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एक ज्वैलर ने बैंकों से कहीं नीरव मोदी वाला बदला तो नहीं लिया?

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 20 जुलाई, 2018 11:51 AM
  • 19 जुलाई, 2018 10:45 PM
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कल्याण ज्वैलर्स भरोसा दिखाना चाहता है, जिसके लिए यह विज्ञापन किया, लेकिन विज्ञापन में तो एक शख्स की ईमानदारी दिखाई गई है, ना कि भरोसा. देखा जाए तो इस विज्ञापन का टॉपिक, थीम और उद्देश्य... सब कुछ बिखरा-बिखरा सा है.

कल्याण ज्वैलर्स के एक विज्ञापन को लेकर बैंक यूनियन नाराज हो गया है. बैंक यूनियन ना सिर्फ कल्याण ज्वैलर्स से नाराज है, बल्कि अमिताभ बच्चन से भी नाराज है, जिन्होंने इस विज्ञापन में एक बूढ़े व्यक्ति का किरदार निभाया है. अगर इस विज्ञापन को देखें तो एक सबसे बड़ा सवाल मन में ये उठता है कि आखिर भरोसा दिखाने के लिए कल्याण ज्वैलर्स ने बैंक को ही क्यों चुना? कहीं ऐसा तो नहीं कि कल्याण ज्वैलर्स नीरव मोदी का बदला ले रहा है? बैंक यूनियन का मानना है कि इस विज्ञापन ने बैंकिंग सिस्टम की छवि खराब की है. आज के जमाने में जब बैंकिंग करना बेहद आसान हो चुका है, लोग बैंक जाते ही बहुत कम हैं, क्योंकि अधिकतर काम ऑनलाइन या एटीएम से ही हो जाते हैं, ऐसे में कल्याण ज्वैलर्स का बैंकिंग की थीम को चुनना थोड़ा अजीब लगता है.

एक विज्ञापन, जिसमें सब गलत है

कल्याण ज्वैलर्स ने विज्ञापन बनाने के लिए बैंकिंग सिस्टम का मुद्दा चुना क्यों, मेरी तो यही समझ नहीं आया. कल्याण ज्वैलर्स भरोसा दिखाना चाहता है, जिसके लिए यह विज्ञापन किया, लेकिन विज्ञापन में तो एक शख्स की ईमानदारी दिखाई गई है. बजाए इसके, अगर वो कल्याण ज्वैलर्स के ही किसी शोरूम को विज्ञापन में दिखाते और भरोसे की बात करते तो कहीं बेहतर होता. यानी, इस विज्ञापन का टॉपिक, थीम और उद्देश्य... सब कुछ बिखरा-बिखरा सा है. कल्याण ज्वैलर्स कहता है- भरोसा ही सब कुछ है. आखिर बैंक को पेंशन वापस कर देने से किसी को भरोसे का मतलब कैसे समझ आएगा? ये तो एक शख्स की ईमानदारी दिखाता है. भरोसा तो तब होता जब कल्याण ज्वैलर्स अपनी ज्वैलरी में शुद्धता की गारंटी देते हुए कोई विज्ञापन बनाता. ताकी लोगों को भरोसा होता कि यहां से कुछ खरीदेंगे तो वो अच्छा ही होगा और सही दाम होंगे.

बैंक यूनियन का केस और कल्याण ज्वैलर्स की सफाई

इस विज्ञापन को देखने के...

कल्याण ज्वैलर्स के एक विज्ञापन को लेकर बैंक यूनियन नाराज हो गया है. बैंक यूनियन ना सिर्फ कल्याण ज्वैलर्स से नाराज है, बल्कि अमिताभ बच्चन से भी नाराज है, जिन्होंने इस विज्ञापन में एक बूढ़े व्यक्ति का किरदार निभाया है. अगर इस विज्ञापन को देखें तो एक सबसे बड़ा सवाल मन में ये उठता है कि आखिर भरोसा दिखाने के लिए कल्याण ज्वैलर्स ने बैंक को ही क्यों चुना? कहीं ऐसा तो नहीं कि कल्याण ज्वैलर्स नीरव मोदी का बदला ले रहा है? बैंक यूनियन का मानना है कि इस विज्ञापन ने बैंकिंग सिस्टम की छवि खराब की है. आज के जमाने में जब बैंकिंग करना बेहद आसान हो चुका है, लोग बैंक जाते ही बहुत कम हैं, क्योंकि अधिकतर काम ऑनलाइन या एटीएम से ही हो जाते हैं, ऐसे में कल्याण ज्वैलर्स का बैंकिंग की थीम को चुनना थोड़ा अजीब लगता है.

