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आजादी का मतलब खूब समझ में आ गया इस बार...

    • vinaya.singh.77
    • Updated: 17 अगस्त, 2020 07:39 PM
  • 17 अगस्त, 2020 07:39 PM
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भारत (India ) कोरोना (Coronavirus) की मार झेल रहा है ऐसे में इसका सीधा असर स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) पर भी पड़ा है. जो कि हर बार की तरह इस बार फीका फीका था. साफ़ है कि आज़ादी (Freedom) और गुलामी क्या होती है हमें इन बीते 4 महीनों में लॉक डाउन (Lockdown) के दौरान पता चल ही गया है.

इस बार का स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) भले ही हर बार की तुलना में फीका था (मतलब कोरोना (Coronavirus) के चलते इस बार बहुत कम लोगों को इस आयोजन में बुलाया गया था) लेकिन लोगों को एक चीज खूब अच्छे से समझ में आ गयी. सड़कें सूनी थीं, चौराहों पर झंडे बेचने वाले बच्चे भी इस बार कम ही दिखे. आजादी क्या होती है, इसका एहसास पिछले 4 महीने में सबको हो गया. हमारे देश में दो तरह की आबादी है, एक वह जिसे हर चीज आसानी से मुहैया है और दूसरी वह जिसे हर छोटी से छोटी चीज के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है. कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन (Lockdown) में ऐसा पहली बार हुआ जब पहला वर्ग जिसके पास न तो पैसे की कमी थी और न ही उनको किसी भी तरह की परेशानी थी, को भी बाहर निकलने और आजाद (Freedom) घूमने फिरने के लिए तरस कर रह जाना पड़ा. ये अलग बात है कि दूसरे वर्ग को तो ऐसी परेशानियों को झेलना की आदत है इसलिए उनको आजादी से ज्यादा जिन्दा रहने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी.

कोरोना वायरस के चलते इस बार स्वतंत्रता दिवस की भी रंगत फीकी फीकी ही थी

पिछले दस सालों में मनुष्य ने प्रकृति के साथ जितना अत्याचार किया था, उसके बदले में भयानक समस्याएं आनी स्वाभाविक थीं. बदलता मौसम, सूखा, बाढ़ या महामारी जैसी चीजें लगातार हो रही थीं और इंसान बड़े महानगरों जैसे दिल्ली, मुंबई या चेन्नई में सांस लेने और पानी के लिए भी तरसने लगा था. इसके लिए बस एक ही इलाज नजर आ रहा था कि धरती पर बढ़ते हुए प्रदूषण को किसी भी तरह से कम किया जाए, खूब पेड़ लगाए जाएं और हवा में घुलती जहरीली हवा को काबू में किया जाए.

एक सकारात्मक चीज पिछले कुछ सालों में दिखाई पड़ रही थी और वह थी लोगों में पेड़ लगाने के लिए बढ़ती जागरूकता. तमाम संस्थाएं और लोग पेड़ लगाने के लिए आगे आ रहे थे और धीरे धीरे ही सही,...

इस बार का स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) भले ही हर बार की तुलना में फीका था (मतलब कोरोना (Coronavirus) के चलते इस बार बहुत कम लोगों को इस आयोजन में बुलाया गया था) लेकिन लोगों को एक चीज खूब अच्छे से समझ में आ गयी. सड़कें सूनी थीं, चौराहों पर झंडे बेचने वाले बच्चे भी इस बार कम ही दिखे. आजादी क्या होती है, इसका एहसास पिछले 4 महीने में सबको हो गया. हमारे देश में दो तरह की आबादी है, एक वह जिसे हर चीज आसानी से मुहैया है और दूसरी वह जिसे हर छोटी से छोटी चीज के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है. कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन (Lockdown) में ऐसा पहली बार हुआ जब पहला वर्ग जिसके पास न तो पैसे की कमी थी और न ही उनको किसी भी तरह की परेशानी थी, को भी बाहर निकलने और आजाद (Freedom) घूमने फिरने के लिए तरस कर रह जाना पड़ा. ये अलग बात है कि दूसरे वर्ग को तो ऐसी परेशानियों को झेलना की आदत है इसलिए उनको आजादी से ज्यादा जिन्दा रहने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी.

