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भारत में शर्मिंदगी के बाद एड्स को लेकर गौरव का एक क्षण

    • आलोक रंजन
    • Updated: 01 दिसम्बर, 2016 06:01 PM
  • 01 दिसम्बर, 2016 06:01 PM
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सरकारी आंकडों के अनुसार भारत में 2007 से 2015 की तुलना में एड्स से जुडी मौत में करीब 54 प्रतिशत की कमी आयी है.

1 दिसंबर दुनिया भर में हर साल वर्ल्ड एड्स डे के रूप में मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य है एड्स के प्रति जागरूकता फैलाना ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बीमारी को पूरे विश्व से मिटाने में आगे आएं और अपना पूरा सहयोग दे सकें. दुनिया में इस बीमारी से करीब 3 .5 करोड़ लोग अब तक जान गवां चुके हैं. पहली बार वर्ल्ड एड्स डे 1988 में मनाया गया था. इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिससे इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक और शिक्षित बनाया जा सके.

 भारत में 2000 से लेकर अभी तक नए इन्फेक्शन में करीब 66 प्रतिशत की कमी  देखने को मिली है

साल 2015 के अंत तक पूरे विश्व में 3.6 करोड़ से अधिक लोग एचआईवी से पीड़ित हैं. करीब 18 लाख लोग तो साल 2015 में एचआईवी के चपेट में आए हैं. वर्तमान में अफ्रीका का क्षेत्र इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है.

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एचआईवी इन्फेक्शन का पता कई रैपिड टेस्ट से चलता है. हालांकि एचआईवी का अभी तक कोई निदान नहीं है, फिर भी एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं के माध्यम से एचआईवी वायरस को कण्ट्रोल किया जा सकता हैं और इसके प्रसार को रोका जा सकता हैं. जो लोग एचआईवी से ग्रसित हैं या फिर हायर रिस्क जोन में आते हैं वो भी अपना बाकी जीवन स्वस्थ रह कर जी सकते हैं अगर वो उनको दिए जाने वाले ट्रीटमेंट का पूर्णतया पालन करते हैं. एक अनुमान के अनुसार...

1 दिसंबर दुनिया भर में हर साल वर्ल्ड एड्स डे के रूप में मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य है एड्स के प्रति जागरूकता फैलाना ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बीमारी को पूरे विश्व से मिटाने में आगे आएं और अपना पूरा सहयोग दे सकें. दुनिया में इस बीमारी से करीब 3 .5 करोड़ लोग अब तक जान गवां चुके हैं. पहली बार वर्ल्ड एड्स डे 1988 में मनाया गया था. इस दिन कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिससे इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक और शिक्षित बनाया जा सके.

 भारत में 2000 से लेकर अभी तक नए इन्फेक्शन में करीब 66 प्रतिशत की कमी  देखने को मिली है

साल 2015 के अंत तक पूरे विश्व में 3.6 करोड़ से अधिक लोग एचआईवी से पीड़ित हैं. करीब 18 लाख लोग तो साल 2015 में एचआईवी के चपेट में आए हैं. वर्तमान में अफ्रीका का क्षेत्र इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है.

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एचआईवी इन्फेक्शन का पता कई रैपिड टेस्ट से चलता है. हालांकि एचआईवी का अभी तक कोई निदान नहीं है, फिर भी एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं के माध्यम से एचआईवी वायरस को कण्ट्रोल किया जा सकता हैं और इसके प्रसार को रोका जा सकता हैं. जो लोग एचआईवी से ग्रसित हैं या फिर हायर रिस्क जोन में आते हैं वो भी अपना बाकी जीवन स्वस्थ रह कर जी सकते हैं अगर वो उनको दिए जाने वाले ट्रीटमेंट का पूर्णतया पालन करते हैं. एक अनुमान के अनुसार केवल 60 % एचआईवी इन्फैक्टेड लोगों को उनकी स्थिति का पता चल पाता है.

भारत में एचआईवी की सबसे ज्यादा प्रसार दर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में है. भारत में फिलहाल करीब 12 .2 लाख लोग एचआईवी से ग्रसित हैं और जिन्हें सक्रीय देखभाल की जरुरत है. इसमें से करीब 10 लाख लोग अभी भी एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं में निर्भर हैं.

भारत एचआईवी/एड्स उन्मूलन की दिशा में निरंतर प्रयास कर रहा है. 1992 में भारत में पहला राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था और इसी के तहत राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) की स्थापना की गयी थी. इस कार्यक्रम के तहत एड्स के रोकथाम संबंधी विभिन्न उपायों एवं नीतियों का कार्यान्वयन किया जाता हैं. नाको निरंतर एचआईवी के प्रसार को रोकने में लगा हुआ है. इस बीमारी की रोकथाम के लिए इसके द्वारा किये जा रहे प्रयास काफी सराहनीय हैं.

देश में एचआईवी को को काबू करने में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम को काफी सफलता हासिल हुई हैं. सरकारी आंकडों के अनुसार भारत में 2007 से 2015 की तुलना में एड्स से जुडी मौत में करीब 54 प्रतिशत की कमी आयी है. यूएनएड्स के आंकड़े बताते हैं की भारत में 2000 से लेकर अभी तक करीब 66 प्रतिशत की कमी नए इन्फेक्शन में देखने को मिली है.

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साफ है कि भारत ने एड्स को काबू करने में काफी सफलता पायी है, परंतु अभी भी भारत उस सामाजिक स्टिग्मा से निकल नहीं पाया है जहां एचआईवी के मरीजों से सलूक अच्छा नहीं होता है. एक  सर्वे के अनुसार अभी भी भारत में कई एड्स मरीजों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. एड्स से पीड़ित व्यक्ति को अछूत समझा जाता है और उन्हें सामाजिक भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. स्कूल-कॉलेज से लेकर नौकरी तक उन्हें कई बार जिल्लत झेलनी पड़ती है. समाज को अपना नजरिया बदलने की जरुरत है. अभी भी इससे जुड़े कई मुद्दे है जिन पर ध्यान देने की जरुरत है, जागरूकता बढ़ाने की जरुरत है, स्वस्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और फण्ड को मजबूत और बढ़ाने की जरुरत है और तभी मुमकिन है की पूरे भारत से एचआईवी को जल्द से जल्द खत्म किया जा सके.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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