• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

दिव्यांग बेटी के लिए पिता ने किया ऐसा काम, आप भी करेंगे सलाम

    • अनुराग तिवारी
    • Updated: 01 नवम्बर, 2017 04:48 PM
  • 01 नवम्बर, 2017 04:48 PM
offline
कोई भी मां-बाप अपने बच्चों को तकलीफ में नही देख सकते, ऐसे में अगर बेटी दिव्यांग हो तो पेरेंट्स की तकलीफ ऐसे भी कई गुना बढ़ जाती है.

ये कहानी एक ऐसे पिता की है जिसने अपनी दिव्यांग बेटी को मुश्किलों में देखा तो उसके लिए खुद ही एक एक्स्सरसाइज इक्विपमेंट डिजाईन कर डाला. कोई भी मां-बाप जब अपने बच्चों को तकलीफ में देखते हैं तो वे खुद परेशान हो उठते हैं. ऐसे में उस पिता के बारे में सोचिए, जो अपनी बेटी को पिछले कई सालों से व्हील-चेयर पर देख रहा हो. बेटी भी ऐसी, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार, उसके जज्बे के लिए रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी हो. बनारस की रहने वाली सुमेधा की जिंदगी पिछले तीन वर्षों से व्हील चेयर तक ही सिमट गयी थी. लेकिन वे अपने मां-बाप के प्रयासों से आज बाहर निकल अपने सपनों को जी रही हैं.

सुमेधा के पिता ब्रिजेश चन्द्र पाठक बताते हैं कि उनकी बेटी पेराप्लेजिक नाम की बीमारी की शिकार हैं. वे जब इंटरमीडिएट में पढ़ रहीं थीं तभी उनकी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हुआ, जिसकी वजह से उनके शरीर के निचले हिस्से के अंगों ने काम करना बंद कर दिया. इसीलिए वे अब खुद से चल फिर नहीं पातीं. सुमेधा को दिन में तीन-चार बार फिजियोथेरेपी करवानी पड़ती है ताकि उनके शरीर के निचले हिस्सों को ताकतवर बनाया जा सके और उन्हें मसल लॉस से बचाया जा सके.

एक विकलांग बेटी के लिए पिता का ये प्रयास सराहनीय  है

फिजियोथेरपिस्ट से डिस्कशन में आईडिया

ब्रिजेश ने बताया कि सुमेधा के फिजियोथेरपिस्ट डॉ विदिश मणि त्रिपाठी वैसे तो लगातार सुमेधा का ध्यान रखते हैं, लेकिन कभी-कभी अपने प्रोफेशनल कमिटमेंट के चलते नहीं आ पाते. ऐसे में डॉ त्रिपाठी ने ब्रिजेश चन्द्र पाठक से चर्चा की. उनका कहना था कि अगर कोई ऐसी डिवाइस हो, जिसे सुमेधा खुद चला सकें तो उनके न आने पर भी एक्सरसाइज कर सके तो उसके लिए आसानी होगी. ब्रिजेश चन्द्र पाठक को भी यह बात जंच गयी और वे अपने बेटी के लिए ऐसी...

ये कहानी एक ऐसे पिता की है जिसने अपनी दिव्यांग बेटी को मुश्किलों में देखा तो उसके लिए खुद ही एक एक्स्सरसाइज इक्विपमेंट डिजाईन कर डाला. कोई भी मां-बाप जब अपने बच्चों को तकलीफ में देखते हैं तो वे खुद परेशान हो उठते हैं. ऐसे में उस पिता के बारे में सोचिए, जो अपनी बेटी को पिछले कई सालों से व्हील-चेयर पर देख रहा हो. बेटी भी ऐसी, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार, उसके जज्बे के लिए रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी हो. बनारस की रहने वाली सुमेधा की जिंदगी पिछले तीन वर्षों से व्हील चेयर तक ही सिमट गयी थी. लेकिन वे अपने मां-बाप के प्रयासों से आज बाहर निकल अपने सपनों को जी रही हैं.

सुमेधा के पिता ब्रिजेश चन्द्र पाठक बताते हैं कि उनकी बेटी पेराप्लेजिक नाम की बीमारी की शिकार हैं. वे जब इंटरमीडिएट में पढ़ रहीं थीं तभी उनकी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हुआ, जिसकी वजह से उनके शरीर के निचले हिस्से के अंगों ने काम करना बंद कर दिया. इसीलिए वे अब खुद से चल फिर नहीं पातीं. सुमेधा को दिन में तीन-चार बार फिजियोथेरेपी करवानी पड़ती है ताकि उनके शरीर के निचले हिस्सों को ताकतवर बनाया जा सके और उन्हें मसल लॉस से बचाया जा सके.

