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कॉमन सिविल कोड के पक्षधर थे आंबेडकर

    • विकास पाठक
    • Updated: 01 दिसम्बर, 2015 05:25 PM
  • 01 दिसम्बर, 2015 05:25 PM
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हालांकि बाबासाहेब आंबेडकर यह कतई नहीं चाहते थे कि यूनीफॉर्म सिविल कोड नागरिकों पर जबरन थोपा जाए.

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने 2 दिसंबर 1948 को संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यूनीफॉर्म सिविल कोड को शामिल करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि भविष्य में राज्य इसे उचित जगह पर रख सकेगी.

हालांकि आंबेडकर ने यह साफ-साफ कहा था कि इस प्रावधान को नागरिकों पर जबरन नहीं थोपा जा सकता क्योंकि मुसलमान को भड़काकर इसे लागू करना महज पागलपन होगा. इससे कुछ दिनों पहले 23 नवंबर, 1948 को कहा था कि भविष्य में संसद इसे उन लोगों के लिए लागू करे जो स्वेच्छा से यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए तैयार हैं.

पिछले कुछ दिनों में आंबेडकर और संविधान पर संसद में बहस देखने को मिली है. इस बहस के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने भाषण में कहा कि यदि आज अंबेडकर हमारे बीच खड़े होकर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने का प्रस्ताव दें, तो सदन के मौजूदा सदस्यों से किस तरह की प्रतिक्रिया मिलती.

संविधान सभा से आंबेडकर ने कहा था- ‘मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह समझ नहीं आता कि धर्म को इतना वृहद अधिकार क्यों दिया जाए कि वह हमारे पूरे जीवन पर अधिपत्य कर ले और यहां तक कि विधायिका को भी उस क्षेत्र में घुसने से रोक सके. आखिर यह स्वतंत्रता हमें किस लिए मिली है? यह स्वतंत्रता हमें इसलिए मिली है कि हम अपने सामाजिक ढांचे को सुधार सकें. यह ढांचा अनेकों विषमताओं, असमानताओं और भेदभावों से बुरी तरह ग्रस्त है और यह सभी हमारे मौलिक अधिकारों के संघर्ष में खड़े हैं.’

हालांकि आंबेडकर ने कहा कि नीति निर्देशक तत्वों में दिए यूनीफॉर्म सिविल कोड का प्रवाधान राज्य को इसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं करता, बस उसे शक्ति देता है कि इस दिशा में आगे बढ़ सके. “इसे लेकर डरने की जरूरत नहीं है... क्योंकि राज्य इस शक्ति का इस्तेमाल ऐसे किसी तरीके से नहीं कर सकता जिसपर देश के मुसलमानों, इसाइयों या अन्य किसी समुदाय को आपत्ति हो” आंबेडकर ने कहा.

कोई भी सरकार अपनी शक्तियों का इस्तेमाल ऐसे तरीके से नहीं कर सकती कि देश का मुस्लिम समुदाय विरोध में खड़ा हो...

बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने 2 दिसंबर 1948 को संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यूनीफॉर्म सिविल कोड को शामिल करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि भविष्य में राज्य इसे उचित जगह पर रख सकेगी.

हालांकि आंबेडकर ने यह साफ-साफ कहा था कि इस प्रावधान को नागरिकों पर जबरन नहीं थोपा जा सकता क्योंकि मुसलमान को भड़काकर इसे लागू करना महज पागलपन होगा. इससे कुछ दिनों पहले 23 नवंबर, 1948 को कहा था कि भविष्य में संसद इसे उन लोगों के लिए लागू करे जो स्वेच्छा से यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए तैयार हैं.

पिछले कुछ दिनों में आंबेडकर और संविधान पर संसद में बहस देखने को मिली है. इस बहस के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने भाषण में कहा कि यदि आज अंबेडकर हमारे बीच खड़े होकर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने का प्रस्ताव दें, तो सदन के मौजूदा सदस्यों से किस तरह की प्रतिक्रिया मिलती.

संविधान सभा से आंबेडकर ने कहा था- ‘मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह समझ नहीं आता कि धर्म को इतना वृहद अधिकार क्यों दिया जाए कि वह हमारे पूरे जीवन पर अधिपत्य कर ले और यहां तक कि विधायिका को भी उस क्षेत्र में घुसने से रोक सके. आखिर यह स्वतंत्रता हमें किस लिए मिली है? यह स्वतंत्रता हमें इसलिए मिली है कि हम अपने सामाजिक ढांचे को सुधार सकें. यह ढांचा अनेकों विषमताओं, असमानताओं और भेदभावों से बुरी तरह ग्रस्त है और यह सभी हमारे मौलिक अधिकारों के संघर्ष में खड़े हैं.’

हालांकि आंबेडकर ने कहा कि नीति निर्देशक तत्वों में दिए यूनीफॉर्म सिविल कोड का प्रवाधान राज्य को इसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं करता, बस उसे शक्ति देता है कि इस दिशा में आगे बढ़ सके. “इसे लेकर डरने की जरूरत नहीं है... क्योंकि राज्य इस शक्ति का इस्तेमाल ऐसे किसी तरीके से नहीं कर सकता जिसपर देश के मुसलमानों, इसाइयों या अन्य किसी समुदाय को आपत्ति हो” आंबेडकर ने कहा.

कोई भी सरकार अपनी शक्तियों का इस्तेमाल ऐसे तरीके से नहीं कर सकती कि देश का मुस्लिम समुदाय विरोध में खड़ा हो जाए. मेरी समझ से कोई पागल सरकार ही ऐसा कुछ करने की कोशिश करेगी.

इसके बावजूद 23 नवंबर, 1948 को आंबेडकर ने कुछ मुसलमान सदस्यों के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि नीति निर्देशक में इस प्रावधान का नागरिकों के व्यक्तिगत कानून पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हालांकि उनके प्रस्ताव पर आंबेडकर ने कहा कि भविष्य में यूनीफॉर्म सिविल कोड की दिशा में कोई भी संभावित कदम उन लोगों के लिए उठाया जाएगा जो स्वेच्क्षा से इसके अधीन आना चाहते हैं.

“यह प्रावधान कतई नहीं कहता कि इस कानून के बनने के बाद राज्य अपने सभी नागरिकों पर इस कानून को लागू महज इसलिए करे कि वह उसके नागरिक हैं. यह पूरी तरह से संभव है कि भविष्य में संसद इस कोड को लागू करने की शुरुआत करे और वह महज उन लोगों पर लागू हो जो स्वेच्छा से इसे कबूलने के लिए तैयार हों” आंबेडकर ने कहा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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