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...तो साबित हुआ, महिलाएं बिना पति के ज्यादा खुश रहती हैं

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 28 मई, 2019 10:44 PM
  • 28 मई, 2019 10:44 PM
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जब पति-पत्नी एक साथ होते हैं और उनसे पूछा जाए कि वो कितने खुश हैं तो उनका कहना होता है कि वो बहुत खुश हैं. लेकिन जब पति या पत्नी साथ में नहीं हो तो वो कहते हैं कि 'जिंदगी हराम है'.

अगर आप महिला हैं और शादी करके खुशी-खुशी घर बसाने के सपने देख रही हैं तो एक बार फिर विचार कर लीजिए. कहीं ऐसा न हो कि बाकियों की तरह आपके सपनों पर भी हकीकत हावी हो जाए और वो चूर-चूर हो जाएं. लेकिन हां, अगर आप पुरुष हैं, तो आप ये सपने खुशी खुशी देख सकते हैं.

London School of Economics के behavioural science के प्रोफेसर पॉल डोलन ने महिलाओं की खुशी पर बात करते हुए कहा कि 'शादी पुरुषों के लिए तो फायदेमंद है लेकिन महिलाओं के लिए नहीं. इसलिए महिलाओं को शादी के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि वे बिना पति के ज्यादा खुश रहेंगी.

'विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं':

पॉल डोलन एक happiness एक्सपर्ट हैं. और उनका ये मानना है कि घर बसाने की इच्छा वास्तव में हमारे स्वस्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. हालांकि, यह पुरुषों के लिए बिल्कुल अलग है. क्योंकि शादी से उन्हें फायदा होता है, वो कम रिस्क लेते हैं, पैसा कमते हैं और लंबे समय तक जीते हैं. लेकिन महिलाओं में, खासकर मध्यम आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में अपनी हमउम्र अविवाहित महिलाओं की तुलना में शारीरिक और मानसिक परेशानियां होने का ज्यादा खतरा होता है. इससे वो जल्दी मर भी सकती हैं.

विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं

उन्होंने एक और बड़ी बात कही कि 'आबादी में जो हिस्सा सबसे स्वस्थ और सबसे खुशहाल रहता है वो उन महिलाओं का है जिन्होंने कभी शादी नहीं की और जिनके बच्चे नहीं हैं.' शादीशुदा, कंवारे, तलाकशुदा, विधवा और अलग रहने वाले लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर पॉल डोलन ऐसा कहते हैं. उनका कहना है कि जब पति-पत्नी एक साथ होते हैं और उनसे पूछा जाए कि वो कितने खुश हैं तो उनका कहना होता...

अगर आप महिला हैं और शादी करके खुशी-खुशी घर बसाने के सपने देख रही हैं तो एक बार फिर विचार कर लीजिए. कहीं ऐसा न हो कि बाकियों की तरह आपके सपनों पर भी हकीकत हावी हो जाए और वो चूर-चूर हो जाएं. लेकिन हां, अगर आप पुरुष हैं, तो आप ये सपने खुशी खुशी देख सकते हैं.

London School of Economics के behavioural science के प्रोफेसर पॉल डोलन ने महिलाओं की खुशी पर बात करते हुए कहा कि 'शादी पुरुषों के लिए तो फायदेमंद है लेकिन महिलाओं के लिए नहीं. इसलिए महिलाओं को शादी के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि वे बिना पति के ज्यादा खुश रहेंगी.

'विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं':

पॉल डोलन एक happiness एक्सपर्ट हैं. और उनका ये मानना है कि घर बसाने की इच्छा वास्तव में हमारे स्वस्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. हालांकि, यह पुरुषों के लिए बिल्कुल अलग है. क्योंकि शादी से उन्हें फायदा होता है, वो कम रिस्क लेते हैं, पैसा कमते हैं और लंबे समय तक जीते हैं. लेकिन महिलाओं में, खासकर मध्यम आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में अपनी हमउम्र अविवाहित महिलाओं की तुलना में शारीरिक और मानसिक परेशानियां होने का ज्यादा खतरा होता है. इससे वो जल्दी मर भी सकती हैं.

विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं

उन्होंने एक और बड़ी बात कही कि 'आबादी में जो हिस्सा सबसे स्वस्थ और सबसे खुशहाल रहता है वो उन महिलाओं का है जिन्होंने कभी शादी नहीं की और जिनके बच्चे नहीं हैं.' शादीशुदा, कंवारे, तलाकशुदा, विधवा और अलग रहने वाले लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर पॉल डोलन ऐसा कहते हैं. उनका कहना है कि जब पति-पत्नी एक साथ होते हैं और उनसे पूछा जाए कि वो कितने खुश हैं तो उनका कहना होता है कि वो बहुत खुश हैं. लेकिन जब पति या पत्नी साथ में नहीं हो तो वो कहते हैं कि 'जिंदगी हराम है'.

