूनों के आधार पर उन्हें कई विवाह करने, तीन बार तलाक कह देने से तलाक मिल जाने, तलाक के बाद महिलाओं को गुजारा भत्ता न मिलने जैसी समस्याएं नजर आती हैं.

सिविल कोड के लागू होने पर इन कानूनों को खत्म किया जा सकेगा. जिससे निश्चित तौर पर महिलाओं की स्थित सुधरेगी. साथ ही जब देश ही धर्मनिरपेक्ष हैं तो अलग-अलग धार्मिक कानून समाज और लोगों में एक तरह की दूरी ही पैदा करते हैं. इसलिए सिविल कोड के लागू होने से देश की एकता को मजबूत करने में मदद मिलेगी. साथ ही इससे वोट बैंक की राजनीति पर लगाम लग सकेगी और वोट पाने के लिए किसी धर्म विशेष को लाभ पहुंचाने की राजनीतिक कोशिशों पर भी लगाम कसी जा सकेगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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