कोरोना वायरस के चलते इस बार स्वतंत्रता दिवस की भी रंगत फीकी फीकी ही थी

पिछले दस सालों में मनुष्य ने प्रकृति के साथ जितना अत्याचार किया था, उसके बदले में भयानक समस्याएं आनी स्वाभाविक थीं. बदलता मौसम, सूखा, बाढ़ या महामारी जैसी चीजें लगातार हो रही थीं और इंसान बड़े महानगरों जैसे दिल्ली, मुंबई या चेन्नई में सांस लेने और पानी के लिए भी तरसने लगा था. इसके लिए बस एक ही इलाज नजर आ रहा था कि धरती पर बढ़ते हुए प्रदूषण को किसी भी तरह से कम किया जाए, खूब पेड़ लगाए जाएं और हवा में घुलती जहरीली हवा को काबू में किया जाए.

एक सकारात्मक चीज पिछले कुछ सालों में दिखाई पड़ रही थी और वह थी लोगों में पेड़ लगाने के लिए बढ़ती जागरूकता. तमाम संस्थाएं और लोग पेड़ लगाने के लिए आगे आ रहे थे और धीरे धीरे ही सही, पेड़ों की संख्या में संतुलन बनाने की तरफ लोग अग्रसर थे. इस मुहीम में सरकारी योगदान की चर्चा बेमानी ही है क्योंकि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने कागज पर इतने पेड़ लगा दिए थे कि उसके बाद अगले कई दशकों में पेड़ लगाने के लिए शायद जगह कम पड़ जाती.

अब शायद प्रकृति को लगा कि पेड़ तो लग रहे हैं लेकिन प्रदूषण का क्या होगा. सड़क पर गाड़ियों की संख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही थी और तमाम कल कारखाने जहरीली हवा वातावरण में छोड़ रहे थे. इसका एक ही तरीका था और वह था कुछ महीनों के लिए यह सब बंद करा देना. अब यह तो नहीं कहा जा सकता है कि प्रकृति ने इस कार्य के लिए ही इस महामारी को जन्म दिया.

लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि इस महामारी के चलते असंभव सा लगता यह कार्य भी हो गया, लगभग पूरी दुनिया कुछ महीनो के लिए ठप्प पड़ गयी और पर्यावरण में हुए नुक्सान की काफी हद तक भरपाई भी हो गयी. इसका एक दर्दनाक पहलू भी है जो हम सबने प्रवासी मजदूरों के पलायन और निम्न मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग के सामने आये भयानक आर्थिक संकट के रूप में देखा.

ये अलग बात है कि इस संकट को दुनिया की कई सरकारों ने बहुत बढ़िया तरीके से संभाला. हमारा देश इस मामले में दुर्भागयशालकी रहा कि लोगों को जो मदद मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल पायी. आम आदमी की मदद के लिए जिम्मेदार विधायक, संसद या मंत्री थे, वे सब (अधिकांश) इस परिदृश्य से इस तरह से गायब हो गए, गोया उनको फिर जनता के बीच आना ही नहीं है. ये अलग बात थी कि कई प्रदेशों में उनकी खरीद फरोख्त खुलेआम चलती रही और उन्होंने जनता के आशाओं पर जमकर कुठाराघात किया.

बहरहाल इस बार जैसा स्वतंत्रता दिवस हमने मनाया, उम्मीद है कि आगे आने वाले वर्षों में वैसा नहीं होगा. लेकिन आजादी क्या होती है, इसका एहसास इस कोरोनाकाल में सबको हो गया. चलिए संकल्प लेते हैं कि आने वाले समय में न सिर्फ हम अपने से कमजोर लोगों का ध्यान रखेंगे, बल्कि अपने वातावरण का भी पूरा ध्यान रखेंगे. आखिर आने वाली पीढ़ी को हमें एक बेहतर, बराबरी वाला समाज और साँसे देकर जाना है, असली आजादी का मतलब तो यही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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