एक विकलांग बेटी के लिए पिता का ये प्रयास सराहनीय  है

फिजियोथेरपिस्ट से डिस्कशन में आईडिया

ब्रिजेश ने बताया कि सुमेधा के फिजियोथेरपिस्ट डॉ विदिश मणि त्रिपाठी वैसे तो लगातार सुमेधा का ध्यान रखते हैं, लेकिन कभी-कभी अपने प्रोफेशनल कमिटमेंट के चलते नहीं आ पाते. ऐसे में डॉ त्रिपाठी ने ब्रिजेश चन्द्र पाठक से चर्चा की. उनका कहना था कि अगर कोई ऐसी डिवाइस हो, जिसे सुमेधा खुद चला सकें तो उनके न आने पर भी एक्सरसाइज कर सके तो उसके लिए आसानी होगी. ब्रिजेश चन्द्र पाठक को भी यह बात जंच गयी और वे अपने बेटी के लिए ऐसी कोई डिवाइस बनाने के बारे में सोचने लगे. 

पिता और डॉक्टर ने मिलकर बनाई ये डिवाइस

ब्रिजेश के दिमाग में एक डिवाइस का खाका तैयार हुआ तो उन्होंने इसके बारे में डॉ त्रिपाठी स उसे डिस्कस किया और इसके बाद इन दोनों मिलकर साइकिल के पार्ट्स खरीदे. इनमे साइकिल की चेन और दो सेट पैडल के थे. इसे एक फ्रेम से जड़कर डिवाइस तैयार की गई.

अपने ही हाथों से पैरों को देती हैं मूवमेंट

इस डिवाइस के बनने के बाद सुमेधा व्हील चेयर पर बैठे-बैठे , बिना किसी की मदद लिए, अपने हाथों से पैरों को मूवमेंट देती हैं. सुमेधा अपनी व्हीलचेयर से इस डिवाइस के पास पहुंच जाती हैं. उनके पैरों को इस डिवाइस के निचले पैडल पर फिक्स कर दिया जाता है. इसके बाद सुमेधा ऊपर लगे पैडल को अपने हाथों से चालती हैं.

इस मशीन से एक पिता ने अपनी बेटी का जीवन आसन बना दिया है

क्यों बनाया ये इक्विपमेंट

ब्रिजेश चन्द्र पाठक बताते हैं कि पेराप्लेजिक पेशेंट्स के साथ उनके लोअर लिम्ब्स में कोई मूवमेंट नहीं होती. इससे धीरे-धीरे उनके लोअर लिम्ब्स की ताकत कम हो जाती है और मसल्स कमजोर पड़ने लगती हैं. इस समस्या से निजत पाने के लिए उन्हें दिन में कई बार फिजियोथेरेपी करवानी पड़ती है, जिसके लिए किसी न किसी को उनके साथ लगना पड़ता है. सुमेधा के साथ भी यही समस्या थी. अब डॉक्टर के न आने पर भी सुमेधा खुद से एक्सरसाइज कर सकती है.

इससे न केवल उनके कमर के नीचे के हिस्सों को ताकत मिलेगी बल्कि हाथ भी मजबूत होंगे. पेराप्लेजिक पेशेंट्स के लिए उनके हाथ ही पैरों का कम करते हैं. वे हाथ के सहारे ही अपने शरीर को मूवमेंट देते हैं. उन्होंने बताया कि यह इक्विपमेंट न केवल दिव्यान्गों के लिए मददगार है बल्कि इस पर गठिया के पेशेंट और बुजुर्ग लोग भी एक्सरसाइज कर सकते है.

मशीन मिलने के बाद अब सुमेधा अपने कई काम खुद करती है

मिल चुका है रानी लक्ष्मीबाई सम्मान

सुमेधा जब पेराप्लेजिक की शिकार हुईं तो उस साल उनका सीबीएसई की बारहवीं का इम्तिहान था, जो बीमारी की वजह से छूट गया. सुमेधा ने 2016 में एक बार फिर सीबीएसई का एग्जाम दिया. और उनके 91.4 फीसदी नंबर आए. वाराणसी क्षेत्र के दिव्य्यांग वर्ग में सबसे ज्यादा नम्बर थे. उनकी इस उपलब्धि के लिए उस समय के सीएम अखिलेश यादव ने उन्हें रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मान भी दिया.

नीचे वीडियो पर क्लिक कर देखें कैसे करती हैं सुमेधा अपने पिता द्वारा बनाए गए इक्विपमेंट पर

करती हैं एंकरिंग

सुमेधा अब न केवल अपने जैसे दिव्यांग बच्चों के लिए काम करना चाहती हैं बल्कि वे खुद अपने आपको एक उदाहरण की तरह प्रस्तुत करती हैं. बीते दिनों उन्होंने बीएचयू के स्वतन्त्रता भवन में आयोजित यंग स्किल्ड इंडिया वर्कशॉप का सफल एंकरिंग भी की.

ये भी पढ़ें -

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला है, या थोपी हुई जिंदगी

विकलांग भी महसूस करते हैं सेक्स की जरूरत

ऑटिज्म को मात दे रहा है, तो पोकेमॉन अच्छा है न !


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