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Hijab Controversy In Karnataka: मर्ज़ी का पर्दा या पुरुष सत्ता की 'मेंटल कंडीशनिंग?'

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 08 फरवरी, 2022 03:41 PM
  • 08 फरवरी, 2022 03:37 PM
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घूंघट या हिजाब - दोनों ही पुरुषसत्ता का हथियार हैं जिसे महिला ही महिला पर इस्तेमाल करती है. बराबरी का दर्जा दिलाने वाली सालों की मेहनत को धार्मिक कट्टरता के पर्दे में अंधेरे में डाल दिया जायेगा. दुःख की बात कि महिलाएं खुद नहीं समझती की उनसे क्या और क्यों करवाया जा रहा है.

हिजाब: यानि एक किस्म का घूंघट जिसका उद्देश्य कपड़ों में शालीनता के साथ साथ ईश्वर के प्रति समर्पण दिखाना भी है, और ये लड़की की मर्ज़ी से पहना जाता है. ये गूगल देव की कई परिभाषाओँ से निकला निचोड़ है. हुआ ये कि, 'कर्नाटक में उडीपी और कोंडापुरा में हिजाब और बुर्का पहन कर आने वाली छात्राओं पर स्कूल ने रोक लगा दी. स्कूल का कहना है की बराबरी, समग्रता और कानून व्यवस्था को बिगड़ने वाले किसी भी किस्म के कपड़े स्कूल में नहीं पहने जा सकते. साथ ही सेक्शन 183 (2) कर्नाटक एजुकेशन एक्ट के तहत हिजाब पर रोक लगा दी गयी है.' इस खबर की ज्वलनशीलता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं की एक स्कूल से दूसरे स्कूल कॉलेज तक हिजाब पहुंच रहा है और साथ ही भगवा दुशाला भी.

जी हां, हिजाब को स्कूल/कॉलेज में पहनने का विरोध दर्ज करने का ये तरीका उनके ही साथियों ने अपनाया है. इस मुद्दे पर फ़िलहाल कर्नाटक हाई कोर्ट आठ तारीख को अपना फैसला देगा.किसी आने वाले तूफान सा यह मुद्दा, उमड़ घुमड़ कर एक प्रदेश की शांति भंग करने का माद्दा रखता है, अगर इसके हर पहलू को सही नज़र से न देखा गया तो! जिस कॉलेज की छात्राएं आज हिजाब पहन रही है वो क्या आज से दो साल पहले भी हिजाब पहनती थी?

कर्नाटक में जारी हिजाब कंट्रोवर्सी ने पूरे सूबे को दो वर्गों में बांट कर रख दिया है

अगर हां तो ये मुद्दा तब सामने क्यों नहीं आया और अगर नहीं तो क्या पिछले 2 सालों में कर्नाटक के लड़के /मर्द इतने नीच हो गए हैं की बेटियों को केवल हिजाब ही एकमात्र सहारा लगा? हिजाब पहनने की कोई उम्र होती है क्या? क्योंकि पांच -छह बरस की बच्चियों को भी सर ढांपे देखा है.

यकीनन न तो वह कपड़े की शालीनता के बारे में समझती है न ईश्वर के प्रति समर्पण और न ही किसी की गंदी नज़र को नापना जानती है और...

हिजाब: यानि एक किस्म का घूंघट जिसका उद्देश्य कपड़ों में शालीनता के साथ साथ ईश्वर के प्रति समर्पण दिखाना भी है, और ये लड़की की मर्ज़ी से पहना जाता है. ये गूगल देव की कई परिभाषाओँ से निकला निचोड़ है. हुआ ये कि, 'कर्नाटक में उडीपी और कोंडापुरा में हिजाब और बुर्का पहन कर आने वाली छात्राओं पर स्कूल ने रोक लगा दी. स्कूल का कहना है की बराबरी, समग्रता और कानून व्यवस्था को बिगड़ने वाले किसी भी किस्म के कपड़े स्कूल में नहीं पहने जा सकते. साथ ही सेक्शन 183 (2) कर्नाटक एजुकेशन एक्ट के तहत हिजाब पर रोक लगा दी गयी है.' इस खबर की ज्वलनशीलता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं की एक स्कूल से दूसरे स्कूल कॉलेज तक हिजाब पहुंच रहा है और साथ ही भगवा दुशाला भी.

जी हां, हिजाब को स्कूल/कॉलेज में पहनने का विरोध दर्ज करने का ये तरीका उनके ही साथियों ने अपनाया है. इस मुद्दे पर फ़िलहाल कर्नाटक हाई कोर्ट आठ तारीख को अपना फैसला देगा.किसी आने वाले तूफान सा यह मुद्दा, उमड़ घुमड़ कर एक प्रदेश की शांति भंग करने का माद्दा रखता है, अगर इसके हर पहलू को सही नज़र से न देखा गया तो! जिस कॉलेज की छात्राएं आज हिजाब पहन रही है वो क्या आज से दो साल पहले भी हिजाब पहनती थी?

कर्नाटक में जारी हिजाब कंट्रोवर्सी ने पूरे सूबे को दो वर्गों में बांट कर रख दिया है

अगर हां तो ये मुद्दा तब सामने क्यों नहीं आया और अगर नहीं तो क्या पिछले 2 सालों में कर्नाटक के लड़के /मर्द इतने नीच हो गए हैं की बेटियों को केवल हिजाब ही एकमात्र सहारा लगा? हिजाब पहनने की कोई उम्र होती है क्या? क्योंकि पांच -छह बरस की बच्चियों को भी सर ढांपे देखा है.

