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375 ग्राम की 'सबसे छोटी बच्ची' के जन्म की खबर सबसे बड़ी खुशी देने वाली है

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 19 जुलाई, 2018 04:42 PM
  • 19 जुलाई, 2018 04:37 PM
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सोचिए 25 हफ्ते की छोटी सी बच्ची जिसका वजन महज 375 ग्राम होगा, वो कितने संघर्षों के बाद जीवित बच पाई होगी. ये तस्वीरें हर किसी को भावविभोर कर देने वाली हैं.

मॉब लिंचिंग, बच्चियों के साथ बलात्कार, गैंगरेप, हिंदू-मुसलमान का झगड़ा, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप, बीजेपी-कांग्रेस, अविश्वास प्रस्ताव...इन तमाम निगेटिव खबरों को एक तरफ रख दीजिए. क्योंकि एक खबर ये है कि सबसे छोटी बच्ची का जन्म हुआ है. सिर्फ 375 ग्राम की. जबकि एक औसत स्वस्थ बच्चा जन्म के समय करीब 2.5 किलो का होता है.

चेरी को दक्षिण एशिया की सबसे छोटी बच्ची कहा जा रहा है. हैदराबाद नें जन्मी यह बच्ची दक्षिण एशिया की सबसे छोटी जीवित प्रीमेच्योर बच्ची है जो सिर्फ 25 हफ्ते ही गर्भ में रही. जबकि सामान्यतः बच्चे मां के गर्भ में 37 से 42 हफ्ते तक रहते हैं.

प्रीमेच्योर यानी समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों को बचाना किसी भी डॉक्टर के लिए सबसे बड़ा चैलेंज होता है. तो जरा सोचिए कि इस बच्ची का जन्म इसके माता-पिता के साथ-साथ डॉक्टरों के लिए भी कितना चैलेंजिंग रहा होगा, क्योंकि ये जब पैदा हुई तो केवल 25 हफ्ते की थी. और उसका वजन मात्र 345 ग्राम था. आप कल्पना नहीं कर सकते कि ये बच्ची तब कैसी दिखाई देती होगी. बच्ची केवल 20 सेमी लंबी थी और पूरी काया एक हथेली में सिमट जाए उतनी. यानी आपके स्मार्टफोन के बराबर.

बच्ची अब एकदम हेल्दी है

हैदराबाद के रेनबो चिल्ड्रन अस्पताल में इसका जन्म अब से करीब 4 महीने पहले यानी 27 फरवरी को हुआ था. तब से पूरा अस्पताल इस नन्ही सी जान को बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए था. क्योंकि एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसे प्रीमेच्योर बच्चों में अक्सर सर्वाइवल रेट केवल 0.5 प्रतिशत होता है और उनके विभिन्न अंगों के फेल होने का खतरा होता है. ऐसे में इस बच्ची को बचा पाना निश्चित ही इस अस्पताल की सबसे बड़ा सफलता कहा जाएगा. और निसंदेह माता-पिता को बहुत सौभाग्यशाली. चैरी के माता-पिता निकिता और सौरभ छत्तीसगढ़ से हैं. और चैरी के होने के पहले...

मॉब लिंचिंग, बच्चियों के साथ बलात्कार, गैंगरेप, हिंदू-मुसलमान का झगड़ा, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप, बीजेपी-कांग्रेस, अविश्वास प्रस्ताव...इन तमाम निगेटिव खबरों को एक तरफ रख दीजिए. क्योंकि एक खबर ये है कि सबसे छोटी बच्ची का जन्म हुआ है. सिर्फ 375 ग्राम की. जबकि एक औसत स्वस्थ बच्चा जन्म के समय करीब 2.5 किलो का होता है.

चेरी को दक्षिण एशिया की सबसे छोटी बच्ची कहा जा रहा है. हैदराबाद नें जन्मी यह बच्ची दक्षिण एशिया की सबसे छोटी जीवित प्रीमेच्योर बच्ची है जो सिर्फ 25 हफ्ते ही गर्भ में रही. जबकि सामान्यतः बच्चे मां के गर्भ में 37 से 42 हफ्ते तक रहते हैं.

