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ऑटिज्म को मात दे रहा है, तो पोकेमॉन अच्छा है न !

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 30 जुलाई, 2016 04:52 PM
  • 30 जुलाई, 2016 04:52 PM
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पोकेमॉन गो की दीवानगी और साइडइफैक्ट्स की खबरों के बीच एक खबर ऐसी है जो वास्तव में सुखद अहसास देती है. इस बेहद पॉपुलर गेम की बदौलत एक बच्चे की जिंदगी बदल गई है.

पहले पोकेमॉन गो का क्रेज, फिर उससे जुड़े किस्से और उसके बाद इसके साइडइफैक्ट्स की भी खूब चर्चा हुई. लेकिन इन सबके बीच एक खबर ऐसी है जो वास्तव में सुखद अहसास देती है. इस बेहद पॉपुलर गेम के बदौलत एक बच्चे रेल्फी की जिंदगी बदल गई है.

अमेरिका के न्यूयॉर्क में रहने वाले 6 साल के रेल्फी को ऑटिज्म और हाइपरलेक्सिया है. सामाजिक होने में उसे बहुत संघर्ष करना पड़ता है, वो अनजान लोगों से आंख भी नहीं मिलाता. बातचीत करने में उसे दिक्कत महसूस होती है, और अगर उसका रुटीन जरा भी बदले तो वो परेशान हो जाता है. लेकिन जब उसने पहली बार पोकेमॉन खेला तो उसके अंदर कई नए बदलाव दिखाई दिए. पोकेमॉन के रंगबिरंगे वर्चुअल कैरेक्टर्स ने रेल्फी की जिंदगी में भी रंग भर दिए.

 6 साल के रेल्फी को ऑटिज्म है

एक ऐसा बच्चा जो घर में सिर्फ ड्राइंग करके अपना मन बहलाता हो, बाहर जाना जिसे पसंद न हो, जो किसी से बात भी नहीं करता हो, वो अचानक जब लोगों के साथ घुलने मिलने लगे, बात करने लगे तो उसे माता-पिता के लिए इससे सुंदर पल और क्या होगा. इस पल के बारे में बताते हुए रेल्पी की मां की आंखे भर आईं. उन्होंने अपने फेसबुक पर उस लम्हे को उतार दिया, जिसे देखने का सपना हर ऑटिज्म पीडित बच्चे के मां-बाप की आंखों में तैरता रहता है.  

ये भी पढ़ें- ऐसा पोकेमॉन गेम किसी ने अब तक देखा नहीं होगा !

पहले पोकेमॉन गो का क्रेज, फिर उससे जुड़े किस्से और उसके बाद इसके साइडइफैक्ट्स की भी खूब चर्चा हुई. लेकिन इन सबके बीच एक खबर ऐसी है जो वास्तव में सुखद अहसास देती है. इस बेहद पॉपुलर गेम के बदौलत एक बच्चे रेल्फी की जिंदगी बदल गई है.

अमेरिका के न्यूयॉर्क में रहने वाले 6 साल के रेल्फी को ऑटिज्म और हाइपरलेक्सिया है. सामाजिक होने में उसे बहुत संघर्ष करना पड़ता है, वो अनजान लोगों से आंख भी नहीं मिलाता. बातचीत करने में उसे दिक्कत महसूस होती है, और अगर उसका रुटीन जरा भी बदले तो वो परेशान हो जाता है. लेकिन जब उसने पहली बार पोकेमॉन खेला तो उसके अंदर कई नए बदलाव दिखाई दिए. पोकेमॉन के रंगबिरंगे वर्चुअल कैरेक्टर्स ने रेल्फी की जिंदगी में भी रंग भर दिए.

 6 साल के रेल्फी को ऑटिज्म है

एक ऐसा बच्चा जो घर में सिर्फ ड्राइंग करके अपना मन बहलाता हो, बाहर जाना जिसे पसंद न हो, जो किसी से बात भी नहीं करता हो, वो अचानक जब लोगों के साथ घुलने मिलने लगे, बात करने लगे तो उसे माता-पिता के लिए इससे सुंदर पल और क्या होगा. इस पल के बारे में बताते हुए रेल्पी की मां की आंखे भर आईं. उन्होंने अपने फेसबुक पर उस लम्हे को उतार दिया, जिसे देखने का सपना हर ऑटिज्म पीडित बच्चे के मां-बाप की आंखों में तैरता रहता है.  

