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विकलांग भी महसूस करते हैं सेक्स की जरूरत

    • श्रीमई पियू कुंडू
    • Updated: 07 जुलाई, 2015 10:47 AM
  • 07 जुलाई, 2015 10:47 AM
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2011 में हुए जनगणना के अनुसार भारत में करीब 2.21 प्रतिशत या 2.68 करोड़ लोग विकलांग हैं. इसमें 1.18 करोड़ महिलाएं हैं. हमारे जैसे पुरुष प्रधान समाज में जहां लिंग आधारित भेदभाव हैं.

करीब छह साल पहले की बात है. मैं और मेरा परिवार किसी रिश्तेदार की शादी के लिए कोलकाता जाने की तैयारी कर रहे थे. तभी यह खबर आई कि जिनकी शादी होने वाली थी वे किसी दुर्घटना का शिकार हो गए हैं. अपने टिकट को कैंसल कराने और इस घटना की और जानकारी लेने की कोशिशों के बीच हमें पता चला कि लड़की की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी है. डॉक्टरों के अनुसार उसे अगले कुछ महीने व्हीलचेयर के सहारे गुजारने थे.

हम इस बारे में कुछ और नहीं कर सकते थे. लेकिन फिर भी हमने राहत की सांस ली. हमें इस बात की खुशी थी कि उसकी जान बच गई. कुछ दिन बाद वह ठीक हो जाएगी और फिर दोनों की शादी हो जाएगी.

लेकिन हम गलत थे. वह शादी कभी नहीं हुई. करीब डेढ़ साल बाद, हमारे पास शादी का एक और निमंत्रण आया. हमने एक बार फिर इस आयोजन में शामिल होने की योजना बनाई. इस बार लेकिन दुल्हन का नाम बदला हुआ था. अच्छी-भली, योग्य, शारीरिक तौर पर स्वस्थ और ब्राह्मण जाति के लड़के के माता-पिता द्वारा समान गोत्र की चुनी गई लड़की.

व्हीलचेयर वाली वह लड़की अब किसी को याद नहीं थी. किसी ने उस भव्य रिसेप्शन में उसका जिक्र भी नहीं किया.

मुझे नहीं पता कि मैं अपने कजिन के प्रति गुस्से का किस प्रकार इजहार करूं. मैं कभी नहीं समझ सकी कि उसने उस लड़की को क्यों छोड़ दिया. उस लड़की को जिसके साथ वह अपने कॉलेज के दिनों से साथ था. क्या केवल इसलिए कि वह उसके साथ 'सामान्य सेक्स' नहीं कर सकता था? परिवार शुरू नहीं कर सकता? क्या वह भविष्य में होने वाले खर्चे से डर गया या फिर जिंदगी भर के संघर्ष के डर ने उसे अपना कदम पीछे खिंचने पर मजबूर किया. वह अब एक बच्ची का पिता बन गया है. अमेरिका में अच्छी जिंदगी जी रहा है. लेकिन आखिर कैसे उसने कभी पीछे मुड़कर देखने की जहमत नहीं उठाई?

मुझे याद है. शादी की रस्मों के शुरू होने से ठीक पहले मैंने जब उस लड़की के बारे में उसे याद दिलाया तो बुदबुदाते हुए उसने इतना ही कहा, 'यह सारी बातें काफी उलझी हुई हैं.' इसके बाद वह कहीं और देखने लगा. शादी के बाद आखिर में वह...

करीब छह साल पहले की बात है. मैं और मेरा परिवार किसी रिश्तेदार की शादी के लिए कोलकाता जाने की तैयारी कर रहे थे. तभी यह खबर आई कि जिनकी शादी होने वाली थी वे किसी दुर्घटना का शिकार हो गए हैं. अपने टिकट को कैंसल कराने और इस घटना की और जानकारी लेने की कोशिशों के बीच हमें पता चला कि लड़की की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी है. डॉक्टरों के अनुसार उसे अगले कुछ महीने व्हीलचेयर के सहारे गुजारने थे.