प्रीमेच्योर यानी समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों को बचाना किसी भी डॉक्टर के लिए सबसे बड़ा चैलेंज होता है. तो जरा सोचिए कि इस बच्ची का जन्म इसके माता-पिता के साथ-साथ डॉक्टरों के लिए भी कितना चैलेंजिंग रहा होगा, क्योंकि ये जब पैदा हुई तो केवल 25 हफ्ते की थी. और उसका वजन मात्र 345 ग्राम था. आप कल्पना नहीं कर सकते कि ये बच्ची तब कैसी दिखाई देती होगी. बच्ची केवल 20 सेमी लंबी थी और पूरी काया एक हथेली में सिमट जाए उतनी. यानी आपके स्मार्टफोन के बराबर.

बच्ची अब एकदम हेल्दी है

हैदराबाद के रेनबो चिल्ड्रन अस्पताल में इसका जन्म अब से करीब 4 महीने पहले यानी 27 फरवरी को हुआ था. तब से पूरा अस्पताल इस नन्ही सी जान को बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए था. क्योंकि एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसे प्रीमेच्योर बच्चों में अक्सर सर्वाइवल रेट केवल 0.5 प्रतिशत होता है और उनके विभिन्न अंगों के फेल होने का खतरा होता है. ऐसे में इस बच्ची को बचा पाना निश्चित ही इस अस्पताल की सबसे बड़ा सफलता कहा जाएगा. और निसंदेह माता-पिता को बहुत सौभाग्यशाली. चैरी के माता-पिता निकिता और सौरभ छत्तीसगढ़ से हैं. और चैरी के होने के पहले निकिता 4 मिसकैरेज झेल चुकी थीं.

रेनबो अस्पताल ने इस खुशखबरी को बांटने के लिए एख प्रेस कान्फ्रेंस का आयोजन किया और सोशल मीडिया के माध्यम से कहा कि- ये हमारे लिए बड़े गर्व का मौका है. हम दक्षिण एशिया की सबसे छोटी बच्ची का स्वागत करते हैं.'   

इन तस्वीरों के माध्यम से समझिए कि ये बच्ची कितने संघर्षों से लड़कर आज जीवित है

एक हथेली के बराबर बच्ची को बचाने के लिए कितनी मेहनत की गई होगी!

बच्ची के नन्हे नन्हें पांव... जो अब चलना सीखेंगे

वो खुशनसीब पल जब चैरी को उसकी मां-पापा ने अपने सीने से लगाया

अमेरिका की रूमासिया रहमान 1989 में पैदा हुई थीं और 26 हफ्ते की थीं और वजन 260 ग्राम था. सबसे कम वजन के बच्चे का रिकॉर्ड इन्हीं के नाम पर है.

देखिए वीडियो और जानिए चैरी के जीवन की कहानी-

इन तस्वीरों को देखकर अनायास ही मुझे उन छोटी छोटी बच्चियों की याद आती है जो या तो पैदा होने पर मार दी गईं या उन्हें इन दुनिया में लाया ही नहीं गया. वो खबरे विचलित करती हैं. अंदर तक हिला देती हैं कि कैसे कोई निर्दयी इन नन्हीं जानों के साथ इतना क्रूर हो सकता है. लेकिन ऐसी खबरें, जब एक नन्ही जान को बचाने के लिए डॉक्टर अपनी जान लगा देते हैं, ये उसी टूटे दिल पर मरहम रखने का काम करती हैं. अफसोस है कि हम ऐसे देश में पैदा हुए हैं जहां दिल को दहला देने वाली घटनाएं बहुत ज्यादा हैं और ऐसी बहुत कम. लेकिन आज 'चैरी' को जानकर दिल को बड़ा सुकून मिला.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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