एक विज्ञापन, जिसमें सब गलत है

कल्याण ज्वैलर्स ने विज्ञापन बनाने के लिए बैंकिंग सिस्टम का मुद्दा चुना क्यों, मेरी तो यही समझ नहीं आया. कल्याण ज्वैलर्स भरोसा दिखाना चाहता है, जिसके लिए यह विज्ञापन किया, लेकिन विज्ञापन में तो एक शख्स की ईमानदारी दिखाई गई है. बजाए इसके, अगर वो कल्याण ज्वैलर्स के ही किसी शोरूम को विज्ञापन में दिखाते और भरोसे की बात करते तो कहीं बेहतर होता. यानी, इस विज्ञापन का टॉपिक, थीम और उद्देश्य... सब कुछ बिखरा-बिखरा सा है. कल्याण ज्वैलर्स कहता है- भरोसा ही सब कुछ है. आखिर बैंक को पेंशन वापस कर देने से किसी को भरोसे का मतलब कैसे समझ आएगा? ये तो एक शख्स की ईमानदारी दिखाता है. भरोसा तो तब होता जब कल्याण ज्वैलर्स अपनी ज्वैलरी में शुद्धता की गारंटी देते हुए कोई विज्ञापन बनाता. ताकी लोगों को भरोसा होता कि यहां से कुछ खरीदेंगे तो वो अच्छा ही होगा और सही दाम होंगे.

बैंक यूनियन का केस और कल्याण ज्वैलर्स की सफाई

इस विज्ञापन को देखने के बाद बैंक यूनियन ने आरोप लगाया है कि कल्याण ज्वैलर्स का मकसद बैंकिंग सिस्टम में अविश्वास पैदा करना है. यूनियन ने तो कल्याण ज्वैलर्स के खिलाफ मुकदमा भी करने की चेतावनी दे दी है. इसके बाद अब कल्याण ज्वैलर्स ने सफाई देते हुए कहा है कि यह विज्ञापन पूरी तरह से काल्पनिक है, जिसका मकसद बैंकिंग कर्मचारियों को ठेस पहुंचाना बिल्कुल नहीं है. इसके लिए कल्याण ज्वैलर्स ने बिना किसी शर्त के स्पष्टीकरण जारी करते हुए भरोसा दिलाया है कि वह तीन दिनों के अंदर विज्ञापन में इसके काल्पनिक होने का स्पष्टीकरण भी शामिल कर देंगे. कल्याण ज्वैलर्स के यूट्यूब चैनल पर इस समय जो विज्ञापन है, उसमें स्पष्टीकरण डाल भी दिया गया है.

बैंक भी कोई दूध के धुले नहीं हैं

ये बात तो सही है कि जिस तरह का विज्ञापन कल्याण ज्वैलर्स ने बनाया है, आज के जमाने में वैसा किसी भी बैंक में नहीं होता है. प्राइवेट से लेकर सरकारी बैंकों तक में सेवाएं काफी बेहतर हैं. लेकिन यहां बताते चलें कि बैंक भी दूध के धुले नहीं हैं. भले ही प्राइवेट बैंक अपनी कमाई बढ़ाने के लिए ग्राहक की भगवान की पूजा करें, लेकिन सरकारी बैंकों में आज भी काम करवाने के लिए कई चक्कर लगाने होते हैं. उदाहरण के लिए, अगर किसी शख्स को लोन लेना है तो उससे ढेर सारे कागज लिए जाएंगे और काम होने में समय भी काफी लगेगा. लोन को मंजूरी देने में सरकारी बैंक अधिक समय लगाते हैं और प्राइवेट बैंक कम. एक ओर नीरव मोदी जैसे लोग हैं जो करोड़ों रुपयों का लोन लेकर फरार हो जाते हैं, दूसरी ओर है आम आदमी, जिसे चंद लाख रुपए का लोन भी चाहिए होता है तो उसे बैंक के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं.

अब बैंक इन तरीकों से करते हैं परेशान

भले ही अब बैंक में लाइन में लगकर लोगों को परेशान नहीं होना पड़ता है, लेकिन बैंक दूसरे तरीकों से अपने ग्राहकों को या यूं कहें की बैंक से अलग हो रहे ग्राहकों को परेशान करते हैं. उदाहरण के लिए क्रेडिट कार्ड को ही ले लें. क्रेडिट कार्ड बेचते समय तो ढेर सारे फोन आते हैं, कार्ड आपके घर तक पहुंच जाता है, लेकिन अगर कोई ग्राहक क्रेडिट कार्ड बंद करवाना चाहता है तो उसे खुद बैंक तक जाकर कार्ड को बंद करने का आवेदन करना होता है. वहीं दूसरी ओर, क्रेडिट कार्ड के किसी डिफॉल्ट को लेकर बैंक जिस एजेंस को रिकवरी का जिम्मा देते हैं, वह तो यूजर के परिवार वालों तक को भला बुरा कहने से नहीं चूकते. धमकियां तक दे देना कोई नई बात नहीं है.

जिस तरह से कल्याण ज्वैलर्स ने बैंकिंग सिस्टम को दिखाते हुए अपनी दुकान चलाने की कोशिश की है वह बेशक किसी की समझ नहीं आएगा. जब इसका विज्ञापन शुरू होता है, तभी से देखने वालों को लगता है कि ये किसी बैंक या इंश्योरेंस कंपनी का विज्ञापन होगा, लेकिन अंत में पता चलता है कि ये तो ज्वैलरी का विज्ञापन है. ज्वैलरी को पेंशन वापस करने और ईमानदारी के उसूल को भरोसे से जोड़ने में कल्याण ज्वैलर्स ने जितनी मेहनत की है, उतनी मेहनत तो ज्वैलरी के किसी विज्ञापन पर कर के अपनी बात आसानी से लोगों तक पहुंचाई जा सकती थी. तब लोग भरोसा भी करते और बैंक यूनियन की गाली भी नहीं खानी पड़ती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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