हम इस बारे में कुछ और नहीं कर सकते थे. लेकिन फिर भी हमने राहत की सांस ली. हमें इस बात की खुशी थी कि उसकी जान बच गई. कुछ दिन बाद वह ठीक हो जाएगी और फिर दोनों की शादी हो जाएगी.

लेकिन हम गलत थे. वह शादी कभी नहीं हुई. करीब डेढ़ साल बाद, हमारे पास शादी का एक और निमंत्रण आया. हमने एक बार फिर इस आयोजन में शामिल होने की योजना बनाई. इस बार लेकिन दुल्हन का नाम बदला हुआ था. अच्छी-भली, योग्य, शारीरिक तौर पर स्वस्थ और ब्राह्मण जाति के लड़के के माता-पिता द्वारा समान गोत्र की चुनी गई लड़की.

व्हीलचेयर वाली वह लड़की अब किसी को याद नहीं थी. किसी ने उस भव्य रिसेप्शन में उसका जिक्र भी नहीं किया.

मुझे नहीं पता कि मैं अपने कजिन के प्रति गुस्से का किस प्रकार इजहार करूं. मैं कभी नहीं समझ सकी कि उसने उस लड़की को क्यों छोड़ दिया. उस लड़की को जिसके साथ वह अपने कॉलेज के दिनों से साथ था. क्या केवल इसलिए कि वह उसके साथ 'सामान्य सेक्स' नहीं कर सकता था? परिवार शुरू नहीं कर सकता? क्या वह भविष्य में होने वाले खर्चे से डर गया या फिर जिंदगी भर के संघर्ष के डर ने उसे अपना कदम पीछे खिंचने पर मजबूर किया. वह अब एक बच्ची का पिता बन गया है. अमेरिका में अच्छी जिंदगी जी रहा है. लेकिन आखिर कैसे उसने कभी पीछे मुड़कर देखने की जहमत नहीं उठाई?

मुझे याद है. शादी की रस्मों के शुरू होने से ठीक पहले मैंने जब उस लड़की के बारे में उसे याद दिलाया तो बुदबुदाते हुए उसने इतना ही कहा, 'यह सारी बातें काफी उलझी हुई हैं.' इसके बाद वह कहीं और देखने लगा. शादी के बाद आखिर में वह खुश नजर आ रहा था.

2011 में हुए जनगणना के अनुसार भारत में करीब 2.21 प्रतिशत या 2.68 करोड़ लोग विकलांग हैं. इसमें 1.18 करोड़ महिलाएं हैं. हमारे जैसे पुरुष प्रधान समाज में जहां लिंग आधारित भेदभाव हैं. विकंलागों के लिए हमारा व्यवहार रूखा है, वहां इरा सिंघल जैसों की क्या महत्ता है.

इरा फिजिकली हैंडिकैप हैं. इस साल यूपीएससी परीक्षा में उन्होंने टॉप किया और चर्चा में हैं. नतीजे घोषित होने के बाद इरा ने ज्यादातर समाचार पत्रों और टीवी चैनलों से कहा, 'विडंबना यह है कि मेडिकल और फिजिकल तौर पर मैं आईआरएस बनने के योग्य नहीं हूं. क्लर्क या यहां तक कि  सफाईकर्मी भी नहीं बन सकती. लेकिन नियम मुझे आईएएस बनने की इजाजत देते हैं. मैं सबसे कहना चाहती हूं कि आप अपनी बेटियों को पढ़ाएं और उन्हें काम करने दें.'

क्या उसकी उपलब्धि मुख्यधारा में उसके जुड़ने के संघर्ष की कहानी को फीका कर देगी? उसकी सोच? उसकी प्रतिभा? उसकी अकादमिक उपलब्धियां? क्या इस सफलता से इरा के माता-पिता पूर्व में उसके साथ हुई नाइंसाफी को भूल जाएंगे. इरा ने दिल्ली के नेताजी सुभाष चंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजिनियरिंग की. इसके बाद उन्होंने एफएमएस से एमबीए भी किया और 2010 में इंडियन रेवेन्यू सर्विस परीक्षा को उतीर्ण करने में कामयाब रहीं.