सही भी तो है, किसी शादीशुदा महिला से पूछिए कि वो कितनी खुश है तो वो आपको बताएगी कि असल में वो क्या झेलती है और कितनी खुश है. हो सकता है कि हम में से बहुत से लोगों को पॉल की ये बातें मजाक या बकवास लगें. लेकिन वास्तविकता तो ये है कि आज लड़कियां शादी नहीं करना चाहतीं. उनका कहना है कि ऐसे ही खुश हैं, शादी करके अपनी परेशानियां क्यों बढ़ाएं.

शादी करना मजबूरी क्यों

सवाल यही उठता है कि आज के युवाओं को ऐसा क्यों लगता है कि शादी करके वो परेशान रहेंगे. ऐसा सोचने वालों में लड़कियां ज्यादा हैं और लड़के कम. क्योंकि हमारा सामाजिक तानाबाना ही इस तरह का रहा है जहां ये माना जाता रहा है कि महिलाओं का काम घर संभालना और बच्चे पैदा करना होता है और पुरुषों का काम घर चलाना और महिलाओं को संरक्षण देना. लेकिन वक्त के साथ महिलाओं और पुरुषों के रोल तो बदलने लगे, लेकिन लोगों की सोच अभी तक नहीं बदल सकी.

आज लड़कियां शादी नहीं करना चाहतीं, उन्हें शादी झंझट लगता है

महिलाएं जब तक समाज के बनाए इन नियमों के हिसाब से चलती रहीं तब तक सब सही था, वो अपने घरों में ढल जातीं और खुशी खुशी यही सब काम करतीं. लेकिन अब जब महिलाएं पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर हो गईं और पुरुषों की ही तरह घर भी चलाने लगीं तो भी उनसे उम्मीदें नहीं बदलीं. उन्हें बाहर जाने और आत्मनिर्भर होने की आजादी तो दे दी गई लेकिन घर संभालने और बच्चों की जिम्मेदारी उन्हीं की है. देखा जाए तो इस तरह से पुरुषों का कुछ नहीं बिगड़ा. नुक्सान में महिलाएं ही रहीं क्योंकि उनपर अब दोहरी मार है. घर, नौकरी बच्चे सब उन्हें ही देखना है. शादी करके दो लोग 'हम' तो बन गए. लेकिन शादी के बाद निभाने वाली जिम्मेदारियां अपनी-अपनी ही रहीं. उन्हें एकसाथ नहीं उठाया जाता. और इसीलिए आज कामकाजी महिलाएं शादी के बाद भी खुश नहीं हैं, स्ट्रेस में जीती हैं.

इनकी तुलना में जो महिलाएं कामकाजी नहीं हैं वो ज्यादा खुश रहती हैं. लेकिन वो भी पूरी तरह से खुश नहीं हैं, उनकी परेशानियों भी कम नहीं. उन्हें आज भी ताने दिए जाते हैं कि दिन भर करती क्या हो. खाने में नमक कम क्यों है, दिनभर मोबाइल पर लगी रहती हो. वगैरह वगैरह. वजह सिर्फ एक, जिम्मेदारियों पर अपनी-अपनी सोच. नतीजा- बढ़ रहे तलाक.

पॉल का ये कहना कि महिलाओं को शादी के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि वे बिना पति के ज्यादा खुश रहेंगी. वो भारत में चर्चा का विषय जरूर हो सकता है लेकिन अमल में नहीं लाया जा सकता. क्योंकि यहां अभी भी यही सोचा जाता है कि महिलाओं का जीवन शादी करके और बच्चे पैदा करके ही पूर्ण होता है. 35 साल की अविवाहित महिला अब भी लोगों की आंखों में खटकती है. लड़की को भले ही पढ़ा लिखा दें लेकिन उसे दूसरे घर विदा करके ही माता-पिता के सिर से बोझ कम होता है.

हम ये नहीं कह सकते कि शादी मत करो. समाज ने शादी जैसी संस्था को बनाया ही इसलिए है दुनिया में व्यवस्था बनी रहे. लेकिन अब लोगों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है. शादी का मतलब घर के लिए एक मैनेजर लाना नहीं है बल्कि हर जिम्मेदारी आपस में बांटना है. पतियों को समझना होगा कि पत्नियों की छोटी-छोटी खुशियां भी मायने रखती हैं. ये हो जाए तो शादी करना मजबूरी नहीं बल्कि वाकई खुशनुमा हो जाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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