यकीनन न तो वह कपड़े की शालीनता के बारे में समझती है न ईश्वर के प्रति समर्पण और न ही किसी की गंदी नज़र को नापना जानती है और यकीनन यहां उसकी मर्ज़ी का तो सवाल ही नहीं उठता.

वो कौन सी वजह है कि छह साल की बच्ची भी हिजाब पहनाई जाती है?

जॉर्डन के राजा,'शाह अब्दुल्ला द्वितीय' को पैगंबर मुहम्मद की इक्तालीसवीं पीढ़ी माना जाता है. गूगल पर उनकी तस्वीरें देखी जा सकती है. उनकी पत्नी और बेटियों की तस्वीरें आम महिलाओं की तस्वीरें हैं. अगर उन्होंने बदलते समय में पुरातन पिछड़ी परम्पराओं को छोड़ कर जीवन अपनाया तो क्या और कौन है जो भारतीय मुसलमानों को इस पर्दे ने निकलने से डरा रहा है?

मर्ज़ी का पर्दा : पुरुष सत्ता की 'मेंटल कंडीशनिंग

ये समझने में दिमाग की नसों पर सबसे ज़्यादा ज़ोर पड़ता है की एक ही समय में एक ही पीढ़ी की बच्चियां - एक जैसी पढाई ,एक सा समाज ,एक सा फैशन, संगीत फिल्म - सब कुछ एक सा देख कर बढ़ रही है तो क्या है जो उन्हें सर से पैर तक काले नीले कपड़े में ढंक कर रहने को प्रेरित कर रहा है. और मेरा गुनाह माफ़ हो अगर मैं ये भी जानना चाहूं की क्या हिजाब के नीचे भारतीय परम्परागत परिधान ही पहने जाते हैं ? क्या ये दिमाग और रहन सहन पर पर धार्मिक कट्टरता का असर नहीं है?

भारत धर्म निरपेक्ष देश है. किसी धर्म को विशेष सुविधा नहीं होनी चाहिए हालांकि इस परिभाषा से इतर बहुत कुछ सालों साल हुआ. धर्म जाति को राजनीती की सीढ़ी बनाने की कवायद हर धर्म के ठेकेदार ने की. किन्तु अब तक स्कूली शिक्षा को इस कट्टरता से अलग थलग रखा गया था . बचपन और युवा अवस्था के दिनों में सोच के दायरे आसमान छुएं न की किसी पर्दे में बंध कर रहें.

क्या ही वजह है की किसी भी धर्म विशेष से जुडा परिधान बराबरी पर रखे जाने वाले स्कूली परिधान से ऊपर माना जा रहा हैं? और क्या ये सिलसिला अलगाव की खाई नहीं बढ़ा रहा? आज हिजाब और भगवा से स्कूलों में बच्चो के धर्म उजागर होंगे. फिर साथ बैठने के बेंच भी अलग होंगे.

हिजाब के साथ यकीनन पराये लड़को के साथ एक क्लास में बैठना भी मनाही की लिस्ट में होगा तो अफगानिस्तान की तर्ज़ पर बीच में पर्दा लगा दिया जाये इसकी मांग भी हो सकती है. या फिर धर्म के नाम पर अलग स्कूल भी खोले जा सकते हैं. होने को कुछ भी हो सकता है.

इस्लाम धर्म की लड़कियां धर्म के नाम पर सर से पैर तक ढंकी घूम कर जीवन जी रही है तो 'तुम' बाकि हर धर्म की महिला या लड़की क्यों अपनी मर्ज़ी से जिए? सालों साल तक घर की सांकल खोल कर बाहर आने की कवायद को नई पीढ़ी की लड़कियां ही मिटटी में मिला दें? ये कौन सी अफीम है! और दिक्क्त ये कि कोई नज़र नहीं मिला रहा इस समस्या से.

सही को सही और गलत को गलत कहने वाले कम ,तो इस मुद्दे पर चुप्पी गहरी हैं. साल 2010 में फ़्रांस यूरोप का पहला ऐसा देश बना जिसने अपने देश में हिजाब पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. और उसे मानने के अलावा कोई और चुनाव नहीं दिया गया.

धर्म की आज़ादी या पिछड़ेपन में जकड़े रहने की कवायद

अगर घूंघट प्रथा पिछड़ेपन की निशानी और औरतों को समाज में बराबरी पर न रखने के तौर पर विरोध के दायरे में आते हैं तो हिजाब क्यों नहीं? सिर्फ इसलिए की दूसरे धर्म की संवेदनशीलता की मामला है? अगर एक धर्म संवेदनशील तो दूसरे भी तो संवेदनशीलता का पाठ पढ़ रहें हैं. दोनों का देश तो ये आज़ादी एक की क्यों. साइंस कम्पप्यूटर जीव विज्ञानं ,नई दवाइयों और टेक्नोलॉजी सब को छोड़ दीजिये. क्यों न केवल अपने अपने धर्म के पाठ पढ़ाएं हैं

क्या जवाब होगा आपके पास ?

जवाब से बचिए मत. भारतीय समाज अलगाव की उस खाई की और बढ़ रहा है जहां केवल नफरत और हिंसा है. काउंटडाउन शुरू हो चूका है. धर्म को स्कूली शिक्षा में मिला कर एक ऐसा डीकॉशन तैयार होगा जिसका नशा केवल कट्टरता और अलगाव बढ़ाएगा. हो सके तो नींव को धर्मसंगत न बना कर तर्कसंगत बनाएं.

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