उनके माता-पिता के अनुसार इसके बावजूद उन्हें साइडलाइन कर दिया गया. सिंघल के पिता के मुताबिक, 'पहले रेवेन्यू विभाग ने उन्हें पोस्टिंग देने से इंकार किया. बाद में जब वह इसके लिए तैयार हुआ तब डीओपीटी (डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग) ने इंकार किया.'

क्या सिंघल महिला सशक्तिकरण का एक और उदाहरण बनेंगी जिनकी जीत का उत्सव वुमेंस डे पर मनाया जाएगा? वह कोई ब्रांड एंबेसडर हो जाएंगी, कोई प्रवक्ता और विभिन्न कमर्शियल प्रायोजक उन पर पैसे लुटाएंगे?

एक ऐसी संस्कृति जहां आपकी शारीरिक सौदर्यता ही आपकी सफलता का पैमाना है. वहां क्या हम इरा की इस विकलांगता को स्वीकार कर सकते हैं?

अभी कुछ महीनों पहले मैंने दक्षिणी दिल्ली के एक मल्टीप्लेक्स में मार्गरिटा, विथ ए स्ट्रॉ देखी। मुझे इस फिल्म का एक दृश्य याद आता है. इसमें कल्कि कोचलिन ने सेरेब्रल पैल्सी बीमारी से जूझ रही लैला नाम की एक लड़की का किरदार निभाया हैं. एक दृश्य में उन्हें अपने व्हीलचेयर पर हस्तमैथुन करते दिखाया जाता है. इस दृश्य के दौरान हॉल में बैठे कई लोग खिलाखिला कर हंसते हैं.

फिल्म खत्म होने के बाद जब हम सब बाहर आ रहे थे. मैंने लड़कियों के एक ग्रुप को बात करते हुए सुना. किसी लड़की ने कहा, 'तो क्या लैला किसी व्यक्ति के साथ सेक्स करना चाहती थी. सोचो हर किसी को इसकी जरूरत होती है. यहां तक कि लेस्बियन और विकलांगों को भी इसकी जरूरत है.'

उन लड़कियों के वे शब्द मेरे कानों में रह गए. जिन्हें मैंने इस फिल्म की निर्देशिका शोनाली बोस के एक इंटरव्यू से जोड़ा. जिसमें उन्होंने बताया कि उन्हें यह फिल्म बनाने की प्रेरणा अपनी कजिन मालिनी चिब से मिली. चिब वन लिटिल फिंगर, एन ऑटोबॉयोग्राफी की भी लेखिका हैं. चिब भी इस बीमारी से ग्रसित हैं.

शोनाली के अनुसार, 'मैंने उससे पूछा कि वह अपने 40वें जन्मदिन पर क्या गिफ्ट चाहती है और उसने टेबल पर अपने हाथ रखते हुए बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा, मैं सेक्स करना चाहती हूं. मेरे दिमाग में यह बात बस गई. भारत में शरीर से अक्षम लोगों की सेक्स जिंदगी के बारे में हम कभी खुल के बात नहीं करते. इसी बात ने मुझे यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया.'

भारत में विकलांग महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों की खबरें भी बड़ी मात्रा में आती हैं. जब लड़कियां बड़ी होती है तो उनके माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता उन्हें ऐसे अपराधों से बचाना हो जाता है. सितंबर-2013 में डिसेब्ल्ड पीपल्स इंटरनेशनल (इंडिया) की एक रिपोर्ट के अनुसार विकलांग महिलाओं में करीब 80 प्रतिशत यौन अपराधों का शिकार होती हैं. यह दर सामान्य महिलाओं के साथ होने वाले अपराध से चार गुना ज्यादा है. ऐसी परिस्थिति में हमारे पास विकलांग महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के बारे में क्यों कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है?

हम आखिर कब तक विकलांगता को चैरिटी और कार्यक्रमों तक सीमित रखेंगे?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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