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 पोकेमॉन लाया रेल्फी के जीवन में बदलाव

रेल्फी की मां लेनोर कॉपलमेन ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा है-

'मैंने आखिरकार रेल्फी को आज रात पोकेमॉन से मिलवा ही दिया. मेरे दोस्तों का सुझाव बिलकुल सही था. ये बहुत शानदार है. एक बेकरी पर जब उसने पहला पोकेमॉन पकड़ा वो उत्साह से चिल्ला रहा था. वो और पोकेमॉन पकड़ने के लिए बाहर दौड़ा. एक छोटे लड़के ने उसे देखा और पहचान गया कि वो क्या कर रहा था. असल में वो दोनों एक ही काम कर रहे थे. उसने रेल्फी से पूछा कि उसने कितने पोकेमॉन पकड़े. रोल्फी ने उसे जवाब तो नहीं दिया बस कहा 'पोकेमॉन !!!'.

खुशी के मारे वो अपनी बाहें फैलाए ऊपर नीचे कूद रहा था, उस छोटे लड़के ने उसे बताया कि उसने अब तक कितने पोकेमॉन पकड़े(100 से ज्यादा) और रेल्फी ने कहा- 'व्आओ!!' और फिर दोनों ने हाई-फाइव किया. मैं तो बस रो ही पड़ी. फिर उसने मेरी पड़ोसी के दरवाजे पर दूसरा पोकेमॉन देखा, उसने उसे भी पकड़ लिया. उसे बहुत मजा आया और वो फिर से कूदने लगा.

ये भी पढ़ें- नौकरी, गर्लफ्रेंड, बीवी छोड़ चल पड़े पोकेमॉन के पीछे...

जब पड़ोसन बाहर आईं तो रेल्फी ने उन्हें इस बारे में बताया भी. तब उन्होंने मैदान की तरफ इशारा करते हुए बताया कि वहां बहुत से लोग पोकेमॉन खेलते हैं. वो वहां जाने की जिद करने लगा. वो कभी रात में खेल के मैदान में जाने के लिए नहीं कहता, क्यों वो उसके रुटीन में है ही नहीं. वैसे वो अपने रुटीन को लेकर बहुत पाबंद है लेकिन आज की रात वो बदलाव के लिए काफी खुश था.

हम सब हैरान थे. बाकी बच्चे भी उसकी तरफ दौड़े और साथ में पोकेमॉन पकड़ने लगे. वो बाकी बच्चों के साथ घुल-मिल रहा था. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं हसूं या रोऊं. वो और भी पोकेमॉन ढ़ूंढना चाहता था. और हम चलते-चलते दूसरे इलाके में पहुंच गए. बड़े लोग भी पोकेमॉन खोज रहे थे, और ये अनजाने लोग उसे सलाह दे रहे थे कि- 'वो वहां कोने में एक है, दोस्त, जाओ और उसे पकड़ लो'. उसने उन लोगों को देखा और कहा- 'थैंक्यू' और हंसता हुआ पोकेमॉन पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा. वाह!!!

  पोकेमॉन ला रहा है व्यवहार में बदलाव

मेरा ऑटिस्टिक बच्चा सामाजिक बन रहा है. वो लोगों से बात कर रहा है. उन्हें देखकर मुस्कुरा रहा है, शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है. व्यवहारिक बोलचाल में हिस्सा ले रहा है, वो भी अनजान लोगों से. उन्हें देख रहा है, उनसे आंखे मिला रहा है, उनके साथ हंस रहा है, सहभागी हो रहा है. ये अद्भुत है! शुक्रिया दोस्त कि तुमने मुझे पोकेमॉन की राय दी, तुम सही थीं और शुक्रिया निनटेंडो!! ये एएसडी(ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर) माओं का ख्वाब है!!!''

ये भी पढ़ें- मां को फिक्र के बदले बच्चों से केवल प्यार चाहिए

ये सिर्फ एक मां की कहानी नहीं, बल्कि पोकेमॉन खेलने वाले उन सभी ऑटिस्टिक बच्चों की कहानी है जिनकी जिंदगी में कुछ ऐसे बदलाव इस गेम को खेलकर आए जो सालों की थेरेपी से भी नहीं आए थे. ऑटिस्टिक बच्चे सामान्य बच्चों की तरह बहुत एक्टिव और सामाजिक नहीं होते, वो अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं. ये उनका स्वाभाव होता है कि वो ज्यादातर चुप रहते हैं, लोगों से कम बात करते हैं, और अनजान लोगों से तो दूर ही रहते हैं. हाय, हैल्लो, बाय या थैंक्यू जैसे व्यवहारिक शब्द भी इस्तेमाल नहीं करते. और इसी वजह से दूसरे बच्चों के साथ घुलने मिलने में असहज महसूस करते हैं. लेकिन पोकेमॉन का एक्साइटमेंट इन खास बच्चों के व्यवहार में बदलाव ला रहा है जो एक बहुत अच्छी बात है. पोकेमॉन इन बच्चों के लिए थैरेपी का काम कर रहा है, बस माता-पिता को इनपर नजर रखनी होगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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